This Article is From Jul 28, 2022

ममता बनर्जी का PR संकट विपक्ष के लिए बुरी खबर है

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Swati Chaturvedi

 उनका ट्रेडमार्क है नीले रंग की बॉर्डर वाली सफ़ेद सूती साड़ी और रबर की चप्पलें. और अपने को सार्वजनिक रूप से वो बतौर "एलआईपी (Least Important Person )- “कम से कम महत्वपूर्ण व्यक्ति" के रूप में संदर्भित करना पसंद करती हैं. तीन बार से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री रहीं ममता बनर्जी ने अपनी साफ-सुथरी छवि का सभी को दीवाना बना दिया है. वह एक छोटी सी हस्ती हैं, एक आंदोलन से जन्मी नेता हैं,  जो पद पर रहने के बावजूद हमेशा व्यवस्था से लड़ रही हैं.

बहरहाल, सावधानीपूर्वक बनाई गई छवि को अब काफी नुकसान पहुंचा है. और वो भी उनकी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री पार्थ चटर्जी द्वारा कथित रूप से जमा किए गए नकदी के पहाड़ (50 करोड़ रुपये) की वजह से. यह घोटाला 23 जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 26 घंटे तक लगातार पूछताछ के बाद चटर्जी को गिरफ्तार किए जाने के बाद हुआ था.

ममता बनर्जी ने आखिरकार 69 वर्षीय नेता को बर्खास्त कर दिया है. पार्थ चटर्जी से जुड़े अपार्टमेंटों पर दो अलग-अलग छापों में कैश-काउंटिंग मशीन अनवरत चल रहे थे और अलमारी और दूसरे छिपने के जगहों से बाहर निकल कर आ रहे नोटों की गिनती कर रहे थे.

सबूत इतने पुख्ता हैं कि उनकी ही पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष ने भी ट्विटर पर कहा कि पार्थ चटर्जी को उद्योग मंत्री के पद से बर्खास्त कर पार्टी से निष्कासित कर देना चाहिए. ट्वीट के अंत में एक डंक था – ममता  बनर्जी को चुनौती दी गई कि अगर उनकी मांग अनुचित थी तो उन्हें पार्टी के सभी पदों से हटा देना चाहिए.

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ट्वीट के वायरल होने के बाद कुणाल घोष ने इसे डिलीट कर दिया. सभी जानते हैं कि ममता बनर्जी फौलादी हाथों से तृणमूल पर राज करती हैं.

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अब जबकि अपार्टमेंट से बरामद नकदी का टेलीविजन चैनलों पर सीधा प्रसारण किया जा रहा था तब मुख्यमंत्री ने पार्थ चटर्जी से दूरी बनाने की कोशिश की. बनर्जी ने कहा कि वह किसी भी भ्रष्टाचार का समर्थन नहीं करती हैं. पार्थ चटर्जी दावा करते हैं कि वो बीमार हैं और प्रवर्तन निदेशालय उन्हें व्हीलचेयर में अस्पतालों में ले जाया करता है. फिर भी इस हालात में उन्होंने जुझारू अंदाज में पूछा कि उन्हें (कैबिनेट से) क्यों निकाल दिया जाना चाहिए.

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टीएमसी के शार्ष सूत्रों का कहना है कि चटर्जी ने सुवेंदु अधिकारी की जगह ले ली थी. गौरतलब है कि सुवेंदु टीएमसी के धन उगाहने वाले के रूप में जाने जाते थे जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे. चटर्जी हमेशा बनर्जी के बेहद करीब रहे हैं. ममता बनर्जी उन्हें "दादा" के नाम से बुलाती थीं. टीएमसी के पैसों और फंड की जब बात आती है तो अधिकारी और मुकुल रॉय के सिंगल पॉइंट रिप्लेसमेंट के रूप में पार्थ चटर्जी बन गए थे. सूत्रों का कहना है कि इसी "भूमिका" की वजह से बनर्जी ने अब तक उन्हें बर्खास्त नहीं किया था. सूत्र यह भी कहते हैं कि "दीदी" नहीं चाहती है कि यदि वो पार्थ के लिए गुस्सा का इजहार करती हैं तो पार्थ कहीं एजेंसियों को टीएमसी वित्त के बारे में सब कुछ न बता दे.

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जब से ममता बनर्जी ने मई में भाजपा को निर्णायक रूप से हराकर अपना तीसरा कार्यकाल जीता तबसे वो बहुत सी समस्याओं से घिरी हुई हैं. समस्याओं की श्रृंखला में नौकरियों के बदले पैसे का यह कांड और पार्थ चटर्जी को लेकर उनका टालमटोल नवीनतम है. उस रसीली जीत के बाद, ममता बनर्जी ने सोचा था कि वह अपने ब्रांड को राष्ट्रीय स्तर पर ले जा सकती हैं और 2024 के आम चुनाव के लिए प्रधान मंत्री मोदी के खिलाफ विपक्ष की नियोजित लीग की धुरी बन सकती हैं.

पार्थ चटर्जी सहित अपने करीबी सहयोगियों से उत्साहित और पोल रणनीतिकार प्रशांत किशोर उर्फ "पीके" के दिशा-निर्देश पर इस साल फरवरी में गोवा चुनाव में एक महंगे अभियान के साथ उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई. प्रशांत किशोर ने उनके लिए बंगाल में भी अभियान तैयार किया था. बहरहाल, गोवा में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली. जैसे ही पीके ने गोवा में चुनावी हार से खुद को दूर किया, ममता बनर्जी ने उन्हें अपनी शर्मिंदगी के लिए जिम्मेदार ठहराया. जब पीके ने कहा कि वह बतौर टीएमसी के रणनीतिकार पद छोड़ना चाहते हैं तो बनर्जी ने उन्हें "धन्यवाद" का संदेश भेजा.

गोवा में करारी हार के बाद "कट मनी" की बात बंगाल में उठने लगी. स्थानीय बोलचाल की भाषा में जबरन वसूली को कट-मनी कहा जाता है जिसके तहत टीएमसी के पंचायत सदस्य से लेकर उपर मंत्री तक कथित तौर पर सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को शामिल करने के लिए सार्वजनिक धन का एक निश्चित प्रतिशत जेब में रखते थे. अमित शाह और जेपी नड्डा ने अपने चुनावी भाषणों में बार-बार "कट मनी" भ्रष्टाचार को उठाया था.

फिर, भाजपा ने मुख्यमंत्री के भतीजे और उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाने वाले अभिषेक बनर्जी को निशाने पर लिया. उन्हें पश्चिम बंगाल कोयला घोटाले के लिए प्रवर्तन निदेशालय द्वारा बार-बार पूछताछ के लिए बुलाया गया.

कोयला घोटाला चोरी का मामला 2020 में सीबीआई द्वारा दर्ज किया गया था. सीबीआई का दावा है कि बनर्जी ने कथित तौर पर आसनसोल के पास स्थित ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के अधिकारियों, पूर्वी रेलवे के अधिकारियों और सीआईएसएफ के साथ मिलकर कोयला चोरी की साजिश रची थी. ईडी घोटाले के मनी लॉन्ड्रिंग हिस्से की जांच कर रही है.

ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से अपने भतीजे का बचाव किया है. अन्य विपक्षी नेताओं की तरह, मोदी सरकार पर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए प्रवर्तन निदेशालय का इस्तेमाल करके फर्जी जांच शुरू करने का आरोप लगाया है.

तेजतर्रार व्यक्तित्व वाली ममता बनर्जी ने दिसंबर 2021 में राहुल गांधी पर हमला करते हुए कहा था, "क्या यूपीए? अगर कोई कुछ नहीं करता है और आधा समय विदेश में रहता है, तो कोई राजनीति कैसे करेगा?". मुंबई में जब ममता ये बयान दे रहीं थीं तो एक असहज से शरद पवार उनके बगल में खड़े थे. गौरतलब है कि मुंबई की इस यात्रा का उद्देश्य मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता को मजबूत करना था लेकिन जिस तरह से उन्होंने बोला वो उनके सनकी और आवेगी संचालन शैली के नकारात्मक पहलू को ही उजागर करता है.

बनर्जी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए मार्गरेट अल्वा का समर्थन करने से इनकार करके और वोट से अविश्वसनीय रूप से अनुपस्थित रहने का ऐलान करके, राष्ट्रपति चुनावों के बाद विपक्षी एकता की जो बची – खुची संभावना नजर आ रही थी, उसे बर्बाद कर दिया. अब वो उसी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ को समर्थन करेंगी जो उनके घुर विरोधी रहे हैं और जिनके साथ किसी न किसी मुद्दे पर रोज ही तकरार करती थीं. जाहिर है, जगदीप धनखड़ को मोदी सरकार ने इसलिए चुना क्योंकि उन्होंने ममता बनर्जी को काबू में रखा था.

फरवरी में ट्विटर पर धनखड़ को सार्वजनिक रूप से ब्लॉक करने के बाद ममता बनर्जी ने राष्ट्रपति चुनाव की पूर्व संध्या पर दार्जिलिंग में उनके और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के साथ एक आरामदायक चाय पार्टी की. ममता बनर्जी के हिमंत सरमा के साथ बहुत ही सौहार्दपूर्ण समीकरण हैं, जो पूर्व में भाजपा के प्रमुख संकटमोचक के रूप में उभरे हैं. चर्चा है कि हेमंत सरमा ममता बनर्जी और पीएम के बीच बेहतर संबंधों के लिए एक माध्यम के रूप में काम कर रहे हैं.

विपक्षी नेताओं को नहीं पता कि इन हालिया राजनीतिक कदमों का क्या होगा. और अब जबकि वह एक ऐसी योद्धा के रूप में स्थापित हो चुकी हैं जो स्पष्ट रूप से दुर्गम बाधाओं को मात देती है तो ममता बनर्जी अब एक गंभीर छवि संकट (Image Crisis) के दौर से गुजर रही हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.