तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस बनाने पर चुप क्यों रह गए राहुल गांधी

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संजीव कुमार मिश्र

भारतीय राजनीति में शब्दों से अधिक मौन का महत्त्व रहा है. यहां शब्द केवल कथन नहीं, बल्कि संकेत होते हैं, और मौन अनेक बार पर्दे के पीछे का सच सामने रख जाता है. बिहार की धरती पर चल रही वोटर अधिकार यात्रा इसी मौन और उद्घोष के द्वंद्व की साक्षी बन रही है. नवादा में जब तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद हेतु उद्घोषित किया, तो वह केवल राजनीतिक प्रतिबद्धता नहीं, बल्कि सत्ता-संघर्ष की भावी रूपरेखा का संकेत था. परंतु जब पूर्णिया में यही प्रश्न राहुल गांधी के सम्मुख आया कि तो उनका मौन विमर्श के एक नए द्वार खोल गया. 

तेजस्वी की हां और राहुल की चुप्पी

वोटर अधिकार यात्रा के तहत नवादा में रैली को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का ऐलान कर एक बड़ा दांव खेला था. अपने संबोधन में उन्होंने कहा, ''आने वाले चुनाव में हम सब मिलकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाएंगे.'' तेजस्वी यहीं नहीं रुके, उन्होंने राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी की नींद हराम करने वाले नेता तक कह डाला. लेकिन चंद दिनों बाद ही पूर्णिया में जो हुआ, उसने इस ऐलान पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया? 

दरअसल, पूर्णिया में रविवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जब राहुल गांधी से पूछा गया कि तेजस्वी आपको प्रधानमंत्री बनाने की बात कर रहे हैं, तो क्या कांग्रेस तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाएगी?  सवाल सीधा था, लेकिन जवाब उतना ही टेढ़ा. राहुल गांधी ने कहा, ''गठबंधन बहुत अच्छे से चल रहा है. सभी पार्टियां मिलकर काम कर रही हैं. कोई टेंशन नहीं है. हम वैचारिक रूप से जुड़े हैं. इससे मजा भी आ रहा है. इसका बहुत बेहतर रिजल्ट आएगा, मगर वोट चोरी को रोकना है.'' राहुल गांधी ने यह नहीं कहा कि 2025 में अगर इंडिया अलायंस चुनाव जीत जाती है तो तेजस्वी यादव सीएम बनेंगे या नहीं?  यानी राहुल गांधी ने न 'हां' कहा, न 'ना'. यह चुप्पी अब राजनीतिक गलियारों में चर्चा का सबसे गर्म मुद्दा बन चुकी है.

राहुल के मौन के मायने

तेजस्वी ने राहुल के लिए जो खुला समर्थन जताया, वैसा ही समर्थन क्या राहुल गांधी तेजस्वी के लिए जताने को तैयार नहीं हैं? या फिर कांग्रेस अभी बिहार की सत्ता की राजनीति में खुलकर दांव लगाने से बचना चाहती है?  बिहार में जब चदं महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं तो राहुल गांधी का यह मौन कोई साधारण घटना नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है. क्योंकि राजनीति में कई बार मौन शब्दों से ज्यादा असर छोड़ जाता है.

अब यहां सवाल उठता है कि आखिर राहुल गांधी ने ऐसा क्यों किया? कहीं यह विपक्षी गठबंधन की अंदरूनी दरार तो नहीं या जानबूझकर उठाया गया कदम है? 

सियासी गलियारे में राहुल के बयान को लेकर घमासान मचा हुआ है. बीजेपी प्रवक्ता नीरज कुमार ने तो चुटकी लेते हुए कहा कि कांग्रेस कभी तेजस्वी यादव को सीएम नहीं बनाएगी. तेजस्वी यादव भले ही उनका पिछलग्गू बनकर घूम रहे हैं, लेकिन कांग्रेस उनको भाव नहीं दे रही है. कारण यह है कि तेजस्वी यादव की पीठ पर अपराध और भ्रष्टाचार का बड़ा बोझ है, चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है जो कांग्रेस को स्वीकार नहीं होगा. बीजेपी ने यहां एक तीर से दो निशाने किए हैं. विपक्ष के नीतीश राज में कानून व्यवस्था के बदतर हालात के मुद्दे की हवा तो निकाली ही कांग्रेस और खुद आरजेडी को भी बैकफुट पर ला दिया. यह सच है कि बीजेपी लालू राज में 'जंगलराज' को जोर-शोर से उठा रही है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी रैलियों में लालू यादव के समय जंगलराज का हवाला देते रहे हैं. कांग्रेस इसे भली भांति समझती है, शायद यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में चुनाव से पहले तेजस्वी को मुख्यमंत्री का चेहरा बताने वाली कांग्रेस ने इस बार अपने कदम पीछे खींच लिए. हालांकि, राहुल की चुप्पी को सीटों की बंटवारे से भी जोड़कर देखा जा रहा है. 2020 में आरजेडी 144 जबकि कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. हालांकि चुनाव परिणामों में आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि कांग्रेस को महज 19 सीटों से संतोष करना पड़ा. बाद के दिनों में कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे को लेकर सवाल उठाया था. शायद यही वजह है कि कांग्रेस इस बार अपने पत्ते नहीं खोल रही है. लेकिन यहां एक सवाल उठना लाजमी है कि क्या कांग्रेस बिहार में मजबूत है? क्या वह आरजेडी से सीट शेयरिंग के मुकाबिल है? आरएलडी नेता मलूक नागर ऐसा बिल्कुल नहीं मानते. मीडिया को दिए बयान में मलूक नागर कहते हैं कि असलियत में कांग्रेस जमीन पर नहीं है. लोगों से जुड़़ती नहीं है, इसलिए उसका आकलन हमेशा गलत हो जाता है. अगर तेजस्वी यादव को कांग्रेस अभी भी सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं कर रही है तो इससे साफ है कि उन्हें अभी भी गलतफहमी है कि कांग्रेस ज्यादा मजबूत है और बिहार में आधी सीट लेगी. उनका मुख्यमंत्री बन सकता है.

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किसका जनाधार बड़ा है कांग्रेस या आरजेडी

मुख्यमंत्री को लेकर राजग अपेक्षाकृत स्पष्ट दिखता है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ने को लेकर बीजेपी नेता लगातार बयान दे रहे हैं.  बिहपुर के सर्वोदय मैदान में शनिवार को आयोजित विस एनडीए कार्यकर्ता सम्मेलन में उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि नीतीश कुमार ही फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे. हालांकि यहां यह भी ध्यान रखे कि आरजेडी लंबे समय से यह नैरेटिव सेट करने में जुटी है कि बीजेपी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी. चुनाव बाद नीतीश कुमार की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. जनता किसके हाथ में बिहार की सत्ता सौंपेगी. कौन बिहार का ताज संभालेगा यह तो वक्त बताएगा लेकिन इतना तो तय है कि राहुल गांधी की चुप्पी से आरजेडी समर्थक निराश होंगे. वो भी तब जब बिहार में सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी है, जिसका जनाधार निश्चित तौर पर कांग्रेस से अधिक है.

अस्वीकरण: लेखक देश की राजनीति पर पैनी नजर रखते हैं. वो राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहे हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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