चिपको आंदोलन में महिलाओं की रही थी अहम भूमिका
नई दिल्ली:
चिपको आंदोलन (Chipko Movement) की आज 45वीं एनिवर्सरी है. पेड़ों और पर्यावरण को बचाने से जुड़े 'चिपको आंदोलन' की यादें ताजा करने के लिए 26 मार्च का गूगल डूडल '45th Anniversary of the Chipko Movement' टाइटल से बनाया गया है. चिपको आंदोलन की शुरुआत किसानों ने उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तर प्रदेश) में पेड़ों की कटाई का विरोध करने के लिए की थी. वे राज्य के वन विभाग के ठेकेदारों के हाथों से कट रहे पेड़ों पर गुस्सा जाहिर कर रहे थे और उनपर अपना दावा ठोंक रहे थे. आंदोलन की शुरुआत 1973 में चमोली जिले से हुई. यह दशक भर के अंदर उत्तराखंड के हर इलाके में पहुंच गया. इस आंदोलन के प्रणेता सुंदरलाल बहुगुणा थे. इस आंदोलन के तहत लोग पेड़ों से चिपक जाते थे, और उन्हें कटने से बचाते थे. सुंदरलाल बहुगुणा को इसी वजह से वृक्षमित्र भी कहा जाता है. इस आंदोलन में महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई थी.
चिपको आंदोलन का स्लोगन हैः
'क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार.
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार.'
बॉलीवुड ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर फिल्म बनाने की कोई बड़ी कोशिश नहीं की है. लेकिन कई फुटकर कोशिशें होती रही हैं, और उन्हें समय-समय पर सराहा भी जाता रहा है. 'चिपको आंदोलन' से हमें सबक मिलता है कि समय रहते हम चेत गए तो ठीक नहीं तो विनाश का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि पेड़ पृथ्वी की लाइफलाइन हैं और अगर यही नहीं रहे तो कुछ नहीं बचने वाला. पेड़ हैं तो वर्षा है, वर्षा है तो जल है, उसी तरह पेड़ हैं तो प्रदूषण को जीता जा सकता है नहीं तो धरती को रेगिस्तान बनने से कोई नहीं रोक सकता. आइए नजर डालते हैं बॉलीवुड की ऐसी ही पांच फिल्मों पर जिनमें पर्यावण बचाने का संदेश कुछ इस तरह दिया गया हैः
1. अ फ्लाइंग जट्ट (2016):
फिल्म की कहानी एक सुपरहीरो की है जिसे एक पेड़ को बचाना है लेकिन विलेन इस पेड़ समेत पूरे इलाके को अपनी जद में लेना चाहता है. हालांकि फिल्म पूरी तरह कॉमर्शियल है लेकिन इसमें पर्यावरण और पेड़ों के महत्व की बात भी की जाती है.
2. कड़वी हवा (2017):
ये फिल्म बुंदलेखंड इलाके में सूखे की बात कहती है और तेजी से खत्म हो रहे गांवों की बात भी करती है. अगर गांव खत्म होंगे और शहर बढ़ेंगे तो जाहिर है, संसाधनों पर प्रेशर बढ़ेगा और उनका संकट पैदा होगा. इस फिल्म को भी नील माधब पांडा ने डायरेक्ट किया था.
3. द विशिंग ट्री (2017):
ये फिल्म हिल स्टेशन पर रहने वाले पांच बच्चों की हैं जो एक कल्पवृक्ष को बचाना चाहते हैं. लेकिन कुछ लोग अपने निहितार्थों की वजह से इस पेड़ को काटने का इरादा रखते हैं. फिल्म की कहानी में पेड़ों को बचाने का संदेश बहुत ही खूबसूरती के साथ दिया गया है. इसे मणिका शर्मा ने डायरेक्ट किया है.
4. जल (2013):
यह कहानी कच्छ के रण में पानी ढूंढने वाले एक युवक की है जो पानी ढूंढता है. इस फिल्म के जरिये कई तरह के मसलों को छुआ गया है, लेकिन पानी के अलावा भी इसमें कई और मसलेआते हैं.
5. कौन कितने पानी में (2015):
नील माधब पांडा की ये फिल्म बताती है कि अगर हमने आज पानी का सही से इस्तेमाल नहीं किया और संरक्षण नहीं किया तो कल हमें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. बहुत ही हल्के-फुल्के अंदाज में फिल्म में दिखाया गया है कि अगर सब कुछ है लेकिन पानी नहीं तो कुछ भी नहीं है.
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
चिपको आंदोलन का स्लोगन हैः
'क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार.
मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार.'
बॉलीवुड ने पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर फिल्म बनाने की कोई बड़ी कोशिश नहीं की है. लेकिन कई फुटकर कोशिशें होती रही हैं, और उन्हें समय-समय पर सराहा भी जाता रहा है. 'चिपको आंदोलन' से हमें सबक मिलता है कि समय रहते हम चेत गए तो ठीक नहीं तो विनाश का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि पेड़ पृथ्वी की लाइफलाइन हैं और अगर यही नहीं रहे तो कुछ नहीं बचने वाला. पेड़ हैं तो वर्षा है, वर्षा है तो जल है, उसी तरह पेड़ हैं तो प्रदूषण को जीता जा सकता है नहीं तो धरती को रेगिस्तान बनने से कोई नहीं रोक सकता. आइए नजर डालते हैं बॉलीवुड की ऐसी ही पांच फिल्मों पर जिनमें पर्यावण बचाने का संदेश कुछ इस तरह दिया गया हैः
1. अ फ्लाइंग जट्ट (2016):
फिल्म की कहानी एक सुपरहीरो की है जिसे एक पेड़ को बचाना है लेकिन विलेन इस पेड़ समेत पूरे इलाके को अपनी जद में लेना चाहता है. हालांकि फिल्म पूरी तरह कॉमर्शियल है लेकिन इसमें पर्यावरण और पेड़ों के महत्व की बात भी की जाती है.
2. कड़वी हवा (2017):
ये फिल्म बुंदलेखंड इलाके में सूखे की बात कहती है और तेजी से खत्म हो रहे गांवों की बात भी करती है. अगर गांव खत्म होंगे और शहर बढ़ेंगे तो जाहिर है, संसाधनों पर प्रेशर बढ़ेगा और उनका संकट पैदा होगा. इस फिल्म को भी नील माधब पांडा ने डायरेक्ट किया था.
3. द विशिंग ट्री (2017):
ये फिल्म हिल स्टेशन पर रहने वाले पांच बच्चों की हैं जो एक कल्पवृक्ष को बचाना चाहते हैं. लेकिन कुछ लोग अपने निहितार्थों की वजह से इस पेड़ को काटने का इरादा रखते हैं. फिल्म की कहानी में पेड़ों को बचाने का संदेश बहुत ही खूबसूरती के साथ दिया गया है. इसे मणिका शर्मा ने डायरेक्ट किया है.
4. जल (2013):
यह कहानी कच्छ के रण में पानी ढूंढने वाले एक युवक की है जो पानी ढूंढता है. इस फिल्म के जरिये कई तरह के मसलों को छुआ गया है, लेकिन पानी के अलावा भी इसमें कई और मसलेआते हैं.
5. कौन कितने पानी में (2015):
नील माधब पांडा की ये फिल्म बताती है कि अगर हमने आज पानी का सही से इस्तेमाल नहीं किया और संरक्षण नहीं किया तो कल हमें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. बहुत ही हल्के-फुल्के अंदाज में फिल्म में दिखाया गया है कि अगर सब कुछ है लेकिन पानी नहीं तो कुछ भी नहीं है.
...और भी हैं बॉलीवुड से जुड़ी ढेरों ख़बरें...
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