This Article is From Jun 06, 2024

महाराष्ट्र में कांग्रेस के फिर जिंदा हो उठने की कहानी

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Jitendra Dixit

चुनाव नतीजे आने के एक दिन पहले तक महाराष्ट्र में कांग्रेस सांसदों की संख्या शून्य थी, लेकिन जब चार जून की शाम मतगणना पूरी हुई तो कांग्रेस 13 सीटों के साथ महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. ऐसे वक्त में जब सियासी पंडित राज्य में कांग्रेस के अस्तित्व को लेकर शंका जता रहे थे, इस पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बाकी सभी पार्टियों से बेहतर प्रदर्शन करके सबको चौंका दिया. आईये एक नजर डालते हैं कांग्रेस पार्टी के फर्श से अर्श तक के सफर पर.

अगर 1995 से 1999 तक के पांच साल को छोड दें, जब शिव सेना-बीजेपी गठबंधन सरकार थी, तो 80 के दशक से लेकर 2014 तक लगातार महाराष्ट्र में कांग्रेस का मुख्यमंत्री रहा. 1999 में शरद पवार ने बगावत करके एनसीपी बना ली, भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगे, मुंबई में 26 नवंबर जैसा बड़ा आतंकी हमला कांग्रेस के कार्यकाल में हुआ लेकिन इन सबके बावजूद महाराष्ट्र में सरकार कांग्रेस की ही रही. पार्टी के पतन की शुरुआत 2014 से हुई. राज्य से तो सत्ता गयी ही लेकिन इसके साथ-साथ लोकसभा चुनावों में भी पार्टी की दुर्गति होने लगी. 

2014 में कांग्रेस महाराष्ट्र में सिर्फ 2 सीट ही जीत पायी तो 2019 में ये संख्या घटकर एक रह गयी. 2019 में कांग्रेस के चंद्रपुर से चुने गये एकमात्र कांग्रेस सांसद बालू धानोरकर का मई 2023 में निधन हो गया. इस तरह से कांग्रेस राज्य में शून्य सांसद वाली पार्टी बन गयी. कांग्रेस को कई और भी झटके लगे. तीन दशकों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी रखने वाली कांग्रेस 2019 के विधानसभा चुनाव में चौथे नंबर पर आ गई. इसके अलावा अशोक चव्हाण, मिलिंद देवरा, बाबा सिद्धिकी और कृपाशंकर सिंह जैसे बड़े नेता पार्टी को छोड़कर विरोधी खेमें में शामिल हो गए.

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2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पुनर्जीवित होने के कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस का विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाडी में शामिल होना. इस गठबंधन में शामिल होने से कांग्रेस को न केवल चौथे नंबर की पार्टी होने के बावजूद राज्य में शामिल होने का मौका मिला बल्कि लोकसभा चुनाव में बाकी के दोनों घटक दल यानी कि उद्धव गुट वाली शिवसेना और शरद पवार वाली एनसीपी का ईमानदारी से सहयोग भी मिला जिस कारण उसके उम्मीदवार बड़ी तादाद में जीत पाये.

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महाराष्ट्र में कांग्रेस कुछ बीजेपी नेताओं के दिये गये उन बयानों को अपने फायदे में भुनाने में कामयाब रही जिनमें कहा गया कि अगर बीजेपी 400 सीटें लाती है तो संविधान बदल दिया जायेगा. पार्टी को दलित वोटों का साथ मिला. इसके अलावा इस बार प्रकाश आंबेडकर की वंचित बहुजन आघाडी और ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के बीच गठबंधन नहीं था, इसलिये कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोट भी नहीं बंटे.

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लोक सभा चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस में नई जान फूंकी है और कांग्रेस विधान सभा चुनाव बड़े ही आक्रमक तरीके से लड़ने जा रही है. पार्टी के कई नेता दबी जुबान से अब ये कह रहे हैं कि अगर चार महीने बाद होने जा रहे विधानसभा चुनाव में महाविकास आघाडी जीतती है तो कांग्रेस मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोकेगी.

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जीतेंद्र दीक्षित NDTV में कंट्रिब्यूटिंग एडिटर हैं

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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