गर्मियों के मौसम के अनोखे घर

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Vikram Singh

गर्मियों का मौसम आते ही हमारे आस पास की प्राकृतिक दुनिया में बदलाव आना शुरू हो जाता है. सर्दियों की वजह से जिन पेड़ों के पत्ते झड़ जाते है वो पेड़ फिर से हरे भरे हो जाते है, जंगली फूल खिलना शुरू हो जाते है, और पेड़ों में फल उगना भी शुरू हो जाते है. लेकिन सबसे मजेदार चीज़ जो मुझे इस मौसम के बारे में लगती है वो है नए-नए कीड़ों का निकलना और उनके दवारा किये जाने वाले अद्भुत कार्यों को देखना.

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गर्मियां आते-आते आपने इस तरह के घरों को अपनी दीवारों, पुराने स्टोर रूम में, घर की छतों या पेड़ों की टहनियों में लगे हुए देखा होगा. पर क्या आपने कभी इन्हें करीब से देखा है? या कभी ये जानने की कोशिश की है की कौन इन्हें बनाता है, किस चीज़ से और गर्मियों के मौसम में ही क्यों? 

ये अलग अलग तरह के घर दरअसल एक कीटों के समहू दवारा बनाए जाते हैं जिन्हें ततैया कहा जाता है. अंग्रेजी में इन्हे वास्प के नाम से पुकारा जाता है. पूरी दनिया में इनकी तीस हज़ार से भी जयादा प्रजातियां पायी जाती हैं. हमने ज्यदातर ततैयों के बारे में यही सुना और देखा है के वो एक साथ रहते हैं और एक रानी सभी काम करने वालों को नियंत्रित करती है. लेकिन ततैयों की इन हज़ारों प्रजातियों में से सिर्फ चार से पांच प्रतिशत प्रजातियां ही ऐसी हैं जो समहू में रहती हैं. बाकि सभी ततैयों की प्रजातियां अकेले ही अपना जीवन व्यतीत करती है और केवल प्रजनन के वक्त ही कुछ समय नर और मादा मिलते हैं.

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सामाजिक तरीके से एक साथ रहने वाले ततैये अपना घर बनाने के लिए पेड़-पौधों की बाहरी छाल का इस्तेमाल करते हैं. वो अपने मजबूत जबड़ों की मदद से पेड़ की बाहरी परत को कुरेद लाते हैं और अपनी लार से मिला कर लुगदी बना लेते हैं. ये ठीक वैसी ही प्रक्रिया है जिसका इस्तेमाल हम इंसान कागज़ बनाने के लिए करते हैं.

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काम करने वाला हर एक ततैया बारी-बारी से इस काम को करता है और लगभग एक महीने में वो इस तरह के घरों का निर्माण कर लेते हैं. पर सभी घरों को बनाने में इससे कम और ज़यादा वक्त भी लग जाता है. अगर आपको इन घरों को थोड़ा पास से देखने का मौका मिले तो आप पाएंगे कि ये छोटे-छोटे खानों से मिल के बना हुआ होता है और हर खाने में छह दीवारें होती हैं. इस छह दीवारों वाले खाने का बहुत फायदा भी है. एक तो ये के हर बार इनको छह दीवारें नहीं बनानी पड़ती, दूसरा ये कि इनके बीच में कोई खाली जगह नहीं बचती.

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वैज्ञानिकों का ये मानना है के इस तरह का आकार बाकि सभी आकारों से जयादा मजबूत भी होता है. लेकिन सोचने वाली बात तो ये है के इन छोटे से जीवों ने, जिनका दिमाग एक चीनी के दाने से भी छोटा होता है, यह सब चीज़ी सीखी कहाँ से? मैंने तो कभी इनको भारी बस्ते पहने हुए किसी स्कूल जाते हुए नहीं देखा और न ही किसी प्रयोगशाला में.

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गर्मी के दिनों में अगर आप अपने घर की छत्त के किनारो में किसी अकेली ततैये को मंडराते हुए देखो, तो बहुत मुमकिन है के वो एक रानी ततैया हो, जो एक महफूज जगह ढूंढ रही हो, अपना छत्ता बनाने के लिए.

महफूज़ जगह मिल जाने के बाद रानी लग पड़ती है एक मेहनत भरे काम को करने के लिए. वो अकेली पेड़ों की छाल को कुरेद कर लुगदी बना के छत्ते की शुरुआत करती है. वो पांच से दस खाने बना के हर एक के अंदर एक अंडा देती है और फिर अंडो से इल्लिया निकलने का इंतज़ार करती है. जब ये इल्लियां बड़ी हो जाती है तो ये छत्ते को बड़ा करने का काम संभाल लेती है। कुछ ही दिनों में ये छत्ता ततैयों से भर जाता है और सभी मिलजुल कर काम करते हैं. पर ये खुशहाल दिन जयादा नहीं चलते क्यूंकि समय के साथ-साथ मौसम में भी बदलाव आ जाता है. बरसात जाते जाते कुदरत में खाने की कमी होने लग पड़ती है. और सर्दियां आते-आते लगभग इनके लिए खाने को कुछ नहीं बचता.

धीरे धीरे काम करने वाले ततैये खाना न मिलने की वजह से मरने लग लगते हैं. बचती सिर्फ भविष्य की रानी ततैये ही है जो नरों के साथ मिलन करने के बाद किसी ऐसे स्थान में छिप जाती है जहां वो ठंडी सर्दियां निकाल सकें. आप इसको शीतनिद्रा भी कह सकते हो. यही कारण है कि आप को गर्मियों के मौसम में ही इस तरह के घर बनते देखने का मौका मिलता है.

मैं जादातर सर्दियों के वक्त में ही इन घरों को इकट्ठा करता हूं क्यूंकि इस मौसम में सभी घर खाली हो जाते है. मुझसे अक्सर कई बार ये सवाल पूछा जाता है कि मैं जब ये छत्ते अपने घर लाता हूँ तो अगले साल रानी अंडे कहां देगी? हर साल रानी नयी जगह पे जा के दोबारा से नया घर ही बनाती है. वो पुराने छत्तो में अंडे नहीं देती.

ये तो थी बात उन पांच प्रतिशत प्रजातियों के बारे में जो सामाजिक तरीके से रह के अपना घर बनाती हैं. लेकिन बाकि ततैयों का क्या जो अकेले अपना जीवन व्यतीत करते है? आपने अपनी घर की दीवारों के ऊपर या किनारों पे मिटटी के छोटे छोटे से ढेर देखे होंगे. जिनके घर गावों में हैं उन्होंने अपने गुसलखानों की दीवारों पे मिट्टी के ढेर, जरूर देखे होंगे. ये मिटटी के ढेर ज्यादातर अकेले रहने वाले ततैयों का काम होता है जो इन्हें बनाते हैं अपने अंडे देने के लिए. जिस तरह से सामाजिक ततैयों का घर बहुत सारे ततैये मिल कर बनाते है, उनसे बिलकुल उलट, अकेले रहने वाले ततैयों में सिर्फ रानी ही ये सब करती है.

रानी, गीली मिट्टी के छोटे-छोटे गोले बनाकर अपने मुंह में पकड़कर लाती है और फिर उस से छोटे-छोटे बेलनाकार आकार बनाना शुरू कर देती है, जो अंदर से खाली होते हैं. 

रानी ततैया हर एक खाली जगह पर एक अंडा देती है और उसको सुरक्षित रखने के लिए पूरी तरह से मिट्टी से बंद कर देती है. लेकिन बंद करने से पहले वह अंडों के लिए खाने का इंतजाम करती है. वह मकड़ियों या तितलियों की इल्लियों का शिकार करती है और उनको डंक मार के बेहोश कर देती है और उनको इस खाली जगह में भर देती है जो अंडों से निकले उनके बच्चों का खाना बनेंगे. 

लेकिन अकेले रहने वाले सभी ततैये मिटटी से बने घरों में अपने अंडे नहीं देते. कुछ जमीन के नीचे छोटा सा छेद बनाते है और उनके अंदर मकड़ी, इल्लियों या बाकि कीड़ों को बेहोश कर के लाते है और उनके ऊपर अपने अंडे दे देते हैं और उस छेद को छोटे पत्थर या रेत से ढक देते हैं. मिटटी से बने घरों के अंदर या ज़मीन के अंदर ये अंडे सुरक्षित रहते है और अगली गर्मियों में दोबारा से इसी प्रक्रिया को दोहराने के लिए तैयार हो जाते हैं.

हमारी कुदरत अरबों-खरबों सालों से बहुत ही अद्भुत तरीके से काम करती आ रही है. हर एक जीव, चाहे वो छोटा या बड़ा हो बहुत ही खूबसूरत तरीके से अपने आसपास की दुनिया में जी रहा है. और सबसे मजेदार बात तो ये है कि इनको देखने के लिए हमें बड़े बड़े नेशनल पार्क या जंगलो में भी जाने की जरूरत नहीं. ये सब हमारे घरों के आस पास ही रहते हैं. बस हमें चाहिए है तो थोड़ा सा समय और कुदरत को जानने की थोड़ी सी जिज्ञासा.

इन गर्मियों में आप भी अपने घरों के आस पास बन रहे नए घरों को देखें और कुदरत का लुत्फ उठाएं.

विक्रम सिंह एक स्व-प्रशिक्षित प्रकृतिवादी हैं तथा वह नेशनल ज्योग्राफिक खोजकर्ता हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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