- वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में दिवाला एवं दिवालियापन कानून (संशोधन) बिल 2025 पेश किया.
- इसमें आउट ऑफ कोर्ट सैटलमेंट, ग्रुप इंसॉल्वेंसी और क्रॉस बॉर्डर इंसॉल्वेंसी जैसे कई अहम प्रावधान हैं.
- इनके लागू होने से वास्तव में संकटग्रस्त कंपनियों, निवेशकों और संबंधित पक्षों को राहत मिल सकेगी.
देश में लागू दिवालिया कानून में अहम बदलाव के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को लोकसभा में नया बिल पेश किया. इसका नाम दिवाला एवं दिवालियापन कानून (संशोधन) बिल 2025 (Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill 2025)
है. इसमें आउट ऑफ कोर्ट सैटलमेंट, ग्रुप इंसॉल्वेंसी और क्रॉस-बॉर्डर इंसॉल्वेंसी जैसे कई प्रावधान हैं. इनके लागू होने से वास्तव में संकटग्रस्त कंपनियों, निवेशकों और संबंधित पक्षों को राहत मिल सकेगी. आइए प्रमुख संशोधनों पर नजर डालते हैं.
संशोधन बिल क्यों लाया गया है?
इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड बिल का मकसद कर्ज में डूबी कंपनियों, पार्टनरशिप फर्मों और लोगों के बीच विवाद को उलझाऊ प्रक्रिया में फंसे बिना समयबद्ध तरीके से निपटाने में मदद करना, कारोबार को आसान बनाना, निवेशकों का भरोसा बढ़ाना और आम लोगों के लिए रोजगार व आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना है. बिल से सेवा प्रदाता की एक स्पष्ट परिभाषा दी गई है, जिसमें दिवालिया पेशेवर, इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल एजेंसी और अन्य लोग शामिल हैं. इससे पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी.
लेनदार भी शुरू करा सकेंगे दिवालिया कार्यवाही
इस बहुप्रतीक्षित विधेयक में प्रावधान है कि अब 'वित्तीय लेनदार' भी दिवालिया प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन दे सकेंगे. यदि यह पहली नजर में साबित होता है कि डिफ़ॉल्ट हुआ है तो संबंधित अथॉरिटी को आवेदन स्वीकार करना होगा. इससे दिवालियापन की प्रक्रिया में अनिश्चितता कम होगी और देरी से होने वाले नुकसान से बचा जा सकेगा.
आउट-ऑफ-कोर्ट मैकेनिज्म: ये होगा फायदा
इस बिल के जरिए दिवालिया कानून में कई नए और महत्वपूर्ण प्रावधान जोड़ने का प्रस्ताव किया गया है. इनमें प्रमुख है आउट-ऑफ-कोर्ट मैकेनिज्म. इसके तहत अगर कोई कंपनी वास्तव में कर्ज में फंसकर फेल होती है तो उसे लंबे समय तक कोर्ट, कचहरी, न्यायिक प्रक्रिया में ज्यादा नहीं उलझना होगा. बिल में प्रस्तावित आउट ऑफ कोर्ट मैकेनिज्म के जरिए कंपनी और उसके क्रेडिटर्स (उधार देने वाले) आपस में बात अदालत के बाहर ही समाधान निकाल सकते हैं.
इससे दिवालियापन की समस्या से निपटने में समय और पैसे की बचत होगी, साथ ही कंपनी के जल्दी पटरी पर आने की उम्मीद बढ़ेगी. वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि लागू होने के बाद इससे न्यायिक व्यवस्था पर बोझ कम होगा, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा मिलेगा और क्रेडिट तक पहुंच में सुधार होगा.
ग्रुप इंसॉल्वेंसी फ्रेमवर्क: अलग-अलग कार्यवाही से छूट
कई बार कंपनी के साथ उसकी सहयोगी कंपनियां भी कर्ज के जाल में फंस जाती हैं. इसके लिए बिल में ग्रुप इन्सॉल्वेंसी फ्रेमवर्क का प्रावधान किया गया है. इससे ऐसी कंपनियों के मामलों को एक साथ, तेजी से और कम नुकसान के साथ सुलझाया जा सकेगा. यह सिस्टम जटिल कॉरपोरेट समूहों की वास्तविक दिवालिया स्थिति का कुशलता के साथ समाधान निकालने में मददगार साबित हो सकता है. इससे एक जैसे मामलों में अलग-अलग चलने वाली कार्यवाही से होने वाले समय और संसाधन के नुकसान को कम किया जा सकेगा. साथ ही समन्वित फैसले से बिजनेस को कम नुकसान और लेनदारों को ज्यादा फायदा मिल सकेगा.
क्रॉस बॉर्डर इंसॉल्वेंसी: सुलझेंगे विवाद, बढ़ेगी साख
इस बिल में क्रॉस बॉर्डर इन्सॉल्वेंसी फ्रेमवर्क का भी प्रावधान किया गया है, जो विदेशी और देसी निवेशकों के हितों की रक्षा करने में सहायक होगा. अगर कोई भारतीय कंपनी विदेश में कर्ज के जाल में फंसती है तो उसका समाधान अंतरराष्ट्रीय नियमों के मुताबिक हो सकेगा. इससे निवेशकों का भारत में व्यापार करने में विश्वास बढ़ेगा. विदेशी निवेशक जो भारत में पैसा लगाते हैं, उनमें भरोसा बढ़ेगा कि उनका पैसा सुरक्षित रहेगा, चाहे कंपनी कर्ज में ही क्यों न फंस जाए. इससे भारतीय दिवालिया कार्यवाही को दूसरे देशों में स्वीकार्यता भी बढ़ेगी.
अब तक 6 बार संशोधित हो चुका है IBC
संकट में घिरी कंपनियों के समाधान के लिए 2016 में इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) पेश किया गया था. तब से लेकर इसे 6 बार संशोधित किया जा चुका है. पहला संशोधन 2017 में हुआ था. इसके बाद 2018 में एक बार, 2019 में दो बार, 2020 व 2021 में एक बार इसमें बदलाव किए जा चुके हैं.
मौजूदा संशोधनों के लिए 2023 में सरकार ने हितधारकों से सुझाव मांगे थे. उसी आधार पर अब ये संशोधन बिल तैयार किया गया है. वित्त मंत्री ने नए दिवालिया संशोधन विधेयक को सदन के पटल पर पेश करने के बाद इसे सलेक्ट कमिटी को भेजने की सिफारिश की, जिसे स्वीकार करते हुए कमिटी को विचार विमर्श के लिए भेज दिया गया.