अमेरिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के 20 सूत्री गाजा शांति प्रस्ताव को इजरायल के कैबिनेट से पास होने के साथ ही इजरायल फिलिस्तीन युद्धविराम समझौते का पहला चरण प्रारंभ हो गया. एक समय तो ऐसा लग रहा था कि दोनों पक्ष डोनाल्ड ट्रंप के इस शांति प्रस्ताव को ठुकरा देंगे. लेकिन, अंततः ट्रंप की यह मध्यस्थता वाली नीति आंशिक रूप से सफल होती दिख रही है. पिछले दो वर्षों से पश्चिम एशिया में चल रहे इस संघर्ष से धन और जानमाल की व्यापक क्षति पहुंची है, जिसकी भरपाई संभव नहीं है. ऐसा नहीं कि युद्धविराम को लेकर प्रयास नहीं किए गए. इससे पहले दो बार नवंबर 2023 और मार्च 2025 में प्रयास किया गया, लेकिन विफल रहा. अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस मध्यस्थता वाली कूटनीति की सराहना कर रहें है. कुछ जानकारों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप ने 'डेड कैट डिप्लोमेसी' के सहारे 20 सूत्रीय गाजा शांति प्रस्ताव में सफलता हासिल की है.
इस शांति प्रस्ताव में इजरायल के द्वारा युद्ध रेखा से पीछे अपनी सेना को हटाना, बंधकों की रिहाई, सहायता वितरण में वृद्धि, फिलिस्तीन की शासन व्यवस्था और उसके स्थिरीकरण, निरस्त्रीकरण, आर्थिक सुधार और अमेरिका की निगरानी जैसे मुद्दे शामिल हैं. प्रश्न उठता है कि यह डेड कैट डिप्लोमेसी क्या है? क्या डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने इसका उपयोग मध्यस्थता के लिए किया है.
डेड कैट डिप्लोमेसी को ऐसे समझिए
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति को समझने में शक्ति के सिद्धांत की प्रमुख भूमिका होती है, क्योंकि यह शक्ति का सिद्धांत ही है जिसके चारों ओर अंतरराष्ट्रीय राजनीति चक्कर लगाती रहती है. शक्ति के सिद्धांत के विविध आयाम होते हैं और डेड कैट डिप्लोमेसी इन्हीं आयामों से एक है. इस सिद्धांत का मानना है कि दो विवादित पक्षों के बीच शांति समझौते को अंतिम रूप में परिणत करने के लिए मध्यस्थ राष्ट्र अपनी शक्ति का उपयोग करता है. इस शक्ति का स्वरूप हार्ड पावर और सॉफ्ट पावर दोनों या दोनों में से कोई एक होता है. पारंपरिक अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शक्ति के सिद्धांत को लेकर केवल हार्ड पावर पर जोर रहता था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सॉफ्ट पावर की भूमिका बढ़ी है और अमेरिका ने अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए इसका भरपूर उपयोग किया है. इसी सॉफ्ट पावर के एक नए आयाम के रूप में डेड कैट डिप्लोमेसी प्रचलन में आई.
- बर्मिंघम विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा विशेषज्ञ असफ सीनिवर को डेड कैट डिप्लोमेसी की अवधारणा को सैद्धांतिक रूप में सबसे पहले प्रस्तुत करने का श्रेय जाता है. उन्होंने अपने शोध पत्र में विस्तार से बताया है कि जब मध्यस्थ की भूमिका अदा करने वाले राष्ट्र को लगने लगता है कि अब वार्ता सफल होने कि स्थिति में नहीं है तो वह डेड कैट डिप्लोमेसी का सहारा लेता है. इससे मध्यस्थता करने वाले राष्ट्र को दो फायदे होते हैं. पहला, विवादित पक्ष या तो समाधान के लिए राजी हो जाएगा. दूसरा, शांति प्रस्ताव की विफलता का सारा दोष विवादित पक्षों के कंधों पर डालकर मध्यस्थ राष्ट्र खुद को अलग कर लेगा. इसीलिए इसे दोषारोपण का सिद्धांत भी कहा जाता है, जैसे स्थानीय भाषा में मरी हुई बिल्ली को किसी के दरवाजे के सामने चुपके से रख देना. जिससे लोगों को यह लगने लगे कि बिल्ली को उसी घर वाले ने मारा है, जिसके दरवाजे के सामना वह पड़ी हुई है.
- फेसर सीनिवर का मानना है कि इस डिप्लोमेसी की सफलता की तीन प्रमुख शर्तें होती हैं, जैसे इसे अंतिम और प्रभावी रूप से प्रयोग में लाया जाए. दूसरा इस प्रकार उपयोग में लाया जाए कि विवादित पक्ष को लगने लगे कि मध्यस्थ देश की धमकी विश्वसनीय है. अंत में इसे उपयोग में लाने से पहले विवादित पक्ष पर शांति प्रस्ताव को लेकर आंतरिक और बाह्य दबाव मौजूद हो.
सबसे पहले जेम्स बेकर ने किया था प्रयोग
सबसे पहले इस कूटनीति का प्रयोग अमेरिकी विदेश मंत्री जेम्स बेकर ने 1991 के मेड्रिड शांति सम्मेलन के दौरान किया था. उन्होंने सीरिया, फिलिस्तीन और इजरायल के प्रतिनिधियों पर इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए दबाव बनाने के रूप में इस कूटनीति को एक टूलकिट की तरह प्रयोग किया. उन्होंने फिलिस्तीन, इजरायल और सीरिया के प्रमुख नेताओं को धमकी भरे लहजे में बताया कि हम मेड्रिड शांति प्रस्ताव के लिए अथक प्रयास कर रहें हैं और आप लोग इस प्रस्ताव को लेकर ना तो गंभीर हैं और ना ही इसे सफल होने देना चाहते हैं. मुझे माफ करें मैं इस शांति प्रस्ताव से खुद को अलग करते हुए आपको अपने हाल पर छोड़ देता हूं. इस प्रकार मेड्रिड शांति सम्मेलन भी इसी डेड कैट डिप्लोमेसी के कारण कुछ हद तक सफल हुआ. इस डिप्लोमेसी कि खासियत है कि इसका उपयोग केवल शक्तिशाली राष्ट्र ही नहीं बल्कि कमजोर मध्यस्थ करने वाले राष्ट्र और व्यक्ति भी करते हैं. बाद में चलकर कोफी अन्नान, जूलियस न्यरेरे, नेल्सन मंडेला, बराक ओबामा के साथ चीन ने भी इसका उपयोग किया है.
डोनाल्ड ट्रंप की डेड कैट डिप्लोमेसी
ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान कारगर रूप से मध्यस्थता वाली कूटनीति का प्रयोग कर रहें हैं. कुछ क्षेत्रों में उन्हें सफलता भी हासिल हुई है और कुछ जगह पर वो विफल भी रहें है, जैसे रूस-यूक्रेन संघर्ष में. हालांकि सबसे बड़ी खासियत यह है कि ट्रंप विवादित पक्षों के बीच अपनी इस मध्यस्थता वाली भूमिका का खूब प्रचार प्रसार कर रहे हैं. यह ट्रंप की डेड कैट डिप्लोमेसी है, जिसका सहारा लेकर या तो वो शांति प्रस्ताव के समाधान तलाशते हैं या विवादित पक्षों पर दोष डालकर खुद अलग हो जाते हैं. गाजा शांति प्रस्ताव में भी डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पूर्ववर्ती का अनुकरण करते हुए डेड कैट डिप्लोमेसी का उपयोग किया है. सबसे पहले वो खुद की मध्यस्थ की भूमिका का ऐलान करते हैं. फिर, विवादित पक्षों से वार्ता शुरू कर देते हैं. पिछले दो वर्षों से इजरायल-फिलिस्तीन के बीच चल रहे संघर्ष को विराम देने का ट्रंप के पास उपयुक्त समय था, क्योंकि एक ओर इजरायल पर युद्ध समाप्त करने के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दबाव था तो दूसरी ओर हमास-इजरायल के हमले से पूरी तरह टूट चुका है. हमास के सहयोगी राष्ट्रों पर भी इजरायल ने हमले शुरू कर दिए थे. अब दोनों पक्षों के पास एक रास्ता था कि किसी प्रकार इस संघर्ष के समाधान की तलाश की जाए और डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें इसका रास्ता दिखाया.
हालांकि डोनाल्ड ट्रंप के लिए यह राह आसान नहीं थी, इसलिए उन्होंने चतुराई के साथ डेड कैट डिप्लोमेसी का सहारा लिया. उन्होंने अपने लिए दोनों विकल्प खुले रखे. अगर शांति प्रस्ताव पर सहमति बन जाती है तो इसका श्रेय उन्हें मिलेगा अगर नहीं तो शांति प्रस्ताव की विफलता का सारा दोष हमास और इजरायल पर डाल दिया जाएगा. उन्होंने 4 अक्टूबर को जब इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को फोन पर कहा कि हमास ने ट्रंप के 20 सूत्रीय गाजा शांति प्रस्ताव के कुछ हिस्से पर अपनी रजामंदी दे दी है, आप इसका जश्न मनाइए. इस पर नेतन्याहू का जवाब था कि इसमें जश्न मनाने की बात क्या है. ट्रंप ने कहा कि हमें नहीं पता कि आप इतने नकारात्मक क्यों हैं? इससे पहले ट्रंप इजरायल से कतर पर हमले को लेकर सार्वजनिक रूप से माफी मंगवा चुके थे तो दूसरी ओर डोनाल्ड ट्रंप, हमास को खुले रूप में धमका रहे थे कि अगर हमास ने उनकी बात नहीं मानी तो अमेरिका इजरायल के साथ मिलकर हमास पर हमला करेगा. अंत में देखा जाए तो ट्रंप ने इसी कूटनीतिक कौशल का प्रयोग करते हुए, आंशिक रूप से ही सही गाजा शांति प्रस्ताव को अपने परिणाम तक पहुंचाया.
(लेखक बिहार के डॉ सीवी रमण विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं.)
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