बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं. एनडीए और इंडिया गठबंधन के बीच सीधा मुकाबला है. एनडीए नीतीश सरकार की उपलब्धियों और मुख्य रूप से नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव मैदान में जाने की तैयारी कर रहा है. बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर' को बिहार चुनाव में मुख्य मुद्दा बनाना चाहता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार में हुईं पिछली कुछ रैलियां इसकी गवाह हैं. वहीं राजद, कांग्रेस और वाम दलों का इंडिया गठबंधन सामाजिक न्याय को चुनाव का मुख्य मुद्दा बना रहा है. राजद नेता तेजस्वी यादव ने 'एनडीटीवी' को दिए इंटरव्यू में इसे साफ भी कर दिया. उन्होंने निजी क्षेत्र और न्यायपालिका में आरक्षण के साथ-साथ आरक्षण की सीमा बढ़ाने पर बात की. इंडिया गठबंधन बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के सामने दलितों, पिछड़ों के अधिकारों और डॉ. आंबेडकर के संविधान को बचाने की लड़ाई लड़ने को तैयार है.
संविधान बचाने की लड़ाई
22 जनवरी 2024 को राम मंदिर के उद्घाटन के बाद बीजेपी-आरएसएस को यह उम्मीद थी कि दशकों पुराने वादे को पूरा करने के बाद लोकसभा चुनाव में इसका सीधा फायदा मिलेगा. राम मंदिर और सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे नरेंद्र मोदी ने 'अबकी बार,400 पार' का नारा दिया था. इसके बाद बीजेपी के कई नेताओं ने '...400 पार' के नारे को संविधान बदलने से जोड़ दिया. यह बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस का पुराना एजेंडा है. संविधान पारित होने के तीन दिन बाद 30 नवंबर 1949 को आरएसएस ने उसे खारिज कर दिया था. संघ का मुख पत्र माने जाने वाले'ऑर्गेनाइजर' में एक लेख प्रकाशित हुआ. इसमें लिखा था,''उन्हें यह संविधान स्वीकार नहीं है... यह संविधान भारतीय नहीं है क्योंकि इसमें मनु की संहिताएं नहीं हैं.'' आरएसएस मनुस्मृति पर आधारित संविधान चाहता है. शूद्र (ओबीसी), दलित (एससी) और महिलाएं सदियों से मनुस्मृति के शिकार रहे हैं. इसके जरिए उन्हें शिक्षा, संपत्ति और शस्त्र रखने के अधिकार से वंचित किया गया. डॉक्टर आंबेडकर ने दलितों-वंचितों की सामाजिक पराधीनता के खिलाफ लंबा संघर्ष किया. जब उन्हें संविधान बनाने का मौका मिला तो उन्होंने उसमें दलितों-वंचितों की मुक्ति और उनकी प्रगति के विशेष प्रावधान किए.
जब देश संविधान लागू होने के 75 साल पूरे करने की दहलीज पर था, बीजेपी नेताओं की ओर से किए गए संविधान बदलने के लिए की गई घोषणाओं ने 2024 के लोकसभा चुनाव के माहौल को बदल दिया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संविधान की सुरक्षा को इंडिया गठबंधन का बुनियादी मुद्दा बना दिया. लाल रंग के छोटे आकार वाले संविधान को हाथ में लेकर राहुल गांधी ने बीजेपी-आरएसएस पर जमकर हमला बोला. इसका परिणाम यह हुआ कि बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई.
राहुल गांधी के संविधान बचाने की मुहिम को कमजोर करने के लिए मोदी सरकार 25 जून 2025 से आपातकाल के 50 साल पूरे होने पर 'संविधान हत्या दिवस' के रूप में मना रही है. आरएसएस महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने की मांग की है.उनकी इस मांग का केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान और उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ ने समर्थन किया है. इंडिया गठबंधन इसे बिहार में मुद्दा बना सकता है.
आरक्षण से बीजेपी को हुआ चुनावी घाटा
राहुल गांधी के बाद अब तेजस्वी यादव ने आरक्षण की सीमा बढ़ाने और निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की है. साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में आरक्षण के मुद्दे ने बीजेपी की जीत के मंसूबों पर पानी फेर दिया था. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बिहार की 40 में 31 सीटें जीत ली थीं. बीजेपी इससे उत्साहित थी. इस बीच आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा वाला बयान दे दिया. इसने बिहार चुनाव के रुख को मोड़ दिया. नीतीश कुमार और लालू यादव ने भागवत के इस बयान को आरक्षण खत्म करने की साजिश बताते हुए बीजेपी पर हमला बोल दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि जनता दल (यूनाइटेड), राजद और कांग्रेस के महागठबंधन ने 243 में से 178 सीटें जीत लीं. वहीं बीजेपी का एनडीए 58 सीटों पर सिमट गया था.
आरएसएस प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले आरक्षण की समीक्षा का बयान दिया था.
इस चुनाव के बाद आरएसएस ने आरक्षण पर खामोशी ओढ़ ली. वहीं नरेंद्र मोदी ने अपनी ओबीसी छवि को लेकर मुखर हुए. मोदी सरकार ने इस बीच 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले आर्थिक पिछड़ेपन को आधार बनाकर सामान्य वर्ग को 10 फीसद आरक्षण (ईडब्लूएस) दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस आरक्षण को वैध बता दिया.
देश में कबसे मिल रहा है आरक्षण
आरएसएस मानता रहा है आरक्षण से मेरिट प्रभावित हुआ है. और इससे देश का नुकसान हुआ. क्या यह तथ्यात्मक रूप से सही है? दरअसल, आजादी से पहले दक्षिण भारत में आरक्षण लागू हो चुका था. साल 1902 में कोल्हापुर, 1921 में मैसूर, 1921 में मद्रास प्रेसीडेंसी, 1931 में मुंबई प्रेसिडेंसी और 1935 में त्रावणकोर में आरक्षण लागू हुआ था. इस समय भी देश के कई राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 फीसद से ज्यादा है, मसलन- तमिलनाडु में 69 फीसदी और कर्नाटक में 85 फीसदी.इसके बाद भी ये राज्य विकसित श्रेणी में हैं. वहीं उत्तर भारत में आरक्षण आजादी के बाद लागू हुआ और महज 50 फीसदी तक सीमित है. लेकिन ये राज्य बीमारू राज्यों की श्रेणी में आते हैं. इसलिए यह भ्रामक धारणा है कि आरक्षण से देश का नुकसान हुआ है.
देश में निजीकरण के साथ-साथ सरकारी नौकरियां कम होती गई हैं. लंबे समय से निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग की जा रही है. कांशीराम, रामविलास पासवान और लालू प्रसाद यादव ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की पुरजोर वकालत की. एक बार फिर निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग तेज हुई है. तेजस्वी यादव ने वादा किया है कि सरकार में आने पर वे इसको लागू करेंगे.
इस समय राहुल गांधी ने आरक्षण की लड़ाई को नई धार दी है. जाति जनगणना की जरूरत पर जोर देते हुए वे कहते हैं कि कारपोरेट,उच्च न्यायपालिका, मीडिया और केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव स्तर पर दलित, पिछड़े और आदिवासियों का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है. संविधान लागू होने के 75 साल बाद 24 जून 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने कर्मचारियों के चयन में एससी-एसटी आरक्षण बहाल किया. इसके बाद पांच जुलाई को ओबीसी आरक्षण का भी ऐलान किया गया. इसका श्रेय सीजेआई बीआर गवई को जाता है.यह सवाल अब भी बना हुआ है कि उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों के चयन में आरक्षण कब लागू होगा?
क्या जाति जनगणना से तेज होगी आरक्षण की मांग
जाति जनगणना का मुद्दा तब सुर्खियों में आया जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इसकी मांग को लेकर 23 अगस्त 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. आरक्षण लागू किए जाने को लेकर कई बार जाति जनगणना की जरूरत महसूस की जाती है. भारत में अंतिम जाति जनगणना 1931 में हुई थी.साल 2011 की जनगणना से पहले संसद में जाति जनगणना कराने की मांग को लेकर जोरदार बहस हुई थी. इसके दबाव में 2011 में यूपीए सरकार ने सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना करवाया. लेकिन इसके पूरे आंकड़े कभी नहीं जारी किए गए.
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव आरक्षण की मांग को जोर-शोर से उठा रहे हैं.
नीतीश सरकार ने जाति सर्वेक्षण कराया. इसकी रिपोर्ट 2023 में आई. इसके बाद कांग्रेस शासित कर्नाटक और तेलंगाना राज्यों में जाति सर्वेक्षण कराया गया. इसके बाद से इसकी मांग जोर पकड़ती गई. मोदी सरकार ने एक मई 2025 को अगली जनगणना में जातियों की गिनती का ऐलान किया. देश में जनगणना की प्रक्रिया शुरू हो गई है. जब इसके आंकड़े आएंगे तो पता चलेगा कि देश में किस जाति कि कितनी आबादी है. इसके बाद यह भी पता चलेगा कि देश के संसाधनों पर किस जाति समूह का कितना कब्जा है और कौन सी जातियां कितनी वंचित हैं. ये वंचित जातियां अपना हक मांगेंगी और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को बढ़ाने की मांग तेज होगी. किसी भी सरकार के लिए इस मांग को दबा पाना आसान नहीं होगा. जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद निजी क्षेत्र में आरक्षण की मांग भी तेज होगी, जिसे आजकल राहुल गांधी और तेजस्वी यादव जैसे नेता जोर-शोर से उठा रहे हैं.
लेखक लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.
अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं. उससे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.
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