अख़बारों की हेडलाइन में जीडीपी के आंकड़ें हीरा-मोती की तरह चमक रहे हैं. उल्लास मनता लग रहा है कि कोविड के पहले आसमान में जिस ऊंचाई पर विकास का गुब्बारा उड़ रहा था, उसे अब छू लिया गया है यानी रिकवरी होने का अनुमान है. यहां यह स्पष्ट करना ज़रूरी है कि ऐंकर को नहीं पता कि विकास का गुब्बारा नीचे आया है या छूने वाले का कद ऊंचा हो गया है.
2021-22 में विकास दर के 8.7 प्रतिशत रहने की जयकार है लेकिन जयकार के नीचे हल्की हाहाकार है. इसके भी संकेत हैं कि इस साल की पहली तिमाही यानी जनवरी से मार्च के बीच जीडीपी की दर 4.1 प्रतिशत हो सकती है. जो पिछले साल की तिमाही यानी अक्तूबर से दिसंबर के बीच 5.4 प्रतिशत थी. उससे पहले जुलाई से सितंबर के बीच 8.4 प्रतिशत थी. दो तिमाही से विकास दर नीचे ढुलक रहा है और बल्कि सितंबर की तिमाही की तुलना में एक प्रतिशत से अधिक घट गया है. प्रति व्यक्ति वार्षिक आय भी घट गई है. कोविड के पहले जितनी थी, उससे कम हो गई है. 2019-20 में 94,270 रुपये थी जो 2021-222 में 91,481 रुपये हो गई है.
आदमी कमा कम रहा है, खर्चा नहीं कर रहा तो कौन है जो विकास के इस गुब्बारे के पीछे दौड़ा जा रहा है और छू दे रहा है. 2021-22 में जीडीपी दर 8.7 प्रतिशत होने का अनुमान बड़ी हेडलाइन है. ख़ुशी से लहलहाती इन ख़बरों के बीच इस साल की पहली तिमाही की 4.1 प्रतिशत की जीडीपी को ज़रा लुका-छिपा के छापा गया है. अप्रैल के आख़िरी सप्ताह में भारतीय रिज़र्व बैंक नामक केंद्रीय संस्था ने कहा था कि कोविड से जो नुकसान हुआ, उसी से उबरने में भारतीय अर्थव्यवस्था को 12 साल लग जाएंगे. क्या हम उससे उबर गए हैं या इतना ही हुआ है कि पिछले साल थोड़ा ऊपर आते दिखे हैं जो इस साल फिर से नीचे जाते दिख रहे हैं.
रिज़र्व बैंक ने कहा था कि भारत को कोविड के स्तर तक पहुंचने में 2034-35 तक का वक्त लग जाएगा. इसके लिए हर साल 7.5 प्रतिशत की दर से विकास करना होगा. 2022-23 में जीडीपी दर 7.2 प्रतिशत रहने का अनुमान है. 2021-22 की जीडीपी 8.7 प्रतिशत रहने का अनुमान है. इसकी तुलना में डेढ़ प्रतिशत से अधिक की गिरावट हो सकती है. डेढ़ प्रतिशत की गिरावट सामान्य बात नहीं है. रिज़र्व बैंक को इस बात चिन्ता है कि महंगाई अभी और सताएगी इसलिए ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की गई है. इसका कितना असर पड़ा होगा, मई के आंकड़ों से पता चलेगा जो जून के पहले हफ्ते में आ सकता है. फिलहाल मीडिया डुगडुगी बजा रहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था जगमग जगमग कर रही है.
अब आप पिछले कुछ दिनों के दौरान आर्थिक ख़बरों की छपाई देखेंगे तो पता चलेगा कि पापड़ को पराठा बनाकर बेचा रहा है. पापड़ की कमज़ोरी और परांठे की तंदरुस्ती का भी फर्क मिटा दिया गया है.
आप भूल गए हैं कि यह ख़बर ज़्यादा पुरानी नहीं है कि भारत में जो भी 25000 रुपए महीने का कमा लेता है, वह चोटी के दस प्रतिशत में आ जाता है. यानी टॉप टेन में आने के लिए 25000 भी कमा लें तो चलेगा. हाल ही यह ख़बर PTI के हवाले से कई अख़बारों में छपी पाई गई है कि भारत में जिन कामगारों ने ई-श्रम नामक पोर्टल पर पंजीकरण कराया है, उसमें से 94% प्रतिशत 10000 रुपए मासिक से कम कमाते हैं. हमने इस भयानक ख़बर के उदग्म स्थल की जी जान से पड़ताल की, मगर बहुत पता नहीं चला. जब 25000 महीना कमाने पर चोटी के टॉप टेन में आ सकते हैं और 94 प्रतिशत कामगार महीने का केवल 10000 रुपए कमा पा रहे हैं तब गुब्बारा उड़ता ही जाएगा, कोई ख़रीदने वाला भी नहीं होगा. अर्थात, इन आंकड़ों से इस बात की झलक मिलती है कि भले ही हेडलाइन मोटी हो जाए, आम आदमी की आर्थिक पाइप लाइन सूखती जा रही है.
एक तीसरी ख़बर भी है. 29 मई के इकॉनमिक टाइम्स में छपी है कि इस साल अभी तक विदेशी निवेशकों ने 1 लाख 65 हज़ार करोड़ रुपये निकाल लिए हैं. मई महीने में ही 39000 करोड़ की निकासी हो गई. उन्हें भारतीय बाज़ार की तुलना में कहीं और फायदा मिलने लगा है. ये विदेशी निवेशक किसी के नहीं हैं. अपना पैसा ताइवान, फिलिपिन्स, दक्षिण कोरिया के मारेकट से भी निकाल रहे हैं.
अमृत काल में इस बात की पूरी संभावना है कि राज्यसभा के चुनाव में पैसे का रोल ख़त्म हो गया हो तभी मीडिया संस्थानों के दो-दो पिृतपुरुष राज्यसभा के मैदान में निर्दलीय उतर गए हैं. दूसरे दलों के विधायक स्वेच्छा से मतदान कर देंगे. इसीलिए उस देश के मीडिया में इस साल के आंकड़ों पर चिन्ता करने के बजाए, पिछले साल के आंकड़ों को लेकर जश्न मन रहा है, उसी देश में जिस देश में गंगा बहती है और जहां ज़्यादातर लोग महीने का 10000 से लेकर 25000 कमाते हैं. पता नहीं गंगा किनारे वालों की कमाई का आलम क्या है.
युद्ध तो बंद नहीं हुआ है लेकिन यूक्रेन युद्ध का भारत में कवरेज ठंडा हो चला है. आपने मार्च और अप्रैल के बीच कई ग्लोबल लीडर को एक दूसरे से मिलते देखा, सभी फोटो खिंचा कर अपने-अपने देश आ गए हैं. युद्ध नहीं रुका है. इस युद्ध ने ग्लोबल लीडरों को लोकल बना दिया है. अखबार में संपादकीय लेखों के बाद सबकी रणनीति और कूटनीति पर अब किताबें भी छपने लगेंगी. यह भी कम खुशी की बात नहीं है कि किसी धारावाहिक की तरह जारी यूक्रेन युद्ध की कीमत आप भी अपनी जेब से चुका रहे हैं. रूस से तेल आयात नहीं करेंगे, यूरोपीयन यूनियन ने 27 देशों ने चमक कर बोल तो दिया लेकिन इसके कारण अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत 120 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई है. पेट्रोल और डीज़ल के दाम फिर से बढ़ सकते हैं. मुझे उम्मीद है इस बार भी आप महंगाई का समर्थन करेंगे. बस हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी नहीं समझ रही है. युवा कांग्रेस के नेता महंगाई के विरोध में क्रिएटिव हो रहे हैं जबकि इनके भूतपूर्व युवा नेता बीजेपी में जा रहे हैं, या चुनाव हारने के बाद राज्यसभा में जा रहे हैं. जिस पार्टी में इतनी भगदड़ मची हो, उस पार्टी की एक स्थानीय इकाई बड़ी पार्टी की तरह महंगाई के विरोध में प्रदर्शन कर रही हो, इसे नोट करना ही चाहिए. खासकर उन लोगों को, जो कहते रहते हैं कि विपक्ष महंगाई पर चुप है. उन्हें शिकायत सरकार से नहीं, विपक्ष से है.
जीडीपी की खबरों में हमने कई एक्सपर्ट के बयान पढ़ें. उनके बयानों से इतनी संतुष्टि हुई कि लगा कि अमृत काल के साथ साथ स्वर्ण युग का भी कॉम्बो आफर चल रहा है. बैंक और रेटिंग एजेंसी के किसी एक्सपर्ट के बयान में हाहाकार नहीं है. ध्यान रहे कि ये एक्सपर्ट 25000 मासिक कमाने वाले भारत में नहीं आते हैं.
आप जानते हैं कि पशुओं का चारा तीन गुना महंगा हो गया है. लोग खुले बाज़ार में 80 रुपये किलो दूध ख़रीद रहे हैं. दूध महंगा होगा तो दही भी महंगा होगा. घर में झगड़ा हो सकता है कि किस किस को नहीं मिलेगा और किस किस को मिलेगा. ज़ाहिर है औरतों का नंबर बाद में आएगा. अगर इन सभी बातों से आप चिन्तित हैं तो धैर्य रखें. महंगाई से लड़ने के दो अचूक तरीके भारत में खोज लिए गए हैं. पहला, महंगाई की ख़बर ही ख़बर से ग़ायब कर दी जाए और दूसरा पीड़ित जनता के लिए धर्म से संबंधित राजनीतिक मुद्दों की सप्लाई बढ़ा दी जाए. इस तरह से आर्थिक तंगी से जूझ रही जनता मानसिक सुख की अवस्था में चली जाती है. ज्ञानवापी तो चल ही रहा है लेकिन इसी में हनुमान जी को लेकर विवाद पैदा हो गया है. सारी धरती ही पवन पुत्र की है लेकिन उनके जन्मस्थान को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के संतों में विवाद पैदा हो गया है.
आज की ख़बर यह है कि पिछले साल मई की तुलना में इस साल मई में जीएसटी का राजस्व 44 प्रतिशत बढ़ गया है. 1 लाख 40 हज़ार करोड़ से अधिक की राशि का संग्रह हुआ है. केंद्र ने राज्यों का सारा बकाया भी जारी कर दिया है. उपभोक्ता खर्च नहीं कर रहा है, लोग कमा नहीं रहे हैं लेकिन जीएसटी संग्रह बढ़ रहा है. एक दिन अख़बार में कुछ छपता है, अगले दिन कुछ छप जाता है. दोनों दिनों की ख़बरें मिला कर देखते हैं तो छपा-छुपी हो जाता है. कुछ समझ नहीं आता.
31 मई को जब हमने संतोष पॉल के लेख को टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादकीय पृष्ठ पर जगमगाते देखा, लेकिन जब ध्यान से देखा तो भारत की अर्थव्यवस्था के संकट के ब्यौरे घुलटनिया मार रहे हैं. संतोष पॉल ने वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के एक जवाब का हवाला दिया है. जो उन्होंने 8 दिसंबर 2021 के दिन लोकसभा में दिया है. पीयूष गोयल ने बताया है कि 2014 से नंवबर 2021 के बीच 2,783 विदेशी कंपनियां भारत छोड़ कर चली गई हैं. ये सारी कंपनियां ताईवान वियतनाम और थाईलैंड जा रही हैं. अक्टूबर 2021 से लेकर अभी तक विदेशी निवेशकों ने ढाई लाख करोड़ भारतीय बाज़ार से निकाल लिए हैं. Global Wealth Migrator Review Report के अनुसार चीन के बाद हाई नेटवर्थ वाले भारतीय अपना देश छोड़ कर जा रहे हैं. अनुमान है कि 30 से 35 हज़ार अमीर लोग भारत छोड़ गए हैं.
भारत में इस समय अमृत काल चल रहा है, इसके बाद भी अमीर लोग भारत छोड़ने की कैसे सोच सकते हैं. विदेशी जहां चाहें अपना पैसा लेकर चले जाएं लेकिन अपने अमीर भारतीय अपना पैसा लेकर विदेश क्यों जा रहे हैं. अलग-अलग कारणों से 2783 विदेशी कंपनियां भारत छोड़ गई हैं, उसी जवाब में मंत्री जी ने यह भी बताया था कि इस दौरान 10,756 विदेशी कंपनियों ने पंजीकरण भी कराया है. टाइम्स आफ इंडिया में लिखने वाले संतोष पॉल पेशे से वकील हैं, जैसे रिज़र्व बैंक के गवर्नर इतिहास में एमए हैं.
सरकार का पक्ष हर तरफ है. मोदी सरकार के आठ साल होने के मौके पर दर्जनों विज्ञापन छपे हैं. एक बड़ा ही मशहूर पारिवारिक गाना है. खुशियां ही खुशियां हो, दामन में जिसके, क्यों न खुशी से दीवाना हो जाए, इस मौके पर यही याद आता है. फिल्म का नाम है, दुल्हन वही जो पिया मन भाए. आप इसी से मिलते जुलते नाम पर एक फिल्म बना सकते हैं. मीडिया वही जो हुजूर मन भाए. हुज़ूर की व्याख्या आप देश राज्य और काल के हिसाब से कर सकते हैं. एक व्यक्ति तक सीमित न रहें. वैसे शहर में जहां कहीं भी नोटिस चिपका हुआ देखें, एक बार चेक कर लें कि यह नोटिस ED का तो नहीं है. आज ED ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को हाज़िर होने का नोटिस दिया है.
उधर दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंज्र जैन ED की ही हिरासत में हैं. आज इस मसले पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रेंस की. फिर मुख्यमंत्री केजरीवाल ने प्रेस कांफ्रेंस की. फिर हमने रिपोर्ट की. विपक्ष और ED के छापे में अन्योन्याश्रय संबंध है. अन्योन्याश्रय कम प्रचलित शब्द है लेकिन आप समझ कर भी कुछ नहीं कर सकते. बस इन सब घटनाओं से दिल्ली में माहौल ऐसा बनता है कि न्यूज़ रूम में रिपोर्टर की स्टोरी धरी की धरी रह जाती है. छापों और दावों को लेकर टीवी पर डिबेट पसर जाता है और बहुत ही कम काम में, ज़रा भर की मेहनत में ऐंकर का काम हो जाता है. बिना किसी प्रयास के आप बोलिए, हां हां आप बोलिए, बोलिए-बोलिए में डिबेट का आधा घंटा निकल जाता है तब तक दूसरा ऐंकर भी आ जाता है. पहले वाला घर चला जाता है. मीडिया का सत्यानाश ऐसे नहीं हुआ है, इस हवन में सबने आहूति दी है. बहरहाल अनुराग द्वारी की रिपोर्ट है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद ठेला लेकर आंगनबाड़ियों के लिये खिलौने क्यों मांगने निकले हैं, फिर उस सौ करोड़ का क्या होगा जो उनकी ही सरकार ने खिलौने के लिए मंज़ूर किए हैं
के के के फैन्स सदमे में हैं. 53 साल की उम्र में कोई इस तरह से चला जाएगा, इस दुख को समझने और इससे उबरने के लिए परिवार और प्रशंसकों को काफी लंबा वक्त लगेगा. कितनी प्यारी आवाज़ थी. कृष्णकुमार कुन्नत की आवाज़ हर भाषाओं में कमाल करती थी. मराठी, मलयालम से लेकर तमिल और तेलगु तक में. हिन्दी में उनके कितने ही गाने इस वक्त उदास कर रहे हैं, जिनके बजने भर से कभी जी खिल उठता है.
13 जून को रेलवे की नॉन टेक्निकल NTPC परीक्षा होने वाली है, लेकिन जैसे ही परीक्षा केंद्र की सूची जारी हुई है, छात्र चिंतित हो गए हैं. उनका कहना है कि परीक्षा केंद्र बहुत दूर दिए गए हैं और वहां पहुंचने के लिए रेल टिकट का मिलना अनिश्चित है. इसलिए ट्विटर पर रेल मंत्री से सविनय निवेदन कर रहे हैं कि नज़दीक का केंद्र दिया जाए.
बनारस के एक छात्र ने लिखा है कि उसका सेंटर आंध्र प्रदेश के कुरनूल में पड़ा है. बनारस से कुरनूल, 1800 किमी है और कोई सीधी ट्रेन नहीं है. जौनपुर के प्रियांशु का सेंटर पुणे में पड़ा है. प्रियांशु को लगता है कि उसका जीवन बर्बाद हो गया है. कइयों का कहना है कि टिकट भी नहीं मिल रहा है. वेटिंग लिस्ट के भरोसे नहीं रह सकते. बिहार के फारबिसगंज से आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी में केंद्र देने का क्या मतलब है. इतना दूर सेंटर देने का क्या प्रयोजन हो सकता है, कहीं यह तो नहीं कि छात्र पहुंच ही न पाएं. या इसलिए कि अगर परीक्षा देनी है तो आज ही घर से सत्तू प्याज लेकर परीक्षा केंद्र की पैदल यात्रा पर निकल जाएं. रेल मंत्री को इन छात्रों का कष्ट निवारण करना चाहिए. यह तो काफी पीड़ादायक है. उम्मीद है सामान्य मानवी की पीड़ा को समझने का प्रयास होगा.
जम्मू कश्मीर में रहने वाले कश्मीरी पंडितों के ट्रांजिट कंप को सील कर दिया है. कश्मीरी पंडितों ने चेतावनी दी थी कि अगर 24 घंटे के भीतर उनका तबादला जम्मू नहीं किया गया तो पलायन करेंगे. इसलिए उनके ट्रांजिट कैंप को सील कर दिया है ताकि वे पलायन न करें.