बॉलीवुड का संगीत पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है, लेकिन फ़िल्मों में कश्मीरी संगीत (Kashmiri Music) की धुने कम ही सुनाई देती हैं. कश्मीरी संगीत की अपनी एक संस्कृति है जो वहां की कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है. जल्द रिलीज़ होने वाली बहुचर्चित फ़िल्म 'नो फादर इन कश्मीर' (No father in kashmir) जिस में सोनी राज़दान (Soni Razdan), अश्विन कुमार, अंशुमन झा, कुलभूषण खरबंदा नज़र आएंगे, उस का पहला गीत रोशे रिलीज़ किया गया है. मूल रूप से रोशे एक लोक गीत है जिसे प्रसिद्ध कश्मीरी कवि हब्बा ख़ातून ने लिखा है, जिन्हें कश्मीर की कोयल कहा जाता है.
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फ़िल्म 'नो फादर इन कश्मीर' (No father in kashmir) का यह गीत प्यार की पुकार है जिसे हब्बा द्वारा लिखा और गाया गया है. फ़िल्म का यह गीत इसी लोक गीत का नया रूप है जो कश्मीर और उसकी विरासत का एक पवित्र हिस्सा है. दिलचस्प बात यह है कि सबसे पहले इस गीत में कश्मीर के चर्चित युवा गायक अली सैफ़ुद्दीन ने जान फूंकी. उसके बाद उनकी आवाज़ में यह गीत अश्विन के फ्रांस में रहने वाले संगीतकार को दिया गया. लोक दूरी और क्रिस्टॉफर ‘डिस्को' मिंक फ्रांस के चर्चित संगीतकार एवं संगीत निर्देशक हैं.
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उन्होंने अली को आवाज़ को शुद्ध कश्मीरी फ़ील के साथ मिक्स किया. इस का संगीत तैयार करते समय उन्होंने क्रिस्टल बस्सचेट जैसे कुछ ऐसे साज़ों का इस्तेमाल किया जो अब संगीत में नामात्र ही प्रयोग किए जाते हैं. रोशे की धुन और बोल पूरी फ़िल्म के साउंडट्रेक का मुख्य हिस्सा हैं जो फ़िल्म की कहानी और इस की अनेक पर्तों से जुड़े हुए है. इस गीत को फीमेल वर्ज़न में भी रिकार्ड किया गया है, जिसे संगीतकारों ने लंडन की पर्किंज़ सिस्टर्ज़ की आवाज़ में रिकार्ड किया है जो की रोशे गीत का एक दूसरा वर्ज़न बन गया है.
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