This Article is From Oct 26, 2022

कैसे फैला हज़ारों करोड़ के ड्रग्स का जाल?

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Ravish Kumar

सितंबर 2021 में गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से जब 21000 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया, ईरान के बंदर अब्बास पोर्ट से करीब तीन हज़ार किलोग्राम हेरोईन की खेप मुंद्रा पोर्ट पर उतरी थी। डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलिजेंस ने इस खेप को पकड़ा था। यह इतनी बड़ी कामयाबी थी कि लोगों की नज़र जानी ही थी कि आखिर गुजरात में 21000 करोड़ की हेरोईन कैसे पकड़ी गई है। क्या भारत में या गुजरात में ड्रग्स का जाल इतना बिछ गया है कि 21000 करोड़ के ड्रग्स की खपत होने लगी है? 
आज गांधीनगर में गृह मंत्री अमित शाह ने नोरकोटिक्स ब्यूरो के कार्यों की समीक्षा की है। उनकी ऑनलाइन मौजूदगी में अंकलेश्वर और दिल्ली में कई हज़ार किलोग्राम ड्रग्स जलाया गया है। इसकी कीमत 632 करोड़ बताई जाती है। कुछ समय पहले गुवाहाटी में भी 40,000 किलोग्राम ड्रग्स जलाया गया है। चंडीगढ़ में 30,000 किलोग्राम ड्रग्स। इसके बहाने ही हम यह सवाल पूछ रहे हैं कि गुजरात से लेकर देश भर में ड्रग्स का जाल कैसे फैल गया?

इसकी जवाबदेही से हर कोई बच रहा है, इसलिए हम आज एक प्रयास कर रहे हैं। ड्रग्स को लेकर छपी खबरों के आधार पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं जिससे अंदाज़ा हो सके कि गुजरात में ड्रग्स का जाल कितना फैल गया है और अमित शाह के सामने इसके जलाने का क्या महत्व है। पिछले साल सितंबर में कितना हंगामा मचा कि गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह पर 21000 करोड़ की हेरोईन पकड़ी गई है। सरकार चुप हो गई और पत्रकारों ने चुप्पी साध ली। हर कोई हैरान था, कि इतनी बड़ी घटना हुई है मगर कहीं कोई डिबेट नहीं, कहीं कोई सवाल नहीं। इसी चुप्पी को लेकर सवाल उठने लगे और NIA जांच का काम अपने हाथ में लेती है। NIA ने दिल्ली के अलावा तीन राज्यों में 20 ठिकानों पर छापे मारे थे। कई लोग गिरफ्तार हुए हैं। दिल्ली के हरप्रीत सिंह तलवार और प्रिंस शर्मा को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है।

मुंद्रा बंदरगाह का संचालन अदाणी का समूह करता है। उसे लेकर भी आरोप लगे तब अदाणी समूह ने एक बयान जारी किया कच्छ के मुंद्रा बंदरगाह पर ड्रग्स पकड़ा गया है। कंपनी केवल बंदरगाह का संचालन करती है। उसके पास बंदरगाह पर आने वाले कंटेनरों की जांच करने का अधिकार नहीं है। विपक्ष आक्रामक हो गया था। कांग्रेस के प्रवक्ता सवाल पूछ रहे थे कि गुजरात में ड्रग्स का कारोबार फैल गया है, इसके लिए कौन जवाबदेह है? ध्यान रखिएगा कि रणदीप सुरजेवाला का यह बयान पिछले साल का है। 
क्या प्रधानमंत्री जवाब देंगे:-
1)   1,75,000 करोड़ के 25,000 किलो हेरोइन ड्रग्स कहाँ गए?
2)   नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, आईबी, क्या सोए पड़े हैं या फिर उन्हें मोदी जी के विपक्षियों से बदला लेने से फुर्सत नहीं?
3)   क्या यह सीधे-सीधे देश के युवाओं को नशे में धकेलने का षड़यंत्र नहीं?
4)   क्या यह राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं, क्योंकि यह सारे ड्रग्स के तार तालिबान और अफगानिस्तान से जुड़े हैं?

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लोग पूछ रहे थे कि मंदिर का उदघाटन होता है, प्रधानमंत्री दर्शन को जाते हैं तब गोदी मीडिया का तंत्र तमाम रिपोर्टरों को भेजता है, घंटों कवरेज होता है, लेकिन 21000 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया है, उसका कवरेज क्यों नहीं हो रहा है? हमने पुरानी खबरों को खंगाल कर देखने की कोशिश की है कि गुजरात में ड्रग्स का कारोबार कैसे इतना फैल गया? वहां पर कच्चा माल को साफ कर श्रेष्ठ माल बनाने की फैक्ट्रियां कैसे बन गईं? 27 साल से बीजेपी की सरकार है। किसकी नाक के नीचे गुजरात में ड्रग्स का कारोबार फैला है या गुजरात के ज़रिए फैला है।यह केवल गुजरात की चिन्ता का विषय नहीं है, हर घर की चिन्ता का विषय होना चाहिए। चेक कीजिए कि आपके घर के बच्चे इसकी चपेट में तो नहीं हैं। क्या आप मान सकते हैं कि 21000 करोड़ का ड्रग्स, तीन हज़ार करोड़ का ड्रग्स पकड़ा जाता हो और यह पैसा राजनीति तक न गया हो? इसके सरगना बिना किसी राजनीतिक शह के हज़ारों करोड़ के ड्रग्स का कारोबार करते हों? क्या आप यह सब मान सकते हैं? गिरफ्तार हुए लोगों के नाम और हुलिया से लगता है कि पाकेटमार लेवल के लोग इस कारोबार में लगे हैं, जिस पर यकीन तभी किया जा सकता है कि जब दिल और दिमाग़ दोनों हम मीडिया के प्रोपेगैंडा के आगे गिरवी रख दें। तीन दिन पहले भास्कर की खबर है कि आणंद के विरसद पुलिस थाने से 144 किलोग्राम गांजा चोरी हो गया। थाने से गांजा चोरी हो जा रहा है। अक्तूबर में ही 8 तारीख के हिन्दू अखबार में खबर छपी है कि गुजरात ATS ने बीच सागर में इंडियन कोस्ट गार्ड के साथ मिल कर 350 करोड़ की हेरोईन पकड़ी है। पाकिस्तानी नाव से 50 किलोग्राम हेरोईन पकड़ी गई और इस पर सवार छह लोग भी गिरफ्तार हुए हैं। इसी साल 17 अगस्त की खबर है कि गुरजार में 1600 किलोग्राम ड्रग्स पकड़ा गया है जिसकी कीमत 1500 करोड़ है। गुजरात पुलिस ने भरुच से दस लोगों को गिरफ्तार किया था। 13 जुलाई 22 के हिन्दू अखबार में खबर है कि गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 75 किलोग्राम हेरोईन पकड़ी गई है।

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इसी बंदरगाह से सितंबर 2021 में 21000 करोड़ की हेरोईन पकड़ी गई थी। पंजाब पुलिस और गुजरात के एंटी टेरर स्कावड ने मिलकर 375 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया था। ड्रग्स दुबई से आया था. 26 मई 2022 के हिन्दू में ख़बर छपी है कि गुजरात के मुंद्रा पोर्ट से 500 करोड़  का कोकेन ज़ब्त हुआ है। इसी साल अप्रैल महीने में गुजरात ATS ने केंद्र के डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यु इंटेलिजेंस के साथ साझा ऑपरेशन में 1300 करोड़ की हेरोईन पकड़ी थी। कच्छ के कांडला बंदरगाह से। 13 फरवरी 22 के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि गुजरात में 2000 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया है। नारकोटिक्स ब्योरो और भारतीय नौ सेना ने पकड़ा था। 2022 में गुजरात ATS ने 3,586 करोड़ के ड्रग्स पकड़े हैं। 23 लोग गिरफ्तार हुए हैं जिसमें 16 पाकिस्तानी और तीन अफगान नागरिक हैं। 2020 और 21 में गुजरात ATS में 1, 591 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा। 41 लोग गिरफ्तार हुए। 12 पाकिस्तानी और सात ईरानी नागरिक थे। 18 August 2022 के इंडियन एक्सप्रेस में खबर छपी है कि मंगरोल तट से ड्रग्स के 104 पैकेट पकड़े गए हैं। इस मामले में 15 ईरानी नागरिकों को जूनागढ़ पुलिस ने गिरप्तार किया है। इसके पहले चरस के 457 पैकेट गिर सोमनाथ, जूनागढ़ और पोरबंदर के तटीय इलाके से पकड़ा गया था.। पुलिस जांच कर रही है कि ड्रग्स कहां से आया। 

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इन खबरों से पता चलता है कि गुजरात के तटीय इलाकों का खूब इस्तेमाल हो रहा है। कांडला, मुंद्रा और अन्य बंदरगाहों से कई हज़ार करोड़ के ड्रग्स पकड़े गए हैं। इनसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि जो ड्रग्स नहीं पकड़ा गया है, वह कितने का रहा होगा और कितनों की ज़िंदगियां ख़राब हो रही होंगी। हम इन खबरों की पड़ताल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि गुजरात में आज गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में ड्रग्स जलाया गया है। अगर इसका संबंध राजनीतिक संदेश से है तब फिर सवाल और सख्त होते है, ये सारे सवाल जवाबदेही से शुरू होते हैं? ड्रग्स का कारोबार फैला कैसे?

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20 सितंबर 2022 को द वायर में एक रिपोर्ट छपती है। इसमें वैशाली बासु शर्मा बता रही हैं कि सरसरी तौर पर भी देखने से पता चलता है कि गुजरात का कच्छ ड्रग्स की तस्करी का केंद्र बन गया है। अरब सागर के रास्ते से भारी मात्रा में ड्रग्स पहुंचाया जा रहा है। क्योंकि कच्छ का समुद्री किनारा एक हज़ार किलोमीटर लंबा है और खुला हुआ है। तस्करों के लिए यह रूट आसान हो गया है। इस रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि गुजरात भर में हेरोईन को संशोधित करने की छोटी छोटी फैक्ट्रियां फैल गई हैं। अगस्त 2021 में मुंबई पुलिस ने अंकलेश्वर में एक ऐसी ही फैक्ट्री से 1026 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा था जिसे मेफेड्रॉन कहते हैं। 513 किलोग्राम मेफेड्रॉन को यहां साफ कर असरकारी ड्रग में बदला जा रहा था।

2020 में सिमरनजीत सिंह संधु की गिरफ्तारी हुई थी। उसी ने बताया कि उसका गिरोह समुद्री मार्ग का इस्तेमाल करता रहा है, मांडवी के तट पर खेप उतरती है और फिर सड़क मार्ग से अलग-अलग पहुंचाया जाता है। मांडवी कच्छ का सदियों पुराना व्यापारिक बंदरगाह है। संधु का गैंग उत्तरी गुजरात के ऊंझा में मसालों के बाज़ार का भी इस्तेमाल कर रहा था, जिनके पैकेट के भीतर ड्रग्स छुपा कर पहुंचाया जा रहा था। इन लोगों ने अमृतसर के बाहर ड्रग की एक फैक्ट्री भी बनाई थी जहां हेरोईन का कच्चा माल साफ कर सेवन के लायक बनाया जाता था। फिर यहां से भारत और यूरोप के बाज़ारों में बेचा जाता है। 

द वायर की रिपोर्ट और उससे पहले कई मीडिया रिपोर्ट में आपने ध्यान दिया होगा कि ड्रग्स पकड़ने के लिए मुंबई पुलिस, पंजाब पुलिस, दिल्ली पुलिस गुजरात के चक्कर लगा रही है। केंद्र की कई एजेंसियां भी गुजरात के चक्कर लगा रही हैं। द वायर की इस रिपोर्ट में एक बेहद ख़तरनाक बात यह कही गई है कि ड्रग्स का कच्चा माल लकर गुजरात भर में बनी फैक्ट्रियों में साफ किया जाता है और उसे उच्च कोटी का बनाया जाता है। हमने इसी सवाल को लेकर कुछ खबरों को सर्च किया। 

इसी साल 18 अगस्त की यह रिपोर्ट इंडियन एक्सप्रेस में छपी है। वडोदरा के एक गांव से 225 किलोग्राम मेफेड्रोन ड्रग्स बरामद किया गया जिसकी कीमत 1125 करोड़ आंकी गई है। गुजरात पुलिस और गुजरात ATS की साझा कार्रवाई में यह ज़ब्ती हुई थी। एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में छह लोग गिरफ्तार किए गए हैं। मोक्सी गांव में रसायन बनाने की फैक्ट्री में ड्रग्स तैयार हो रहा था।  सूरत के महेश धोराजी और वडोदरा के पीयूष पटेल को गिरफ्तार किया गया था। इन दोनों ने पूछताछ के दौरान बताया था कि वडोदरा और आणंद में एक फैक्ट्री स्थापित की थी जहां मेफेड्रोन ड्रग तैयार किया जाता है। राकेश मकानी को मास्टर माइंड बताया गया है। 

सोचिए फैक्ट्री बना कर हज़ार हज़ार करोड़ के ड्रग के कारोबार में लोग लगे हुए हैं। इससे पता चलता है कि इस खेल में बहुत से लोग शामिल हैं। इससे हासिल पैसा किसी न किसी तरह राजनीति में तो जाता ही होगा।आपको अगर लगता है कि यह सब हाल के वर्षों की घटना है तो 2013 में इंडिया स्पेंड की एक रिपोर्ट का ज़िक्र करना चाहूंगा। 

इस रिपोर्ट में लिखा है कि नारकोटिक्स ब्यूरो और संयुक्त राष्ट्र की कमेटी के अनुसार भारत ड्रग्स तैयार करने का सेंटर बनता जा रहा है। गुजरात और महाराष्ट्र में बहुत सारे ऐसे गुप्त लैब पकड़े गए हैं।2017 में हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट है। इसमें नारकोटिक्स ब्यूरो के पूर्व अधिकारी का बयान छपा है कि ड्रग्स के तस्कर समुद्री मार्गों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अफगानिस्तान से हेरोईन लाकर भारत में खपा रहे हैं। भारत से दूूसरे देशों में भी भेजा जा रहा है। 2017 में गुजरात के तटीय इलाके से 3500 करोड़ का ड्रग्स पकड़ा गया था। 


गुजरात के गांवों में ड्रग्स तैयार करने की फैक्ट्रियां लगीं, यह कैसे संभव हुआ? इसी साल 27 जून को संयुक्त राष्ट्र ने विश्व ड्रग रिपोर्ट जारी किया था। डाउन टू अर्थ की इस खबर को अब फ्लैश बैक में ही जाकर पढ़ लीजिए। इसमें संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट का ज़िक्र किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार भारत नशे के सेवन के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार बन गया है। जिस तादाद में ड्रग्स के ग्राहक हैं, लगता है कि सप्लाई और बढ़ेगी। 2022 में भारत में एक टन से कुछ मॉरफिन पकड़ा गया था जो दुनिया में तीसरा सबसे अधिक था। हेरोईन पकड़ने जाने के मामले में भारत दुनिया में पांचवे नंबर पर आता है।इस रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि पंजाब और हिमाचल नशे के मामले में सबसे आगे हैं और गुजरात तीसरा प्रदेश हो गया है जहां ड्रग के ओवरडोज़ से लोगों की मौत हुई है। 

राष्ट्रीय अपराध शाखा NCRB की रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी  जाती है। 2017 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में ड्रग्स के ओवरडोज़ से 745 लोग एक साल में मरे थे। 2018 में ड्रग के ओवरडोज़ से 875 लोग मरे। 2020 में ड्रग ओवरडोज़ से 514 लोग मरे और 21 में 737। आज की रिपोर्ट में उन परिवारों के हाल नहीं हैं जिनके बच्चे ड्रग्स की चपेट में आए और सब कुछ बर्बाद हो गया। समय और संसाधनों की कमी के कारण ऐसा हो जाता है। इसलिए अब भी आप पूरी तस्वीर नहीं देख रहे हैं, ड्रग के भयंकर असर का आधा से भी कम हिस्सा देख रहे हैं। सवाल है कि गुजरात ड्रग्स के कारोबार का अड्डा कैसे बन गया? 

यही वो तस्वीर है जिसके बहाने हमें गुजरात और ड्रग्स के कारोबार के जाल को समझने का मौका मिला, जिसके बहाने हमने पुरानी खबरों को खंगाला और देखा कि ड्रग्स के जाल को लेकर पंजाब की चर्चा होती थी, उस पर फिल्में बनती रही हैं, गाने बनते हैं मगर पंजाब के पीछे पीछे गुजरात कैसे ड्रग्स की चपेट में आ गया। उम्मीद है गृहमंत्री अमित  शाह केवल चुनावी माहौल के हिसाब से नहीं सोच रहे होंगे, यह मामला नौजवानों को बचाने का भी है। जिस तादाद में ड्रग्स पकड़े जा रहे हैं, उससे यही लगता है कि गली गली में इसका मिलना सुलभ हो चुका है। 

ड्रग्स का कारोबार हज़ारों करोड़ रुपये का है। इसके पीछे असली खिलाड़ी कौन लोग हैं, उनका राजनीतिक चेहरा कैसा है? क्या हम कभी इन सवालों के उत्तर जान पाएंगे? अभी तक जो गिरफ्तारियां हुई हैं, उसमें कोई बड़े नेटवर्क का खिलाड़ी नहीं लगता, सामान्य रुप से संदेह होता ही है कि असली खिलाड़ी कौन है?ज़रूर गुजरात ATS, गुजरात पुलिस, दिल्ली पुलिस और मुंबई पुलिस ने ड्रग की कई खेप पकड़ी है मगर उनकी तारीफ से पहले इसकी चिन्ता ज़रूरी है कि गुजरात में यह जाल किसकी नाक के नीचे फैला है।

यह ट्विट 2013 का है, हर्ष सांघवी गुजरात के गृह राज्य मंत्री हैं, मगर तब नहीं थे, 2013 में लिखते हैं कि  Dear Teenager Friends Avoid drugs. They will turn you into an addict, no matter how strong your will Power Is. हर्ष सांघवी ने विधायक रहते 2018 में भी एक ट्विट किया है लिखा है कि 69 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर ड्रग्स के खिलाफ एक रैली का उद्घाटन किया है। इसका मतलब है कि गुजरात के नेताओं को पता था कि राज्य में ड्रग्स का जाल फैल गया है।
उम्मीद है आप ख़बरों को इसी तरह देखेंगे। इस तरह से पेश करने में ख़बरें बोरिंग लगती है मगर मेहनत बहुत लगती है। आप केवल एक वीडियो नहीं देखते हैं कि अमित शाह की मौजूदगी में ज़ब्त किए हुए ड्रग्स जलाए जाते हैं , बल्कि आपके सवाल और बेहतर होते हैं 

कि ताकि आप गृहमंत्री से पूछ सकें कि उनकी सरकार चौकस होने का दावा करती है, गुजरात में भी है और दिल्ली में भी है, फिर भी यह नेटवर्क उनके ही राज्य में कैसे बड़ा हो गया? बिहार में होता तो मीडिया हेडलाइन लगाता कि जंगलराज आ गया है और तेजस्वी यादव को इस्तीफा देना चाहिए। जंगलराज की हेडलाइन केवल बिहार के लिए ही रिज़र्व क्यों है?

दुनिया भर में मंदी आने वाली है, भारत की वित्त मंत्री ने कहा है कि मंदी का असर पड़ने का ज़ीरो चांस है। देखना है कि भारत पर मंदी का असर पड़ता है या नहीं। फिलहाल सरकार ने ही जानकारी दी है कि जुलाई, 2022 के मुकाबले अगस्त, 2022 main EPFO के खाताधारकों की संख्या घट गयी है। इससे पता चलता है कि संगठित क्षेत्र में नियुक्त कर्मचारियों की संख्या घट गयी. उधर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कहा है पिछले करीब दो हफ्ते से बेरोज़गारी दर बढ़कर 7% से ऊपर बनी हुई है.

आर्थिक मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए मगर किसी न किसी बहाने से धार्मिक मुद्दों को ही प्राथमिकता मिल जाती है। भारत में राजनेताओं को धार्मिक गतिविधियों से अलग करना, संभव नहीं है।भारत की सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था ही ऐसी है कि राजनेता धार्मिक कार्यों के करीब दिखना चाहते हैं और शामिल होते हैं।लेकिन यहां सवाल इस बात को लेकर है कि क्या धार्मिक होने को लेकर राजनीतिक प्रतियोगिता चल रही है? क्या आर्थिक सवालों से बचने के लिए धर्म का इस्तेमाल हो रहा है? 

धार्मिक आयोजनों में लगतार शामिल होकर क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे दलों को भी मजबूर कर रहे हैं कि वे भी धार्मिक दिखने का आइडिया खोजते रहें? हाल ही में पदयात्रा के दौरान राहुल गांधी कर्नाटक के मठ में गए तो उसकी तस्वीरों को विशेष रूप से प्रचारित किया गया और कई एंगल से तस्वीरें लीं गईं।  जब केदारनाथ मंदिर गए, तब सोशल मीडिया में कुछ लोगों ने सवाल किया कि दर्शन का सीधा प्रसारण क्यों हो रहा है। लोग पूछते रहे कि भगवान के दर्शन हो रहे हैं या प्रधानमंत्री के या दोनों के। मगर विपक्ष इन सवालों से दूर रहा। भारत की राजनीति में नेताओं का मंदिर जाना सामान्य बात है, लेकिन क्या इसके लगातार सीधा प्रसारण से इसे विशेष बनाने का प्रयास नहीं किया गया? अखबारों में जब विज्ञापन दिए गए और गोदी मीडिया ने लगातार कवरेज किया तब क्या इसे केवल धार्मिक कार्य ही माना जाएगा?

ज़ाहिर है राजनीतिक कार्य के रूप में भी देखा जाएगा। कहीं ऐसा तो नहीं कि जनता के ठोस सवालों से बचने के लिए नेता धर्म की शऱण में जा रहे हैं। आखिर महंगाई और बेरोज़गारी पर बात करने के लिए इतने कैमरे क्यों नहीं दिखाई देते? कहीं प्रधानमंत्री से दूसरे दल के नेता इस मामले में होड़ तो नहीं कर रहे? यह सिलसिका कहां जाकर रुकेगा, किसी को पता नहीं। क्या यह बेहतर नहीं हो सकता कि नेता जब पूजा करने जाएं तो वह व्यक्तिगत ही रहे। आखिर कई जगहों पर तस्वीर लेने पर भी रोक होती है, फिर सीधा प्रसारण की छूट केवल नेताओं को ही क्यों मिले? भगवान के आगे तो सब बराबर हैं। 

धार्मिक कार्य तो जनता दैनिक जीवन में दिन रात करती ही है, नेता भी करते हैं लेकिन यही अगर राजनीति का मुख्य चेहरा हो जाएगा, तब जनता के मुद्दे पीछे जा सकते हैं। ऐसा लगता है कि अब यह फार्मूला बन गया है। क्या जनता को यह सवाल नहीं करना चाहिए कि धर्म के नाम पर उसकी मासूम आस्था का राजनीतिक दोहन हो रहा है या इससे राजनीति बेहतर हुई है, झूठ खत्म हो गया है, सच की बाढ़ आ गई है। और तो और गोदी मीडिया जब कवरेज करने लग जाए तब एक बार यह सवाल तो पूछना चाहिए कि जिन लोगों ने पत्रकारिता का धर्म छोड़ दिया वे धर्म के नाम पर इन देवी देवताओं का सामना कैसे कर लेते होंगे? पता तो कीजिए कि ये पत्रकार देवी देवता की पूजा कर रहे हैं या उनके बहाने किसी नेता की? बेहतर है आप दो राजनीतिक दलों में नीतियों के आधार पर फर्क करें।

पूछें कि फलां नीति से आपका जीवन किस तरह बेहतर होता है। हुआ कि नहीं,इसका मूल्यांकन करें। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मांग की है कि रुपये पर गांधी की तस्वीर के साथ-साथ लक्ष्णी गणेश की तस्वीर भी हो ताकि लोगों को उनका आशीर्वाद मिले। इस पर कई तरह की प्रतिक्रिया हो रही है। पूछा जा रहा है कि यह देवी देवताओं के लिए या राजनीतिक उद्देश्य के लिए? कहा जा रहा है कि कल कोई दूसरा नेता आएगा और कहेगा कि कार के नंबर प्लेट पर या डैशबोर्ड पर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री की तस्वीर अनिवार्य है। हम कहां तक जाएंगे,यह सोचना चाहिए। 

क्या भारत की जनता ने यह तय कर लिया है कि अब उसके पास कोई वोट लेने आएगा तो देवी देवता की मूर्ति या तस्वीर लेकर ही आएगा? क्या जनता को खुश करने के लिए यही तरीका बच गया कि कोई अखंड कीर्तन करा रहा है तो कोई किसी और देवी देवता का पाठ। इन सब पर सरकार का भी पैसा खर्च हो रहा है और नेताओं का भी। इसी पैसे से मस्कुलर डिस्ट्रोफी और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के शिकार परिवारों के मेडिकल बिल भरे जा सकते हैं? कितने परिवारों को राहत होगी। क्यों नहीं कोई मंत्री या मुख्यमंत्री स्वास्थ्य मंत्री को पत्र लिखता है कि कैंसर और मस्कुलर डिस्ट्रोफी के मरीज़ों का इलाज मुफ्त हो? क्या नर में नारायण नहीं है, यह भी तो धर्म ही कहता है कि नर की सेवा करो, नारायण मिलेंगे।

भारतीय रुपये पर गांधी की तस्वीर हटाकर दूसरे महापुरुषों की तस्वीर लगा देने की अफवाह उड़ती रहती है और मांग भी होती रहती है। अंबेडकरवादी मांग करते हैं कि नोट पर डॉ अंबेडकर की तस्वीर हो।केजरीवाल ने भी डॉ अंबेडकर की तस्वीर लगाई है, वे भी यह मांग कर सकते थे।इस साल अफवाह उड़ गई कि रवींद्र नाथ टगोर और ए पी जे अब्दुल कलाम की तस्वीर लगाने पर विचार हो रहा है। जून के महीने में भारतीय रिज़र्व बैंक ने बकायदा खंडन किया है कि ऐसी कोई योजना नहीं है। गांधी को नोट से हटाने की कोई योजना नहीं है। इसी साल जुलाई और अगस्त में राज्य सभा सांसद संजय राउत और दिग्विजव सिंह ने सवाल पूछा कि महात्मा गांधी की तस्वीर हटाई जा रही है, क्या छत्रपति शिवादी की तस्वीर लगाने पर विचार हो रहा है? सरकार ने जवाब दिया ऐसी कोई योजना नहीं है। 

भारत में 25000 रुपया महीना कमाने वाले बहुत कम लोग हैं। जो कमाता है वह चोटी के दस प्रतिशत में आता है। कोशिश होनी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा लोगों के हाथ में नोट पहुंचे। अस्सी करोड़ जनता दो वक्त का अनाज नहीं खरीद सकती। इतनी गरीबी है। और बहस किन बातों को लेकर हो रही है। बहस को मुद्दा हरियाणा के हिसार में पत्रकार ने शिक्षा मंत्री से पूछ लिया कि बरोदा में कालेज और यूनिवर्सिटी बनाने का वादा करके गए थे, उसका क्या हुआ। मंत्री ने कहा बन गया है, विधायक ने कहा नहीं बना है केवल स्कूल बना है। 

इसी तरह कांग्रेस ने आज एक पोस्टर ट्विट किया है। यह पोस्टर अमित शाह है। यूपी सरकार के समय बीजेपी ने वादा किया था कि सरकार बनने पर होली दीवाली पर गैस का सिलेंडर मुफ्त मिलेगा? कांग्रेस ने पूछा कि इस दीवाली पर कितने लोगों को मुफ्त सिलेंडर मिला है? इस देश को अभी ऐसे सवालों की ज़रूरत है। बाकी आप ब्रेक ले लीजिए।

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