ब्लॉग: PM मोदी के संकल्पों के साथ समाप्त हुआ शंघाई सहयोग संगठन का 25वां शिखर सम्मेलन

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डॉ. नीरज कुमार

शंघाई सहयोग संगठन के राष्ट्राध्यक्षों का पच्चीसवां शिखर सम्मेलन संयुक्त घोषणा पत्र के साथ समाप्त हो गया. 31 अगस्त से लेकर 1 सितंबर तक चलने वाली इस बैठक में सदस्य देशों ने आतंकवाद, ट्रंप की संरक्षणवादी नीति, रूस और यूक्रेन युद्ध, गाजा संकट एवं वैश्विक व्यवस्था पर पश्चिम के अधिपत्य के साथ कमजोर होती ग्लोबल गवर्नेंस पर अपनी चिंताएं साझा की. इन चुनौतियों से निपटने के लिए इन्होंने अपने घोषणा पत्र में भारत के द्वारा दिए गए मूल संकल्प "एक पृथ्वी, एक परिवार एवं एक भविष्य" पर जोड़ दिया.

चूंकि शंघाई सहयोग संगठन का मुख्य जोर बहुध्रुवीकृत व्यवस्था को मजबूत करते हुए तीसरी दुनिया के देशों के हितों की रक्षा करना है, इसलिए इस सम्मेलन में इन देशों की चिंताओं को रेखांकित करते हुए उसे दूर करने के प्रयास पर भी बल दिया गया. यह शिखर सम्मेलन भारत के लिए एक अवसर था, जहां एक ओर ट्रंप अपनी टैरिफ नीति से भारत की वैश्विक आकांक्षाओं को नियंत्रित करना चाह रहे हैं, तो दूसरी ओर पाकिस्तान अमेरिका के साथ शीतयुद्ध कालीन गठबंधन से भारत के शक्ति संतुलन को चुनौती देने के प्रयास में है. इसी संदर्भ में इस शिखर सम्मेलन को समझने की आवश्यकता है.

शंघाई सहयोग संगठन का महत्व

शीत युद्ध खत्म होने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय संगठनों का उभार होना शुरू हो गया था. सभी क्षेत्रीय संगठन अपनी प्रकृति में बहुउद्देशीय हैं. जबकि शीत युद्ध के दौरान जो क्षेत्रीय संगठन थे, उसमें अधिकांशतः सुरक्षा आधारित थे. इसका कारण है कि एक ओर दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं एकाकर हो रही थीं तो दूसरी ओर वैश्विक पटल पर नई शक्तियों का उभार हो रहा था, उनके अपने वैश्विक और क्षेत्रीय हित थे. इन्हीं हितों को साधने के लिए नए-नए क्षेत्रीय संगठन स्थापित हुए. शंघाई सहयोग संगठन उसी में से एक है.

एससीओ की स्थापना 2001 में चीन, रूस और कभी सोवियत संघ का हिस्सा रहे चार मध्य एशियाई देशों- कजाकिस्तान, किर्गीस्तान, उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान ने मिलकर किया था. शुरू में यह मूल रूप से यूरेशिया केंद्रित संगठन था, लेकिन आज यह एक मजबूत क्षेत्रीय संगठन के रूप में स्थापित हो चुका है. इसके सदस्य देशों में दुनिया की 40 फीसदी आबादी निवास करती है. इसके सदस्य देशों की कुल जीडीपी का दुनिया की जीडीपी में करीब 20 फीसदी का हिस्सा है. ऊर्जा के प्रमुख स्रोत इसके सदस्य देशों के पास हैं, इनके पास कुल 50 फीसदी रिजर्व तेल है. इसके अलावा प्राकृतिक गैस का 50 फीसदी और यूरेनियम का 50 फीसदी भंडार भी इसी क्षेत्रीय संगठन के पास है.

हालांकि, शुरू में इसकी स्थापना का उद्देश्य आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद जैसी चुनौतियों से निपटना था. लेकिन अब यह एशियाई देशों के लिए एक सेतु का काम करने लगा है. जैसे-जैसे इस क्षेत्रीय संगठन में नए देश भागीदार बनते गए, वैसे-वैसे इसके उद्देश्य का भी विस्तार होता चला गया. आज यह यूरेशिया में इन तीन उद्देश्य के अलावा कनेक्टिविटी, ऊर्जा सहयोग, साझी सांस्कृतिक विरासत और पर्यावरण जैसे मुद्दों पर केंद्रित हो गया है.

शंघाई शिखर सम्मेलन का संयुक्त घोषणा पत्र

इस बार के घोषणा पत्र में संगठन के साझा आवाज ग्लोबल गवर्नेंस को अधिक तर्क संगत एवं न्याय पूर्ण बनाने पर जोड़ दिया गया. इसके साथ ही यह घोषणा पत्र ग्लोबल साउथ में एकजुटता को बढ़ाकर एक साझी विरासत एवं भविष्य को रेखांकित किया है. इसके लिए संगठन के सभी सदस्य देशों ने आतंकवाद, अतिवाद एवं अलगाववाद की कड़ी निंदा की है. साथ ही आतंकवाद पर दोहरे मापदंडों को भी सिरे से खारिज करते हुए एक सुनहरे भविष्य की संकल्पना को रेखांकित किया है. संयुक्त राष्ट्र में बदलाव पर जोड़ देते हुए तीसरी दुनिया के देशों के प्रतिनिधित्व की बात को रखा गया है. वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए किसी भी प्रकार के एकतरफा संरक्षणवाद एवं जबरदस्ती थोपे गए हुए निर्णय का विरोध किया गया. सदस्य देशों ने गाजा में सिविल नागरिकों एवं पत्रकारों पर हो रहे हमले की कड़ी भर्त्सना की है.

इस घोषणा पत्र के सहारे पश्चिम एशिया में शांति स्थापना के लिए फिलिस्तीन के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला गया है. सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने अमेरिका एवं इजरायल के द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों की कड़ी भर्त्सना की है.

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घोषणा पत्र में स्पष्ट किया गया है कि ईरान पर नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रमों को संयुक्त राष्ट्र के नियमों के तहत फैसला हो. इस घोषणा पत्र में अफगानिस्तान के हालात पर विचार करते हुए उसे समावेशी बनाने एवं सभी समूह के लोगों के उचित प्रतिनिधित्व के भावनाओं को स्वीकारा गया. अगले तीन वर्षों में शंघाई विकास बैंक की स्थापना पर जोड़ दिया गया. इस घोषणा पत्र के सभी बिंदुओं पर सदस्य देशों ने एक मत से हस्ताक्षर किए. लेकिन, भारत ने चीन के 'वन बेल्ट एवं वन रोड' वाले इनिशिएटिव से खुद को अलग कर लिया.

शंघाई शिखर सम्मेलन और भारत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस शिखर सम्मेलन में भारत के हितों को रेखांकित करते हुए एससीओ के केंद्र में देश की प्राथमिकताओं को अपने मूल मंत्र सिक्योरिटी, कनेक्टिविटी और ऑपर्च्युनिटी के रूप में परिभाषित किए. भारत ने आतंकवाद के मुद्दे पर किसी भी प्रकार के समझौते का खुलकर विरोध किया. प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान का नाम लिए बगैर कहा कि, "पहलगाम हमला भारत की अंतरात्मा के साथ-साथ पूरी मानवता पर हमला था. ऐसे में क्या कुछ देशों का आतंकवाद का खुलेआम समर्थन हमें स्वीकार है?"

प्रधानमंत्री के इन्हीं वक्तव्यों के कारण एससीओ के संयुक्त घोषणा पत्र में पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की गई है. प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था में बदलाव की मांग को भी प्रमुखता से रखा. उनका मानना है कि वैश्विक संस्थानों में रिफॉर्म्स के लिए एससीओ सदस्य आपसी सहयोग बढ़ा सकते हैं. उन्होंने जोड़ देते हुए इस बात को रेखांकित किया कि संयुक्त राष्ट्र की 80वीं वर्षगांठ के अवसर पर हम एक मत होकर उसके रिफॉर्म का आह्वान करते हैं. मोदी जी का यही आह्वान संगठन के संयुक्त घोषणा पत्र में परिलक्षित होता है. मोदी जी किसी भी राष्ट्र का नाम लिए बगैर पश्चिम के अधिपत्य की निंदा करते हुए ग्लोबल साउथ की आकांक्षाओं को रेखांकित किया. उन्होंने कहा, "ग्लोबल साउथ को देखने का अब नजरिया बदलना होगा. उन्होंने तीसरी दुनिया के देशों को विकास में समुचित भागीदारी पर भी बल दिया. उन्होंने आतंकवाद के किसी भी दोहरे मापदंड को खारिज़ करते हुए, इसके लिए सर्वसम्मति से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर एक व्यापक कन्वेंशन अपनाने की वकालत की.

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इस शिखर सम्मेलन के बहाने प्रधानमंत्री मोदी ने चीन, रूस और अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता की. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए इन्हें डियर फ्रेंड से संबोधित किया. साथ ही उन्होंने रूस और यूक्रेन युद्ध में मोदी के शांति प्रयासों की भी सराहना की. इधर प्रधानमंत्री ने भारत और रूस की मित्रता को न केवल ऐतिहासिक बताया, बल्कि उन्होंने जोर देते हुए कहा कि किसी भी तरह की राजनीति इन दोनों देशों के संबंधों को कमजोर नहीं कर सकती.

इसके अलावा प्रधानमंत्री मोदी मालदीव, नेपाल, मिस्र, बेलारूस, तजाकिस्तान और म्यांमार के शासनाध्यक्षों से मुलाकात करते हुए व्यापार, ऊर्जा, सुरक्षा, कनेक्टिविटी एवं आपसी सहयोग जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की. इस प्रकार देखा जाए तो इस शिखर सम्मेलन में भारत को पूरी तरह से कूटनीतिक सफलता हासिल हुी है. एक ओर आतंकवाद के मसले पर न केवल पाकिस्तान को एक्सपोज किया, बल्कि उसकी संयुक्त भर्त्सना भी की गई. वहीं अमेरिका के लिए एक संदेश भी दिया गया कि भारत के लिए अन्य विकल्प खुले हुए हैं. अंत में भारत ग्लोबल साउथ के लीडर के रूप में अपनी पहचान को स्थापित करने में सफल हुआ.

अस्वीकरण: डॉ नीरज कुमार बिहार के वैशाली स्थित सीवी रमन विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं. लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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