क्या IPL खिलाड़ी अपनी पूरी ऑक्शन रकम घर ले जाते हैं? जानें- टैक्स, सैलरी और इन-हैंड अमाउंट का पूरा हिसाब

IPL 2026 Mini Auction: आईपीएल खिलाड़ी को ऑक्शन का पूरा अमाउंट सीधे जेब में नहीं मिलता. भारत के टैक्स नियमों के अनुसार यह सैलरी खिलाड़ी की एनुअल इनकम में मानी जाती है, और इस पर इनकम टैक्स लगता है.

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  • आईपीएल ऑक्शन में खिलाड़ी की बोली गई रकम उसकी ग्रोस सैलरी होती है, जो पूरे सीजन के लिए तय होती है
  • खिलाड़ी को ऑक्शन में लगी पूरी रकम सीधे नहीं मिलती, क्योंकि इस पर टैक्स और अन्य खर्चे काटे जाते हैं
  • चोट लगने, रिटेंशन पर खिलाड़ी को मिलने वाला अमाउंट कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों, फ्रेंचाइजी के फैसले पर निर्भर होता है
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अबू धाबी में आईपीएल 2026 के लिए मिनी ऑक्शन चल रहा है. करोड़ों की बोली प्लेयर्स पर लगाई जा रही है. ऑस्ट्रेलियाई प्लेयर कैमरन ग्रीन ने तो बोली के मामले में आईपीएल में इतिहास ही बना दिया. केकेआर ने ग्रीन को 25.20 करोड़ में खरीदा है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये भारी भरकम रकम पूरा अमाउंट ग्रीन को मिलेगा? साथ ही क्या खिलाड़ी को बिडिंग अमाउंट इन-हैंड सैलरी के तौर पर मिलती है? जवाब है, नहीं, पूरी रकम नहीं मिलती. यह रकम खिलाड़ी की ग्रोस सैलरी होती है, जिसमें से टैक्स और दूसरे डिडक्शन होते हैं.

इस खबर में आपको आसान भाषा में बताते हैं कि ऑक्शन प्राइस का क्या मतलब होता है और खिलाड़ी को रियल में कितना पैसा मिलता है.

ऑक्शन प्राइस क्या है?

यह सैलरी है, प्राइज मनी नहीं. आईपीएल ऑक्शन में जिस रकम पर किसी खिलाड़ी को खरीदा जाता है (जैसे ₹10 करोड़), वह फ्रेंचाइजी से खिलाड़ी की उस सीजन की सैलरी होती है न कि कोई प्राइज मनी. यह कॉन्ट्रैक्ट पूरे सीजन के लिए होता है. खिलाड़ी चाहे बेंच पर बैठे या हर मैच खेले, उसे कॉन्ट्रैक्ट के अनुसार पूरी सैलरी मिलती है, जब तक कि कॉन्ट्रैक्ट में कोई खास शर्त न हो.

किश्तों में भुगतान कैसे होता है? 

फ्रेंचाइजी यह रकम अक्सर टूर्नामेंट शुरू होने से पहले या उसके दौरान प्लेयर्स को कुछ किश्तों में देती है.

(किसके पर्स में कितना पैसा बचा है) |  यह खिलाड़ी रहे अनसोल्ड | इन खिलाड़ियों पर लगी बोली |

खिलाड़ियों को 'इन-हैंड' कितना मिलता है?

अब आते हैं अपने बड़े सवाल पर कि हाथ में कितना आता है. दरअसल खिलाड़ी को ऑक्शन का पूरा अमाउंट सीधे जेब में नहीं मिलता. भारत के टैक्स नियमों के अनुसार यह सैलरी खिलाड़ी की एनुअल इनकम में मानी जाती है, और इस पर इनकम टैक्स लगता है. हाई-सैलरी ब्रैकेट में टैक्स की दरें काफी ऊंची होती हैं. वहीं, कई खिलाड़ी मैनेजर रखते हैं, जिनकी फीस देनी होती है. कुछ अपनी पर्सनल स्टाफ पर भी खर्च करते हैं. यह सब इसी में से काटा जाता है.

मान लीजिए, किसी खिलाड़ी का ऑक्शन प्राइस ₹2 करोड़ है, तो यह उसकी ग्रोस सैलरी है. टैक्स (30% या उससे ज्यादा) और दूसरे खर्चों को हटाने के बाद, खिलाड़ी के हाथ में लगभग ₹1.3 करोड़ से ₹1.4 करोड़ या उससे कम रकम आती है.

चोट लगने या रिटेंशन पर क्या होता है?

अगर कोई खिलाड़ी चोट या किसी और वजह से पूरा सीजन नहीं खेल पाता, तो पेमेंट कॉन्ट्रैक्ट की शर्तों पर निर्भर करता है. कई बार उन्हें पूरी रकम मिल जाती है और कभी-कभी कम भी हो सकती है.

रिटेंशन करने पर नियम क्या है?

जब किसी खिलाड़ी को ऑक्शन में न भेजकर 'रिटेन' किया जाता है, तो फ्रेंचाइजी और खिलाड़ी मिलकर सैलरी तय करते हैं. यह रकम भी एक सैलरी ही होती है और इस पर भी ऊपर बताए गए टैक्स नियम लागू होते हैं.

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ऑक्शन प्राइस से अलग कमाई कैसे?

ऑक्शन की सैलरी तो बेस इनकम होती है. इसके अलावा खिलाड़ी प्राइज मनी, मैच अवार्ड, ब्रांड एंडोर्समेंट जैसे तरीकों से भी पैसा कमाते हैं.


 

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