This Article is From Nov 15, 2023

MP-राजस्थान में किस जाति पर है ज़ोर, टिकट बंटवारे में क्यों पड़ी कमज़ोर...?

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Dharmendra Singh

जैसे हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और होते हैं, उसी तरह राजनीति में कथनी और करनी में बहुत बड़ा फर्क होता है. इस विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे में ऐसा ही देखा जा सकता है. जातिगत गणना के साये में हो रहे विधानसभा चुनाव में पहली बार कांग्रेस जातिगत गणना के ज़रिये चुनावी वैतरणी पार करना चाहती है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी (BJP) भी जाति समीकरण के ज़रिये ही कांग्रेस के प्लान को पंक्चर करना चाहती है. मिज़ोरम की सभी सीटों और छत्तीसगढ़ की 20 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं, जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ की बची हुए सीटों पर चुनाव प्रचार जारी है. कांग्रेस पार्टी ने जातिगत गणना को बड़ा मुद्दा बना दिया है और यह वचन भी दे दिया है कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आती है, तो राज्य में जातिगत गणना कराएगी. राहुल गांधी ने 'जितनी आबादी, उतना हक' बोलकर जातिगत गणना के मुद्दे को हवा देने की कोशिश की है. उधर, अब कांग्रेस के दवाब में अमित शाह ने भी कहा है कि BJP जातिगत गणना का विरोध नहीं करती है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पार्टी इसमें जल्दबाज़ी करेगी, क्योंकि फ़ैसले बहुत सोच-समझकर लेने होंगे. ज़ाहिर है, इस बार के चुनाव में टिकट बंटवारे में जाति का खास ख्याल रखा गया है, लेकिन हकीकत में पोल खुल गई है. राजस्थान में टिकट बंटवारे में कमोबेश जाति पर ध्यान दिया गया है, लेकिन मध्य प्रदेश में OBC के टिकट बंटवारे में नारे और सच्चाई का तालमेल नहीं दिख रहा है.

चुनाव जीतने के कई फैक्टर होते हैं, जिनमें मज़बूत नेतृत्व, मज़बूत संगठन, विचारधारा, नीति, रणनीति, बूथ लेवल पर कार्यकर्ता, लुभावने वादे, जाति समीकरण और जिताऊ उम्मीदवार इत्यादि होते हैं, लेकिन जाति और धर्म को अहम फैक्टर माना जाता है - जैसे, मौजूदा हाल में हिन्दू वोटर BJP की तरफ झुकते हैं, तो मुस्लिम वोटर BJP-विरोधी के समर्थन में एकतरफ़ा उतर जाते हैं. हर एक पार्टी का हर राज्य में अपना वोट, अपना गणित होता है, उसी हिसाब से पार्टी टिकट बांटती है.

सिकुड़ती वोटधारा के चलते कांग्रेस ने खेला बड़ा दांव

दरअसल, कांग्रेस ने सिकुड़ती वोटधारा की वजह से जातिगत गणना का बड़ा दांव खेला है, ताकि पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों में पैठ बनाई जा सके. याद रहे कि केंद्र में सत्ता में रहते हुए कांग्रेस सामाजिक और आर्थिक जनगणना की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं कर पाई थी, जबकि यह सर्वे UPA के कार्यकाल में ही हुआ था, लेकिन अब राजनीतिक मजबूरी की वजह से कांग्रेस जातिगत गणना को मुख्य मुद्दा बना रही है. बड़े-बड़े महापुरुष और बड़े-बड़े नेता देशभर में जातिप्रथा उन्मूलन की बात किया करते थे और जाति व्यवस्था को खत्म करने के लिए रोटी-बेटी के रिश्ते पर भी ज़ोर दिया करते थे, लेकिन वोट की खातिर 'कभी मंडल और कभी कमंडल' का जिन्न एक बार फिर बाहर निकल आया है.

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दरअसल, BJP हिन्दुत्व की राजनीति के ज़रिये इक्का-दुक्का जातियों को छोड़कर कमोबेश सारी जातियों में पैठ बनाने में सफल हुई है. यही वजह रही है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में दो अंकों में सिमट गई है. कांग्रेस BJP की हिन्दुत्व की राजनीति के वर्चस्व को जाति की राजनीति के सहारे तोड़ना चाहती है, इसीलिए कांग्रेस ने बिहार के नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जातिगत गणना की मांग को राष्ट्रीय पटल पर लाने का फ़ैसला किया है. इसकी छाप राजस्थान और मध्य प्रदेश के टिकट बंटवारे में देखी जा सकती है.

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राजस्थान का जातीय गणित

राजस्थान में विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और BJP दोनों ने अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है और दोनों पार्टियों ने जातियों का खास ख्याल रखा है, लेकिन उससे ज़्यादा ज़ोर पार्टी ने अपने समीकरण पर देने का फ़ैसला किया है. पहले OBC की बात करते हैं. राजस्थान में OBC की जनसंख्या करीब 36-38 फ़ीसदी होगी. कांग्रेस ने OBC जातियों को 72 टिकट देने का फ़ैसला किया, जबकि BJP ने 70 उम्मीदवार उतारे हैं, यहां दोनों पार्टियां कमोबेश उनकी जाति की संख्या के हिसाब से टिकट बांटने में सफल रही हैं. OBC में जाटों की संख्या सबसे ज़्यादा 12 फ़ीसदी है, तो कांग्रेस ने 34 और BJP ने 33 टिकट इसी जाति को दी हैं, जो उनकी जाति की जनसंख्या से भी ज़्यादा हैं, लेकिन बड़ी संख्या होने की वजह से दोनों पार्टियों ने इन्हें खास तवज्जो दी है.

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अब बात करते हैं ऊंची जातियों की, जो करीब 20 फ़ीसदी मानी जाती हैं. BJP ने इस पर ज़ोर लगाने की कोशिश की है. BJP ने 63 उम्मीदवारों को टिकट दिए हैं, जबकि कांग्रेस ने सिर्फ 44 सवर्णों को टिकट देने का फ़ैसला किया, जबकि आबादी के हिसाब से ज़्यादा टिकट दिए गए हैं. OBC, ऊंची जाति के बाद आबादी के हिसाब से दलित करीब 17.83 फ़ीसदी हैं, जिनके लिए 34 सीटें आरक्षित हैं और कांग्रेस और BJP ने इतने ही उम्मीदवारों की टिकट दिया है.

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दलितों के बाद आदिवासियों की आबादी 13.18 फ़ीसदी है और 25 सीटें इनके लिए आरक्षित हैं. गौर करने की बात है कि दोनों पार्टियों ने आबादी से ज़्यादा टिकटें देने का फ़ैसला किया है, क्योंकि इनमें मीणा जाति दबंग और मज़बूत मानी जाती है. कांग्रेस ने 33 और BJP ने 30 आदिवासी उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का फ़ैसला किया है. अब बात मुस्लिमों की, जिनकी आबादी करीब 9 फ़ीसदी है. कांग्रेस ने 15 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, तो BJP ने एक भी मुस्लिम को उम्मीदवार नहीं बनाने का फ़ैसला किया है. BJP बहुत कम मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देती है. चूंकि पार्टी की दलील रहती है कि जिताऊ उम्मीदवार को ही पार्टी टिकट देती है, और सच्चाई यह भी है कि मुस्लिम मतदाता BJP को कम ही वोट दिया करते हैं.

मध्य प्रदेश में जाति का गणित हुआ फेल

राजस्थान की तरह मध्य प्रदेश में टिकट बंटवारे में जाति समीकरण पर ज़ोर नहीं दिख रहा है, बल्कि राजनीतिक वर्चस्व को केंद्र में रखा गया है. मध्य प्रदेश की राजनीति उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान की तरह नहीं है, क्योंकि यहां इन तीनों राज्यों की तरह जाति-आधारित राजनीति नहीं होती. यह भी सच है कि मध्य प्रदेश में इन तीन राज्यों की तरह हर जाति के नेता नहीं है, इसीलिए पार्टियां अपने-अपने हिसाब से दांव खेलती हैं - मतलब, जितनी आबादी, उतना हक के नारे फेल होते दिखते हैं. मध्य प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट को जानकारी दी थी कि राज्य में करीब 51 फ़ीसदी OBC आबादी है, मतलब OBC उम्मीदवारों का हक 117 सीटों पर होना चाहिए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कांग्रेस ने OBC के 62 उम्मीदवारों को टिकट देने का फ़ैसला किया, जो महज 27 फ़ीसदी है, जबकि BJP ने 71 OBC उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जो कांग्रेस से 4 फ़ीसदी ज़्यादा, मतलब 31 फ़ीसदी है. OBC की आबादी 51 फ़ीसदी है, जबकि सामान्य जाति की आबादी करीब 10 फ़ीसदी है, लेकिन इस 10 फ़ीसदी जाति का राजनीति पर वर्चस्व है. यही वजह रही है कि कांग्रेस और BJP ने इन्हीं जातियों पर ज़ोर-आज़माइश का फ़ैसला किया है. कांग्रेस ने सामान्य जातियों के 83 उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में जगह दी है, मतलब 10 फ़ीसदी आबादी वाली जाति को 36 फ़ीसदी टिकट मिले हैं, वहीं BJP ने इन्हीं जातियों के 79 उम्मीदवारों को जगह दी है, यानी BJP ने 34 फ़ीसदी सामान्य जाति की हिस्सेदारी तय की है. वहीं, सूबे में आदिवासियों की आबादी 21 फ़ीसदी है, लेकिन कांग्रेस ने 48, और BJP ने 47 उम्मीदवार उतारने का फ़ैसला किया. दलितों की तादाद करीब 15 फ़ीसदी है, लेकिन कांग्रेस और BJP ने 35-35 उम्मीदवारों को टिकट दिया है. चुनावी नारे तो हवा-हवाई हैं, अब देखना है, चुनावी गणित में कौन-सी पार्टी सफल होती है, और कौन फेल.

धर्मेन्द्र कुमार सिंह चुनाव और राजनीतिक विश्लेषक हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.