This Article is From Jan 25, 2022

'टीम राहुल' को बीजेपी की एक और चोट

Advertisement
Akhilesh Sharma

जैसे ही यह खबर आई कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, वैसे ही ट्विटर पर एक फोटो वायरल हो गई. इस पुरानी फोटो में आरपीएन सिंह ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट और जितिन प्रसाद खड़े हैं. यह चारों नेता पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य माने जाते थे. यूपीए सरकार के दौरान राहुल गांधी के बेहद करीबी और कांग्रेस के बुजुर्ग नेताओं से लोहा लेने में ये राहुल गांधी की पूरी मदद करते थे. इनमें से पायलट को छोड़ कर अब बाकी तीनों नेता बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

Advertisement

आरपीएन सिंह को लाकर बीजेपी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. प्रियंका गांधी वाड्रा की तमाम मेहनत और कोशिशों के बावजूद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस लड़ाई में नहीं है. पिछले कुछ चुनावों से कांग्रेस राज्य में चौथे नंबर की पार्टी है. इसी तरह केंद्र की बात करें तो पूरे उत्तर भारत में कांग्रेस के पुनर्जीवित होने के फिलहाल संकेत नहीं मिल रहे हैं. ऐसे में उन नेताओं को अपने लिए संभावनाएं नजर नहीं आ रहीं हैं, जिनका लंबा राजनीतिक जीवन अभी बचा है. इसीलिए चाहे सिंधिया हों या फिर जितिन प्रसाद या आरपीएन सिंह, इन्होंने विचारधारा की लड़ाई लड़ने के बजाय सत्ता के लिए उससे समझौता करने को तरजीह दी है.

वहीं, बीजेपी की बात करें तो उसके लिए उत्तर प्रदेश में अपनी सरकार बचाना बेहद जरूरी है. गृह मंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि अगर मोदी को 2024 में फिर से पीएम बनाना है तो 2022 में यूपी जीतना जरूरी है. हालांकि यूपी का पिछले तीन दशकों का इतिहास है कि किसी भी पार्टी ने सत्ता में वापसी नहीं की है. इस बार बीजेपी को अखिलेश यादव की अगुवाई में समाजवादी पार्टी कड़ी टक्कर दे रही है. ऐन वक्त पर तीन मंत्रियों समेत करीब एक दर्जन बीजेपी विधायकों को तोड़ कर सपा ने बीजेपी को गहरा झटका दिया है.

Advertisement

अखिलेश यादव ने इस बार जातीय समीकरणों को साधने का वही फार्मूला अपनाया है जिसके सहारे बीजेपी ने 2014, 2017 और 2019 के चुनाव जीते- यानी गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को साथ लेना. अखिलेश यादव ने इस बार अपनी पार्टी पर लगे मुस्लिम-यादव वोट के ठप्पे को तोड़ने का पूरा प्रयास किया है. इसके लिए उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों की पार्टी माने जानी वाली राष्ट्रीय लोक दल से हाथ मिलाया तो वहीं पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारासिंह चौहान जैसे उन नेताओं को साथ लिया जो गैर यादव ओबीसी जातियों की नुमाइंदगी का दावा करते हैं. अखिलेश की इस रणनीति से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है.

Advertisement

बीजेपी के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन से पनपी नाराजगी और मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बिखरे जाट-मुस्लिम मतदाताओं के साथ आने की भी चुनौती है. बीजेपी की रणनीति है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए नुकसान की भरपाई पूर्वांचल से की जाए जहां से पीएम मोदी मुख्यमंत्री योगी और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य आते हैं.लेकिन पूर्वांचल में राजभर, मौर्य, चौहान, पटेल, निषाद जैसे समुदायों को साथ लेकर अखिलेश यादव ने बीजेपी को एक बड़ी चुनौती दी है. आरपीएन सिंह एक ताकतवर कुर्मी नेता हैं और पडरौना के राजपरिवार के वशंज हैं.

Advertisement

कुशीनगर और उसके आसपास के इलाके में उनका खासा प्रभाव है. वे 1996 से 2009 तक लगातार पडरौना से विधायक रहे और 2009 में स्वामी प्रसाद मौर्य को कुशीनगर लोक सभा सीट से हरा कर सांसद और बाद में यूपीए सरकार में मंत्री बने. हालांकि मोदी लहर में वो अपना जनाधार नहीं बचा सके. लेकिन अब बदली परिस्थितियों में उन्हें बीजेपी की और बीजेपी को उनकी जरूरत थी.

Advertisement

जाहिर है स्वामी प्रसाद मौर्य का मुकाबला करने के लिए बीजेपी उन्हें अपने साथ लाई है. यह देखना होगा कि बीजेपी उन्हें मौर्य के सामने विधानसभा चुनाव में उतारती है या फिर राज्यसभा भेज कर राहुल गांधी को चिढ़ाती है. कहा यह भी जा रहा है कि झारखंड के प्रभारी रहते हुए आरपीएन सिंह ने वहां गैर बीजेपी सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी और बदले हालात में वो हेमंत सोरेन सरकार को गिराने की कवायद भी कर सकते हैं. इसके इनाम के तौर पर उन्हें केंद्र में मंत्री बनाया जा सकता है.

बहरहाल, इस बारे में तस्वीर जल्दी ही साफ होगी. लेकिन यह स्पष्ट है कि आरपीएन को अपने पाले में लाकर बीजेपी ने उत्तर प्रदेश की बिसात पर एक बड़ा मोहरा अपने पक्ष में जरूर कर लिया है.

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के एक्जीक्युटिव एडिटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Topics mentioned in this article