This Article is From Nov 08, 2021

आम आदमी को याद है नोटबंदी, सरकार क्‍यों भूल गई?

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Ravish Kumar

आज नोटबंदी जयंती है. यह पहली जयंती है जिसकी पहली जयंती तो धूम-धाम से मनी लेकिन पांचवी जयंती नहीं मनाई गई. अख़बारों में किसी तरह का विज्ञापन नहीं आया. इन पांच सालों में नोटबंदी की कोई मूर्ति भी नहीं बनी और न ही नोटबंदी दिवस मनाने का एलान हुआ. नोटबंदी भारत की पहली सरकारी तालाबंदी थी. इसके पहले मज़दूर हड़ताल के वक्त तालाबंदी करते थे लेकिन 8 नवंबर 2016 को भारत ने पहली तालाबंदी का एलान किया जिसका नाम नोटबंदी था. उसके बाद अगस्त 2019 में कश्मीर में लॉकडॉउन यानी तालाबंदी हुई. फिर तीसरी तालाबंदी हुई मार्च 2020 में.

किसी को पता नहीं था कि अगले पचास दिनों तक हर आम आदमी को बैंकों के बाहर लाइन में लगा होगा. सभी का काम धंधा बंद हो गया. लोगों के हाथ में कैश नहीं था. कई दिनों तक लोग भूखे रहे और इलाज का खर्चा न दे पाने के कारण कई लोग मर गए. पूरी अर्थव्यवस्था उन पचास दिनों के लिए ठप्प हो गई. लोगों के हाथ में पैसे नहीं थे और रोज़गार खत्म हो गया. उसी तरह जब मार्च 2020 में तालाबंदी हुई तो लोगों का रोज़गार खत्म हो गया और खाने के लिए पैसे नहीं थे. लाखों लोग पैदल चलने लगे और मर गए. किसी को पता नहीं था कि कोरोना के समय पहली तालाबंदी का फैसला किस बुनियाद पर लिया गया, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तालाबंदी का सुझाव तक नहीं दिया था. उस समय कोरोना का केस इतना फैला भी नहीं था लेकिन देश को तालाबंदी में झोंक दिया गया और लाखों मज़दूर जलती धूप में पैदल चलने को मजबूर हुए. तालाबंदी से पूरे देश को ठप्प कर दिया गया. आम आदमी बर्बाद हो गया. करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गईं.

नोटबंदी नाम की प्रथम तालाबंदी के पांच साल हो गए हैं. आखिर सरकार ने याद क्यों नहीं किया? क्या इसलिए कि इसके जितने भी उद्देश्य बताए गए हैं, सरकार के ही आंकड़े उसके ख़िलाफ हैं? जबकि नोटबंदी की पहली जयंती काला धन विरोधी दिवस के नाम से धूम-धाम से मनाई गई थी. मोदी सरकार के मंत्रियों ने अलग-अलग राज्यों में जाकर प्रेस कांफ्रेंस की थी, हस्ताक्षर अभियान चलाए गए थे. प्रधानमंत्री ने पहली जयंती पर कई ट्वीट किए और कहा कि मैं भ्रष्टाचार और काले धन को मिटाने के लिए सरकार के प्रयासों का साथ देने के लिए भारत की जनता के सामने सर झुकाता हूं. एक दूसरे ट्वीट में प्रधानमंत्री ने कहा कि आप भ्रष्टाचार और काला धन समाप्त करने के प्रयासों को लेकर क्या सोचते हैं, इसका वीडियो बना कर नमो-एप पर अपलोड करें. उस साल अमित शाह का ट्वीट था- "काला-धन विरोधी दिवस" मोदी जी के साहसिक नेतृत्व और देश से कालेधन और भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए ऐतिहासिक फैसले "नोटबंदी" को समर्पित है.

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अगर वो फैसला इतना ऐतिहासिक था, साहसिक नेतृत्व का था तो फिर सरकार कैसे भूल गई? सवाल नेतृत्व के साहसिक होने का नहीं है, सवाल है कि वह फैसला किस आधार पर लिया गया, उसके क्या मकसद थे, क्या सारे पूरे हुए?

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नोटबंदी के अगले ही दिन 9 नवंबर को राहुल गांधी ने ट्वीट किया कि मिस्टर मोदी ने एक फिर साबित कर दिया कि आम लोगों, किसानों और छोटे दुकानदारों, गृहणियों की कितनी कम परवाह करते हैं. आम लोगों को अराजकता में झोंक दिया जबकि काला धन के असली खिलाड़ी अपने धन को सोना चांदी और मकानों में लगा कर विदेशों में बैठे होंगे. शानदार मिस्टर मोदी. राहुल गांधी नोटबंदी की आलोचना में सड़क पर उतर गए, बैंकों के बाहर कतारों में लगे लोगों से मिलने लगे. अगले दिन यानी राहुल ने एक सवाल पूछा था कि एक हज़ार का नोट हटा कर 2000 का नोट लाने से काले धन का संग्रह मुश्किल कैसे हो जाएगा? राहुल के सवाल सटीक थे मगर उनकी विश्वसनीयता उस वक्त इतनी कमज़ोर थी कि उन्हें ट्रोल किया जाने लगा. जनता ने राहुल के सवालों को ठुकरा दिया और मोदी पर विश्वास किया. 2017 में यूपी चुनाव में बीजेपी की ज़बरदस्त सफलता के बाद मान लिया गया कि नोटबंदी को जनसमर्थन हासिल है. कांग्रेस ने पिछले साल भी 8 नवंबर को विश्वासघात दिवस के रूप में मनाया है. इस मुद्दे को लेकर जनता के बीच बार बार फेल होने के बाद भी कांग्रेस नोटबंदी की आलोचना को लेकर मुखर है.

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सब कुछ विश्वास पर छोड़ दिया गया. विश्वास प्रधानमंत्री मोदी के साथ था. उन्होंने कह दिया कि पचास दिन चाहिए तो लोगों को लगा कि पचास दिन देख लेते हैं. फैसला सही है या ग़लत है इसकी जगह गोदी मीडिया और जनता ने मान लिया कि प्रधानमंत्री का फैसला है तो सही ही है. उन पर विश्वास है.

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'मैंने देश से सिर्फ पचास दिन मांगे है, 30 दिसंबर तक का वक्त दीजिए. उसके बाद अगर मेरी कोई गलती निकल जाए, गलत इरादे निकल जाए, कोई कमी रह जाए तो जिस चौराहे पर खड़ा करेंगे खड़ा होकर, देश जो सजा देगा उसे भुगतने के लिए तैयार हूं.' 'मैं जानता हूं मैंने कैसी कैसी ताकतों से लड़ाई मोल ले ली है. जानता हूं कैसे लोग मेरे खिलाफ हो जाएंगे. मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे, मुझे बर्बाद कर देंगे. लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा. आप सिर्फ 50 दिन मेरी मदद करें. मेरा साथ दें.

प्रधानमंत्री के भाषण में कितनी भावुकता थी. सब कुछ इस पर था कि मुझ पर यकीन कीजिए. रोना धोना सब जोड़ा गया जैसे देश सास भी कभी बहू थी देख रहा हो. तथ्यों पर ज़ोर ही नहीं था. लाइन में खड़े लोग भी नोटबंदी को सही बताने लगे. इस उम्मीद में कि भ्रष्टाचार और काला धन करीब-करीब समाप्त हो जाएगा. ऐसी बातों पर केवल विश्वास के आधार पर विश्वास किया गया. सूचनाओं के आधार पर नहीं. 2016 में ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रैकिंग में भारत का स्थान 79वां था. 2020 में 86 पर आ गया, भ्रष्टाचार की रैकिंग में भारत और नीचे चला गया. यह पहली बार हो रहा है कि भारत में जिन मामलों की जांच बंद है, उन मामलों की फाइलें ब्राज़ील और फ्रांस में खुल रही हैं.

कल ही खबर आई है कि इटली की हेलीकॉप्टर बनाने वाली कंपनी अगुस्ता वेस्टलैंड से भारत सरकार ने प्रतिबंध हटा लिया है. इटली और भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात के बाद यह फैसला लिया गया. अगुस्ता वेस्टलैंड मामले में जिस बिचौलिये के खिलाफ जांच चल रही है उसी का नाम रफाल मामले में भी है. फ्रांस की वेबसाइट मीडियापार्ट की नई रिपोर्ट है कि दास्सो कंपनी ने फर्ज़ी रसीद और बेनामी कंपनी के सहारे अगुस्ता वाले बिचौलिए सुशेन गुप्ता को दलाली दी है. इन दस्तावेजों के होने के बाद भी भारत की CBI और ED ने जांच नहीं की. हम स्वतंत्रत रुप से इसकी जांच नहीं कर सके हैं, CBI से प्रतिक्रिया मांगी गई है लेकिन क्या यह शर्मनाक नहीं है कि मीडिया पार्ट बता रहा है कि दस्तावेज़ ED, CBI के पास है और जांच नहीं हो रही है. एक तीसरी खबर ब्राज़ील से है. वहां की सीनेट कोवैक्सीन को लेकर जांच कर रही थी. इसकी रिपोर्ट आ गई है. कहा गया है कि बोलसेनारो और उसके कई सहयोगियों ने भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को लेकर संदिग्ध तरीके से डील किए हैं. ब्राज़ील में कोवैक्सिन की सहयोगी कंपनी पर फ्राड के आरोप लगे है. भारत बायोटेक ने हमेशा इन आरोपों से इंकार किया है.

काला-धन समाप्त नहीं हुआ है. काला धन का कवरेज़ समाप्त हो गया ह. नोटबंदी के समय एक और बंदी हुई थी. सूचनाओं की बंदी. मीडिया औपचारिक रूप से गोदी मीडिया हो गया और यहां से खुलकर सवाल पूछने की पत्रकारिता की हत्या हर दिन की जाने लगती है और झूठ फैलाया जाने लगता है. जिस मीडिया का काम था नोटबंदी से जुड़ी हर सूचना और सवालों को जनता तक पहुंचाना लेकिन गोदी मीडिया के ऐंकर बताने लगे कि 2000 रुपये के नोट में चिप लगा है. नोट कहां रखा है, सरकार जान जाएगी. ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक बार यह फेक न्यूज़ चल गया फिर उसके बाद कई तरह के और फेक न्यूज़ चलाए गए और चल गया.

हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस ने कई दिनों तक पैंडोरा बाक्स की सीरीज़ चलाई. 300 से अधिक अमीर भारतीयों ने भारत में टैक्स नहीं देने के लिए दूसरे देशों में बेनामी कंपनियां बना ली. भारत में कॉर्पोरेट का टैक्स कम किया गया है, इसके बाद भी कॉरपोरेट और अमीर लोग टैक्स बचाने के लिए बाहर के देशों में पैसा रख रहे हैं. भारत में इस खबर पर चुप्पी साध ली गई जबकि ब्रिटेन के अमीर ही इस पर्दाफाश का हवाला देकर सरकार को पत्र लिख रहे हैं कि टैक्स बचाने के लिए बाहर के देशों में इतना पैसा रखना गलत है. इससे जनता और गरीब होगी. याद कीजिए जब मोदी सरकार ने 2014 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भ्रष्टाचार की जांच के लिए SIT बनाई थी, उस SIT ने जो नाम दिए हैं उन पर क्या कार्रवाई हुई, अब इसी SIT के पास पैंडोरा पेपर्स की जांच है. 2019 में बिज़नेस स्टैंडर्ड में रिपोर्ट छपी थी कि SIT ने 70,000 करोड़ की अवैध नगदी बरामद हुई है. इंटरनेट पर चुनावों के दौरान कैश के पकड़े जाने की खबरों को सर्च कीजिए. 2019 के चुनाव में 800 करोड़ से अधिक कैश बरामद हुआ था.

क्या ऐसा है कि भ्रष्टाचार के नाम पर बड़े उद्योगपतियों से लेकर प्रभावशाली लोगों को राहत दी गई? वे आराम से पैसा विदेशों में ले जा रहे हैं. नोटबंदी से लगा कि भ्रष्टाचार हर घर में है. हर आदमी के पास काला धन है. कहां तो टारगेट पैसे वालों को किया जाना था, लेकिन निशाने पर आ गए आम लोग भी. उनके पास जमा हज़ार दो हज़ार को काला धन के दायरे में लाकर उसे लाइन में लगा दिया गया?

50 दिनों तक आम लोग बैंकों के बाहर लाइन में लगे रहे. नोट नहीं बदले जाने के सदमे से बीमार होता रहा और मरता रह. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नोटबंदी के दौरान 150 से अधिक लोग मर गए. वीणा देवी के पति सब्ज़ी बेचते थे. लाइन में लगे रहे और सदमे से गुज़र गए. वीणा देवी अकेली हो गईं. ऐसे अनेक लोगों के काम धंधे छूट गए. जीडीपी को गहरा धक्का पहुंचा और कई धंधे बंद हो गए. नोटबंदी के बाद CMIE की रिपोर्ट ने बताया था कि जनवरी से अप्रैल के बीच 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं. सबसे ज़्यादा मार पड़ी औरतों पर. जिनके पास घर खर्च से बचाए गए बरसों की पूंजी थी. उनका पैसा उजागर हो गया और नष्ट भी. आम जनता की क्रय शक्ति ख़त्म हो गई. नोटबंदी के वक्त जो लोग भारत से बाहर थे उनके पास भी बड़ी मात्रा में नोट नष्ट हो गए. सरकार ने कुछ दिनों के लिए रिज़र्व बैंक में पैसा बदलवाने की योजना बनाई लेकिन वहां NRI से ज़्यादा आम लोग पहुंच गए. राजस्थान से आए एक बुजुर्ग रोने लगे कि दस हज़ार रुपया उनकी पूंजी है, नष्ट हो जाएगी. इसी तरह कई लोगों का पैसा बर्बाद हो गया. लोगों के पास खाने तक के पैसे नहीं बचे थ. पिछले ही महीने हिन्दू अखबार में एक ख़बर छपी है. 70 की उम्र के चिन्नाकानू देख नहीं सकते हैं. भीख मांग कर 65,000 रुपये जमा किए थ. भूल गए कि पैसे कहां रखे हैं और जब याद आया तब बदलवाने के लिए कलेक्टरेट पहुंचे. चिन्नाकानू ने पहली बार नोटबंदी का नाम सुना. ऐसे न जाने कितने लोगों के पास छोटी छोटी रकम रखी गई और नष्ट हो गई. जो आज तक संभल नहीं सके हैं.

जवान बेटा मर जाता है तो साल भर में बूढ़ा बाप संभल जाता है. प्रधानमंत्री के इस बयान में कितनी करुणा है. बहुत ही ज़्यादा. आज भी लोग अपने पुराने नोटों को लेकर अफसोस करते हैं. यह उनकी मेहनत की कमाई थी. सपना जैन का परिवार अमरीका में था. 17000 साथ लेकर गई थीं और दस हज़ार घर में रह गया था. बहुत कोशिश की लेकिन उनकी मेहनत की कमाई हमेशा के लिए बर्बाद हो गई. इसी तरह हम नहीं जानते कि कितने आम लोगों की कितनी कमाई हमेशा के लिए नष्ट हो गई. 

आज भी लोगों के घरों से पुराने नोट निकल आते हैं. दादी नानी का दिया रुपया हो या इमरजेंसी के लिए छिपा कर रखा गया रुपया, यह सब काला धन मान लिया गया और संदिग्ध हो गया. हमारे फेसबुक पेज पर कई लोगों ने अपना अनुभव लिखा है. 

अमर दीप ने लिखा है कि मेरी मां ने 3500 रुपये रखे थे उस टाइम नहीं मिले, बाद में मिले. परीक्षित झा ने लिखा है कि हमारी मां का 5000 रुपया नहीं बदला पाया, वो बेड में मिला था. अंकिता यादव ने लिखा है कि मेरे तो 1000 रुपये बेकार हो गए, जो किताबें ख़रीदने के लिए रख भूल गई थी. सतीश चंदर ने लिखा है कि पुराना नोट तो खराब नहीं हुआ, उतने नहीं थे, लेकिन नोटबंदी के बाद अब तक 16 लाख का नुकसान है, फैक्ट्री भी बंद है. राकेश कुमार ने लिखा है कि मेरा 3500 किताब में पड़ा था, वो बेकार गया. बेटे के गुल्लक में 1500 रुपया पड़ा था वो बेकार गया.

हर दूसरे घर में नोटबंदी का दर्द है. कुछ हज़ार से लेकर कई हज़ार तक के नोट बर्बाद हो गए. उनकी क्रयशक्ति घट गई. लोग अपनी कमाई को नष्ट होता देख रो रहे थे लेकिन मीडिया कह रहा था कि जितना पैसा बैंकों में नहीं लौटेगा, वह सरकार का लाभ होगा. वह काला धन होगा. सवाल पूछा जाने लगा कि कितना पैसा लौटने का टारगेट है, इस पर तरह तरह के जवाब आने लगे. सवाल पूछने वाली जनता को जवाबों की वेरायटी से भरमाने का तरीका निकाल लिया गया. कहीं RTI से सूचना है तो कहीं आफ रिकार्ड.

अगस्त 2019 में खबर छपी कि रिज़र्व बैंक के बोर्ड ने चेतावनी दी थी कि नोटबंदी से भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक असर पड़ेगा और कालेधन पर ख़ास असर नहीं पड़ेगा. नोटबंदी के फैसले के एलान से ढाई घंटे पहले बोर्ड ने यह राय दी थी. बोर्ड ने कहा था कि काला धन कैश में नहीं है. दूसरे रूपों में हैं. RTI के आधार पर यह खबर छपी है.

नोटबंदी को लेकर जवाब दो जगह से आ सकते थे. सरकार और रिज़र्व बैंक से. संसद में बहस हो और सरकार विपक्ष के सवालों के जवाब दे. लेकिन विपक्ष बीजेपी के बहुमत के सामने बेआवाज़ हो गया. वित्तीय मामलों की स्टैंडिंग कमेटी में नोटबंदी की आलोचना का प्रस्ताव तक पास नहीं हो सका कि इसके कारण भारत की जीडीपी एक प्रतिशत कम हुई है. 2017-18 की रिपोर्ट में रिज़र्व बैंक ने कह दिया कि 99.3 प्रतिशत नोट वापस आ गए हैं. केवल 10,720 करोड़ वापस नहीं आए. ज़ाहिर है 10,720 करोड़ काला धन नहीं था. अगर इतने भी आम लोगों के नष्ट हो गए तो कितना भयावह है. उन्हें किस बात की सज़ा मिली। जब सारा पैसा सिस्टम में आ ही गई तो काला धन कहां नष्ट हुआ.

सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि 10-11 लाख करोड़ वापस आ जाएंगे और 4 से 5 लाख करोड़ नोट वापस नहीं आएंगे. भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कहा था 15.31 लाख करोड़ 500 और हज़ार के पुराने नोट 30 जून 2017 को वापस आ गए.

उस समय अलग अलग टारगेट बताए जाते थे और अलग अलग जवाब दिए जाते हैं. कभी सरकार की उम्मीद हेडलाइन बनती थी तो कभी रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट भीतर के पन्ने में छपती थी. मीडिया ने बैंकों के बाहर लाइनों में लोगों से समर्थन का बयान तो लिया लेकिन खुद पता नहीं किया कि बैंकों के भीतर क्या हो रहा है. बैंक कर्मियों के साथ क्या हो रहा है. नोटबंदी से क्या असर हुआ, इसे लेकर सरकार के पास कोई मुकम्मल अध्ययन क्यों नहीं है? उस समय जाली नोट को लेकर खूब भ्रम फैलाया गया कि भारतीय मुद्रा में जाली मुद्रा का चलन बढ़ गया है लेकिन पता चला कि कुछ करोड़ रुपये ही जाली नोट पकड़े गए.

राष्ट्रीय अपराध शाखा ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2020 में 92 करोड़ के जाली नोट बरामद हुए. 2019 की तुलना में 190 प्रतिशत अधिक है, उस साल 25 करोड़ के जाली नोट बरामद हुए थे. 

तो जाली नोटों का चलन बढ़ ही गया. कहा गया कि कैश का चलन कम होगा. डिजिटल लेन-देन बढ़ेगा. क्या डिजिटल लेन-देन बढ़ाने के लिए नोटबंदी ही एकमात्र तरीका था? दुनिया में डिजिटल लेन देन के लिए क्या नोटबंदी का ही तरीका अपनाया जाता है? कैश के चलन घटने को लेकर भी सरकार के दावे पर सवाल उठते हैं.

दावा किया गया कि असंगठित क्षेत्र औपचारिक हो जाएगा लेकिन इसके बारे में कोई डेटा नहीं है. देश के नाम पर किए गए इस फैसले से देश को क्या मिला, देश को ही नहीं पता है. किसी भी पैमाने से देखिए नोटबंदी की असफलता झांक रही होती है. एक फर्क और है. नोटबंदी फेल थी, लेकिन वो फेलियर एक दिन या एक हफ्ते की नहीं थी. उसकी नाकामी का दंश आज भी लोग झेल रहे हैं. यानी नोटबंदी की नाकामी आज भी जारी है. छोटे कारोबारी से लेकर बड़े व्यापारी तक किसी से पूछिए उसकी बातचीत में नोटबंदी का दर्द आ जाएगा. हम आज तक नहीं जानते कि नोटबंदी के लाभार्थी कौन कौन हैं? 

भ्रष्टाचार और कालाधन को लेकर खेल बड़े लेवल पर हुआ. उस स्तर पर कारर्वाई की तस्वीर वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी के एक जवाब से मिलती है. इसी 26 जुलाई को कांग्रेस सांसद विंसंट एच पाला के जवाब में सरकार कहती है कि पिछले दस साल में स्वीस बैंक में कितना काला धन जमा हुआ, इसका कोई आधिकारिक अनुमान नहीं है. 2016-17 में आयकर विभाग ने कर चोरी के 1252 मामले दर्ज किए, सज़ा हुई 16 मामलों में. 2019-20 में कर चोरी के 1226 मामले दर्ज हुए, सज़ा हुई 49 मामलों में.

विसेंट के सवालों पर सरकार के जवाब को पूरा पढ़ा जाना चाहिए. कितने कम मामलों में सज़ा हो रही है. अगर सरकार काला धन को लेकर गंभीर होती तो ऐसे मामलों में देरी न होती. खुद से कर चोरी के मामलों को सामने लाती. इंडियन एक्सप्रेस में पनामा पेपर्स और पैंडोरा पेपर्स के तहत कितने मामले आ गए कर चोरी के, लेकिन कोई बड़ा आदमी पकड़ा नहीं गया जबकि काला धन के नाम पर आम आदमी लाइन में लगाकर तबाह कर दिया गय. विसेंट के सवाल के जवाब में अनुराग ठाकुर ने बताया है कि इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट ने 11,010 करोड़ की अघोषित आय का पर्दाफाश किया है. पनामा पेपर्स में 20,078 करोड़ की अघोषित पूंजी का पर्दाफाश हुआ है. पैराडाइस पेपर्स में 246 करोड़ की अघोषित पूंजी का पर्दाफाश हुआ है.

पत्रकार काला धन का पता लगा रहे हैं, एजेंसियां क्या कर रही हैं, और सज़ा क्यों नहीं दिला पा रही हैं? पनामा पेपर्स के भी कितने दिन हो गए, कार्रवाई नहीं हुई है. सरकार के पास नोटबंदी से संबंधित कई प्रश्नों के सीधे जवाब नहीं हैं. पिछले साल लोकसभा में एक सांसद ने सवाल किया कि अमरीका की नेशनल ब्यूरो आफ इकोनमिक रिसर्च ने कहा है कि नोटबंदी के कारण 2-3 प्रतिशत का रोज़गार और आर्थिक गतिविधियों में नुकसान हुआ है, क्या भारत सरकार की भी ऐसी रिपोर्ट है तो जवाब दिया जाता है कि नोटबंदी का क्या असर हुआ, यह जानने के लिए कोई डेटा नहीं है. इतना बड़ा ऐतिहासिक फैसला, कोई डेटा नहीं है. जो मन में आए बयान दे दो और गोदी मीडिया के ज़रिए सही साबित करवा दो?

बैंक के कर्मचारियों के बीच नोटबंदी को लेकर अलग ही यादें हैं. वे उस वक्त राष्ट्रवाद से ओत-प्रोत थे, बाद में पता चला कि उनका लोट-पोट मनाया जा रहा है. अचानक आए नोटों के अंबार को गिनने में कई कैशियरों से गलती हुई, उस कमी को उन लोगों ने लोन लेकर चुकाया बल्कि आज भी चुका ही रहे होंगे. सरकार नोटबंदी की पांचवी जयंती भूल गई लेकिन पेटीएम कंपनी को याद रहा. नोटबंदी के अगले ही दिन पेटीएम ने विज्ञापन दिया था, साहसिक फैसला लेने के लिए प्रधानमंत्री को बधाई दी गई थी आज पेटीएम कंपनी का आईपीओ आया है. क्या पेटीएम को नोटबंदी की जयंती याद रही होगी या ये महज़ संयोग रहा होगा.

प्रो अरुण कुमार ने नोटबंदी और उसके असर पर अंग्रेज़ी में एक किताब लिखी है. Demonetization and the Black Economy. इस मौके पर उनका एक लेख भी स्क्रोल मे आया है. अरुण कुमार ने अपने लेख में जनधन खातों की याद दिलाई है. नोटबंदी के समय जनधन खाते में काफी पैसा जमा हुआ था. उन खातों में जमा करने वालों के साथ क्या हुआ, कितने लोग पकड़े गए, कम से कम सरकार आज यही ट्वीट कर सकती थी.

बेशक नोटबंदी के बाद यूपी के चुनाव में बीजेपी को अपार सफलता मिली लेकिन क्या इसी आधार पर नीतियों का मूल्यांकन होगा? चूंकि इस देश में महंगाई के समर्थक हैं तो क्या मान लिया जाए कि महंगाई नहीं है. जनता ग़रीब नहीं हो रही है. अगर समझना है तो यही समझना चाहिए कि आर्थिक तबाही के बाद भी जनता महंगाई और नोटबंदी का समर्थन क्यों करती है, यह नहीं कहा जाना चाहिए कि जनता समर्थन कर रही है इसलिए महंगाई सही है नोटबंदी सही है. कहीं ऐसा तो नहीं कि समर्थन के नाम पर नोटबंदी और महंगाई के सवाल पूछने से बचा जा रहा है? फिर लोग क्यों आज तक नोटबंदी की मार याद करते है. आगरा में नसीम से बात करते हुए क्यों लोग कहते हैं कि नोटबंदी के बाद से बर्बादी आ.

आतंकवाद जहां था वहीं है. उसका नोटबंदी से कोई लेना देना नहीं. नोटबंदी को सही ठहराने के लिए जितने भी झूठ फैलाए वो समय के साथ झूठ ही साबित हुए. नोटबंदी ने यह ज़रूर साबित कर दिया कि झूठ बोलकर जनता को जब चाहे लाइन में खड़ा किया जा सकता है और ऐसा करते हुए जनता गर्व भी महसूस कर सकती है. नोटबंदी होती तो भारत की जनता की यह क्वालिटी कभी सामने नहीं आती. जिसे मान लिया गया था कि 1947 के बाद से जनता ने यह आदत हमेशा के लिए छोड़ दी है.

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