उस मासूम की आंखों में छुपा विश्वास एक ऐसी अनमोल चीज़ थी, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है. वह छोटा सा कुत्ता, अपनी मालकिन के पीछे-पीछे चल रहा था, नन्हे कदमों से उसकी छाया को थामने की कोशिश कर रहा था. उसके लिए उसकी मालकिन उसकी पूरी दुनिया थी एक ढाल, एक रक्षक, एक ऐसा इंसान जिस पर वह अपनी जिंदगी की हर सांस के लिए भरोसा कर सकता था. लेकिन झांसी रेलवे स्टेशन पर उस भरोसे की नींव एक पल में ढह गई.
एक वीडियो, जो अब सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहा है, उस मासूम की मूक चीख को दुनिया के सामने लाया. उसकी आंखों में छुपा विश्वास टूट गया, और उसकी मालकिन, जिसे वह अपना सब कुछ मानता था, कुत्ता उसकी लापरवाही का शिकार बन गया. हां, उसकी जान बच गई, लेकिन क्या उसका दिल नहीं टूटा होगा? क्या वह फिर कभी उसी भोलेपन से अपने मालकिन की ओर देख पाएगा?
यह वीडियो सिर्फ एक हादसे का सबूत नहीं है. यह एक आईना है, जो हमारे समाज की संवेदनशीलता, हमारे रिश्तों की गहराई और हमारी जिम्मेदारी के खोखलेपन को उजागर करता है. यह कहानी उस कुत्ते की नहीं, बल्कि हमारी है. हमारी लापरवाही की, हमारी उदासीनता की, और उस प्यार की, जो हम दावा तो करते हैं, लेकिन उसे साबित करने में नाकाम रहते हैं.
ये भी पढ़ें- झांसी में चलती ट्रेन में चढ़ने के प्रयास में पटरी पर गिरने वाले कुत्ते का क्या हुआ?
लापरवाही की हद है ये घटना
महिला की गैर जिम्मेदारी ने एक मासूम जान को खतरे में डाल दिया. सोचिए उस पल को, जब वह कुत्ता अपने मालकिन के साथ ट्रेन में सफर कर रहा था के पीछे भाग रहा था, शायद उसकी छोटी-सी पूंछ हिल रही थी, और उसका दिल यह उम्मीद कर रहा था कि उसकी मालकिन उसे कभी नहीं छोड़ेगी.
यह कितना दुखद है कि महिला ने यह सुनिश्चित नहीं किया कि उसका वफादार साथी सुरक्षित है. क्या यह जल्दबाजी थी, या फिर यह उसकी आदत थी कि वह अपने पालतू जानवर को सिर्फ एक चीज़ समझती थी, एक खिलौना, जिसे वह जब चाहे उठा ले और जब चाहे भूल जाए?
वे उनकी हर छोटी-बड़ी ज़रूरत का ख्याल रखते हैं उनके खाने का समय, उनकी सैर, उनकी सेहत सब कुछ. लेकिन दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो पालतू जानवरों को सिर्फ एक स्टेटस सिंबल की तरह देखते हैं. उनके लिए यह सिर्फ एक फैशन है, एक दिखावा, जिसे वे सोशल मीडिया पर तस्वीरें डालकर और दोस्तों के सामने शेखी बघारकर पूरा करते हैं. लेकिन जब बात जिम्मेदारी की आती है, तो वे पीछे हट जाते हैं.
झांसी रेलवे स्टेशन की यह घटना उस गैर-जिम्मेदाराना रवैये का जीता-जागता सबूत है. उस महिला को को ट्रेन में चढ़ने की कोशिश से पहले एक पल रुकना चाहिए था. उसे अपने कुत्ते को गोद में उठाना चाहिए था, या कम से कम यह देखना चाहिए था कि वह सुरक्षित है. लेकिन उसने ऐसा नहीं किया.
उसकी लापरवाही ने न सिर्फ उस कुत्ते की जान खतरे में डाली, बल्कि यह सवाल भी उठाया कि क्या हम वाकई अपने पालतू जानवरों के प्रति उतने संवेदनशील हैं, जितना हमें होना चाहिए? क्या हम उनकी भावनाओं को समझते हैं? क्या हम यह महसूस करते हैं कि वे भी जीवित प्राणी हैं, जिनके पास एक दिल है, जो धड़कता है, और एक आत्मा है, जो प्यार और विश्वास से भरी होती है?
कानून हैं, लेकिन जिम्मेदारी कौन लेगा?
भारत में जानवरों के प्रति क्रूरता को रोकने के लिए कई कानून बनाए गए हैं. प्रिवेंशन ऑफ क्रुएल्टी टू एनिमल्स एक्ट 1960 साफ कहता है कि किसी भी जानवर के साथ क्रूरता करना अपराध है. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 में भी सजा का प्रावधान है, अगर कोई जानवर को मारता है, जहर देता है, या उसे किसी भी तरह नुकसान पहुंचाता है. इसके अलावा, हमारा संविधान भी हर नागरिक से यह अपेक्षा करता है कि वह प्रकृति और जीव-जंतुओं की रक्षा करे, उनके प्रति दया और करुणा का भाव रखे. ये कानून कागजों पर तो बहुत मजबूत दिखते हैं, लेकिन हकीकत में इनका पालन कितना होता है?
झांसी की इस घटना में क्या हुआ? क्या उस महिला के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई? रेलवे अधिकारियों ने इस हादसे को स्वीकार तो किया, लेकिन अभी तक यह साफ नहीं है कि उस महिला को उसकी लापरवाही की सजा मिली या नहीं. यह चुप्पी डरावनी है. यह हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारा समाज और हमारी कानूनी व्यवस्था वाकई जानवरों के हक के लिए खड़ी है? क्या हम सिर्फ कागजों पर नियम बनाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं, या फिर हम सचमुच उन मासूम प्राणियों की आवाज़ बनना चाहते हैं, जो खुद अपनी बात नहीं कह सकते?
एक सबक, जो हमें सीखना होगा
यह वीडियो सिर्फ एक कुत्ते की कहानी नहीं है. यह हमारी कहानी है. यह उस विश्वास की कहानी है, जो हर दिन टूटता है. यह उस प्यार की कहानी है, जो अधूरा रह जाता है. और यह उस जिम्मेदारी की कहानी है, जिसे हम नज़रअंदाज़ करते हैं. उस कुत्ते की जान भले ही बच गई हो, लेकिन उसकी आंखों में जो डर और दर्द बस्ता होगा, उसे कौन मिटाएगा? उसका मालिक शायद अपनी जिंदगी में आगे बढ़ जाए, लेकिन क्या वह कुत्ता कभी उस पल को भूल पाएगा, जब उसे लगा कि उसकी दुनिया उसे छोड़कर चली गई?
हमें यह समझना होगा कि पालतू जानवर हमारे लिए सिर्फ एक शौक नहीं हैं. वे हमारे साथी हैं, हमारे परिवार हैं. उनकी हर सांस, हर नज़र, हर छोटी-सी हरकत में हमारी जिम्मेदारी छुपी होती है. हमें उनकी देखभाल करनी होगी, उनके प्रति संवेदनशील होना होगा, और सबसे बढ़कर, हमें यह साबित करना होगा कि हम उनके उस भरोसे के लायक हैं, जो वे हम पर करते हैं.
झांसी रेलवे स्टेशन की यह घटना एक चेतावनी है. यह हमें बताती है कि अगर हम अभी नहीं जागे, तो ऐसे हादसे बार-बार होंगे. और हर बार एक मासूम की आंखों में छुपा विश्वास टूटेगा. क्या हम ऐसा समाज बनाना चाहते हैं, जहां प्यार और भरोसा सिर्फ शब्द बनकर रह जाएं? या फिर हम उस दुनिया का हिस्सा बनना चाहते हैं, जहां हर जीव चाहे वह इंसान हो या जानवर सुरक्षित, सम्मानित और प्यार से भरा हुआ महसूस करे? जवाब हमारे हाथ में है. और यह जवाब हमें अभी देना होगा, क्योंकि कल बहुत देर हो सकती है.
सचिन झा शेखर NDTV में कार्यरत हैं. राजनीति और पर्यावरण से जुड़े मुद्दे पर लिखते रहे हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.