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50 साल पहले इतने रुपये की थी शोले की टिकट, इस कीमत में आज थियेटर में समोसा भी ना मिले

शोले एक्शन-एडवेंचर फिल्म थी जिसे रमेश सिप्पी ने डायरेक्ट किया था. इसकी कहानी दो दोस्त वीरू और जय के बारे में है जो छोटे-मोटे बदमाश हैं. इन्हें रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह ने काम पर रखा ताकि वे एक खतरनाक डाकू गब्बर सिंह को पकड़ सकें.

50 साल पहले इतने रुपये की थी शोले की टिकट, इस कीमत में आज थियेटर में समोसा भी ना मिले
बिग बी ने शेयर की शोले की 50 साल पुरानी टिकट
नई दिल्ली:

मेगास्टार अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने अपनी 1975 की ब्लॉकबस्टर फिल्म 'शोले' के पुराने सिनेमा हॉल टिकट की तस्वीर पोस्ट की. उन्होंने बताया कि उस समय इस टिकट की कीमत सिर्फ 20 रुपये थी. अमिताभ ने ब्लॉग में मुंबई स्थित अपने घर के बाहर फैन्स से वीकली मुलाकात की कुछ तस्वीरें शेयर कीं और इसके साथ ही उन्होंने 'शोले' टिकट की तस्वीर भी दिखाई जिसे उन्होंने काफी संभालकर रखा हुआ था. उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा, "शोले का टिकट... जिसे संभाल कर रखा गया, जो ऊपर लिखी हुई बातों को सच साबित करता है... कीमत सिर्फ 20 रुपये थी."

अमिताभ ये जानकर दंग रह गए कि उस वक्त फिल्म का टिकट 20 रुपये था, और अब उसी कीमत में हॉल में सिर्फ एक कोल्ड ड्रिंक मिलती है. अमिताभ ने आगे लिखा, "मुझे बताया गया है कि आजकल सिनेमा हॉल में एक कोल्ड ड्रिंक की कीमत यही है... क्या ये सच है? बहुत कुछ कहने को है, लेकिन कह नहीं रहा... प्यार और सम्मान."

अमिताभ बच्चन ने शेयर किया शोले का टिकट

अमिताभ बच्चन ने शेयर किया शोले का टिकट

बता दें कि 'शोले' रोमांचक एक्शन-एडवेंचर फिल्म थी जिसे रमेश सिप्पी ने डायरेक्ट किया था. इसकी कहानी दो दोस्त वीरू और जय के बारे में है जो छोटे-मोटे बदमाश हैं. इन्हें रिटायर्ड पुलिस अधिकारी ठाकुर बलदेव सिंह ने काम पर रखा ताकि वे एक खतरनाक डाकू गब्बर सिंह को पकड़ सकें. दोनों अपनी हिम्मत, दोस्ती और चालाकी से गब्बर को चुनौती देते हैं. इस बीच ठाकुर से जुड़े कुछ रहस्य भी उजागर होते हैं. यह फिल्म आज भी दर्शकों के दिलों में खास जगह रखती है.

मेगास्टार अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग में बताया कि रात में क्रिएटिविटी और सोचने का एक खास जादू होता है. उन्होंने कहा कि जब आसपास शांति होती है या सब चुप होते हैं तब दिमाग सबसे साफ और तेज सोच पाता है.

अमिताभ बच्चन ने कहा, "ये वह समय होता है जब खामोशी होती है और हम जागे हुए होते हैं. ये एक रहस्य है, है ना? देर रात का समय सोचने और समझने के लिए सबसे अच्छा होता है. इस बात पर कई विचार हैं, लेकिन दो खास बातें हैं... एक आप जो लिखते हैं उसे अच्छी तरह सुन पाते हैं और दूसरा, शोर के बीच अकेलापन महसूस करते हैं. ये एक अलग तरह की सोच है लेकिन हैरानी की बात है कि जब चारों तरफ शांति होती है तब दिमाग और रचनात्मकता सबसे बेहतर तरीके से काम करते हैं."
 

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