एडिलेड के सवाल, पर्थ में जवाब, गाबा में हिसाब!

विज्ञापन

टीम इंडिया पर उम्मीदों का जितना बोझ है, उतना शायद ही किसी भी खेल में किसी और टीम पर होगा. खेल ही क्यों, शायद आप ये भी मानेंगे कि उम्मीदों का इतना लोड और बोझ तो दो सबसे बड़े लोकतंत्र भारत और अमेरिका की सरकार प्रमुखों पर भी नहीं होगा. हर मैच में सिर्फ और सिर्फ जीत की करोड़ों-करोड़ अपेक्षा. खिलाड़ियों पर हर मैच में प्रदर्शन का दबाव. यानी हर मैच खिलाड़ियों और पूरी टीम के लिए एक ऐसा इम्तिहान, जिसमें सिर्फ अव्वल आने का ही एकमात्र विकल्प. ऐसे में क्यों न हम अपनी टीम को 'एडिलेड के बोझ' की जगह पर्थ की ऐतिहासिक उपलब्धियों के साथ गाबा की जंग के लिए विदा करें!

  • पर्थ में शर्मनाक हार. 
  • सीनियर बोझ बन गए हैं.
  • कोहली मैच विनर नहीं रहे. 
  • रोहित की कप्तानी फ्लॉप है.
  • ये आईपीएल ही खेल सकते हैं.
  • टीम में बड़े बदलाव की जरूरत है.
  • सीरीज में सफाया तय समझो.

ऊपर के ‘7 ज्ञान' इस लेखक के नहीं हैं. ऐसा सोशल मीडिया के स्वयंभू क्रिकेट एक्सपर्ट्स मानते हैं. याद रखें- ये एक्सपर्ट्स करोड़ों फैंस से अलग हैं, उनके सामने मुट्ठी भर भी नहीं हैं. लेकिन इन्होंने पर्थ टेस्ट के बाद क्रिकेटिंग विद्वता की झड़ी लगा दी. कुछ यूं कि जैसे सब-कुछ खत्म हो गया हो. टीम इंडिया के खिलाड़ी खत्म. टीम की उम्मीदें खत्म. लिहाजा टीम इंडिया खत्म. सही है कि इनके सुर से कुछ क्रिकेट हस्तियों के सुर भी मिले.

‘एडिलेड के सवाल, पर्थ में जवाब.' आप सोच सकते हैं कि पहले तो सवाल किए जाते हैं, जवाब तो सवाल पर आते हैं. फिर एडिलेड के सवाल और पर्थ में जवाब क्यों? तो दरअसल, यहां मामला कुछ यूं है कि एडिलेड में 10 विकेट से मिली शिकस्त से जितने भी सवाल उठ रहे हैं उनका जवाब दरअसल, उससे पहले हुए पर्थ टेस्ट में छुपा है.

Advertisement

अब ऊपर के ‘7 ज्ञान' के जवाब में एडिलेड के सिर्फ 5 सवालों का जवाब पर्थ में ढूंढते हैं-

ओपनिंग- 

एडिलेड टेस्ट की किसी भी पारी में हमारे ओपनर्स अच्छी शुरुआत नहीं दे पाए. पहली पारी में 0 और दूसरी पारी में 12 रन पर पहला विकेट खोया. पहली पारी में दोनों ओपनर्स ने मिलकर 37 रन बनाए. दूसरी पारी में यशस्वी और राहुल के कुल रन 31 रहे. लेकिन क्या एक ही मैच पहले पर्थ में जायसवाल और राहुल की 201 रन की ‘यशस्वी पार्टनरशिप' को भुला देंगे? जिन्हें रोहित के बैकअप के साथ भारतीय ओपनिंग जोड़ी पर शक और शंका है, ये सवाल उन्हीं के लिए है.

Advertisement

मिडिल ऑर्डर- 

एडिलेड में दोनों ही पारियों में हमारा मिडिल ऑर्डर प्रतिरोध के उस स्तर पर नहीं पहुंचा, जिसकी दरकार थी. लेकिन इसी एडिलेड में शुभमन का टच इस बात के पक्के संकेत दे गया कि आने वाले 3 मुकाबलों में ये खिलाड़ी विरोधी टीम के लिए शायद कई मौकों पर मुसीबत बनेगा. पंत की भले ही अब तक कोई लंबी पारी नहीं आई हो, लेकिन उन पर कंगारू गेंदबाजों का दबाव न एडिलेड में दिखा और न ही पर्थ में और यही तथ्य हमें भरोसा दे रहा है कि पंत हमेशा की तरह टेस्ट क्रिकेट के विश्व के एक काबिल और भरोसेमंद विकेटकीपर बल्लेबाज पहले भी थे और अब भी हैं. एडिलेड के बाद जिनका भरोसा कोहली को लेकर डगमगा रहा हो, उन्हें पर्थ टेस्ट की उनकी पारी के हाइलाइट्स फिर से जरूर देखने चाहिए. और हां, नीतीश रेड्डी टीम इंडिया के वो X-फैक्टर बनकर उभरे हैं, जिस पर शायद कम ही लोगों का ध्यान गया है. पर्थ में 41 और 38 जबकि एडिलेड में 42 और 42 की पारी. यकीनन लो स्कोरिंग मुकाबलों में रेड्डी का ये प्रदर्शन कमाल का है. आने वाले मैचों में कंगारुओं को परेशान करने वाला है.

Advertisement

गेंदबाजी-

सही है कि एडिलेड में ट्रेविस हेड की काट नहीं दिखी. लाबुशेन ने भी जीत की बुनियाद रखने में बड़ी भूमिका निभाई लेकिन सवाल फिर से ऑस्ट्रेलिया की ओर ही है कि इन दो के सिवा बाकी कौन? पर्थ के बाद एडिलेड में भी ज्यादातर कंगारु बैटर बुमराह के आगे कभी भी सहज नहीं दिखे. सिराज ने भी उन्हें कम परेशान नहीं किया लेकिन जब हम एडिलेड में हेड-लाबुशेन की बात करेंगे, तो पर्थ में यशस्वी-केएल और विराट ने जो किया था उसे क्यों नजरअंदाज करें? कैसे नजरअंदाज करें?

Advertisement

विराट कोहली-

महान खिलाड़ियों के साथ ऐसा अकसर होता है. विराट उन चंद खिलाड़ियों में शुमार रहे हैं, जिनसे हर मुश्किल मौके पर कुछ करने की उम्मीद होती है. एडिलेड की दोनों ही पारियों में विराट ये काम नहीं कर सके. विराट के फॉर्म की निरंतरता में पिछले कुछ समय से आ रहा उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है लेकिन पर्थ के शतक का फ्लो इस बात का सबूत था कि जो लोग कोहली के क्रिकेट करियर को आखिरी पड़ाव पर मान रहे हैं वे एक महान खिलाड़ी की व्याख्या सामान्य खिलाड़ी की तरह कर रहे हैं. 

बाउंसबैक की क्षमता-

एडिलेड में 180 पर सिमटने के बाद टीम इंडिया ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर दबाव बनाकर बाउंस बैक कर सकती है. कई मौकों पर हमने ऐसा किया है. लेकिन एडिलेड में ऐसा हुआ नहीं. ऑस्ट्रेलिया उसी पिच पर 337 का स्कोर कर मैच को खींच ले गई लेकिन तब सवाल उठाने वालों को फिर से पर्थ में इसका जवाब ढूंढ लेना चाहिए कि वहां पहले हमारे गेंदबाजों ने बाउंसबैक कराया और फिर बल्लेबाजों ने पहली पारी की नाकामियों को भूलकर दूसरी पारी में शानदार बाउंसबैक किया. संकेत साफ है. गाबा और उससे आगे जब गेंद फिर से पिंक से रेड होगी तो हमारे खिलाड़ियों का रंग भी बदलेगा.

अत:-

फिर हम यह क्यों मानें कि गाबा में हम एडिलेड की विरासत और बोझ लेकर जाएंगे. हम गाबा में पर्थ की विरासत और बिंदास जीत लेकर भी तो जा सकते हैं. करोड़ों क्रिकेट फैंस को भी पता है कि टीम इंडिया ऐसा कर सकती है. बस स्वयंभू एक्सपर्ट्स टीम को ‘एडिलेड के बोझ' तले दबाकर गाबा भेजने की कोशिश न करें. टीम को पर्थ की ऐतिहासिक विजय गाथा के साथ गाबा जाने दें. खिलाड़ियों को उस गाबा को जी भरकर जी लेने दीजिए, जहां पिछली ही सीरीज में हमने ऑस्ट्रेलियन्स का घमंड तोड़ा था.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Topics mentioned in this article