- दिल्ली की अदालत ने अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड के खिलाफ बिना सबूत खबरें प्रकाशित करने पर रोक लगाई है.
- कोर्ट ने पत्रकारों और विदेशी संगठनों को भ्रामक सामग्री हटाने या आदेश के पांच दिन में डिलीट करने को कहा है.
- अदाणी ग्रुप ने आरोप लगाया कि कुछ वेबसाइट और सोशल मीडिया पर कंपनी की छवि खराब करने वाली सामग्री डाली गई.
दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) को बड़ी राहत दी. कोर्ट ने कुछ पत्रकारों और विदेशी संगठनों को कंपनी के खिलाफ बिना सबूत वैसी खबरें प्रकाशित करने पर रोक लगा दी, जिससे कंपनी की मानहानि की आशंका है. कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा कि पत्रकारों और विदेशी संगठनों को अदाणी ग्रुप के खिलाफ प्रकाशित लेखों और सोशल मीडिया पोस्ट से वैसी झूठी और भ्रामक सामग्री हटानी होगी, जिससे कंपनी के सम्मान को ठेस पहुंच सकता है.
कोर्ट ने कंपनी की प्रतिष्ठा का हवाला देते हुए कहा, अगर सामग्री हटाना संभव न हो, तो आदेश की तारीख से 5 दिन के भीतर उसे डिलीट करना जरूरी है. कोर्ट ने साफ कहा कि लगातार ऐसी पोस्ट, ट्वीट और वीडियो शेयर करने से कंपनी की छवि को नुकसान पहुंचेगा और मीडिया ट्रायल जैसी स्थिति बन सकती है.
क्या है पूरा मामला?
अदाणी एंटरप्राइजेज ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर आरोप लगाया कि paranjoy.in, adaniwatch.org और adanifiles.com.au जैसी वेबसाइटों के साथ-साथ सोशल मीडिया पर को-ऑर्डिनेट करके ऐसे कंटेंट प्रकाशित किए गए, जिससे अदाणी ग्रुप की छवि खराब हो और उसके अंतरराष्ट्रीय कारोबार में दिक्कत आए. इस केस में पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, रवि नायर, अभिर दासगुप्ता, अयस्कांत दास, आयुष जोशी समेत कई पत्रकार समेत अन्य विदेशी संगठन और प्लेटफॉर्म शामिल हैं.
कंपनी की दलील- देश की छवि को भी नुकसान
कंपनी की तरफ से पेश वकील विजय अग्रवाल ने कोर्ट में कंपनी का पक्ष रखते हुए कहा कि झूठे आरोपों के फैलने से न केवल कंपनी की साख को नुकसान हुआ, बल्कि निवेशकों का भरोसा भी टूटा और भारत की वैश्विक छवि पर असर पड़ा. उन्होंने दलील दी कि अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता.
कोर्ट ने आदेश दिया कि है जब तक अगली सुनवाई नहीं होती, तब तक कोई भी नई झूठी या बिना सबूत वाली सामग्री प्रकाशित नहीं की जा सकती. अगर आरोपी पक्ष आदेश का पालन नहीं करते, तो गूगल, यूट्यूब, एक्स जैसे प्लेटफॉर्म को 36 घंटे के भीतर ऐसी सामग्री हटानी होगी. मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर को होगी.