ट्रैफ़िक रूल तोड़ने वाला 'स्पाइडर मैन' लोगों को क्या मैसेज देना चाहता है...?

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Amaresh Saurabh

बीते दिनों एक ऐसी ख़बर आई, जिसे सबने हाथोंहाथ लपक लिया. बात ही कुछ ऐसी थी. दिल्ली की सड़कों पर ट्रैफ़िक रूल तोड़ने के आरोप में 'स्पाइडर मैन' पकड़ा गया. लेकिन इसे एक मामूली घटना समझकर आगे बढ़ जाना ठीक नहीं. मुमकिन है, ट्रैफ़िक रूल तोड़कर 'स्पाइडर मैन' लोगों को कुछ मैसेज देना चाह रहा हो.

सड़क पर क्या हुआ...?

दिल्ली में 'स्पाइडर मैन' का कॉस्ट्यूम पहने एक युवक स्कॉर्पियो कार के बोनट पर बैठकर घूमते देखा गया. लोगों ने ट्रैफ़िक पुलिस से इसकी शिकायत की, तो यह पकड़ में आया. खास बात यह कि इसका बाकी हुलिया तो 'स्पाइडर मैन' जैसा था, लेकिन इसने चप्पल पहन रखी थी. पुलिस ने कुल मिलाकर ₹26,000 का जुर्माना लगाया. ख़बर है कि यही 'स्पाइडर मैन' अप्रैल में भी बाइक से स्टंट करने की वजह से पकड़ा गया था. 20 साल का यह युवक नजफ़गढ़ का रहने वाला है.

नवाब या आम आदमी...?

नजफ़गढ़ से कुछ याद आया? नजफ़गढ़ के नवाब... अपने वीरू भैया भी वहीं के रहने वाले हैं. मुमकिन है, मैदान पर उनकी वीरता के कारनामे देख-देखकर ही इस युवक के मन में नवाबी शौक उपजा हो. लेकिन इसके पैर की चप्पल कहानी में ट्विस्ट ला दे रही है. हो सकता है, यह एक आम आदमी हो, और इसने जो कुछ किया हो, आम से खास बनने की कोशिश में किया हो. जैसे आम आदमी सड़क पर रूल तोड़ता फिरता है, वैसे ही इसने तोड़ा. संभव है कि इसने हर आम आदमी को सोते से जगाने के लिए यह कारनामा किया हो. इसलिए इसे पकड़कर क्या मिलेगा, इसका मैसेज पकड़ने की ज़रूरत है.

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हर रोज़ ट्रैफ़िक रूल तोड़े जाते हैं, चालान काटे जाते हैं, लेकिन लोगों को कितनों की कहानी, कितनों के चालान, कितने सबक याद रह पाते हैं? वे तो भला हो 'स्पाइडर मैन' का, इसने सबका ध्यान खींचा. देखा जाए, तो इसमें यातायात पुलिस का 'ब्रांड एम्बैसेडर' बनने का मैटीरियल मौजूद हैं. कायदे से नया नियम ही बन जाए. ट्रैफ़िक रूल तोड़ना हो, तो किसी सुपरमैन की कॉस्ट्यूम में आइए. लोग देखकर ही समझ जाएंगे कि उनको करना क्या है.

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रील बनाम रीयल

अपने यहां कई तरह के क्राइम को बढ़ावा मिलने के पीछे फिल्मों को ज़िम्मेदार ठहराने की परंपरा रही है. जैसे, लड़के सिगरेट पीना किससे सीखते हैं? अपने चहेते हीरो से. गाली-गलौज कहां से सीखते हैं? वेब सीरीज़ देखकर. सड़कों पर स्टंटबाज़ी करना कहां से सीखते हैं? सिनेमा देखकर. ख़बर है कि 'स्पाइडर मैन' भी रील्स बनाने के लिए यह सब कर रहा था. वह चाहता, तो आसानी से कह सकता था कि जाओ, पहले उस अजय देवगन का चालान लेकर आओ, जिसने इकट्ठे दो-दो बाइक पर स्टंट करके हमें बहकाया. अगर सीन फर्ज़ी था, तो कम से कम पर्दे पर उसका चालान भी तो फर्ज़ी काट सकते थे? बड़ा एक्टर है, तो उसकी गलती माफ़. इधर रील्स की खातिर बोनट पर थोड़ा टशन दिखाया, तो इतनी बड़ी चपत लगा दी!

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चलिए, ठीक है कि पर्दे पर कुछ चीज़ों का डिस्क्लेमर भी दिख जाता है. सिगरेट पीने से 'कर्क रोग' होता है, तंबाकू या गुटखा खाने से यह होता है, वह होता है. लेकिन अगर इतना लिख देने भर से कोई चीज लीगलाइज़ हो जाती हो, तो ठीक है. इधर हम भी गाड़ी पर लिखवा देते हैं - बोनट से फिसलने पर हाथ-पांव टूटने का खतरा है या जान जाने का खतरा है. बस, और कुछ? इतनी बड़ी आबादी में केवल एक आदमी बता दीजिए, जिसने चेतावनी पढ़ने के बाद सिगरेट या गुटखे को वापस दुकानदार को सौंप दिया हो. सवाल है कि अपनी जान को जोखिम में डालने वाले इन स्टंटबाज़ों को कोई क्यों नहीं पकड़ता?

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पॉलिटिकल स्टंट

स्टंट सड़कों पर बैन हो और बाकी हर जगह चलता रहे, ये कैसा इंसाफ? सबसे ज्यादा स्टंटबाजी तो राजनीति में दिखती है. आज राइट वालों से मिल आए. कल लेफ्ट वालों से मिल आए. अगले दिन सीधे राजभवन घूम आए. अब पब्लिक परेशान होती रहे कि आखिर नेताजी जा किधर रहे हैं. कैमरे पर करते रहिए खंडन. आप 'ना' कहेंगे, लोग शर्तिया 'हां' समझेंगे. ऐसे स्टंट कई बार अच्छी-खासी फजीहत करा देते हैं. मध्यावधि चुनाव तक करा देते हैं. हमारे टैक्स का पैसा खर्च होता है. लेकिन फिर भी इन पर कोई रोक नहीं.

दुश्मनों से तुरंत दोस्ती गांठ लेना, दोस्तों को तुरंत दरवाजे का रास्ता दिखा देना, इतना खतरनाक स्टंट और कहां संभव है? ऐसे-ऐसे स्टंट के सामने, कार के बोनट पर बैठना किस गिनती में है भला? वैसे राजनीति में स्टंट के कुछ 'लाइट वर्जन' भी हैं. दूसरों के घर जाकर, जमीन पर बैठकर भोजन कर आइए. सूटकेस लेकर चाहे तो ससुराल हो आइए. पब्लिक के लिए सौगातों का ऐलान कर दीजिए. लोग खुद समझ लेंगे कि चुनाव नजदीक है!

ये जो पब्लिक है!

पता नहीं, इतने समझदार लोगों की बुद्धि सड़कों पर निकलते ही कहां खो जाती है. एकाध शानदार तस्वीर ज़रूर आ जाती है. वह भी साल, दो साल पर. सोशल मीडिया पर एक तस्वीर आपने भी देखी होगी. सड़क के आधे हिस्से में वाहनों की लंबी कतार लगी है. लोग जाम में फंसे हैं. दूसरी ओर वाला रास्ता एकदम खाली पड़ा है. लेकिन कोई भी डिवाइडर वाली लाइन क्रॉस करके आगे निकलने की कोशिश नहीं कर रहा है. देखने वाले तारीफ़ कर रहे हैं कि वाह! कितने कायदा-पसंद लोग हैं. अगर देश में हर कोई ऐसे ही ट्रैफ़िक रूल फॉलो करने लग जाए, तो कहीं भी जाम लगने की नौबत न आए.

यही सबसे बड़ी दिक्कत है. लोग जानते सब हैं. लेकिन सड़क पर करते क्या हैं, यह उस 'स्पाइडर मैन' से ही पूछ लीजिए.

संभलना जरूरी है!

अगर ट्रैफ़िक जाम में फंसकर बर्बाद होने वाले वक्त का हिसाब लगाएं, तो यह हैरान करने वाला है. मान लीजिए, कोई हर रोज़, सुबह-शाम 10-10 मिनट भी ट्रैफ़िक जाम में फंसता है, तो केवल 20 साल में ही वह ज़िन्दगी के 2400 घंटे गंवा देता है. माने पूरे 100 दिन!

इसी तरह, देश में हर साल सड़क दुर्घटनाओं में जितने लोग जान गंवा देते हैं, वह भी बेहद अफ़सोसनाक है. सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2018 से लेकर 2022 तक हर साल करीब डेढ़ लाख लोगों की जान गई. इनमें ओवर स्पीडिंग, नशे में गाड़ी चलाना, गलत साइड से चलना, रेड लाइट जंप करना, ड्राइविंग के दौरान मोबाइल फोन इस्तेमाल करना जैसी वजहें शामिल हैं. ऐसे में हर किसी के लिए एक बड़ी चेतावनी है - खुद संभलकर चलिए. यहां कोई 'सुपरमैन' किसी को बचाने नहीं आ रहा.

नजफ़गढ़ वाले 'स्पाइडर मैन' का मैसेज भी एकदम क्लियर है. घर हो या सड़क, इंसान को इंसान की तरह जीने का सलीका भी आना चाहिए. खुद ही जाल बुनना, अपने ही जाल में फंसे रहना, फिर उसी में दम तोड़ देना क्या इंसानों का काम है?

अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.