इजरायल-हमास संघर्ष का एक साल: किसने क्या खोया, क्या पाया?

Advertisement
Saiyed Zegham Murtaza

इजरायल में हमास के हमले और इसके बाद शुरू हुए युद्ध को एक साल पूरा हो चुका है. इस दौरान तकरीबन 50 हज़ार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. लेबनान, फलस्तीन, इजरायल में लगातार बरस रहे रॉकेट, बम और मिसाइलों के धमाकों में दुनिया विश्व युद्ध की आहट सुन रही है. इस दौरन शांति स्थापित करने के तमाम प्रयास नाकाम रहे हैं. लेकिन इन तमाम बातों के बीच यह समय इस बात का आकलन करने का है कि इस युद्ध से अभी तक हासिल क्या हुआ है. इसमें शामिल तमाम पक्षों में से कौन अपने लक्ष्यों को पाने में या उनके करीब पहुंच पाने में कामयाब रहा है.

शुरुआत अगर इजरायल से करें तो हम पाते हैं कि बेंजामिन नेतन्याहू ने पिछले साल अपने नागरिकों से बड़े-बड़े वादे किए थे. तब हमास के हमलों में बारह सौ से अधिक नागरिकों की जान चली गई थी. पूरे देश में गुस्सा था. लोग बदले की आग में जल रहे थे. इसके बाद इजरायली फौजें गाजा में दाखिल हुईं. उस समय प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने दावा किया था कि वो अगले कुछ दिन के भीतर हमास का खात्मा कर देंगे. तब यह भी कहा गया कि उनकी सरकार सुनिश्चित करेगी कि इजरायल के हर नागरिक को सुरक्षा मिले और देश में शांति स्थापित हो. उस समय हमास ने 240 लोगों को बंधक बनाया था. नेतन्याहू ने अपने देशवासियों से इन सबको सुरक्षित वापस लाने का वादा किया था.

एक साल बाद हम पाते हैं कि इजरायल जिन घोषित लक्ष्यों के साथ युद्ध में गया था उनमें से एक भी हासिल नहीं कर पाया है. हालांकि, इजरायली डिफेंस फोर्सेज़ (आईडीएफ) के पास अपनी पीठ थपथपाने के लिए कई चीजें हैं. इनमें हमास और लेबनानी मिलिशिया हिजबुल्ला के नेतृत्व का खात्मा, लगातार हो रहे रॉकेट हमलों के बावजूद जान-माल का नुकसान सीमित रखना, गाजा में हमास और दक्षिण लेबनान में हिजबुल्लाह कई ठिकानों का खत्म कर देना और इजरायल के विरुद्ध लड़ रहे ईरानी गठबंधन के लड़ाकों की क्षमता सीमित करना शामिल है. मगर इस दौरान गजा और लेबनान में नागरिकों के बड़ी संख्या में मार डालने, अस्पतालों और स्कूलों को निशाना बनाने और निहत्थे नागरिकों पर हमला करने के आरोप भी इजरायली सुरक्षा बलों पर लगे हैं. इन आरोपों के बदले में आईडीएफ ने साफ कहा है कि युद्ध में ये सब होता ही है.

Advertisement

एक साल में गाजा और दक्षिण लेबनान खंडहर में बदल चुके हैं. इजरायली जहाज यमन तक हमला कर आए हैं. लेकिन इसका इजरायल को भारी नुकसान हुआ है. एक तो इजरायल से सहानुभूति रखने वाले देशों का संख्या लगातार कम हुई है, दूसरा, फलस्तीन आंदोलन अब प्रतिरोध से बढ़कर आजादी की लड़ाई में तब्दील हो गया है. आमतौर पर इजरायल के मामलों में शांत रहने वाले अरब देश भी अब स्वतंत्र फलस्तीन की हिमायत कर रहे हैं. आयरलैंड, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, बोलीविया, कोलंबिया, मेक्सिको और उत्तर कोरिया जैसे देश खुलकर इजरायल के सामने आ गए हैं. फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी में युवा फलस्तीन के समर्थन में रैलियां कर रहे हैं. इजरायल के लिए इसमें सबसे बड़ी चिंता अमेरिका और ब्रिटेन के नौजवान हैं. हाल के दिनों में यहां 30 साल तक के युवाओं में इजरायल का विरोध बढ़ा है. आने वाले समय में यह और बढ़ता है तो इजरायल अपने सबसे बड़े सहयोगियों को खो सकता है.

Advertisement

युद्ध भूमि से भी बहुत हौंसला बढ़ाने वाले समाचार नहीं आ रहे हैं. हिजबुल्लाह ने दावा किया है कि उसने जमीनी हमला करने लेबनान में घुसे दर्जनों इजरायली सैनिक अबतक मार गिराए हैं. इजरायल ने इनमें से कुछ के हताहत होने की बात स्वीकार की है. उत्तरी इजरायल में कई शहर भुतहा खंडहरों में तब्दील हो गए हैं. हाइफा, मलोत, गैलिली जैसे शहर तो दिन-रात गुलजार रहते थे, अब वहां मरघट सा सन्नाटा है. इस सन्नाटे को लेबनान की तरफ से आने वाले राकेट या उनको मार गिराने के लिए आयरन डोम से निकले मिसाइल की आवाजें तोड़ती हैं. अर्थव्यवस्था अपने न्यूनतम स्तर पर है.

Advertisement
अमेरिकी समाचार एजेंसियों के अनुसार इस युद्ध में इजरायल करीब दस हजार करोड़ शेकल (लगभग 263 करोड़ अमेरिकी डालर) खर्च कर चुका है. लड़ाई इसी रफ्तार से चली तो 2025 तक इजरायल को कुल पच्चीस हजार करोड़ शेकल का नुकसान हो सकता है.

इस साल की दूसरी तिमाही में इजरायली अर्थव्यवस्था में 0.7 फीसद की गिरावट दर्ज की गई है. टूरिज्म, निर्माण और बंदरगाहों से होने वाले व्यापार में तेजी से गिरावट आई है. यमन के हूथी लड़ाके इजरायल आने वाले जहाजों को बाब अल मंदाब के पास लगातार निशाना बना रहे हैं. इसका भी इजरायली व्यापार पर बुरा असर पड़ा है. लगातार गिर रही अर्थव्यवस्था, युद्ध के बढ़ते खर्च, बढ़ती महंगाई, और मरने वालों की बढ़ती तादाद से इजरायली नागरिकों में बेचैनी है. इस बीच ईरान के साथ बढ़ते तनाव को लेकर भी तमाम तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं. इस एक साल में ईरान दो बार इजरायल पर सीधा हमला कर चुका है. इससे ईरान ने दो बातें साबित करने की कोशिश की हैं. पहली यह कि इजरायल के अविजित होने का भ्रम स्थायी नहीं है. दूसरा, वो इजरायल में कहीं भी और कभी भी हमला करने की स्थिति में है.

Advertisement

इजरायल ने इसका जवाब सीरिया, यमन, लेबनान और खुद ईरान में हमला करके देने की कोशिश की है. लेकिन अमेरिकी रक्षा सूत्रों का कहना है यह स्थिति इजरायल के लिए घातक है. इजरायल इतने सारे मोर्चों पर अकेले लड़ने की स्थिति में नहीं है. उसे अमेरिका का मदद की दरकार है. उसके बढ़ते हमले और ईरान को लगातार बनाने के पीछे मंशा भी यही है कि अमेरिका इस लड़ाई में शामिल हो और उसके सिर पर से खर्च की यह आफत उतरे. लेकिन अमेरिका में चुनाव तक शायद ऐसा संभव नहीं है. ईरान भी सीधी लड़ाई से बच रहा है लेकिन इजरायल को नुकसान पहुंचाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं दे रहा.

ईरान से सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सैयद अली खामेनेई ने इजरायल के खिलाफ लड़ रहे प्रतिरोध गुटों के साथ खड़े रहने की प्रतिबद्धता दोहराई है.

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि भारी बमबारी, निशाना बनाकर की जा रही हत्याओं और सप्लाई तंत्र पर सीधे हमले के बावजूद इजरायल इस लड़ाई को खत्म करने की स्थिति में नहीं है. हालात ऐसे बन चुके हैं कि यह लड़ाई दो में से किसी एक पक्ष के खात्मे के साथ ही खत्म होगी. लेकिन एक साल में बेंजामिन नेतान्याहु और उनके समर्थकों को एक बात तो समझ आ गई है. विपक्षियों का खात्मा संभव नहीं है. उल्टा दुनिया भर में फलस्तीन की आजादी का समर्थन जिस तरह से बढ़ा है, उससे पता लगता है कि इजरायल इस युद्ध का नरेटीव सेट कर पाने में नाकाम रहा है. आजादी की भावना के दाखिल होना कोई हल्की बात नहीं है. प्रतिरोध को मिटाया जा सकता है लेकिन अगर एक पक्ष आजादी की लड़ाई मानकर मैदान में आए तो उसे दुनिया की कोई सेना हरा नहीं सकती. स्वयं हमारा स्वतंत्रता आंदोलन इस बात की सबसे बड़ी दलील है.

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पश्चिम एशिया के मामलों के जानकार हैं.
(अस्वीकरण: यह लेखक के निजी विचार हैं. इसमें दिए गए तथ्यों और विचारों से एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है. )

Topics mentioned in this article