जापान के सेंट्रल बैंक ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसका असर सिर्फ एशिया तक सीमित नहीं रहने वाली. करीब 30 साल बाद जापान ने ब्याज दर को सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया है. इस फैसले का असर ग्लोबल बाजारों से लेकर भारत तक देखने को मिल सकता है.
जापान के सेंट्रल बैंक ने दो दिन की बैठक के बाद ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है. इसके बाद ब्याज दर 0.75 प्रतिशत पर पहुंच गई है, जो 1995 के बाद सबसे ऊंचा स्तर है. बैंक ने साफ कहा है कि अगर अर्थव्यवस्था की हालत में बड़ा बदलाव नहीं होता, तो आगे भी दरें बढ़ाई जा सकती हैं.
सालों तक सस्ती दरें रखने की वजह
1990 के दशक में जापान की अर्थव्यवस्था में बड़ा झटका लगा था. इसके बाद वहां कारोबार और खर्च बढ़ाने के लिए ब्याज दरें बहुत कम रखी गईं. सस्ती दरों से सरकार के भारी कर्ज को संभालने में भी मदद मिली. लेकिन आबादी कम होने और खर्च घटने से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी रही और दाम गिरने लगे.
महंगाई ने बदला सेंट्रल बैंक का रुख
पिछले कुछ सालों में जापान में महंगाई बढ़ी है और यह लगातार बैंक के तय स्तर से ऊपर बनी हुई है. अक्टूबर 2025 में महंगाई करीब 3 प्रतिशत रही. वहीं जापान की करेंसी कमजोर होने से खाने पीने और फ्यूल जैसी चीजें महंगी हो गईं. इससे आम लोगों और कंपनियों पर दबाव बढ़ा.
करेंसी कमजोर होने से बढ़ी परेशानी
जापान की करेंसी डॉलर के मुकाबले काफी कमजोर हो चुकी है. एक डॉलर की कीमत करीब 156 येन तक पहुंच गई है. कमजोर करेंसी की वजह से बाहर से आने वाला सामान महंगा हो गया. वहीं टेक से जुड़ी कंपनियों में डॉलर आधारित निवेश बढ़ने से पैसा येन से बाहर गया.
ब्याज दर बढ़ने से क्या बदलेगा?
ब्याज दर बढ़ने से जापान की करेंसी मजबूत हो सकती है क्योंकि निवेशक ज्यादा रिटर्न के लिए वहां पैसा लगाएंगे. इससे सेंट्रल बैंक का इशारा मिलता है कि वह धीरे धीरे अपनी पुरानी नीति से बाहर निकल रहा है. आगे चलकर दरों में और बढ़ोतरी हो सकती है.
ग्लोबल बाजार में क्या होगा असर?
जापान की ब्याज दर में थोड़ा सा बदलाव भी दुनिया भर के बाजारों को हिला सकता है. कई निवेशक जापान से सस्ते कर्ज लेकर दूसरे देशों में निवेश करते हैं. इसे कैरी ट्रेड कहा जाता है. अगर ब्याज दर बढ़ती है तो यह रणनीति कमजोर हो सकती है और बाजार में एक साथ बिकवाली बढ़ सकती है.
भारत पर क्या होगा असर?
- जापानी निवेशक और विदेशी फंड्स (FII) जो जापान से सस्ता कर्ज लेकर भारतीय शेयर बाजार में निवेश करते थे, वे अब भारत से पैसा निकालकर वापस जापान ले जा सकते हैं. इससे भारतीय बाजार में अस्थिरता आ सकती है.
- यदि ग्लोबल मार्केट में उथल-पुथल मचती है, तो इसका असर भारतीय रुपये की वैल्यू पर भी पड़ सकता है, जिससे वह डॉलर के मुकाबले थोड़ा कमजोर हो सकता है.
- अगर येन मजबूत होता है और रुपया थोड़ा कमजोर, तो भारत की आईटी (IT) और एक्सपोर्ट आधारित कंपनियों को डॉलर/येन कन्वर्जन में फायदा हो सकता है.
- जापान से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी और ऑटो पार्ट्स महंगे हो सकते हैं, जिससे घरेलू स्तर पर कुछ चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
- शॉर्ट टर्म में सेंसेक्स और निफ्टी में उठापटक दिख सकता है, क्योंकि जापानी दरों में बढ़ोतरी का मतलब है पूरी दुनिया में लिक्विडिटी (पैसे की उपलब्धता) का कम होना.
भारत में सरकारी बॉन्ड की दरें जनवरी 2025 के बाद से नीचे आई हैं और फिलहाल करीब 6.6 प्रतिशत पर हैं. भारतीय सेंट्रल बैंक ने फरवरी से दिसंबर 2025 के बीच ब्याज दर में 1.25 प्रतिशत की कटौती की है. बैंकिंग सिस्टम में पर्याप्त पैसा बनाए रखने के लिए कई कदम उठाए गए हैं.आने वाले महीनों में बॉन्ड की दिशा कई बातों पर निर्भर करेगी. राज्यों की उधारी, अगले बजट की योजना और सेंट्रल बैंक की नीति इसमें अहम होगी. उम्मीद है कि सरकार खर्च और कर्ज को संतुलन में रखेगी. वहीं विदेशी निवेश आने से बॉन्ड बाजार को सहारा मिल सकता है.
डिजिटल करेंसी और शेयर बाजार पर असर
जापान में दर बढ़ने की खबर से डिजिटल करेंसी पर भी असर देखा गया. बिटकॉइन जैसी डिजिटल एसेट्स में गिरावट आई. निवेशक जोखिम भरे निवेश से पैसा निकालने लगे. इससे साफ है कि जापान का फैसला सिर्फ उसी देश तक सीमित नहीं है.
दूसरी तरफ अमेरिका के सेंट्रल बैंक ने दिसंबर 2025 में ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती की है. आगे और कटौती के संकेत भी दिए गए हैं. इसके साथ ही सरकार के बॉन्ड खरीदने का ऐलान किया गया है, जिससे बाजार में पैसा बढ़ेगा. इससे जापान के फैसले से बढ़ने वाले दबाव को कुछ हद तक संतुलन मिल सकता है.














