This Article is From Jun 03, 2021

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की टीकाकरण नीति पर उठाए गंभीर सवाल

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Ravish Kumar

क्या आप उन भारतीय वैज्ञानिकों के नाम जानते हैं जिन्होंने भारत में रहते हुए कोरोना के टीके की खोज की? क्या आपने उनका चेहरा देखा है जिस तरह मंगलयान के समय प्रधानमंत्री के साथ इसरो के वैज्ञानिकों को घुलते-मिलते देखा था. गया कि भारतीय वैज्ञानिकों ने टीके की खोज की है लेकिन उन भारतीय वैज्ञानिकों का ज़िक्र मन की बात में नहीं मिलता है. इसी के साथ आपको बताया गया भारतीय कंपनियों ने टीके की खोज की है. इसमें भी साफ हो गया कि सीरम ने टीके की खोज नहीं की है, वो दूसरे की खोज के आधार पर टीका बना रही है. अब बच गई कोवैक्सिन बनाने वाली भारत बायोटेक. इस भारतीय कंपनी का टीका क्यों नहीं कोविशील्ड की तरह उपलब्ध है और कई जगह तो उपलब्ध ही नहीं है. रुकिए. हर बात में वन नेशन एक ही भाषण के तहत बार बार एक नेशन, वन राशन, वन नेशन वन टैक्स की बात करने वाली मोदी सरकार वन नेशन में एक टीका एक दाम की बात करना भूल गई. यही नहीं, टीके की खरीद की नीति ऐसे बनाई कि लगता है वन नेशन नहीं, वन नेशन में हर स्टेट अपना नेशन है, वो अपना ग्लोबल टेंडर निकाले और खरीदे. इसे दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान बताया गया लेकिन अब इसकी पोल हर स्तर पर खुलती जा रही है. दुनिया में भी और देश के भीतर भी.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि टीका की खरीद और वितरण से नीति का सारा रिकार्ड अदालत में पेश किया जाए. पिछली सुनवाई में ही अदालत का संदेह गहरा हो गया था जब कोर्ट ने सिर्फ इतना समझना चाहिए कि उस नीति का आधार क्या है कि एक ही कंपनी से केंद्र सस्ते दामों में टीका खरीद रहा है, राज्य अलग दाम में और प्राइवेट कंपनी अलग दाम में. कोर्ट ने कहा कि हम पालिसी डाक्यूमेंट देखना चाहते हैं कि इसकी समझ किस आधार पर तैयार की गई है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कह दिया कि सरकार ने 18 साल से 44 साल की उम्र के लोगों के टीका देने की जो नीति बनाई है उसका कोई तार्किक आधार नहीं है. यानी बिना सोचे समझे बनाई गई लगती है.

भारत में महामारी के डेढ़ साल से अधिक अर्सा हो चुका है. इतने लोग मर गए और मार भी दिए गए. तोता रटंत की तरह बताया गया कि दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है लेकिन अदालत और जनता देख रही है कि हर जगह टीका केंद्र बंद होने लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पुतनिक की खरीद कैसे हुई है, इसकी सारी जानकारी पेश करे. कोर्ट ने टीका अभियान की पूरी नीति को कटघरे में खड़ा कर दिया. कोर्ट ने सरकार से कहा है कि 

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- सरकार बताए कि पहले तीन चरणों में आबादी के कितने प्रतिशत पात्र लोगों को टीका दिया गया है
- इसमें गांवों और शहरों की आबादी का प्रतिशत भी बताया जाए
- कोवैक्सिन, कोविशील्ड और स्पुतनिक की खरीद का जो भी रिकार्ड है उसका पूरा डेटा दिया जाए
- जिसमें यह साफ साफ जानकारी हो कि केंद्र सराकर ने किस-किस तारीख को खरीदने के आर्डर की प्रक्रिया शुरू की है
- हर तारीख को कितने डोज़ की ख़रीद का आर्डर किया है. किस तारीख़ को सप्लाई की बात कही गई है
- सरकार यह भी बताए कि उसने पहले दूसरे और तीसरे चऱण में बाकी आबादी को टीका देने की क्या तैयारी की है?

अब सरकार को बताना होगा कि किस तारीख को टीके का आर्डर किया गया है. दुनिया के कई देश पिछले साल मई जून और अगस्त में ही टीके का आर्डर कर रहे थे. भारत क्या कर रहा था थाली बजाने के अलावा. भारत ने कब टीके का आर्डर किया. जनवरी 2021 में जा कर. इस सवाल का जवाब विपक्ष पूछ रहा था लेकिन सरकार साफ-साफ नहीं बता रही थी. अब इसका जवाब कोर्ट में देना होगा.

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यही वो सवाल हैं जो राहुल गांधी शुरू से पूछ रहे हैं कि कोरोना से लड़िए लेकिन पूरी पारदर्शिता के साथ लड़िए. हर जानकारी को सामने रखिए और टीका को लेकर इधर उधर की बात मत कीजिए. सवाल है कि क्या सरकार कोर्ट में यह जानकारी देगी या मना कर देगी, या लिफाफा सिस्टम तो नहीं आ जाएगा कि हम लिफाफे में बताएंगे. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान होने के दावे पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर चुका है.

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सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि हलफमाना दायर करते समय हर दस्तावेज़ की कापी लगाएं. फाइल की नोटिंग लगाएं. जिससे पता चले कि टीका की नीति को लेकर क्या सोचा जा रहा था. दो हफ्ते के भीतर हलफमाना देना होगा.

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44 साल से कम उम्र के लोगों के लिए ही टीका नहीं है. जिन्हें पहला डोज़ लगा था उन्हें दूसरे डोज़ के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा. अचानक दूसरे डोज़ का गैप बढ़ा दिया गया कि तीन महीने के अंतराल पर दूसरा डोज लिया जा सकेगा. जिस टीके को भारतीय भारतीय कहा जा रहा था कोवैक्सिन का पता ही नहीं है कुछ. कंपनी दावा करती है लेकिन लोग टीके का इंतजा़र कर रहे हैं. यही नहीं राज्यों पर टीका खरीदने के लिए थोप दिया गया ताकि पॉलिटिक्स होती रहे और टीवी में डिबेट होता रहे. जबकि पूरी दुनिया में केंद्र सरकार ही टीका खरीद कर अपने राज्यों को दे रही है. वो भी मुफ्त. केंद्र सरकार को ग्लोबल टेंडर निकालना था लेकिन इसकी जिम्मेदारी राज्यों को दे दी गई. बस राज्यों से यह नहीं कहा गया कि अपना अपना विदेश मंत्री भी रख लें और दूतावास भी खोल लें.

बुधवार को केरल विधानसभा ने सत्ता पक्ष और विपक्ष ने सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार से मांग की है कि कोविड का टीका मुफ्त दिया जाए और नागरिकों को समय पर टीका दिया जाए. कुछ दिन पहले ही केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने अन्य मुख्यमंत्रियों से केंद्र पर मिलकर दबाव डालने की अपील की थी. अब उड़ीसा और झारखंड ने भी कहा है कि केंद्र सरकार ही टीका खरीदे और राज्यों को दे. दोनों राज्यों ने कहा है कि विदेशी कंपनियां राज्यों से सीधे तौर पर डील नहीं करना चाहती हैं. ओडिशा ने भी ग्लोबल टेंडर निकाला था लेकिन कोई खास प्रतिक्रिया नहीं मिली. टीका बनाने वाली कंपनियां कानूनी सुरक्षा मांगती हैं, इसकी गारंटी केवल केंद्र दे सकता है. केंद्र को क्या यह पता नहीं था, बिल्कुल पता होगा फिर भी अपनी ज़िम्मेदारी पूरी किए बगैर राज्यों पर ग्लोबल टेंडर का भार डाल दिया गया. अब केंद्र सरकार कह रही है कि कानूनी सुरक्षा देने के लिए तैयार है.

अब वो हेडलाइन गायब हो गई है जिसके ज़रिए प्रोपेगैंडा रचा गया कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है. इसकी हालत ये है कि राज्यों के मुख्यमंत्री सारे मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख रहे हैं. एक दूसरे से अपील कर रहे हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने भी सारे मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा है. आम तौर पर कम बोलने वाले और विवादों से दूर रहने वाले नवीन पटनायक को भी यह कदम उठाना पड़ा है.  उन्होंने लिखा है कि

डियर चीफ मिनिस्टर

पिछले एक साल से कोविड--19 की महामारी ने दुनिया भर के देशों को बुरी तरह प्रभावित किया है. ज़्यादातर देशों ने संक्रमण के कई कई लहर देखे हैं. भारत भी अपवाद नहीं है. हम लोग अभी तक दो दो लहर देख चुके हैं. दूसरी लहर के बाद लोग अगली लहर और वायरस के अगले रुप को लेकर डरे हुए हैं. भारत का हर नागरिक इस महामारी को लेकर किसी न किसी रुप में चिंतित है. अपने को खो देने का डर है या नौकरी या कारोबार खो देने का डर है. कोई नहीं बचा है.

लोगों को आगे की लहरों से बचाने और उम्मीद देने का एक ही तरीका है टीका. जिन देशों ने टीका अभियान पर ध्यान केंद्रित किया है वहां पर कोविड की स्थिति में कमाल का सुधार है. हमें भी अपने लोगों को भरोसा देना होगा.

जब तक सभी राज्य टीका को सर्वोच्च प्राथमिकता नहीं देंगे, युद्ध स्तर पर काम नहीं करेंगे तब कोई राज्य सुरक्षित नहीं है. लेकिन यह जंग राज्य अकेले नहीं लड़ सकते हैं न ही टीका खरीदने के लिए एक दूसरे से लड़ते हुए लड़ सकते हैं.

केंद्र सरकार ने जब से 18 साल से ऊपर के लोगों को टीका देने के तीसरे चरण का एलान किया है तब से टीके की मांग बढ़ गई है. इस नीति के कारण राज्य और प्राइवेट सेक्टर भी टीका खरीद सकते हैं. कई राज्यों ने ग्लोबल टेंडर निकाला लेकिन साफ है कि ग्लोबल कंपनियां केंद्र सरकार की तरफ देख रही हैं. उन्हें केंद्र से स्पष्ट आश्वासन चाहिए. ग्लोबल कंपनियां राज्य सरकारों से सौदा नहीं करना चाहती हैं. दूसरी तरफ घरेलु कंपनियों की भी अपनी सीमाएं हैं, वे भी सप्लाई का वादा नहीं कर पा रही हैं.

मौजूदा हालात में एक ही रास्ता है कि केंद्र सरकार टीका खरीदे और राज्यों को बांटे ताकि जल्द से जल्द सभी नागरिकों को टीका मिल सके. 

जय हिन्द 
नवीन पटनायक

इसी तरह का पत्र झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेने ने भी लिखा है. अदालत का आदेश हो और राज्यों के मुख्यमंत्रियों की आवाज़ सब एक तरह से एक ही दिशा में है कि केंद्र खरीदे. इस पूरी प्रक्रिया में डेढ़ महीने से अधिक का समय बर्बाद हुआ है. 19 अप्रैल को केंद्र ने राज्यों को कहा कि वे टीका खरीद लें और 1 मई से 18 साल से ऊपर के लोगों को टीका देने का काम शुरू कर देंगे. केंद्र के पास टीका खरीदने का डेढ़ साल का वक्त था और राज्यों को टीका अभियान शुरू करने का 11 दिन दिया जाता है. राज्यों के पास पैसे नहीं हैं. केंद्र ने केंद्रीय बजट में टीका अभियान के लिए 35000 करोड़ का प्रावधान किया था.

24 मई को केरल हाईकोर्ट ने कहा था कि सरकार ने रिजर्व बैंक से जो पैसा लिया है, 99,000 करोड़ उसका इस्तमाल टीका खरीदने में क्यों नहीं किया जाता. केरल हाई कोर्ट में भी टीका नीति को लेकर सुनवाई हो रही है. केरल हाई कोर्ट ने तो हिसाब भी लगा दिया कि अगर 250 रुपये के हिसाब से भी टीका खरीदें तो 34000 करोड़ में पूरी आबादी के लिए टीका आ जाएगा.

यही सवाल आज सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि 35000 करोड़ दिया गया था टीके के लिए, इस पैसे का अब तक कैसे इस्तमाल हुआ है. क्यों इस पैसे का इस्तमाल 18-44 साल की उम्र के लोगों को टीका देने के लिए नहीं किया जा सकता. आप जानते हैं कि केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा कि आप खुद ही कंपनियों से खरीदें लेकिन कितना खरीदेंगे यह केंद्र सरकार बताएगी. पैसा राज्यों का होगा लेकिन सप्लाई का कोटा केंद्र तय करेगा. विपक्ष की सरकारें जहां मुखर हैं वहीं बीजेपी की सरकारें चुप हैं. लेकिन वहां की हाईकोर्ट से आती आवाज़ों से पता चल रहा है कि उनके पास भी जवाब नहीं है. 26 मई को गुजरात हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में यह तो बताया है कि तीन करोड़ टीके का आर्डर दिया जा चुका है लेकिन यह नहीं बताया है कि टीका कब मिलेगा. इस पर सरकार चुप है. कोर्ट को राज्य सराकर ने अपने हलफनामे में बताया है कि टीका निर्माताओं ने यह नहीं बताया है कि सप्लाई कब करेंगे.

ये जवाब है गुजरात सरकार का हाई कोर्ट में. आपने हिन्दी में यह समझा कि आप किसी कंपनी को तीन करोड़ टीके का आर्डर देते हैं और कंपनी आपको बताती नहीं है कि टीका कब मिलेगा, फिर भी आप आर्डर देते हैं. ऐसा खरीदार आपने देखा है क्या दुनिया में. माल कब मिलेगा बिना जाने माल का आर्डर दे दिया. तिस पर दावा कि दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है. इस झूठ का पर्दाफाश अदालत से लेकर चौराहे तक पर हो चुका है. आप खुद देख रहे हैं. एक ही जगह इस झूठ का परचम लहरा रहा है वो है गोदी मीडिया. सुप्रीम कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट में किसी के पास कोई जवाब नहीं है. हम सब की जिंदगी दांव पर है और इतने लोगों की जान चली गई तब टीका को लेकर ये हाल है. भले शिवराज सिंह चौहान न बोल पाएं लेकिन उनके राज्य की हकीकत मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में सामने आ रही है. बुधवार को ही मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकार बताए कि राष्ट्रीय टीका नीति के आठवें क्लाज़ का क्या औचित्य है. इसी के तहत राज्य 25 प्रतिशत खरीद सकेंगे और प्राइवेट सेक्टर भी 25 प्रतिशत टीका खरीद सकेगा. याचिकार्ता वकील सुनील गुप्ता ने सवाल किया है कि अगर प्राइवेट सेक्टर सीधे 25 प्रतिशत टीका खरीद सकता है. एक दिन यह भी घोटाला सामने आ सकता है कि प्राइवेट सेक्टर को 25 प्रतिशत से अधिक टीका दिया गया है. आखिर इसकी निगरानी की प्रक्रिया क्या है.

फरवरी में फाइज़र ने आपात स्थिति में मंज़ूरी के अपने आवेदन को वापस ले लिया था. जब लोग मरने लगे तब अप्रैल में कई विदेशी कंपनियों को भारत में टीके की सप्लाई की अनुमति दे दी गई. तब से अब तक दो महीने गुज़र गए लेकिन स्पुतनिक के अलावा किसी विदेशी कंपनी का स्पष्ट बयान नहीं है कि टीका कब आएगा. आज सरकार ने कहा है कि जिस किसी टीके को चुनिंदा देशों में मंज़ूरी मिली है हम उसे मंज़ूरी दे देंगे. इसी बात पर पहले मंज़ूरी नहीं दी गई तो कंपनियां चली गई. अब जब कंपनियों को बुलाया जा रहा है तो उनके पास इतने आर्डर हैं कि वे भारत के नए आर्डर को लेकर कोई गारंटी देने को तैयार नहीं. राज्यों को तो मना ही कर दिया. यही हाल ब्लैक फंगस म्यूकर माइकोसिस की दवा को लेकर है.

इस बीमारी के आ जाने के बाद दवा की नीति का एलान होने लगता है. बताया जाता है कि कंपनियों को लाइसेंस दिया गया है और आयात का आर्डर भी. उस एलान के भी कई दिन गुज़र गए हैं लेकिन दवा नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने इसकी दवा से संबंधित दस्तावेज़ मांगे हैं. यही नहीं आज तेलंगाना हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य को अभी तक ब्लैक फंगस की दवा क्यों नही भेजी गई है. सोचिए वहां के मरीज़ों की क्या हालत हो रही होगी. उनकी किसी की भी वक्त जान जा सकती है. इस हत्या की जिम्मेदारी किसकी है. आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने भी इसी मामले में केंद्र और राज्य से जवाब मांगा है. तो इस तरह से सरकार का हर दावा सुप्रीम कोर्ट से लेकर तमाम हाई कोर्ट में ध्वस्त हो चुका है. टीका में हो रही देरी देश को किसी और लहर के कगार पर लाकर खड़ा कर देगी. एक बार फिर से तबाही आएगी. नए नए दावों के साथ दिन काटने की यह तरकीब अदालतों के इजलास में लड़खड़ा गई है.

कोविड के कारण न जाने कितने बच्चे अनाथ हो गए. राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग के हिसाब से कोई दस हज़ार बच्चे हैं. कुछ के दोनों माता पिता गुज़र गए हैं और कुछ के एक. कुछ बच्चे लावारिस भी हैं. ऐसे बच्चों की परवरिश की नीतियां बन रही हैं लेकिन क्या वो काफी होगा. जो बच्चा शहर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा होगा उसकी पढ़ाई के खर्चे का क्या होगा, जो बच्चा सरकारी स्कूल में पढ़ रहा होगा उसकी पढ़ाई का बंदोबस्त कैसे होगा. बात पढ़ाई की नहीं है उनकी भावनात्मक सुरक्षा का भी है.