क्या अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीयों का स्वदेश लौटना भारत के लिए झटका है? क्या अमेरिका में रह रहे अवैध प्रवासियों की वापसी मोदी सरकार की बड़ी हार है? इन सवालों का जवाब समझने के लिए उन घटनाओं की श्रृंखला को समझना जरूरी है, जिसने ट्रंप को ये कहने के लिए मजबूर किया कि मोदी वही करेंगे, जो सही है.
20 जनवरी को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के 15 दिनों के अंदर ही डोनाल्ड ट्रंप ने कई ऐतिहासिक कदम उठाने शुरू कर दिए हैं. इनमें सबसे बड़ा कदम अमेरिका के अंदर रह रहे अवैध प्रवासियों को सेना के विमानों के जरिए स्वदेश भेजना है. डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को अमेरिका से बाहर भेजने के इस अभियान में भारत के अठारह हजार अवैध प्रवासियों में से 104 भारतीयों के दल को अमेरिकी एयरफोर्स के C-17 ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के जरिए 02 फरवरी को भारत के लिए रवाना कर दिया. इस समूह को लेकर अमेरिकी सेना का जहाज 05 फरवरी को दोपहर में अमृतसर पहुंच गया. ये सभी ऐसे भारतीय थे, जो बिना किसी कागज के अवैध रास्ते से अमेरिका पहुंचे थे. इससे पहले डोनाल्ड ट्रंप अल सल्वाडोर, ग्वाटेमाला, होंडूरास, मैक्सिको, कोलंबिया जैसे देशों के अवैध प्रवासियों को हजारों की संख्या में अमेरिकी सेना के विमानों से उनके देश रवाना कर चुके हैं. अमेरिकी सेना द्वारा चलाए जा रहे इस अभियान में सरकार पूरा खर्चा उठा रही है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह कदम अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट' की नीति के तहत उठाया है. 20 जनवरी को शपथ ग्रहण समारोह में भाषण देते हुए ट्रंप ने कहा, “अमेरिका का स्वर्ण युग अब शुरू हुआ है. अमेरिका फर्स्ट की नीति के साथ फिर से देश को आगे लेकर जाएंगे.‘' चुनाव प्रचार के दौरान अपने ऊपर हुए जानलेवा हमले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “ भगवान ने मेरी जिंदगी किसी एक मकसद के लिए बख्शी है. मुझे भगवान ने अमेरिका को एक बार फिर महान बनाने के लिए बचाया है.‘'
डोनाल्ड ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट' की नीति पर काम कर रहे हैं तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ‘इंडिया फर्स्ट' और ‘नेशन फर्स्ट' की नीति पर काम कर रहे हैं. 27 फरवरी, 2015 को प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में कहा था, “मेरी सरकार का एक ही धर्म है- इंडिया फर्स्ट”. इसी प्रकार 15 अगस्त, 2024 को लाल किले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, "हम जो भी कर रहे हैं, वो राजनीति का गुणा भाग करके नहीं सोचते हैं. हमारा एक ही संकल्प होता है- नेशन फर्स्ट. नेशन फर्स्ट, राष्ट्रहित सुप्रीम, ये मेरा भारत महान बने, इसी संकल्प को लेकर हम कदम उठाते हैं." अमेरिका और भारत की दोनों ही राष्ट्रवादी सरकारों की सोच एक जैसी है, ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अवैध प्रवासियों के मुद्दे से रिश्तों की गर्मजोशी और नजदीकियों पर बुरा असर पड़ेगा.
भारत के बिना ‘ अमेरिका फर्स्ट' संभव नहीं
डोनाल्ड ट्रंप ने जिस दिन भारत के अवैध प्रवासियों को अमेरिका से वापस भेजने के लिए सेना को आदेश दिया, उसके ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी से फोन पर बातचीत की और उन्हें 13 फरवरी को अमेरिका आने का निमंत्रण दिया. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दुनिया के ऐसे शासनाध्यक्ष हैं, जिनका स्वागत डोनाल्ड ट्रंप अपना दूसरा कार्यकाल संभालने के शुरुआती दिनों में ही व्हाइट हाउस में करेंगे. इससे पहले अपने शपथ ग्रहण समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर को उन्होंने विशेष सम्मान दिया और मेहमानों के बैठने के प्रोटोकॉल में पहली पंक्ति में बिठाया. वहीं, अमेरिका के अन्य मित्र देशों के शासनाध्यक्षों और प्रतिनिधियों को पिछली पंक्तियों में देखा गया. इससे साफ हो जाता है कि डोनाल्ड ट्रंप जानते हैं कि उनके शासनकाल की सफलता, भारत के सहयोग और दोस्ती की नींव पर ही खड़ी होगी. भारत भी डोनाल्ड ट्रंप की इस मानसिकता को समझता है कि एक तरफ उनके लिए अमेरिका फर्स्ट है और दूसरी तरफ भारत की दोस्ती.
डोनाल्ड ट्रंप ने अवैध प्रवासियों को भारत भेजने से पहले प्रधानमंत्री मोदी से जो बात की, उसके बारे में ‘एयरफोर्स वन' में पत्रकारों ने उनसे पूछा कि ‘क्या वह (मोदी) अवैध प्रवासियों को लेने के लिए सहमत हुए हैं'. इसके जवाब में ट्रंप ने कहा, ‘'वह (मोदी) वही करेंगे जो सही है. हम बातचीत कर रहे हैं.'' आगे उन्होंने कहा, ‘'मैंने आज सुबह (सोमवार को) उनसे लंबी बातचीत की. वह संभवतः अगले महीने फरवरी में ‘व्हाइट हाउस' आएंगे. भारत के साथ हमारे बहुत अच्छे संबंध हैं.‘' अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से वार्ता में स्पष्ट कह दिया था, "हमारा मानना है कि अगर हमारे नागरिक यहां अवैध रूप से रह रहे हैं और ये तय हो जाता है कि वे हमारे नागरिक हैं, तो उनकी वापसी के लिए हम हमेशा तैयार हैं." आगे उन्होंने यह भी कहा, “भारत अवैध प्रवासन का कड़ा विरोध करता है, यह देशों की छवि के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि इससे अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है.‘' साफ है कि पीएम मोदी के विजन के अनुरूप भारत अवैध प्रवासियों के मुद्दे पर डोनाल्ड ट्रंप का साथ देने के लिए तैयार है. यह बात समझना महत्वपूर्ण है कि एक तरफ जहां दुनिया के सारे देश ट्रंप की नीति का विरोध कर रहे हैं, अवैध प्रवासियों की वापसी का विरोध कर रहे हैं, वहीं प्रधानमंत्री मोदी ऐसे नागरिकों को भी भारत वापस लौटने का सम्मान दे रहे हैं. इसकी वजह है उनकी ‘इंडिया फर्स्ट' की नीति, जहां हर भारतीय का एक समान सम्मान होता है.
आपदा में विदेशी धरती पर ‘इंडिया फर्स्ट' की नीति
अमेरिका में 'पेपरलेस' यानि बिना कागज पहुंचे भारतीयों को ससम्मान स्वीकार करना, भारत की इंडिया फर्स्ट की नीति का महत्वपूर्ण कदम है. ऐसे कदम पिछले दस सालों में कई बार सरकार ने आपदा और युद्ध के समय उठाए हैं. जिस दिन अमेरिका से आने वाले 205 भारतीयों की खबर आयी, उसी दिन उन 16 युवाओं की खबर कहीं खो गई, जिन्हें लीबिया से भारत सरकार वापस लेकर आ रही है. इन 16 युवाओं को कुछ महीने पहले टूरिस्ट वीजा पर लीबिया में बुलाया गया और वहां उन्हें बंधक बनाकर सीमेंट फैक्ट्री में काम करवाया जा रहा था. आज भारत ‘इंडिया फर्स्ट' की नीति के तहत हर भारतीय की सुरक्षा और सम्मान के लिए काम कर रहा है. 2022 में जब यूक्रेन-रूस युद्ध में भारत के 16000 युवा यूक्रेन में फंस गए थे तो सरकार ऑपरेशन गंगा के तहत न सिर्फ इन युवाओं को वापस देश लेकर आई, बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल जैसे अन्य देशों के भी नागरिकों को सकुशल उनके देश पहुंचाने में मदद की. इसी तरह कोविड की महामारी के दौर में जब कोई भी देश अपने ही नागरिकों का हाथ थामने के लिए भी तैयार नहीं था, तब भारत ने करीब 3.20 करोड़ लोगों को वंदे भारत मिशन के तहत आवागमन की सुविधा प्रदान की. इसी दौर में मालदीव्स और खाड़ी के देशों में फंसे हजारों भारतीयों को लाने के लिए इंडियन नेवी ने ऑपरेशन समुद्र सेतु का अभियान चलाया. ऐसी कई मिसालें हैं, जब भारत ने अपने नागिरकों का हर आपदा और हर मुश्किल में ‘इंडिया फर्स्ट' की नीति के तहत साथ दिया. इसलिए आज अमेरिका फर्स्ट की नीति से भारत की ‘इंडिया फर्स्ट' की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है.
इंडिया फर्स्ट और भारत में अप्रवासी
अवैध रूप से रहने वाले लोग जिस तरह से अमेरिका के लिए समस्या हैं, उसी तरह भारत के लिए भी अवैध रूप से रहने वाले रोहिंग्या और बांग्लादेशी एक बड़ी समस्या हैं. 2019 में सरकार ने ‘इंडिया फर्स्ट' के तहत जब नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में पारित करके कानून बनाया तो उसका देश में ही नही, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों की लेफ्ट लिबरल सरकारों और इकोसिस्टम ने जमकर विरोध किया और एक नैरेटिव खड़ा करने की साजिश रची. आज वैसा ही नैरेटिव डोनाल्ड ट्रंप की नीति के खिलाफ नहीं दिख रहा है. यह भारत की ‘इंडिया फर्स्ट' नीति की जीत है. आने वाले समय में भारत भी उसी नैतिक बल के साथ, देश में अवैध रूप से घुसे प्रवासियों को उनके देश वापस भेज सकता है, जिस नैतिक बल के साथ आज अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के लिए कर रहे हैं. यह कोई नहीं भूल सकता कि 05 अगस्त, 2019 को जब भारत की संसद ने संविधान से आर्टिकल 370 को हटाया था, तब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ही थे और उन्होंने इस मुद्दे पर भारत का पूरा साथ दिया था. भारत ने डोनाल्ड ट्रंप की अप्रवासी नीति को व्यावहारिक समर्थन देते हुए एक तीर से कई निशाने साध लिए हैं.
हरीश चंद्र बर्णवाल वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं...
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