Gulabo Sitabo Review: शूजित सरकार (Shoojit Sircar) और जूही चतुर्वेदी (Juhi Chaturvedi) जब भी एक साथ फिल्म लेकर आते हैं तो कहानी में कुछ नयापन जरूर होता है. फिर 'गुलाबो सिताबो (Gulabo Sitabo)' में जिस अंदाज में कहानी को कहा गया है, वह अपने आप में काफी काबिलेतारीफ और एकदम नयापन समेटे हुए है. फिल्म की कहानी काफी सटीक और नई, डायरेक्शन एकदम सधा हुआ और एक्टिंग अव्वल दर्जे की है. इस तरह अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) और आयुष्मान खुराना (Ayushmann Khurrana) की जुगलबंदी में फारूक जफर (Farrukh Jafar) का दखल दिल जीत लेने वाला है. फिल्म देखकर यही बात जेहन में आती है कि बंदरों की लड़ाई में बिल्ली फायदा ले गई.
'गुलाबो सिताबो (Gulabo Sitabo Review)' की कहानी मिर्जा (अमिताभ बच्चन) और बांके (आयुष्मान खुराना) की है. बांके किराया नहीं देता है और मिर्जा उसकी नाक में दम करके रखता है. दोनों की नोकझोंक चलती रहती है, और वहीं मिर्जा इस हवेकी को बेचने का फैसला लेता है. लेकिन हवेली मिर्जा की बेगम फातिमा उर्फ फत्तो (फारूक जफर) की है. मिर्जा हवेली को अपने नाम करने की कोशिश करता है. उधर, पुरातत्व विभाग वालों की नजर भी मिर्जा की हवेली पर पड़ती है तो वहीं मिर्जा बिल्डर को अपनी हवेली भी बेच देता है. लेकिन फातिमा उर्फ फत्तो कुछ ऐसा घाव मिर्जा को देती है, जो फिल्म की पूरी टोन ही बदलकर रख देता है. इस तरह आयुष्मान और मिर्जा सिर्फ लकीर पीटते रह जाते हैं, और सांप निकल जाता है.
'गुलाबो सिताबो (Gulabo Sitabo Review)'में अमिताभ बच्चन मिर्जा के रोल में कुछ इस तरह रचे-बसे हैं कि हम भूल ही जाते हैं वह एक्टिंग कर रहे हैं. वहीं आयुष्मान खुराना इस तरह के किरदारों में माहिर हैं. लेकिन फारूक जफर का किरदार और एक्टिंग दोनों ही अव्वल हैं. सपोर्टिंग रोल में बिजेंद्र काला और विजय राज ने भी अच्छा काम किया है. लेकिन फिल्म की जान इसकी कहानी और डायरेक्शन दोनों है. अमेजन प्राइम वीडियो की 'गुलाबो सिताबो (Gulabo Sitabo)'घर बैठे क्वालिटी एंटरटेनमेंट की परफेक्ट डोज है, जिसे छोड़ना कतई नहीं बनता.
रेटिंगः 4/5 स्टार
डायरेक्टरः शूजित सरकार
कलाकारः अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना, फारूक जफर, बिजेंद्र काला और विजय राज
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