- सिवान विधानसभा सीट राजद और बीजेपी के बीच कड़ा मुकाबला होता रहा है
- 2020 के चुनाव में राजद के अवध बिहारी चौधरी ने बीजेपी के ओम प्रकाश यादव को बहुत कम वोटों के अंतर से हराया था
- सिवान का राजनीतिक महत्व इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व से जुड़ा हुआ है
सिवान विधानसभा सीट बिहार की उन हाईप्रोफाइल सीटों में से एक है, जहां हर चुनाव में मुकाबला कांटे का होता है. यह सीट सिवान लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और जिले की राजनीतिक धड़कन मानी जाती है. इतिहास गवाह है कि 1951 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में यहां कांग्रेस के शंकर नाथ ने जीत दर्ज की थी. लेकिन समय के साथ सियासी समीकरण बदलते गए और अब यह सीट राजद और बीजेपी के बीच सीधा संघर्ष का मैदान बन चुकी है.
2020 के विधानसभा चुनाव में राजद के अवध बिहारी चौधरी ने इस सीट पर बेहद करीबी मुकाबले में बीजेपी के ओम प्रकाश यादव को सिर्फ 1,973 वोटों के अंतर से हराया. अवध बिहारी चौधरी को 76,785 वोट मिले, जबकि ओम प्रकाश यादव को 74,812 वोट हासिल हुए. यह परिणाम इस बात का संकेत था कि सिवान की जनता पूरी तरह एकतरफा नहीं है यहां का हर चुनाव वोट-टू-वोट लड़ाई में तब्दील हो चुका है.
सिवान की पहचान सिर्फ राजनीति से नहीं बल्कि इतिहास और संस्कृति से भी जुड़ी है. यह वही ज़मीन है जहां से भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का नाता रहा है. दाहा नदी के किनारे बसा सिवान शहर बिहार के पश्चिमोत्तर छोर पर स्थित है और उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है. यही भौगोलिक और सामाजिक विविधता इस क्षेत्र को चुनावी रूप से और भी खास बना देती है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2025 के विधानसभा चुनाव में सिवान सीट एक बार फिर हाईवोल्टेज मुकाबला देखने को मिलेगी. आरजेडी अपने जनाधार को कायम रखने में जुटी है, वहीं बीजेपी इस हार का बदला लेने की पूरी रणनीति तैयार कर रही है.