ईरान पर कब हमला करेगा इजरायल, किस दबाव में हैं बेंजामिन नेतन्याहू

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Saiyed Zegham Murtaza

इजरायल-हमास-हिजबुल्लाह युद्ध पर दुनिया भर की निगाह है.हिजबुल्लाह के मुताबिक हमास नेता याह्या सिनवार की शहादत के बाद यह युद्ध नए दौर में प्रवेश कर गया है.हिजबुल्लाह का कहना है कि अब उसके हमले सैन्य निशानों तक सीमित नहीं रहेंगे.हिजबुल्लाह ने ड्रोन हमले में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के निवास को निशाना बनाकर इसे साबित भी किया.नेतन्याहू कह रहे हैं कि वह इसका बदला लेंगे. लेकिन यही दावा उन्होंने एक महीने पहले इजरायल पर ईरान के मिसाइल हमले के बाद भी किया था.

इजरायल ईरान पर कब करेगा जवाबी हमला

ईरान के हमले को एक महीना होने को आया, लेकिन इजरायल तय नहीं कर पा रहा है कि वह बदला किस तरह ले कि बात भी न बढ़े और उसका हिसाब भी बराबर हो जाए.इस बीच अमेरिका से एक खुफिया रिपोर्ट लीक होने का दावा किया जा रहा है.कहा जा रहा है इस गोपनीय दस्तावेज में ईरान पर इजरायली हमले की योजना का ब्यौरा है.अमेरिका इस रिपोर्ट के लीक होने से चिंतित है,लेकिन विशेषज्ञ इसे इजरायल की तरफ से ईरान पर मानसिक दबाव बनाने की रणनीति का हिस्सा बता रहे हैं.इसके बाद भी दुनिया चिंतित है. इस लड़ाई के फैलने के नतीजों का अनुमान दुनिया अभी से लगा रही है. इधर इजरायली विमान लेबनान और गाजा पर लगातार बमबारी कर रहे हैं. इजरायल की समझ में नहीं आ रहा है कि जब इस्माइल हानिया,सैयद हसन नसरुल्लाह और याह्या सिनवार जैसे लोग नहीं हैं तो फिर यह लड़ाई आखिर लड़ कौन रहा है?

बंधकों की रिहाई के लिए इजरायल में प्रदर्शन करते लोग.
Photo Credit: AFP

फलस्तीन में इजरायली सेना को दाखिल हुए एक साल से ज्यादा का समय गुजर चुका है.इस दौरान गाजा मलबे के ढेर में बदल चुका है.इजरायली सेना के हवाई और जमीनी हमलों में करीब 42 हजार फलस्तीनी अपनी जान गंवा चुके हैं.इनमें करीब 17 हजार बच्चे और 11 हजार महिलाएं शामिल हैं.सात सितंबर,2023 को इजरायल पर हमला करते समय हमास ने अपने हिसाब-किताब में इस तबाही का अंदाजा शायद नहीं लगाया होगा. इस्माइल हानिया और याह्या सिनवार समेत हमास के कई प्रमुख लड़ाके मारे जा चुके हैं.इससे हमास को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.लेकिन इन सबके बाद भी हमास की हमला करने की क्षमता में कमी नहीं आई है.

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कैसी लड़ाई लड़ रहा है हमास

इजरायल पर हमले की बरसी वाले दिन यानी सात अक्तूबर 2024 को हमास ने इजरायल पर कई रॉकेट दाग अपनी क्षमता दिखाई. हमास प्रवक्ता अबु उबैदा का कहना है कि उनका संगठन इजरायल को क्रमिक विघटन की लंबी लड़ाई लड़ रहा है.यह लड़ाई फलस्तीन के आजाद मुल्क बनने तक जारी रहेगी.

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चार महीने के अंदर ही हमास को अपने दो बड़े नेताओं इस्माइल हानिया और याह्यया सिनवार को खोना पड़ा है.

इजरायली सेना के जमीनी और हवाई हमले अबतक हमास और हिजबुल्लाह का खात्मा कर पाने में नाकाम रहे हैं. इजरायली डिफेंस फोर्स (आईडीएएफ) को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा है.हमास ने पिछले साल जिन 251 लोगों को बंधक बनाया था,उनमें से करीब सौ का अभी तक सुराग नहीं मिला है.इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के कार्यालय ने स्वीकार किया है कि इनमें से 34 की जान जा चुकी है.हमास का दावा है कि अधिकांश बंधकों को इजरायली सेना की कार्रवाई में अपनी जान गंवानी पड़ी है.ऐसे में लोग सवाल कर रहे हैं कि इजरायल ने इस एक साल में क्या हासिल किया है? फलस्तीनियों को इस लड़ाई से क्या मिलेगा? सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह लड़ाई आखिर कब खत्म होगी? इन सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं है.

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कब और कैसे खत्म होगा युद्ध

आईडीएएफ दावा कर सकता है कि उसने हमास और उसके सहयोगियों को भारी नुकसान पहुंचाया है.लेकिन उसके विरोधियों के हौंसले अभी पस्त नहीं हुए हैं.इजरायल अभी यह कह पाने की स्थिति में नहीं है कि यह युद्ध कब और कैसे खत्म होगा. इजरायली सेना में किसी को नहीं मालूम कि हमास और हिजबुल्लाह को कब तक समर्पण करने के लिए मजबूर किया जा सकता है.हिजबुल्लाह अब करीब-करीब रोज ही इजरायल में किसी न किसी जगह को निशाना बनाकर हमले कर रहा है.ऐसे में इजरायल की किसी रणनीतिक बढ़त के दावे का कोई मतलब नहीं रह गया है.

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ईरान के मिसाइल हमले के बाद इजराल ने तगड़े जवाबी कार्रवाई की धमकी दी थी.

हमास और हिजबुल्लाह के हौसलों में कमी न आने की वजहे हैं.एक तो ये संगठन नेतृत्व या चेहरों पर नहीं बल्कि विचारधारा पर आधारित हैं.दूसरा,इनके पास खोने के लिए और उनके बदले में आगे लाने के लिए इजरायल से ज्यादा लोग हैं.इन संगठनों में नेतृत्व,विरासत और नेतृत्व के न रहने पर जिम्मेदारी लेने के लिए एकदम स्पष्ट प्रक्रिया है.यही कारण है कि हर बार किसी बड़े चेहरे की मौत के बाद ये संगठन और मजबूत हो जाते हैं.इसका उदाहरण 1992 में हिजबुल्लाह नेता अब्बास अल मूसवी की हत्या के बाद संगठन की बढ़ी लोकप्रियता है.इसी तरह मार्च 2004 में शेख अहमद यासीन और अप्रैल 2004 में अब्दुल अजीज रंतीसी की हत्या के बाद से हमास की राजनीतिक स्वीकार्यता और बढ़ गई.यह अब प्रतिरोध की आवाज न रहकर फलस्तीन की स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रतिनिधि संगठन बन गया है.

आजाद फलस्तीन का खतरा

इजरायल विरोधी प्रतिरोध समूह से जुड़े लोगों का दावा है इस लड़ाई में वो अपने निर्धारित लक्ष्यों की तरफ धीमी लेकिन सधी हुई रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं.हमास, हिजबुल्लाह, अंसारुल्लाह जैसे कई संगठनों को संरक्षण दे रहे ईरान के नेताओं का मानना है कि लड़ाई इसी रफ्तार से चलती रहे तो अगले कुछ महीने या कुछ साल में स्वतंत्र फलस्तीन का सपना साकार हो सकता है.हिजबुल्लाह, हमास और अंसारुल्लाह ने हाल ही में ज्यादा उन्नत हथियारों का प्रदर्शन किया है.पश्चिमी देश दबी आवाज में आरोप लगा रहे हैं कि रूस के अलावा चीन और उत्तरी कोरिया भी ईरान की मदद कर रहे हैं.जिस एक अफवाह ने इजरायल और उसके सहयोगी देशों की नींद उड़ा रखी है वो है ईरान का परमाणु परीक्षण.हालांकि ईरान ने अभी तक इसे स्वीकार नहीं किया है लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देश इस अफवाह में सच्चाई महसूस कर रहे हैं.

याह्या सिनवार की मौत के बाद यमन में प्रदर्शन करते लोग.

इधर हिजबुल्लाह ने पहली बार फाइबर ऑप्टिक ड्रोन का इस्तेमाल कर इजरायल में गोलानी ब्रिगेड की यूनिट को निशाना बनाया.इसके बाद इजरायल के एयर डिफेंस को चकमा देकर उसका ड्रोन बेंजामिन नेतन्याहू के घर तक पहुंच गया. इसके बाद से रणनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि इस लड़ाई में रूस और चीन का दखल बढ़ गया है. हिजबुल्लाह, हमास और अंसारुल्लाह जिस तरह से हमले कर रहे है वह बिना रूस या चीन की मदद के संभव नहीं है. लेकिन यहां इजरायल की चिंता दूसरी है. दरअसल इस लड़ाई में इन समूहों ने फलस्तीन की आजादी को अंतरराष्ट्रीय नैरेटिव बना दिया है.इजरायल समर्थक देशों में भी इजरायल के लिए समर्थन में कमी आई है.वैचारिक तौर पर यह हमास की सफलता और इजरायल के हार की तरह है.

इजरायल का हमला और अमेरिकी चुनाव

इस बदलाव से बेंजामिन नेतन्याहू पर दबाव बढ़ रहा है कि वो ईरान पर हमला करें. नेतन्याहू ने कहा भी है कि इजरायल ने अपनी इस योजना को ठंडे बस्ते में नहीं डाला है.अमेरिका से लीक हुए प्लान में अगर सच्चाई है तो माना जा सकता है कि इजरायल ईरान पर हमला करेगा.वहीं ईरान ने धमकी दे रखी है कि अगर इजरायल ने हमला किया तो जवाबी कार्रवाई पहले से कई गुना भयंकर होगी.इजरायल नवंबर के पहले हफ्ते में ईरान पर हमला कर सकता है.दरअसल उस समय अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का प्रचार चरम पर होगा. ऐसे में अगर इजरायल हमला करता है तो ईरान की चेतावनी को देखते हुए वह इस युद्ध का निर्णायक पल भी हो सकता है. लेकिन अगर नवंबर का पहला हफ्ता शांति से गुजर गया तो उम्मीद की जा सकती है कि इजरायल बदले की कार्रवाई की जगह समझौते की राह चुने. 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पश्चिम एशिया के मामलों के जानकार हैं.
(अस्वीकरण: यह लेखक के निजी विचार हैं. इसमें दिए गए तथ्यों और विचारों से एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. )

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