This Article is From Feb 18, 2024

India के किस राजा ने 1 हजार साल पहले ही किया था Surgical Strike? 10 देशों पर था प्रभाव

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Ravikant Ojha

अंग्रेजी में कहावत है...whoever controls the oceans, runs the world...मतलब जो महासागरों को नियंत्रित करता है, वही दुनिया को चलाता है. इसी ताकत की वजह से अंग्रेजों ने तकरीबन पूरी दुनिया पर राज किया. स्पेन और पुर्तगाल के साम्राज्य भी इसी पावर की वजह से फले-फूले...लेकिन क्या आपको पता है कि ब्रिटेन,स्पेन और पुर्तगालियों से करीब हजार साल पहले भारतीय राजाओं की नौसेना इतनी मजबूत थी कि आज के दौर के इतिहासकार उन्हें 'समुद्र का भगवान' कहते हैं. उनके पास जो नौसेना थी उसकी तूती पूरे दक्षिण एशिया में बोलती थी.

उसका प्रभाव श्रीलंका,इंडोनेशिया,बर्मा,थाईलैंड,मलेशिया,कंबोडिया,वियतनाम,मालद्वीव और सिंगापुर में आज भी दिखाई देता है.अब आप में से बहुतों को अंदाजा लग गया होगा कि हम बात कर रहे हैं दक्षिण भारत के महान चोल साम्राज्य की...ऐसा माना जाता है कि चोलों के काल में ही भारत ने सबसे पहली बार किसी विदेशी धरती पर सर्जिकल स्ट्राइक किया था वो भी अपनी नौसेना के जरिए...अब सवाल ये है कि क्या वाकई उस दौर में चोलों के पास इतनी मजबूत नौसेना थी कि वो दूसरे देशों में घुस कर न सिर्फ हमला कर सकें बल्कि उस पर कब्जा भी कर सकें? आखिर क्या है भारत के पहले सर्जिकल स्ट्राइक की कहानी? ...NDTV इतिहास की नई पेशकश में हम इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढेंगे.  

साल था 1025...मानसून का मौसम था और तेज हवाएं चल रही थीं. इंडोनेशिया में तब श्रीविजय वंश के विजयतुंगवर्मन का राज था. हालांकि उनको पता नहीं था कि एक बड़ी मुसीबत उन पर टूटने वाली है. हुआ यूं कि उनके समुद्री तटों पर एक साथ 14 जगहों पर गुप्त तरीके से हमला हुआ. हमलावर बड़ी-बड़ी नावों में आए थे. वे नाव इतने बड़े थे कि उसमें हाथी और भारी भरकम पत्थर दूर तक फेंकने वाली मशीनें भी मौजूद थीं. हमलावारों ने राजा विजयतुंगवर्मन की सेना को आसानी से हरा दिया और खुद राजा को ही बंदी बना लिया.मामला तब सुलझा जब राजा  विजयतुंगवर्मन ने अपनी बेटी की शादी न सिर्फ हमलावर राजा से की बल्कि समुद्री कारोबार के लिए उनकी अधिनता भी स्वीकार कर ली. जानते हैं हमलावर राजा कौन थे? वे राजा थे महान चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम . अपनी मजबूत नौसेना की बदौलत उन्होंने इस पूरे उपमहाद्वीप के इतिहास की दिशा बदल दी.किसी विदेशी क्षेत्र पर आक्रमण करने वाले वे पहले भारतीय राजा थे.

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राजेन्द्र प्रथम ने श्रीलंका,मालदीव,मलेशिया और दक्षिणी थाईलैंड पर भी इसी तरह से विजय प्राप्त की.यहां तक की चोलों ने थाईलैंड और कंबोडिया के खमेर साम्राज्य से भी कर वसूला. अपनी नौसेना के बूते उन्होंने चीन में भी अपने राजदूत तैनात किए थे. चोलों की नौसेना के विजय अभियानों की वजह से एक समय पूरी बंगाल की खाड़ी को चोलों का झील कहा जाने लगा था. राजेन्द्र प्रथम ने चोल साम्राज्य के प्रभाव को उत्तर भारत में गंगा नदी के किनारे और पूर्व में हिंद महासागर तक बढ़ाया. अब दो सवाल आपके मन में उठ रहे होंगे...

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पहला-आखिर राजेन्द्र प्रथम ने इंडोनेशिया पर हमला क्यों किया? दूसरा ये कि आखिर उनकी नौसेना कैसी थी जो अपनी धरती से हजारों किलोमीटर दूर जीत के झंडे गाड़ रही थी? सबसे पहले जवाब पहले सवाल का- चीनी इतिहासकार झाओ रुकुओ ने 13 वीं सदी में किताब लिखी थी जिसका नाम था- झू फैन ज़ी. उस किताब के मुताबिक 11 शताब्दी में हिंद महासागर क्षेत्र में शक्ति संतुलन अस्थिर स्थिति में था.

ऐसे हालात में इंडोनेशिया के राजा विजयतुंग वर्मन विदेशी जहाजों को अपने बंदरगाहों पर रुकने के लिए मजबूर कर रहे थे. जो जहाज नहीं रुकते थे उनको उनकी नौसेना नष्ट कर देती थी.इसी मसले को लेकर तब के कंबोडिया के राजा सूर्यवर्मन प्रथम ने चोल राजाओं से सहायता मांगी. समुद्री इतिहासकार संजीव सान्याल के मुताबिक हिंद महासागर में शक्ति संतुलन के लिए राजेन्द्र प्रथम ने पहली बार इंडोनेशिया पर हमला किया. इसके लिए उन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक का तरीका ढूंढा. इसके बाद वे रूके नहीं और अपने साम्राज्य का विस्तार करते रहे. कहा जाता है कि उनका साम्राज्य 36 लाख वर्ग किलोमीटर इलाके में फैला था यानी आज के भारत से ज्यादा इलाके में.अब आपको दूसरे सवाल का जवाब देते हैं. मुद्री इतिहासकार जे राजा मोहम्मद के मुताबिक चोलों को लोहे का उपयोग किए बिना  लकड़ी से समुद्र में चलने वाले जहाज बनाने में महारथ हासिल थी.

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उस दौर में उन्होंने रस्सी और लकड़िओं की सहायता से 150 फीट तक लंबे जहाज बनाने की कला जान ली थी. इसके लिए वे शीशम, महुआ, जंगली कटहल और नीम की लकड़ियों का इस्तेमाल करते थे. इसके अलावा सिर्फ जहाज निर्माण ही नहीं चोल जानते थे कि लंबी यात्राओं के लिए अपने जहाजों की व्यवस्था कैसे करनी है. वे विभिन्न प्रकार की खाद्य सामग्री मसलन- चावल,चावल के टुकड़े,दालें,सूखा मांस और मछली के अलावा सब्जियाँ भी अपने नावों में रखते थे. वे बैरल में पीने का पानी ले जाते थे. इसके अलावा अपने नावों पर वे पक्षियों को भी रखते थे जिससे उन्हें जमीन की दूरी का पता चलता था. वे तारों की सहायता ने नेविगेशन का काम लेते थे. वे नाव चलाने के लिए मानसूनी हवाओं का इस्तेमाल करते थे.

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इतिहासकार बताते हैं कि वे भारत से मलेशिया तक की करीब 2,300 किलोमीटर की दूरी महज 30 दिनों में तय कर लेते थे. माना जाता है कि चोल राजवंश का शासन सबसे लंबे समय तक रहा, भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लिहाज से. चोलों के शासन की शुरुआत 300 ईसा पूर्व से मानी जाती है। उन्होंने 1279 ईसवी तक शासन किया था. राजेंद्र तृतीय (Rajendra -III last king of Chola) इसके आखिरी शासक हुए। इस तरह यह भारत का ऐसा वंश है जिसने लगभग 1600 वर्षों तक शासन किया. हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद है. अब चलते-चलते आपको बता देते हैं कि  भारत की नई संसद में जो सेंगोल लगा है वो भी चोल राजाओं की ही देन है.

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