JDU नेता उपेंद्र कुशवाहा की बगावत से बिहार में NDA को होगा लाभ : पशुपति पारस

जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और वाम सहित महागठबंधन के नेताओं ने कुशवाहा के पार्टी छोड़ने के संभावित प्रभाव के बारे में हालांकि औपचारिक तौर पर इनकार कर रहे हैं. उनका कहना है कि कुशवाहा द्वारा ऐसा कोई कदम उठाने तक इस बारे में सोचना ‘‘अपरिपक्व’’ होगा.

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(फाइल फोटो)
पटना:

केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने गुरुवार को कहा कि जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के नेता उपेंद्र कुशवाहा की बगावत से बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को लाभ होगा.

पारस राज्य में मौजूदा राजनीतिक स्थिति के बारे में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे थे. पिछले साल जेडीयू के एनडीए छोड़ने के बाद से एनडीए बिहार में विपक्ष में है. एनडीए में पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी भी शामिल है और उसे पारस के भतीजे चिराग पासवान के नेतृत्व वाले एक प्रतिद्वंद्वी समूह का भी समर्थन प्राप्त है. बिहार में सात दलों वाला सत्तारूढ़ 'महागठबंधन' राजग का प्रतिद्वंद्वी है.

पारस ने कहा, “एनडीए अगले साल आम चुनावों में राज्य से लोकसभा की सभी 40 सीटों पर जीत हासिल करेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे और लोकप्रियता का कोई मुकाबला नहीं है, जबकि महागठबंधन बिखराव दिख रहा है, जो कि कुशवाहा की बगावत से स्पष्ट है.''

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, 'कुशवाहा की बगावत से निश्चित रूप से बिहार में बीजेपी और उसके सहयोगियों को लाभ होगा.'

हालांकि, ये पूछे पर कि मोदी सरकार के पूर्व के कार्यकाल में केंद्रीय मंत्री रहे कुशवाहा का क्या एनडीए में स्वागत किया जाएगा, तो हाजीपुर से लोकसभा सदस्य पारस ने कहा, ‘‘वे (कुशवाहा) क्या कदम उठाते हैं, उसके अनुसार उस समय एक निर्णय लिया जाएगा.”

बिहार विधान परिषद में प्रतिपक्ष के नेता सम्राट चौधरी ने कहा, ‘‘पार्टी उन सभी लोगों पर विचार कर सकती है जो 1990 से 2005 तक लालू प्रसाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल रहे.'' कुशवाहा के पहली बार के विधायक बनने पर नीतीश कुमार द्वारा उन्हें 2004 से 2005 तक बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया था.

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जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस और वाम सहित महागठबंधन के नेताओं ने कुशवाहा के पार्टी छोड़ने के संभावित प्रभाव के बारे में हालांकि औपचारिक तौर पर इनकार कर रहे हैं. उनका कहना है कि कुशवाहा द्वारा ऐसा कोई कदम उठाने तक इस बारे में सोचना ‘‘अपरिपक्व'' होगा.

हालांकि, नाम गुप्त रखने की शर्त पर उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कुशवाहा के चुनावी प्रदर्शन पर नज़र डालने पर ‘‘आंकड़ों से चीजें खुद ही स्पष्ट हो जाएंगी.''

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कुशवाहा मार्च 2021 में जेडीयू में वापस आए थे, उन्होंने अपनी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) का विलय कर लिया था, जिसने चार महीने पहले हुए चुनाव में बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से 99 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन पार्टी का एक भी उम्मीदवार सीट नहीं जीत पाया था.

आरएलएसपी ने एक मोर्चे ‘ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट' के तहत विधानसभा चुनाव लड़ा था जिसका नेतृत्व कुशवाहा ने किया था. इस मोर्चे में असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम भी शामिल थी जिसने पांच सीटें जीतीं थीं और मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) जिसने एक सीट हासिल की थी.

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चुनाव के तुरंत बाद गठबंधन टूट गया था जब बसपा के एकमात्र विधायक ज़मा खान जद (यू) में शामिल हो गए थे और उन्हें मंत्री बनाया गया था. एआईएमआईएम के भी एक विधायक को छोड़कर सभी अब राजद में हैं, उनमें से एक मंत्री हैं.

आरएलएसपी का गठन 2013 में हुआ था जब जेडीयू द्वारा पार्टी विरोधी गतिविधियों के आरोपों के मद्देनजर कुशवाहा ने राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. एक वर्ष बाद हुए लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के सहारे आरएलएसपी ने तीन सीटें जीत लीं.

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कुशवाहा खुद काराकाट से जीते थे, उन्हें केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया और वह मानव संसाधन राज्य मंत्री बने थे. हालांकि बमुश्किल एक साल बाद, आरएलएसपी में फिर से गुटबाजी शुरू हो गई और जहानाबाद से सांसद अरुण कुमार ने कुशवाहा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और 2018 में अरुण कुमार ने अपना अलग दल आरएलएसपी (धर्मनिरपेक्ष) बना लिया.

जनमानस में परोक्ष तौर पर स्वयं को प्रासंगिक बनाये रखने के लिए, कुशवाहा ने एनडीए के प्रति अपने असंतोष को सार्वजनिक करना शुरू कर दिया और 2019 के लोकसभा चुनाव से बमुश्किल तीन महीने पहले मंत्री पद छोड़ गठबंधन से बाहर आ गए.

आरएलएसपी ने 2019 का लोकसभा चुनाव 'महागठबंधन' के हिस्से के रूप में लड़ा, जिसमें तब आरजेडी, कांग्रेस, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और बॉलीवुड सेट डिजाइनर से राजनेता बने मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी शामिल थी.

2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी कोई सीट नहीं जीत पायी और कुशवाहा खुद दो जगहों से हार गए. इस स्थिति से क्षुब्ध रालोसपा के दो विधायक और एकमात्र एमएलसी जेडीयू में शामिल हो गए.

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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