This Article is From Jan 07, 2022

PM मोदी की सुरक्षा : सवाल चूक का है, पंजाब और यूपी का नहीं है?

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नमस्कार मैं रवीश कुमार, प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक को लेकर जांच शुरू हो गई है. केंद्र की तरफ से तीन सदस्यों की टीम ने जांच शुरू कर दी है. पंजाब सरकार की तरफ से भी जांच का ऐलान हुआ है. इस चूक को लेकर इसी तरह की कार्यवाही की ज़रूरत है न कि महामृत्युंजय जाप और हवन की क्योंकि जवाब इन्हीं सब प्रक्रियाओं से मिलना है कि हुआ क्या है. आज उस फ्लाईओवर पर केंद्रीय टीम के सदस्य जांच के लिए पहुंचे. इसी फ्लाईओवर पर हुसैनीवाला जाने के रास्ते प्रधानमंत्री का काफिला अटका था. यह फ्लाईओवर प्यारेयाणा गांव में पड़ता है. पंजाब के मुख्य सचिव ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को एक लिखित रिपोर्ट सौंपी है.

इस रिपोर्ट में बताया गया है कि FIR दर्ज कर मामले की जांच शुरू हो गई है. मुख्य सचिव ने लिखा है कि तीन दिनों के भीतर रिपोर्ट दी जाएगी. पंजाब सरकार ने भी दो सदस्यों की एक कमेटी बनाई है. यही एक तरीका है और इस जांच से निकल कर आने का ही इंतज़ार किया जाना चाहिए ताकि इस गंभीर मसले के तथ्यात्मक जवाब सामने आ सकें और जवाबदेही तय हो. जिस तरह से जांच में तेज़ी दिख रही है उम्मीद की जानी चाहिए कि तीन दिनों के बाद सारे सवालों के जवाब मिलेंगे. 

गृह मंत्रालय की तीन सदस्यों की कमेटी में पंजाब पुलिस के 13 अफसरों को तलब किया है. इन सभी को फिरोज़पुर बुलाया गया है. 13 अफसरों में पंजाब पुलिस के प्रमुख सिद्धार्थ चटोपाध्याय भी शामिल हैं. प्रधानमंत्री की वापसी के बाद गृह मंत्रालय ने जो बयान जारी किया था उसमें बताया था कि बारिश नहीं रुकी तो हुसैनीवाला सड़क से जाने का फैसला किया और पंजाब पुलिस के प्रमुख ने आवश्यक सुरक्षा उपायों की जब पुष्टि कर दी तब आगे जाने का फैसला किया. इस बिन्दु पर सवाल उठ रहे हैं कि ज़िले में मौजूद खुफिया एजेंसी की क्या जानकारी थी?

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क्या IB की जानकारी पंजाब पुलिस के प्रमुख की जानकारी या हरी झंडी से कुछ अलग थी? उम्मीद है उस अधिकारी का भी पता लगाया जाएगा जिससे प्रधानमंत्री ने कहा था कि अपने सीएम को थैक्स कहना, मैं बठिंडा से ज़िंदा लौट आया. इनका इसलिए पता लगाया जाना चाहिए कि क्या इन्होंने पंजाब सीएम को इसकी जानकारी दी थी? प्रधानमंत्री ने उन्हें यह बात मुख्यमंत्री को बताने के लिए कही थी या ANI को, इस बीच एक वीडियो वायरल हो रहा है. इस वीडियो में बीजेपी के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री के काफिले के करीब नज़र आ रहे हैं.

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इस वीडियो में बीजेपी का झंडा पहले वाले वीडियो से और साफ दिख रहा है. SPG प्रधानमंत्री की कार को घेरे हुए पैदल चल रही है और कार्यकर्ता करीब हैं, प्रधानमंत्री मोदी जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं. इसी तरह का वीडियो पहले दिन आया था लेकिन उसे फ्लाईओवर की दूसरी तरफ से लिया गया था. मगर इस वीडियो में और साफ अंदाज़ा मिलता है कि बीजेपी कार्यकर्ता झंडा लेकर उनके काफिले के इतने करीब कैसे पहुंच गए? आरोप लगाया जा रहा है कि पीएम की सूचना मिलने पर किसान जाम करने आ गए लेकिन बीजेपी के कार्यकर्ता कैसे आ गए? उन्हें क्या सूचना थी?

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अगर ये रूट प्रधानमंत्री के लिए सुरक्षित किया गया था तो बीजेपी का झंडा कहां से आया और कार्यकर्ता काफिले के इतने करीब कैसे आ गए? यह वीडियो बताता है कि भले किसान रास्ता रोक कर धरना दे रहे थे लेकिन काफिले के करीब किसान नहीं गए थे. बीजेपी के कार्यकर्ता गए थे. एक और वीडियो आया है जिसमें आप इस तरह की अराजक स्थिति देख सकते हैं. सामने प्रदर्शनकारी भी दूर दिख रहे हैं. उनके झंडे दिख रहे हैं. ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री का काफिला फंसा था. प्रधानमंत्री के बगल में बिल्कुल नज़दीक कार्यकर्ताओं की भीड़ है. यह सवाल भी उठता है कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं को पंजाब पुलिस ने क्यों नहीं हटाया? 

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इस तरह की व्यवस्था कैसे हो सकती है कि काफिला सड़क जाम में जाकर फंस गया हो. सामने किसानों का प्रदर्शन हो रहा है औऱ बगल से बीजेपी के कार्यकर्ता ज़िंदाबाद के नारे लगाते हुए जा रहे हैं. यह सवाल तब भी पूछा जाना चाहिए जब प्रधानमंत्री का काफिला नहीं रोका गया होता और वे हुसैनीवाला पहुंच जाते, तब भी यह सवाल महत्वपूर्ण है कि 140 किलोमीटर की सड़क यात्रा का फैसला क्या अपने आप में जोखिम भरा नहीं था?

उम्मीद की जानी चाहिए कि जांच के बाद इस सवाल का जवाब मिलेगा कि 140 किलोमीटर की सड़क यात्रा से प्रधानमंत्री को ले जाने का फैसला किसका था? पंजाब कांग्रेस ने एक और दस्तावेज़ ट्विट किया था 5 जनवरी को. इस ट्विट में 4 जनवरी की तारीख के दस्तावेज़ हैं. इसके नुसार प्रधानमंत्री को बठिंडा से किला चौक, फिरोज़पुर हेलिकाप्टर से आना था.किला चौक, फिरोज़पुर से सड़क से हुसैनीवाला जाना था जो वहां से दस बारह किलोमीटर की दूरी पर है. फिर किला चौक के हेलिपैड से उन्हें PGIMER जाना था जहां कार्यक्रम तय था.लेकिन 140 लंबी सड़क से ले जाने का फैसला अभी तक के ज्ञात दस्तावेज़ों और बयानों से नहीं मिलता है. इसकी योजना पहले बनाई गई थी?

3 जनवरी की PIB की रिलीज़ और 5 जनवरी ने अपने कार्यक्रम को लेकर जो ट्विट किया था उसमें हुसैनीवाला का ज़िक्र नहीं था. इतनी लंबी सड़क यात्रा का फैसला एक बड़ा जोखिम था. क्या इतने लंबे रास्ते को अचानक सैनिटाइज़ किया गया? करना संभव था? एक सवाल और है. हम फ्लाईओवर की बात तो कर रहे हैं लेकिन 140 किलोमीटर लंबे रास्ते में सुरक्षा किस तरह की थी, क्या वो SPG के मानकों के अनुसार थी? इसकी कोई जानकारी नहीं है. शायद जांच से निकल कर गए. 
हाल ही में जरनल बिपिन रावत का हेलिकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था.

इसे देखते हुए बठिंडा से फिरोज़पुर हेलिकाप्टर से न जाने का फैसला व्यावहारिक ही है. इस बात के बावजूद कि Mi-17 सभी मौसमों में उड़ान भरने की क्षमता रखता है. प्रधानमंत्री के दौरे के कारण फिरोज़पुर ज़िले में पंजाब पुलिस के कई सारे डीएसपी रैंक के अफसर गश्त कर रहे थे. केंद्र की खुफिया एजेंसी के अधिकारी भी इलाके में मौजद थे. तो यह जानना ज़रूरी है कि इन दोनों एजेंसियों ने SPG को क्या जानकारी थी, SPG इस फैसले पर कैसे पहुंची कि प्रधानमंत्री को 140 किमी सड़क मार्ग से लेकर जाना है? अंतिम ज़िम्मेदारी SPG की बनती है.मौजूदा प्रधानमंत्री ने कब इतनी लंबी यात्रा सड़क से की है? जब मौसम ख़राब था तब प्रधानमंत्री ने रैली कैंसिल ही क्यों नहीं कर दी.

आखिर फरवरी 2019 में प्रधानमंत्री ने उत्तराखंड की रुद्रपुर रैली को फोन से संबोधित किया ही था. प्रधानमंत्री देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट पर उतरने के बाद भी खराब मौसम के कारण रुद्रपुर नहीं जा सके थे. वहां पर बीजेपी की शंखनाद रैली होने वाली थी. उस रैली को उन्होने फोन से संबोधित किया था. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का फोन लेकर रुद्रपुर में आई जनता को संबोधित किया था. उस दिन पुलवामा पर हमला हुआ था. उसके तीन घंटे बाद प्रधानमंत्री रैली को फोन से संबोधित कर रहे थे. विपक्ष ने सवाल भी उठाया था कि दोपहर 3 बजकर 10 मिनट पर पुलवामा में हमला होता है और प्रधानमंत्री 5 बज कर 10 मिनट पर फोन से रैली को संबोधित कर रहे थे.

प्रधानमंत्री ने तब अपने भाषण में मौसम कारण बताया था, हमला नहीं. विपक्ष का आरोप था कि क्या प्रधानमंत्री को तब हमले की जानकारी नहीं थी? यह बहराइच की रैली है. दिसंबर 2016 की. मौसम खराब होने के कारण प्रधानमंत्री इसे फोन से संबोधित कर रहे हैं. उस वक्त यूपी में 2017 के चुनाव को देखते हुए सभाएं चल रही थी. प्रधानमंत्री बता रहे हैं कि मौसम के कारण नहीं आ सके. तब फिर प्रधानमंत्री ने फिरोज़पुर की रैली को फोन से ही क्यों नहीं संबोधित किया? 5 अक्तूबर 2014 को महाराष्ट्र के नाशिक में प्रधानमंत्री की रैली होने वाली थी लेकिन तूफानी मौसम के कारण उनका कार्यक्रम रद्द हो गया था. 29 जून 2015 को प्रधानमंत्री की वाराणसी की सभा रद्द हो गई.

अखबारों में लिखा है कि लगातार बारिश के कारण SPG ने वाराणसी में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को रद्द कर दिया है. इस खबर में SPG ने लिखा है. प्रधानमंत्री की यात्राओं और सुरक्षा की ज़िम्मेदार एकमात्र सर्वोच्च एजेंसी SPG ही है. तब फिर पंजाब के मामले में SPG ने सख्त फैसला क्यों नहीं लिया? एक और जानकारी है. 29 जून को मौसम के कारण वाराणसी का दौरा रद्द होता है. लेकिन उसके कुछ दिनों बाद 16 जुलाई 2015  को एक बार फिर रद्द होता है.क्योंकि कार्यक्रम स्थल पर एक श्रमिक की मौत हो जाने के कारण प्रधानमंत्री अपना दौरा रद्द कर देते हैं. उस साल लगातार तीन बार प्रधानमंत्री का वाराणसी दौरा रद्द हुआ था.

अतीत के कई उदाहऱणों से पता चलता है कि खराब मौसम के कारण प्रधानमंत्री अपनी रैलियों को रद्द करते रहे हैं और फोन से संबोधित करते रहे हैं. फिर रैली रद्द कर दिल्ली लौटने का फैसला क्यों नहीं किया गया? बठिंडा लौट कर या दिल्ली लौट कर भी फिरोज़पुर की रैली को फोन से संबोधित कर सकते थे. SPG की जवाबदेही सबसे अधिक है. उसे ही बताना चाहिए कि खराब मौसम के बाद रैली रद्द करने का फैसला क्यों नहीं किया गया? ख़राब मौसम के बाद भी 140 किलोमीटर सड़क से जाने का फैसला क्यों किया गया?

आप इस वीडियो को दोबारा से देखिए. बारिश के कारण सड़क पर कितनी फिसलन है. काफिले की रफ्तार कितनी धीमी है. खराब मौसम के कारण अगर हेलिकाफ्टर का उड़ना प्रधानमंत्री के लिए सुरक्षित नहीं था तो बारिश के कारण फिसलन भरी सड़क पर उनके काफिले को ले जाना भी सुरक्षित नहीं माना जा सकता है तब जब SPG ज़ीरो एरर की बात करती है. सीमावर्ती इलाके में इतनी गाड़ियों का काफिला रुक रुक कर जाता हुआ दिखाई दे रहा है. फिसलन भरी सड़क पर अचानक ब्रेक लगाने की स्थिति में क्या हो सकता है, बताने की ज़रूरत नहीं है.

प्रधानमंत्री की कार में कैमरामैन होता है. वह भीतर से तस्वीर लेता है. इसे लेकर भी सवाल होता है कि यह कब से हुआ क्योंकि इसके पहले उनकी कार के भीतर से वीडियो आने की तस्वीर चैनलों पर नहीं चली है. मेरठ के इस वीडियो को देखिए. कोई तो है जो प्रधानमंत्री की कार में सवार है और वीडियो बना रहा है. प्रधानमंत्री की कार में उनके अलावा मुख्यमंत्री तक नहीं बैठते हैं. लेकिन फोटोग्राफर कब से बैठने लगा. इसका जवाब आधिकारिक तौर पर ही आना चाहिए. क्या वीडियो के लिए सुरक्षा के मानकों में कोई बदलाव किए गए हैं? यह वीडिओ लेने वाला SPG का है या किसी न्यूज़ एजेंसी का हम नहीं जानते. 

2017 में गुजरात चुनाव के समय की एक घटना का यहां ज़िक्र करना ज़रूरी है. प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर तब भी कई सवाल उठे थे, न तो उसकी जांच हुई और न ही जवाब मिला.दिसंबर 2017 को जब प्रधानमंत्री मोदी का यह विमान साबरमती नदी से धारोई बांध के लिए उड़ान भरा था. इस उड़ान को एक रोमांचक कथा के रुप में पेश किया गया था. जिस दिन यह इस विमान ने उड़ान भरी थी, उस दिन गुजरात पुलिस ने अहमदाबाद में प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी के रोड शो पर रोक लगा दी थी. इस उड़ान को देखने के लिए भी लोग आए थे या लाए गए थे लेकिन उनके हाथ में बीजेपी के झंडे थे और वे काफी खुश थे. प्रधानमंत्री ने भी उनका हाथ हिला हिलाकर अभिवादन किया था. और विमान में बैठने के बाद भी कैमरा फोकस करता रहा कि कहां बैठे हैं, कैसे बैठे हैं.

प्रधानमंत्री बैठ कर भी हाथ हिलाकर जनता का अभिवादन कर रहे थे. एक किस्म का रोड शो तो हो ही गया था. इस घटना ने काफी थ्रिल पैदा किया था. थ्रिल थ्रिल. परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इसे ऐतिहासिक दिन बताया था और कहा था कि भारत में क्रांति आने वाली है. 2017 से 2021 बीत गया. 2022 शुरू हो चुका है. क्या ऐसी कोई क्रांति भारत में हुई लेकिन उस समय हेडलाइन छपी होगी और आपको लगा होगा कि कुछ हो रहा है.ऐसी हेडलाइन आज भी छपा करती है. 
31 अक्तूबर 2020 को सरदार पटेल की जयंती पर साबरमती रिवर फ्रंट से केवडिया तक के लिए सी-प्लेन की सेवा शुरू की गई. लेकिन 30 नवंबर 2021 को राज्य सभा में जहाजरानी मंत्री सरबनानंद सोनवाल ने एक जवाब में कहा है कि इस विमान का आपरेशन अप्रैल 2021 से बंद है. यानी यह सेवा छह महीने भी नहीं चली. कोविड भी एक कारण हो सकता है लेकिन यह आपरेशन अभी तक बंद है. दूसरे जहाज़ तो उड़ ही रहे हैं. 

जिस घटना को नितिन गडकरी क्रांति के रुप में पेश कर रहे थे कायदे से उन्हें प्रधानमंत्री की सुरक्षा की चिन्ता के रुप में देखना चाहिए था. पत्रकार गौरव विवेक भटनागर ने उस दौरान द वायर में लंबी रिपोर्ट की थी. बताया था कि कैसे सिंगल इंजन के इस विमान में उड़ान भर कर एस पी जी ने अपने ब्लु बुक के निर्देशों से समझौता किया है.  क्योंकि एस पी जी के ब्लु बुक के अनुसार प्रधानमंत्री को सिंगल इंजन वाले विमान से नहीं उड़ाया जा सकता है. यही नहीं नागरिक उड्डययनके महानिदेशक DGCA का भी स्पष्ट निर्देश है कि प्रधानमंत्री, मंत्री या किसी वीआईपी को उन विमानों से नहीं उड़ने दिया जाएगा जो सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं करते हैं.

गौरव विवेक भटनागर ने लिखा है कि प्रधानमंत्री ने बिना परीक्षण वाले विमान में उड़ा भरा और वो भी विदेशी पायलट के साथ. जो कि DGCA के दिशानिर्देशों का उल्लंघन है.  DGCA के दिशानिर्देशों में दो इंजन वाले विमानों का ही ज़िक्र है. तब जांच नहीं हुई कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा को जोखिम में किसने और क्यों डाला गया? इसके बाद भी प्रधानमंत्री ने उस विमान में उड़ान भरने का फैसला किया जो सिंगल इंजन सी-प्लेन था और अमरीका के साल्ट लेक सीटी में रजिस्टर्ड था. इसकी इंजन क्षमता DGCA के मानकों पर खरा नहीं उतरती है.DGCA ने कई बार इस बात को लेकर आपत्ति जताई है कि चुनावी और अन्य कार्यों के लिए वी आई पी और एस पी जी सुरक्षा वाले वीआईपी असुरक्षित विमानों का इस्मताल करते हैं.

देश कभी नहीं जान सका कि क्या प्रधानंमत्री के लिए दिशानिर्देश बदले गए थे कि वे सिंगल इंजन विमान में उड़ान भरेंगे?  जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस घटना पर ट्विट करते हुए सवाल किया था कि SPG ने प्रधानमंत्री को सिंगल इंजन वाले सी-प्लेन में उड़ान भरने की इजाज़त कैसे दी? क्या इसके लिए दिशानिर्देशों में बदलाव किया गया था? क्या तब सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं हुआ था? क्या इस बात की कोई जांच हुई थी या यह घटना कुछ और कहना चाहती है? SPG की अंदरुनी दुनिया में कोई ऐसा बदलाव आया है जिस पर सभी चुप रहना चाहते हैं? 12 दिसंबर 2017 को द वीक पत्रिका में मैथ्यू टी जार्ज ने भी अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाया था कि क्या नरेंद्र मोदी के सी प्लेन ने DGCA के नियमों को तोड़ा है? 

इस घटना की कभी जांच नहीं हुई और हुई तो पब्लिक में जवाब नहीं आया.यह कोई साधारण घटना नहीं थी.वोटर में भले ही थ्रिल आया हो लेकिन सिंगल प्लेन में उड़ान भर कर प्रधानमंत्री ने जोखिम तो लिया ही था. प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर कब मुद्दा बना दिया जाता है और कब उसे शान की तरह पेश किया जाता है समझ नहीं आता है.एक वीडियो बीजेपी ने अपने ट्विर हैंडर से 15 सितंबर 2018 को ट्विट किया है. वीडियो के ऊपर बीजेपी ने लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी बिना किसी सुरक्षा रुट के आम लोगों की तरह स्वच्छता श्रमदान के लिए जाते हुए.कायदे से बीजेपी को कहना चाहिए था कि प्रधानमंत्री के लिए रुट क्यों नहीं आरक्षित किया गया है. इस तरह से शहर के बीच काफिले का गुज़रना ठीक नहीं है जब आम बाइक सवार बिल्कुल बगल से गुज़र रहे हैं.इस वीडियो को बीजेपी ने गर्व की तरह ट्विट किया है कि कितनी बड़ी बात है, जबकि इसे भी सुरक्षा की चूक के संदर्भ में देखा जाना चाहिए था.

सूरक्षा में चूक हुई यह कहीं से हल्का मामला नहीं है. लेकिन जिस तरह से राजनीतिक माहौल बनाया जा रहा है, ज़ाहिर है विरोधी पक्ष जवाब में उन प्रसंगों को सामने लाएंगे कि उस समय सुरक्षा में चूक का मामला क्यों नहीं उठाया गया.
(13 दिसंबर के वाराणसी के एक वीडियो में भी आप देख सकते हैं कि प्रधानमंत्री वाराणसी के रास्ते से गुज़र रहे हैं. स्थानीय लोग उनकी कार के बिल्कुल करीब हैं. बल्कि कार में जाकर पगड़ी भी पहनाते हैं. फूल माला बरसाते हैं. एक नेता के लिए एकदम से जनता को दूर करना मुश्किल काम है लेकिन सुरक्षा को लेकर यहां भी सवाल हो सकता है. बल्कि सवाल हो रहा है कि पंजाब में सामने किसान थे तो खतरा हो गया और यहां बिल्कुल करीब करीब लोग खड़े हैं फूल माला बरसा रहे हैं तो खतरा नहीं है.

इस तरह के कई नए पुराने वीडियो निकाल कर सवाल पूछे जा रहे हैं. इसलिए SPG को सामने आना चाहिए और बताना चाहिए कि यह जो वीडियो है वह प्रोटोकोल के हिसाब से सही है या गलत है, सी-प्लेन में बैठना सही था या गलत और अब जब जनता के बीच प्रोटोकोल को लेकर इतनी बहस है तो कुछ वीडियो के संदर्भ में स्थिति साफ करनी ही चाहिए.
जहां तक पॉलिटिकल बात है, पूरा दुनिया जानती है की पीएम की लोकप्रियता क्या है और ये जो आगे से घेर लिया जाए और दूसरी तरफ से भी घेरने को कहा जाए तो ये हत्या की साजिश नहीं तो और क्या है 

ड्रोन, एक से एक आर्म्स. तो ये कहीं न कही एक बड़ी साजिश थी  महादेव ने नरेंद्र मोदी को बचाने का काम किया.ये घटना देश के पीएम के साथ घटी है नरेंद्र मोदी के साथ नही. ये मामला सुप्रीम कोर्ट के डोमेन में भी पहुंच रहा है.ये साजिश केवल पंजाब के सीएम तक सीमित नहीं है इसके तार दिल्ली तक पहुंचे हैं.

मैं कुछ और उदाहऱण रखना चाहता हूं. तारीखों के साथ. 22 सितंबर 2017 को लंका गेट पर पीएम दौरे पर थे, लंका गेट पर बीएचयू की कुछ छात्राएं यौन उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शन करने आ गईं. पुलिस के अधिकारी मनाने की कोशिश की नहीं हटीं. क्या आपने सुना कि पीएम वाराणसी एयरपोर्ट से जाते हुए आदित्यानथ जी मैं जिंदा वाराणसी एयरपोर्ट लौट आया. उदाहऱण नंबर 15 सिंतबर 2018 दिल्ली की ट्रैफिक जाम में फंस गया. बीजेपी ने तारीफ की कि आम आदमी की तारीफ की. क्या आपने सुना की संदेश दिया केजरीवाल को कि थैंक्यू मैं सकुशल लोक कल्याण पर लौट आया. 25 दिसंबर 2017 को उदघाटन में जा रहे थे, रास्ता भटक गए. कुछ मिनटों को विलंब हुआ, एक अधिकारी सस्पेंड हो गया. क्या आपने सुना कि आदित्यनाथ जिंदा लौट आया. वहां आप बर्दाश्त कर लेते हो. जो अपना लोकसभा क्षेत्र पंजाब से आपको क्या नफरत है. 
प्रधानमंत्री की सुरक्षा का मामला सुविधा का नहीं होना चाहिए.इसमें सेंध या चूक बड़ी लापरवाही मानी जानी चाहिए. कई लोग कह रहे हैं कि अगर विपक्ष के नेता पर इस तरह का हमला होता तो हंगामा मच गया होता

हाथरस जा रहे राहुल गांधी को यूपी पुलिस ने धक्का दे कर गिरा दिया था. यह घटना अक्तूबर 2020 की है. कभी आपने देखा था कि ज़मीन पर किसी सांसद को पुलिस इस तरह से धक्का दे रही हो? क्या प्रधानमंत्री से लेकर संसद के दोनों सदनों के स्पीकर ने इस पर कुछ कहा था?क्या कोई बता सकता है कि एक सासंद के साथ इस बर्ताव के लिए कितने पुलिस वालों पर कार्रवाई हुई थी. उसी तरह हाथरस जा रहे तृणमूल के सांसदों के साथ यह कैसा बर्ताव हुआ. प्रतिमा मंडल, काकोली घोष दस्तीदार और डेरेक ओ ब्रायन के साथ क्या हो रहा है. क्या इन सांसदों के साथ इस तरह का बर्ताव करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई थी?

हम फिर से लौट कर उसी सवाल पर आना चाहते हैं. प्रधानमंत्री को सिंगल इंजन वाले सी-प्लेन में उड़ने का फैसला क्या दिशानिर्देशों के हिसाब से लिया गया था? बठिंडा से फिरोज़पुर 140 किलोमीटर की सड़क से यात्रा का फैसला क्यों लिया गया जब पंजाब में आए दिन ड्रोन से हमले की खबरें आती रहती हैं. किसानों का जगह जगह प्रदर्शन चल रहा था. संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान जारी किया है.जिससे पता चलता है कि प्यारेयाणा फ्लाईओवर पर पहले से धरना चल रहा था. जब पुलिस प्रशासन द्वारा कुछ किसानों को फिरोजपुर जिला मुख्यालय जाने से रोका गया तो उन्होंने कई जगह सड़क पर बैठ कर इसका विरोध किया. इनमें से प्यारेयाणा का वह फ्लाईओवर वह भी था जहां प्रधानमंत्री का काफिला आया, रुका और वापस चला गया. वहां के प्रदर्शनकारी किसानों को इसकी कोई पुख्ता सूचना नहीं थी कि प्रधानमंत्री का काफिला वहां से गुजरने वाला है. उन्हें तो प्रधानमंत्री के वापिस जाने के बाद मीडिया से यह सूचना मिली.

मौके की वीडियो से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रदर्शनकारी किसानों ने प्रधानमंत्री के काफिले की तरफ जाने की कोई कोशिश तक नहीं की. बीजेपी का झंडा उठाए "नरेंद्र मोदी जिंदाबाद" बोलने वाला एक समूह ही उस काफिले के नजदीक पहुंचा था. इसलिए प्रधानमंत्री की जान को खतरा होने की बात बिल्कुल मनगढ़ंत लगती है. यह बहुत अफसोस की बात है कि अपनी रैली की विफलता को ढकने के लिए प्रधानमंत्री ने "किसी तरह जान बची" का बहाना लगाकर पंजाब प्रदेश और किसान आंदोलन दोनों को बदनाम करने की कोशिश की है.

सारा देश जानता है कि अगर जान को खतरा है तो वह किसानों को अजय मिश्र टेनी जैसे अपराधियों के मंत्री बनकर छुट्टा घूमने से है. संयुक्त किसान मोर्चा देश के प्रधानमंत्री से यह उम्मीद करता है कि वह अपने पद की गरिमा को ध्यान में रखते हुए ऐसे गैर जिम्मेदार बयान नहीं देंगे. प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई चूक का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच गया है. लायर्स वायर्स नाम के संगठन ने याचिका दायर की है. चीफ जस्टिस एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच इसकी सुनवाई कर रही है. याचिकाकर्ता के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि SPG  एक्ट को देखते हुए ये गंभीर मामला है सुप्रीम कोर्ट  को इस पर विचार करना चाहिए और इसकी जांच पंजाब सरकार नहीं कर सकती. 

सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ये रेयरस्ट ऑफ द रेयर मामला है.इस घटना से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी हुई और पीएम की सुरक्षा के लिए "गंभीर गंभीर" खतरा पैदा हो गया. तुषार मेहता ने कहा कि लोकल पुलिस वहां थी और स्थानीय लोगों के साथ चाय का लुत्फ उठा रही थी लेकिन उन्होंने आगे प्रदर्शनकारियों के बारे में SPG  को सूचित करने की जहमत नहीं उठाई.यह सीमा पार आतंकवाद का मामला हो सकता है.

तुषार मेहता ने सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट का हवाला दिया और कहा कि  जिला जज की सहायता के लिए सभी सामग्री एकत्र करने के लिए NIA को वहां होना चाहिए. तुषार मेहता ने भी कहा कि पंजाब सरकार जांच नहीं कर सकती. एनआईए अधिकारियों की भी उस जांच टीम में उपस्थिति अनिवार्य है.गृह मंत्रालय ने तीन सदस्यों की एक कमेटी बनाई है और वह मौके पर पहुंच कर जांच शुरू कर चुकी है. आपके स्क्रीन पर उसी का वीडियो है. पंजाब सरकार ने कहा कि अगर पंजाब का पैनल जांच नहीं कर सकता तो केंद्र का पैनल भी जांच नहीं कर सकता है. 

इसलिए अदालत जांच के लिए किसी अन्य सेवानिवृत्त जज या अधिकारी को भी नियुक्त कर सकती है. पंजाब ने अदालत से कहा कि मामले में FIR हो गई है और जांच शुरू हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट  को मामले के सारे रिकॉर्ड तुंरत अपने पास सुरक्षित रखने के आदेश दिए हैं. पंजाब सरकार को भी सहयोग करने के लिए कहा है. इस मामले में अगली सुनवाई 10 जनवरी को अगली सुनवाई . इस घटना के बहाने राजनीतिक प्रतिक्रिया से सावधान रहने की ज़रूरत है.आई टी सेल के ज़रिए जिस तरह के मीम बनाए जा रहे हैं वे घातक हैं. 

ट्विटर पर खालिस्तानी ट्रेंड हो रहा है. यह फिर से वही गलती हो रही है. किसान आंदोलन के समय किसानों को खालिस्तानी कहा जाने लगा था. नफरती माहौल एक स्विच दबाते ही बन जाता है. इस तरह के ट्विट पर अब पंजाब पर ही हमला हो रहा है. लिखा जा रहा है कि कांग्रेस कलंक है. यूपी में पीएम, पंजाब में पीएम, अंतर साफ है. काशी में प्रधानमंत्री को चलते हुए दिखाया जा रहा है लेकिन क्या वहां प्रधानमंत्री बिना सुरक्षा के चल रहे हैं. इस ट्विट के नीचे लिखा हैशटैग भारत स्टैंड्सविद मोदी जी. इस तरह के कार्टून बनाए गए हैं जिसमें इंदिरा गांधी की हत्या को दिखाया जा रहा है. सभी को पता है कि हत्या करने वाला सिख था. लेकिन इस संदर्भ में इसे पेश करने का क्या मकसद हो सकता है? अब ये वही ट्रेंड हैं जैसे म से माफिया के बहाने मुसलमानों को टारगेट करो और इस तरह की तस्वीरों के बहाने सिख समुदाय को टारगेट करो.
“देश की सुरक्षा एजेंसी की छवि धूमिल हो.

देश के एक महत्वपूर्ण प्रदेश पंजाब पंजाबियत की छवि को रौंदा जा रहा है. ये पूरा विश्व देख रहा है. आखिर कारण क्या है, कि आप सरेआम 303 सीटें हैं लेकिन आप देश की छवि के साथ खिलवाड़ करने में एक मिनट में नहीं लगाते आप और आपके करीबी के साथी. ये क्या हाल बना रखा है देश का” कुछ दिन भी नहीं बीते हैं हरिद्वार में मुसलमानों के नरसंहार के नारे लगाए जा रहे थे. प्रधानमंत्री ने निंदा तक नहीं की. लेकिन आप सभी नफरती बातों से दूर रहिए. ये वही मसाले हैं जो घर घर में नौजवानों को सांप्रदायिक बना रहे हैं.

सांप्रदायिकता इंसान को मानव बम में बदल देती है. बम से ख्याल आया कि फरवरी 2016 में आटो एक्सपो लगा था. वहां हमने 9 करोड़ की एक कार देखी जो आर्डर देने के बाद छह से 9 महीने में बन कर तैयार होती है. यह कार वीआईपी और धनिकों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है.कंपनी कोई और है लेकिन इन दिनों प्रधानमंत्री की सुरक्षा और कार को लेकर चर्चा हो रही है तो आप उस तरह की कार के बारे में थोड़ा बहुत जान लेंगे तो कोई नुकसान नहीं होगा. मुझे यकीन है इस वीडियो के किसी अंश को लेकर आई टी सेल ट्रोल नहीं करेगा. वैसे भी मेले की कार है,यादों में खो गई थी जिसे आपके लिए आर्काइव से निकाल कर लाया हूं.