बड़े या छोटे दोनों ही पर्दों पर अब वैंप यानी कि लेडी विलेन का दौर जोर पकड़ चुका है. कभी प्रेमिका, कभी सास तो कभी सहेली बनकर ये हसीनाएं अपने कातिल अंदाज से दूसरे किरदारों के होश उड़ा देती हैं. इन के कातिलाना अंदाज को पर्दे पर खूब पसंद किया जाता है. लेकिन इन वैंप को पर्दे पर देखते हुए कभी आपने सोचा कि हिंदी सिनेमा की पहली वैंप कौन रही होगी. विलेन का नाम पूछा तो बहुत से पुराने विलेन्स के नाम याद आते हैं. लेकिन फीमेल विलेन यानी कि वैंप के रूप में बहुत पुराना नाम याद नहीं आता. आपको बता दें कि हिंदी सिनेमा की पहली विलेन साल 1948 में पहली बार फिल्मों में दिखाई दीं.
पंजाबी फिल्मों से शुरुआत
हिंदी सिनेमा की पहली विलेन का नाम है कुलदीप कौर. कुलदीप कौर, प्राण की बहुत बड़ी फैन थीं और फिल्मों में काम करने के दौरान उनकी प्राण से दोस्ती भी हो गई थी. कुलदीप कौर बहुत आजाद ख्याल और दबंग किस्म की पंजाबी महिला थीं. जो परिवार से बगावत कर फिल्मों में आईं थीं. उनकी पहली फिल्म थी चमन, ये पंजाबी फिल्म साल 1948 में रिलीज हुई थी और बड़ी हिट भी रही. इसके बाद से ही कुलदीप कौर को वैंप के रोल ऑफर होने लगे थे. 14 साल की उम्र में उनकी शादी हो चुकी थी और 16 की उम्र में वो मां बन गईं फिर भी फिल्मों में काम की खातिर वो मुंबई आईं.
मॉर्डन महिला के किरदार से बदली पहचान
1948 में आई फिल्म गृहस्थी में उन्होंने एक मॉर्डन महिला का किरदार अदा किया. पति से बगावत करने वाली महिला के रोल में कुलदीप कौर जबरदस्त हिट रहीं. इसके बाद वो कनीज, अफसाना, समाधि, बैजू बावरा और अनरकली में दमदार वैंप के रोल में नजर आईं. उनकी निगेटिव इमेज का असर ये हुआ कि उन पर पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप तक लगे. हालांकि ये सब बाद में कोरी अफवाह ही साबित हुए. 1960 में टिटनेस की वजह से उनकी मौत हो गई. तब वो केवल 33 साल की ही थीं.
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