
हिंदी और बांग्ला सिनेमा के गलियारों में एक ऐसी आवाज गूंजी, जिसने न केवल लाखों दिलों को छुआ, बल्कि देवानंद जैसे सितारे को 'रोमांस किंग' की उपाधि दिलाने में अहम भूमिका निभाई. यह आवाज थी हेमंत कुमार की, जिन्हें प्यार से 'हेमंत दा' कहा जाता है. गायक, संगीतकार और फिल्म निर्माता के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा ने भारतीय सिनेमा में एक अमिट छाप छोड़ी. ‘सुरों के सरताज' की 16 जून को 105वीं जयंती है. उनकी मखमली और रोमांटिक आवाज आज भी रेडियो या म्यूजिक प्लेटफॉर्म पर न केवल सुनी जाती है बल्कि लोग अक्सर गुनगुनाते भी रहते हैं. उन्होंने ऐसे-ऐसे एवरग्रीन गाने दिए, जिन्हें गुनगुनाते ही मन ताजा और दिल खुश हो जाता है.
हेमंत कुमार का असली नाम हेमंत मुखोपाध्याय था. उनका जन्म 16 जून 1920 को वाराणसी में हुआ. उनके परिवार की जड़ें बंगाल में थीं और पालन-पोषण कोलकाता में हुआ. 13 साल की उम्र में 1933 में हेमंत ने ऑल इंडिया रेडियो पर अपना पहला गाना 'अमर गनेते एले नबरुपी चिरंतनी' गाया, यह मौका उनके दोस्त और मशहूर बांग्ला कवि सुभाष मुखोपाध्याय ने दिलाया था.
शिक्षा की बात करें तो उन्होंने शैलेश दत्तगुप्ता से रवींद्र संगीत और उस्ताद फैयाज खां से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली थी. पिता की इच्छा थी कि वह इंजीनियर बनें, मगर उन्होंने संगीत को अपने जीवन के रूप में चुन लिया और बंगाल टेक्निकल इंस्टिट्यूट छोड़कर 'देश' पत्रिका के लिए कहानियां लिखने के साथ-साथ संगीत साधना शुरू कर दी.
1950 और 1960 के दशक में हेमंत कुमार की आवाज छा गई. उनकी आवाज अभिनेता देवानंद के लिए एक खास पहचान बन गई. उनकी गहरी, मखमली और रोमांटिक आवाज ने देवानंद के किरदारों को और आकर्षक बना दिया. संगीतकार सचिन देव बर्मन (एस.डी. बर्मन) के साथ उन्होंने कई यादगार गीत दिए, जिनमें 1952 में आई ‘जाल' का ‘ये रात ये चांदनी फिर कहां, सुन जा दिल की दास्तां' शामिल है. यह गाना, जिसमें देवानंद और गीता बाली की जोड़ी थी, आज भी रोमांस का पर्याय है. साल 1955 में आई थी फिल्म ‘हाउस नं. 44' जिसमें हेमंत ने ‘तेरी दुनिया में जीने से तो बेहतर है कि मर जाएं' और ‘चुप है धरती' जैसे गीत गाए, जो देवानंद की भावनाओं को गहराई से व्यक्त करते हैं.
‘सोलहवां साल' का ‘है अपना दिल तो आवारा, न जाने किस पे आएगा' एक ऐसा गाना था, जिसमें हेमंत की आवाज और देवानंद के अंदाज ने जादू बिखेरा. इस गाने में आर.डी. बर्मन ने भी खास रंग जोड़ा. 1962 में आई थी ‘न तुम हमें जानो, न हम तुम्हें जानें' भी हेमंत की मधुर आवाज का एक नायाब नमूना है, जिसमें गायिका सुमन कल्याणपुर के साथ उनकी जुगलबंदी थी.
1957 की फिल्म ‘प्यासा' में ‘जाने वो कैसे लोग थे जिनके, प्यार को प्यार मिला' गुरु दत्त पर फिल्माया गया. इस गाने में साहिर लुधियानवी के बोल और हेमंत की आवाज ने एक निराश कवि की भावनाओं को जीवंत कर दिया. हेमंत ने न केवल गायन में बल्कि संगीत निर्देशन में भी अपनी प्रतिभा दिखाई. ‘नागिन' (1954) में उनके संगीत ने उन्हें फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार दिलाया. ‘मन डोले मेरा तन डोले' जैसे गाने आज भी लोकप्रिय हैं. ‘बीस साल बाद' में ‘बेकरार करके हमें यूं न जाइए' और ‘कहीं दीप जले कहीं दिल' जैसे गाने उनकी संगीत रचना और गायन दोनों की मिसाल हैं.
अपनी शानदार प्रतिभा को उन्होंने ‘खामोशी' के साथ बरकरार रखा और 1969 की ‘तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतजार है' और ‘कोहरा' के ‘ये नयन डरे डरे' के साथ आगे बढ़ाया. हेमंत ने बांग्ला सिनेमा में भी अपनी छाप छोड़ी और उत्तम कुमार के लिए कई गाने गाए, जो बंगाल में बेहद लोकप्रिय थे. यही नहीं, वह हॉलीवुड के लिए गाना गाने वाले पहले प्लेबैक सिंगर थे. वह बाल्टीमोर, मैरीलैंड की नागरिकता पाने वाले पहले भारतीय गायक थे.
1980 में दिल का दौरा पड़ने के बाद उनकी आवाज प्रभावित हुई, लेकिन उन्होंने गाना जारी रखा. 1984 में ‘ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया' ने उन्हें 50 साल के संगीतमय योगदान के लिए सम्मानित किया. 26 सितंबर 1989 को हेमंत दा का निधन हुआ, लेकिन उनकी आवाज आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं