This Article is From Nov 25, 2021

किस फैक्ट्री में तैयार होते हैं लाखों रोजगार के सैकड़ों सुनहरे आंकड़े?

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Ravish Kumar

इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट विकास का पुराना चेहरा है लेकिन इसे भव्य बनाकर नया किया जा रहा है. भव्यता को सजाने में रोज़गार के दावों का बड़ा रोल रहता है. प्रोजेक्ट की मंज़ूरी से लेकर शिलान्यास तक रोज़गार को लेकर जिस तरह की ख़बरें छपती हैं और दावे किए जाते हैं उसकी विकास यात्रा पर ग़ौर करना दिलचस्प होगा.

लाभार्थी और रोज़गार इन दो विषयों पर हमारा फोकस रहेगा. लाभार्थी एक नई सरकारी श्रेणी है जिसे सरकारी समारोहों को भव्य बनाने के लिए बसों से बुलवाया जाता है. अगर आप किसी योजना के लाभार्थी हैं तो प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के कर-कमलों द्वारा होने वाले शिलान्यास या उदघाटन के कार्यक्रम में जाने के लिए तैयार रहें. अच्छी बात है कि पैदल नहीं जाना होगा, बस आएगी. लाभार्थी के अलावा रोज़गार को लेकर किए जा रहे दावों पर भी हमारा फोकस रहेगा. ध्यान रहे कि ये दावे केवल सरकार के मंत्री और अधिकारी की तरफ से नहीं किए जाते बल्कि मीडिया भी अपनी तरफ से कुछ का कुछ छापता रहता है बिना बताए कि अमुक आंकड़ा किसने दिया है. इससे पाठकों के मन में एक छवि तो बन ही जाती है कि लाखों का रोज़गार मिलने वाला है.

गुरुवार को प्रधानमंत्री मोदी ने जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का भूमि पूजन किया. यूपी चुनाव से पहले योजनाओं के शिलान्यास और उदघाटन का काम मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री दोनों ने बखूबी संभाल लिया है. पिछले दो महीनों में प्रधानमंत्री इस तरह के कई बड़े प्रोजेक्ट का उदघाटन कर चुके हैं या शिलान्यास कर चुके हैं. इसका जवाब मिलना चाहिए कि प्रधानमंत्री के इस तरह के कार्यक्रमों के भव्य आयोजनों पर कितने करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं. एक ज़माना था जब ऐसे कार्यक्रमों को सरकारी समझ कर रुटीन मान लिया जाता था लेकिन अब इनका आयोजन इस तरह होता है कि फर्क करना मुश्किल हो जाता है कि राजनीतिक कार्यक्रम था या सरकारी कार्यक्रम था. 

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इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट विकास का पुराना चेहरा है लेकिन इसे भव्य बनाकर नया किया जा रहा है. भव्यता को सजाने में रोज़गार के दावों का बड़ा रोल रहता है. प्रोजेक्ट की मंज़ूरी से लेकर शिलान्यास तक रोज़गार को लेकर जिस तरह की ख़बरें छपती हैं और दावे किए जाते हैं उसकी विकास यात्रा पर ग़ौर करना दिलचस्प होगा.

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आज तमाम अखबारों में छपे विज्ञापन ने हमारा काम आसान कर दिया. इसमें लिखा है कि नोएडा में बनने वाले जेवर एयरपोर्ट से एक लाख से अधिक रोज़गार पैदा होगा. अब इसे ही आधिकारिक संख्या मानी जानी चाहिए. PIB की रिलीज़ में बताया गया है कि यह प्रोजेक्ट 35,000 करोड़ का है.

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एक लाख से अधिक का रोज़गार मिलेगा, इस संख्या के लांच होने से पहले इसी प्रोजेक्ट को लेकर अखबारों में छपी तीन खबरें मिली हैं. हर खबर में रोज़गार का आंकड़ा बदल जाता है. इन खबरों में किसी अधिकारी या मंत्री के नाम नहीं है. एक ख़बर अक्तूबर 2019 की है टाइम्स ऑफ इंडिया की. इसके अनुसार ज़ेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से पांच लाख रोज़गार पैदा होंगे. उसके दो महीने बाद हिन्दी अखबार अमर उजाला में खबर छपती है कि जेवर एयरपोर्ट से सात लाख रोज़गार मिलेगा. दो महीने में अंग्रेज़ी से हिन्दी अखबार तक आते आते रोज़गार की संख्या पांच लाख से सात लाख हो जाती है. ऐसी ख़बर का कोई खंडन तक नहीं करता है. फिर इसी महीने 8 नवंबर को अमर उजाला ने छापा है कि ज़ेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के बनने से 5 लाख 50 हज़ार लोगों को रोज़गार मिलेगा. तो 2019 से 2021 आते आते रोज़गार की संख्या पांच लाख से सात लाख हुई और सात लाख से साढ़े पांच लाख हुई. अब आधिकारिक संख्या एक लाख पर आ चुकी है.

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रोज़गार को लेकर अगर आप ज़्यादा दावा कर दें तब क्या सरकार के अधिकारी इसका खंडन करते हैं कि पांच लाख रोज़गार का दावा गलत छपा है, एक लाख ही मिलेगा? कई बार ऐसे दावे अनाम जानकारों के हवाले से छाप दिए जाते हैं. कई बार सरकार के मंत्री भी बढ़ चढ़ कर दावे करने लगते हैं कि लाखों को रोज़गार मिलेगा. 
उदाहरण स्वरूप पिछले साल अक्तूबर में परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने असम में बनने वाले मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क की ऑनलाइन आधारशिला रखी. सरकार की प्रेस रिलीज़ में इसे करीब 700 करोड़ का प्रोजेक्ट बताया गया है और भीमकाय अक्षरों में बताया गया है कि इससे बीस लाख रोज़गार पैदा होंगे. बीस लाख रोज़गार देने वाले इस प्रोजेक्ट पर तो रोज़ ही बात होनी चाहिए, क्या यह कोई मामूली घटना है, 2023 तक इसका पहला चरण पूरा होगा. जब यह पूरी तरह से बन जाएगा तो बीस लाख लोगों को काम मिलेगा.

एक प्रोजेक्ट के बनने से 20 लाख नौजवानों को रोज़गार मिलेगा. हमारा सवाल सिम्पल है. असम में 700 करोड़ के प्रोजेक्ट से 20 लाख नौजवानों को रोज़गार मिलेगा और यूपी में 35,000 करोड़ के जेवर इंटरनेशनल कार्गो हब प्रोजेक्ट से एक लाख से अधिक रोज़गार मिलेगा. यह हिसाब कैसे निकाला जाता है. 35,000 करोड़ के प्रोजेक्ट में 700 करोड़ के प्रोजेक्ट से कम रोज़गार मिलना चाहिए या ज्यादा. इसमें एक और तथ्य जोड़ना चाहता हूं. असम की तरह नागपुर से सटे वर्धा के सिंदी में भी इस तरह का मल्टी मॉडल लाजिस्टिक पार्क बन रहा है. इसके बारे में हमें पत्र सूचना कार्यालय PIB की एक प्रेस रिलीज़ से मिली है जो 22 अक्तूबर 2021 की को जारी हुई है.
इसमें लिखा है कि वर्धा के सिंदी में ड्राई पोर्ट बन रहा है. जवाहर लाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट और नेशनल हाईवे अथॉरिटी के बीच करार हुआ है. इस मल्टी मॉडल लाजिस्टिक पार्क के बनने से पांच साल में पचास हज़ार रोज़गार के अवसर पैदा होंगे. बयान नितिन गडकरी का है. PIB की रिलीज़ में नहीं लिखा है कि यह कितने का प्रोजेक्ट है. लेकिन 2008 के टाइम्स आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार यह 2200 करोड़ का प्रोजेक्ट है.

क्या मैं फिर से सवाल दोहराऊं? कि 700 करोड़ के प्रोजेक्ट से 20 लाख रोज़गार पैदा होता है तो 2200 करोड़ के प्रोजेक्ट से पचास हज़ार रोज़गार ही क्यों पैदा होता है और नोएडा के 35,000 करोड़ के प्रोजेक्ट से एक लाख से अधिक रोज़गार ही क्यों पैदा होते हैं? क्या आप इस तरह से ख़बरों को देखना चाहते हैं? रोज़गार के ऐसे आंकड़े कहां से आते हैं, मन की बात से या किसी किताब से. इसीलिए मैं नहीं चाहता हूं कि आप प्राइम टाइम न देखें, पता चला कि मेरे चक्कर में प़ड़कर पुराने अखबार, PIB की प्रेस रिलीज़ और प्रेस कांफ्रेंस सुनने लगे हैं. इतना ज्यादा जानकर आप करेंगे भी क्या. बोर नहीं होते हैं? Do you get my point.

PIB की एक और रिलीज़ भी इसी एक अक्तूबर की है. ध्यान रहे, यह रिलिज़ मल्टी मॉडल लाजिस्टिक पार्क की नहीं है. हाल ही में भारत सरकार ने Advanced automotive technology products को बढ़ावा देने के लिए आटोमोबिल सेक्टर को 42,500 करोड़ की प्रोत्साहन राशि देने का एलान किया था. गडकरी जी कहते हैं कि इस योजना से आटो सेक्टर में साढ़े सात लाख अतिरिक्त रोज़गार पैदा होंगे.

भारतीय आटो सेक्टर में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर साढ़े तीन करोड़ लोगों को रोज़गार मिला हुआ है. ऐसा अखबारों में छपा है. गडकरी जी साढ़े सात लाख अतिरिक्त रोज़गार की बात कर रहे हैं. प्रोजेक्ट भले अलग हैं, उनके नाम भले अलग हैं लेकिन रोज़गार को लेकर कभी बीस लाख, कभी साढ़े सात लाख, कभी पचास हज़ार, कभी एक लाख का दावा कर दिया जाता है. क्या वाकई जितना कहा जाता है उतना रोज़गार पैदा होता है? आज कल रोज़गार के दावों में यह ज़रूर जोड़ा जाता है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप इतना लाख रोज़गार मिलेगा. उसमें यह कभी साफ साफ नहीं बताया जाएगा कि एक लाख रोज़गार में से प्रत्यक्ष नौकरियां कितनी होंगी, कैसी होंगी और कितने की होंगी.

इस साल जुलाई में CII के एक सम्मेलन में नितिन गडकरी बोल रहे थे. उन्होंने कहा कि देश में 35 जगहों पर मल्टी मॉडल लॉजिस्टिक पार्क बनाने की पहचान हो गई है. ताकि लाजिस्टिक की लागत कम हो. इसके ठीक सात दिन बाद 22 जुलाई को लोकसभा में सरकार जवाब देती है कि वलसाड, पटना और विजयवाड़ा में इस प्रोजेक्ट के लिए जो अध्ययन हुआ है उसमें पाया गया है कि वहां पर पार्क बनाना सफल नहीं होगा. 35 से यह संख्या 32 पर आ गई है. वैसे भी इन 35 प्रोजेक्ट को लेकर 2017 से खबरें छप रही थीं जब कैबिनेट ने मंज़ूरी दी थी. पांच साल से अध्ययन और अधिग्रहण ही हो रहा है.

इन 35 जगहों पर बनने वाले मल्टी मॉडल लाजिस्टिक पार्क में नागपुर का भी नाम है, यह प्रोजेक्ट आज तक नहीं बना लेकिन इसे लेकर गडकरी जी ने क्या शानदार पोलिटिकल प्रमोशनल वीडियो बनाया है. यह वीडियो नवंबर 2020 को डाला गया है जिसके तीन महीने बाद गडकरी कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि मिहान अब पूरा होने वाला है. नागपुर के इस प्रोजेक्ट को भी भारत का पहला कार्गो हब कहा जाता रहा था जिस तरह से अभी नोएडा में बनने वाले एयरपोर्ट को भारत का पहला इंटरनेशनल कार्गो हब कहा जा रहा है. 1998 से बन रहे इस प्रोजेक्ट को गडकरी अपनी कल्पना बताते हैं. अब गडकरी ही कहते हैं कि पूरा नहीं होगा, इसे प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए. दूसरी तरफ इस वीडियो में दावा किया जा रहा है कि इस प्रोजेक्ट से 54000 लोगों को रोज़गार मिला है.

राजनेताओं से सीखिए कैसे बयान दिया जाता है. कितनी सफाई से गडकरी भी कह रहे हैं कि सपना है. पूरा होगा कि नहीं, कोशिश करेंगे. पिछले साल इकोनमिक टाइम्स में गडकरी का एक बयान छपा है कि TCS जैसी कंपनियों में कितनी नौकरियां मिली हैं. वे 50,000 से अधिक नौकरियों के आने का डेटा देते हैं. लेकिन उन्हीं की सरकार इस बात का डेटा नहीं देती है कि कितने लोगों को रोज़गार मिला है, महामारी के दौरान कितने लोगों की नौकरियां चली गई हैं. एक बदलाव तो है कि चुनावी खबरों में रोज़गार के आंकड़े भी होने लगे हैं. सच हो या झूठ हों मगर होते हैं.

अमर उजाला की 23 नवंबर की खबर है कि यूपी विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में बैंकों की 700 नई शाखाएं और 700 नए एटीएम स्थापित किए जाएंगे. केंद्रीय वित्त राज्यमंत्री डा. भागवत किशनराव कराडे की अध्यक्षता में यहां संपन्न राज्य स्तरीय बैंकर्स कमेटी की विशेष बैठक में यह फैसला हुआ है. इससे 23 हजार से अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त हो सकेगा. इस खबर में लिखा है कि 31 मार्च 2022 तक यूपी में 700 एटीएम लगा दिए जाएंगे. 700 एटीएम में 2100 लोगों को गार्ड का काम मिलेगा.

अमर उजाला की इस खबर में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री ने दावा किया है कि चुनाव से पहले यूपी में बैंकों के 700 नए ब्रांच खुलेंगे जिससे 21,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा. अब यहां दो सवाल पैदा होते हैं. क्या पांच महीने में वाकई 700 नए ब्रांच खुल जाएंगे? क्या इतनी तेज़ी से यूपी में कभी इतने नए ब्रांच खुल हैं? क्या वित्त राज्य मंत्री बता सकते हैं कि यूपी भर में पिछले 5 में कितने नए ब्रांच खुले हैं? राज्यसभा के तीन सांसदों, सुखराम सिंह यादव, विश्वंभर प्रसाद निषाद और छाया वर्मा ने एक सवाल पूछा है कि क्या यह सही है कि बैंकों के विलय से ग्रामीण क्षेत्रों की शाखाएं बंद हुई हैं और यह भी बताएं कि पिछले पांच साल में ग्रामीण क्षेत्रों में कितनी नई शाखाएं खुली हैं. 27 जुलाई को वित्त मंत्री की तरफ से लिखित जवाब दिया जाता है कि एक अप्रैल 2016 से 31 मार्त 2021 तक 668 नई शाखाएं खोली गई हैं. इनमें से यूपी में 74 शाखाएं हैं. 22 जुलाई 2019 में लोकसभा में दिए गए एक अन्य जवाब में सरकार ने कहा है कि पिछले 5 साल में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिसूचित बैंकों की करीब दस हज़ार नई शाखाएं खुली हैं. यानी हर साल 2000.

इन दोनों के सवाल अलग हैं लेकिन जवाब से अंदाज़ा मिलता है कि एक राज्य में एक साल में कितने नए ब्रांच खुलते रहे हैं. इससे एक अनुमान तो लगा ही सकते हैं कि अगले पांच महीनों में जब 700 नए ब्रांच खुलेंगे तो उनकी रफ्तार कितनी तेज़ होगी. उसमें 21,000 नौकरियां मिलेंगी. क्या आप जानते हैं कि एक साल में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों के लिए कितनी भर्ती निकलती है, यह जानने के बाद ही आप समझ पाएंगे कि पांच महीने में यूपी में बैंकों के 700 ब्रांच खुलेंगो तो 21000 को नौकरी मिल जाएगी.

अभी बैंकों वाली खबर खत्म नहीं हुई है. इस खबर में यह भी है कि अगले पांच महीने में 700 ATM लगेंगे जिसमें 2100 लोगों को रोज़गार मिलेगा. यानी हर ATM पर तीन गार्ड को रोज़गार मिलेगा. क्या आप ATM पर 24 घंटे गार्ड देखते हैं? 

खैर 23 नवंबर के अमर उजाला की इसी खबर में एक और डेटा है. लिखा है कि बैंकर्स समिति की बैठक में महानिदेशक संस्थागत वित्त शिव सिंह यादव ने एटीएम से गार्डों को हटाए जाने का मामला भी उठाया. यादव ने बताया कि प्रत्येक एटीएम पर तीन पालियों में एक-एक गार्ड की ड्यूटी होती है. कोविड काल में बैंकों ने एटीएम से गार्ड हटा दिए. इससे करीब 60 हजार गार्डों के सामने रोजगार का संकट आ गया. इसका असर ये हुआ कि एटीएम की सुरक्षा में स्थानीय पुलिस को लगाना पड़ता है.

क्या यह सही है कि 60,000 गार्ड एटीएम से हटाए गए, क्या उन सभी को वापस काम पर लगाया गया है? तब तो हेडलाइन यह होनी चाहिए कि जिन 60,000 गार्ड की नौकरी गई है उन्हें वापस काम मिल गया है लेकिन उसकी जगह क्या ये हेडलाइन कुछ फीकी नहीं लगती कि 2100 गार्ड तैनात होंगे.

तो हमारा सवाल इतना है कि किसी भी प्रोजेक्ट के शिलान्यास के समय पत्थर पर ही सरकार लिखवा दे कि कितनों को रोज़गार मिलेगा और जब उद्घाटन हो तो उन सभी को बुलाकर एक कार्यक्रम करे जिन्हें रोज़गार मिला है. जिस तरह से सरकारी योजना के तहत पैसा या अनाज हासिल करने वालों को लाभार्थी बनाकर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में बुलाया जाता है उसी तरह रोज़गार प्राप्त करने वाले इन युवाओं को भी लाभार्थी बनाकर ऐसे प्रोजेक्ट के उदघाटन में बुलाना चाहिए. लाभार्थी एक नई पहचान है. सरकारी कार्यक्रमों की कुर्सियों को भरने वाला सारथी लाभार्थी.

प्रधानमंत्री के आज के कार्यक्रम के लिए कई ज़िलों से उन लोगों को बुलाया गया जिन्हें अलग अलग सरकारी योजनाओं में कुछ न कुछ मिल रहा है. इन्हें लाभार्थी कहा जाता है. अगर आप सरकार की किसी योजना का लाभ लेंगे जैसे छात्रवृत्ति, गैस का सिलेंडर या मुफ्त अनाज तो सरकार के कार्यक्रम में आपको जाना पड़ेगा जैसे कि यूपी में बसों से बुलाए जा रहे हैं. इन लोगों ने भले मुफ्त अनाज के तहत सरकार की योजना का लाभ लिया होगा लेकिन कितनी अच्छी बात है कि एयरपोर्ट के शिलान्यास के कार्यक्रम में बुलाए जा रहे हैं. 

जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के शिलान्यास के समय एक अच्छी बात यह हुई कि उन किसानों को भी बुलाया गया था जिनसे ज़मीन ली गई है. उनका हक तो बनता ही है कि वे भी देखें कि जहां बरसों से तक वे बसे थे वहां से उजड़ कर वे देश के लिए कितनी बड़ी कुर्बानी दे रहे हैं.

इस भ्रम में न रहें कि इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर बड़े बड़े सपने केवल मोदी सरकार या योगी सरकार ही दिखाते हैं. सभी पार्टी की सरकारों का यह हाल है. इंफ्रा का बनाना ज़रूरी है लेकिन जो दावे किए जाते हैं उनकी सच्चाई का पता न पहले पता चलता है और न बाद में.

दो महीने से यूपी में कितने इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के शिलान्यास से लेकर उद्घाटन के विज्ञापन आपने देखे होंगे लेकिन उसी यूपी में 15 करोड़ ग़रीब भी हैं जिन्हें सरकार मुफ्त अनाज दे रही है. 24 करोड़ की आबादी वाले राज्य में 15 करोड़ ग़रीब हैं. क्या इतने एयरपोर्ट और एक्सप्रेस वे बनने से 15 करोड़ लोगों को कोई फायदा नहीं हुआ?

भारत के उन 80 करोड़ लोगों को इन दावों पर भरोसा करना ही चाहिए जो कई महीनों से प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत मुफ्त अनाज पर आश्रित हैं. उम्मीद है कि एक दिन ग़रीबी दूर होगी और इंफ्रास्ट्रक्चर से दूर हो जाएगी.

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