मौत सबसे बड़ा सच है. जो दुनिया में आया है वो जाएगा और जाने वाले कभी लौट कर नहीं आते. ये ज़िंदगी के वो फ़लसफ़े हैं जिनसे हर कोई वाकिफ़ है. हम जानते हैं कि हमारे जीवन में शामिल हर एक डोर को टूटना है. बावजूद इसके ऐसे पलों का सामना करने में आंखें नम होती हैं और कुछ मौतों ऐसी भी होती हैं, जो ताज़िंदगी अफ़सोस का सबब बनती हैं.
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के डिप्टी रजिस्ट्रार दीपेंद्र सिंह बघेल सर ने शनिवार 6 जनवरी की शाम आंखें बंद कर लीं. उन्हें सोते समय दिल का दौरा पड़ा था. परिवार और क़रीबी तुरंत अस्पताल लेकर भागे लेकिन डॉक्टरों की सारी कोशिशें नाकाम साबित हुईं. बघेल सर महज़ 54-55 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए.
वो सालों यूनिवर्सिटी के भोपाल स्थित मेन कैम्पस से जुड़े रहे. पिछले कुछ समय से रीवा परिसर में अपने दायित्वों को अंजाम दे रहे थे. बघेल सर यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक पद पर थे. लेकिन उनके ज्ञान और योग्यता के मद्देनज़र यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनसे ज़्यादातर अध्यापन का ही कार्य लिया. ख़ुद बघेल सर को भी छात्रों को पढ़ाना और उनका मार्गदर्शन करना ज़्यादा पसंद था. छात्र उन्हें हाथों-हाथ लेते थे. यूनिवर्सिटी के शिक्षकों में भी उनका नाम और सम्मान था.
2005 के जुलाई महीने का वो आरंभ याद आ रहा है, जब सोलह छात्र-छात्राओं का हमारा बैच यूनिवर्सिटी में एमए इन मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई करने पहुंचा था. युवा ऊर्जा से ओत-प्रोत हम सभी लोग, जिनकी आंखों में अपने जैसे बाक़ी युवाओं की तरह भविष्य के सपने थे. ज़ाहिर सी बात है कि हर कोई अपने सपनों की ताबीर चाहता था. हम ख़ुशनसीब थे कि यूनिवर्सिटी में हमारे डिपार्टमेंट की बागडोर प्रोफ़ेसर दविंदर कौर उप्पल और बघेल सर के हाथ में थी. उप्पल मैम थोड़ा कड़क स्वभाव की थीं. उनसे बातें तो ख़ूब होती थीं लेकिन हम अपनी बात थोड़ा संभल कर ही रखते थे. वो बड़े सलीके से डांट भी लगा देती थीं. बघेल सर सरल और सौम्य व्यक्तित्व के थे. एक शर्मीला सा इंसान जो दुनिया जहान के तमाम ज्ञान और जानकारियों को अपनी शख़्सियत में समेट कर रखता था. आप एक बार टॉपिक तो छेड़िए. साहित्य, समाजशास्त्र, इतिहास, भूगोल, दर्शन , राजनीति और विज्ञान से लेकर कला क्षेत्र तक.... बघेल सर हर टॉपिक पर बात कर सकते थे. और किसी भी विषय पर उनकी बातें सतही नहीं होती थीं. कुछ भी पढ़ाते और बताते हुए वो तथ्यों से परे कभी नहीं रहे. ख़ास बात ये भी थी कि ज्ञान का वो सूरज अभिमान से कोसों दूर था.
उन्होंने हमारी कक्षाओं को किताबी ज्ञान की सीमाओं में नहीं बांधा. बघेल सर और उप्पल मैम ने हमारे व्यक्तित्व को निखारने की कोशिश की. हमारी सोच के दायरे को बढ़ाने, उसे विकसित करने में मदद की. यह हमारे लिए उनका सबसे बड़ा योगदान है, जिसके लिए मेरे जैसे उनके तमाम छात्र हमेशा ऋणी रहेंगे.
मुझे याद है कि जब पढ़ाई के दौरान मैंने और मेरे विभाग के बाक़ी सभी साथियों ने अख़बारों और पत्रिकाओं में लिखना शुरू किया था, तो उन्होंने हमें कितना प्रोत्साहित किया था. अपनी छोटी-छोटी कामयाबियों पर हमने उनकी आंखों में चमक देखी, उनकी ख़ुशी को महसूस किया है.
मैं उस परिवार से हूं, जहां तीन पीढ़ियों से लोग शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े हैं. मैं जानता हूं कि ईमानदार और योग्य शिक्षक को कितना सम्मान मिलता है. बघेल सर शिक्षकों की उसी समृद्ध परंपरा के प्रतिनिधि थे. वो एक सूरज थे, जिसकी रौशनी के प्रताप में मेरे जैसे अदना लोगों समेत न जाने कितने चांद-तारे प्रकाश बिखेर रहे हैं.
कोरोना काल में उप्पल मैम भी गुज़र गईं. उनका जाना बहुत बड़ा झटका था. फिर लगा कि सर का साया साथ है. अब वो भी नहीं रहे.
मेरे दिल में आप हमेशा ज़िंदा रहेंगे बघेल सर. आपका जाना हमें अफ़सोस में ज़रूर डुबो गया है लेकिन अभिमान भी है आप पर... क्योंकि संक्षिप्त सी जीवन यात्रा को आप सार्थक करके गए हैं. आप सही मायनों में ज़िंदगी जीकर गए हैं सर.
(शोऐब अहमद ख़ान एनडीटीवी इंडिया में आउटपुट एडिटर हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.