शाहरुख खान (Shah Rukh Khan), प्रीति जिंटा (Preity Zinta) और रानी मुखर्जी (Rani Mukerji) की फिल्म 'वीर-जारा' (Veer Zaara) को आज 16 साल पूरे हो गए. इस मौके पर यश चोपड़ा के साथ काम करने वाले टॉप सिनेमैटोग्राफर अनिल मेहता (Anil Mehta) मेहता ने खुलकर बताया कि किस तरह आदित्य चोपड़ा ने अपने पिता और फिल्मी दुनिया की महान शख्सियत यश चोपड़ा के लिए ट्रिब्यूट के रूप में वीर-जारा की कहानी और पटकथा लिखी थी.
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ब्लॉकबस्टर रोमांटिक फिल्म 'वीर जारा' की 16वीं सालगिरह के मौके पर अनिल कहते हैं, “वीर-जारा में आदि और यश-जी ने जिस तरह साथ मिलकर काम किया, उसे देखकर तो मैं सचमुच हैरान हो गया था. दरअसल इस फिल्म का स्क्रीनप्ले आदि ने लिखा था और मुझे याद है कि एक बार बातचीत के दौरान उन्होंने मुझे बताया था कि, उन्होंने यश चोपड़ा जी को अपने जेहन में रखकर इसे लिखा था.”
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अनिल मेहता (Anil Mehta)आगे कहते हैं, "वाकई वह (आदि) यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि, अगर इस फिल्म को यश चोपड़ा जी बनाएंगे तो वह कैसी होगी. मुझे लगता है कि, यही वजह है कि इस फ़िल्म की सफलता का पूरा क्रेडिट फिल्ममेकर को दिया गया. मेरे विचार से, यह उनके बेटे की ओर से सबसे बेहतर ट्रिब्यूट था. मैं मानता हूं कि, इस फ़िल्म के सीन्स को यश जी के नज़रिए से लिखने और उनकी भावनाओं को पर्दे पर उतारने का पूरा क्रेडिट आदि को जाता है. सेट पर भी, आदि ने हर जरूरी चीज को पूरा करने के लिए एक बड़े सपोर्ट सिस्टम की तरह काम किया.”
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हर फिल्म को देखने का नजरिया बिल्कुल अलग होता है और एक सिनेमैटोग्राफर लिखे हुए शब्दों में जान डाल देता है. 'वीर-जारा' और 'जब तक है जान' के लिए अपने क्रिएटिव विजन के बारे में बताते हुए अनिल कहते हैं, “आप तो जानते ही हैं कि वीर-ज़ारा एक अव्वल दर्जे की क्लासिक लव-स्टोरी थी, जिसके लैंग्वेज और स्पीच की कोई तुलना नहीं है और यही बात इसे बेमिसाल फ़िल्म बनाती है. जबकि, मुझे लगता है कि 'जब तक है जान' में अनुष्का के किरदार को खासतौर पर युवा-वर्ग को ध्यान में रखते हुए और अधिक मज़ेदार तरीके से लिखा गया था. इसलिए, 'जब तक है जान' में जैसे ही अनुष्का का ट्रैक आता है, हमारी फिल्मिंग का तरीका भी बिल्कुल बदल जाता है. सेट पर काफी एनर्जी और बहुत ज्यादा हलचल थी, और इतनी शानदार फिल्म बनाने के लिए हमने काफी बातचीत की, साथ ही बहुत सी चीजों को सेट पर इम्प्रोवाइज किया.”
अनिल मेहता (Anil Mehta) बताते हैं कि, आइकॉनिक यश चोपड़ा जी के साथ क्रिएटिव तरीके से जुड़कर उन्हें काफी अच्छा लगा. इस बारे में बात करते हुए वह कहते हैं, "हम सब जानते हैं कि, जब आप यश चोपड़ा की फिल्म में काम करते हैं तो वहां सभी को बराबरी का दर्जा दिया जाता है, और सेट पर ऐसी क्वालिटी का होना बेहद मायने रखता है. इसलिए, चाहे बॉलीवुड का सबसे बड़ा स्टार हो या फिर कोई बड़ा डायरेक्टर हो, सेट पर काम शुरू होने के बाद सभी का दर्ज़ा एक समान था और सभी ने इस फिल्म में जी-जान से अपना योगदान दिया और, और मैं आपको बता दूं कि शर्मिष्ठा (रॉय, आर्ट डायरेक्टर) ने भी वीर-जारा के लुक में बहुत बड़े पैमाने पर अपना योगदान दिया.”
वह आगे कहते हैं, "सभी जानते हैं कि यश जी स्वाभाविक रूप से एक लीडर थे, इसका मतलब यह है कि वह किसी को कोई बात समझाने के लिए कभी भी ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे. इसका सीधा सा मतलब यह है कि हर कोई उनकी बातों को बड़ी बारीकी से सुनता था और उनके नक्शेदम पर चलने की कोशिश करता था. मुझे उनका एक पसंदीदा शेर आज भी याद है, जिसे वह अक्सर दोहराते रहते थे कि - 'मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर, लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया.' मुझे लगता है कि कहीं-न-कहीं ये पंक्तियां उनके गुणों को सही मायने में दर्शाती हैं. उन्होंने खुद से अपना रास्ता बनाया और फिल्मों के साथ इस सफर की शुरुआत की. फिर हर कोई उनके साथ और बीते वर्षों में उनके द्वारा बनाई गई शानदार फिल्मों के साथ जुड़ता चला गया.”
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'वीर-जारा' (Veer Zaara) और 'जब तक है जान', इन दोनों फिल्मों में शाहरुख हीरो थे. अनिल हमें बताते हैं कि कौन सी बात उन्हें रोमांस का किंग बनाती है और वह कैमरे के सामने इतने सहज तरीके से कैसे काम करते हैं. वह कहते हैं, "एक एक्टर के रूप में मैंने हमेशा शाहरुख को इन्क्रेडबल माना है. मेरा मतलब है कि, उनमें किसी भी चीज को एक पायदान ऊपर ले जाने की काबिलियत है. मुझे वीर-जारा में अदालत में उनके द्वारा पढ़ी गई कविता का दृश्य याद है. उन्होंने बस चंद मिनटों, शायद पांच या दस मिनटों के लिए उस कविता को पढ़ा. और फिर, जब वह सेट पर आए तो मानो पूरी कविता उनके दिमाग में छप चुकी थी. उन्होंने हमारे लिए एक से ज़्यादा बार इस सीन का कंटीन्यूअस टेक दिया, और सच कहूं तो एक बार भी उनके इमोशन में कोई कमी नहीं आई. किसी भी एक्टर के लिए इस लेवल का कंट्रोल और अपने परफॉर्मेंस में इतनी बारीकी देखकर मुझे बड़ा ताज्जुब हुआ.”
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