समस्‍या बताई, लेकिन हल... बिहार चुनाव में प्रशांत किशोर कहां चूके?

प्रशांत किशोर अभी तक अन्य दल के लिए प्रचार प्रसार करते रहे हैं. कभी ज़मीन पर राजनीति नहीं किए. पोस्टर लगवाना और नारे लिखना अलग बात है और ज़मीन पर बैठ कर समाज की बात सुनना अलग बात है.

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जमीन पर नहीं की राजनीति
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  • प्रशांत किशोर ने पदयात्रा और मीडिया के जरिए जनता तक पहुंच बनाई, लेकिन राजनीतिक अनुभव की कमी रही
  • PK ने कई मुद्दों जैसे पलायन और गरीबी पर चर्चा की, पर कोई व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत नहीं किया गया
  • PK ने महिलाओं के लिए कोई प्रासंगिक योजना नहीं बनाई, शराबबंदी समाप्ति का नारा महिलाओं को पसंद नहीं आया
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पटना:

बिहार चुनाव के नतीजों ने इस बार चौंका दिया. इसमें कोई शक नहीं की प्रशांत किशोर अपनी पदयात्रा और मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म के माध्यम से बिहार की जनता में प्रवेश कर गए थे. लेकिन कई गलतियां हुईं, जिसे राजनीति में अनुभवहीनता कह सकते हैं. सिवाय पूर्णिया के पूर्व सांसद उदय सिंह के अलावा कोई भी अनुभव वाला नेता इनके साथ नहीं था. 

समस्‍या बताई, हल नहीं! 

राजनीति सिर्फ आदर्शवादी बातों से नहीं होती है. ज़मीन पर कार्यकर्ता बनाने होते हैं. अपने मुद्दों पर अड़े रहना होता है. इन्होंने एनडीए के कई नेताओं पर आरोप लगाए, साक्ष्य भी रखे. लेकिन अचानक से वैसे मुद्दे और चैप्टर इन्होंने बंद कर दिये. इन्हें मजबूती से उन मुद्दों को बरकरार रखना चाहिए था. पलायन और गरीबी को बिहारी जनता अपनी नियति मानती है. इसकी चर्चा इन्होंने की, लेकिन कोई प्रायोगिक हल की रूप रेखा नहीं दी. समस्‍या का जो कुछ हल इन्होंने दिया, वह कहीं से भी प्रायोगिक नज़र नहीं आया. समस्‍या सबको समझ में आई, लेकिन उचित समाधान किसी को नज़र नहीं आया. प्रशांत किशोर आधी आबादी यानी महिला के लिए कुछ भी प्रासंगिक लेकर नहीं आए. शराबबंदी को ख़त्म करने का नारा भी महिलाओं को पसंद नहीं आया होगा. 

जमीन पर नहीं की राजनीति 

प्रशांत किशोर अभी तक अन्य दल के लिए प्रचार प्रसार करते रहे हैं. कभी ज़मीन पर राजनीति नहीं किए. पोस्टर लगवाना और नारे लिखना अलग बात है और ज़मीन पर बैठ कर समाज की बात सुनना अलग बात है. प्रशांत किशोर पर यह भी आरोप है कि इन्होंने पेड वर्कर के माध्यम से हवा बनाई. चुनाव आते-आते पेड वर्कर साइड हो गए और प्रशांत चारों खाने चित हो गए. 

नज़र ज़मीन की जगह आसमान पर रखी

मुझे ख़ुद आश्चर्य होता है कि जो इंसान गांव-गांव पैदल घूमा हो, उसे ज़मीन का पता क्यों नहीं होगा? इनके विरोधी कहते हैं कि प्रशांत पदयात्रा तो किए, लेकिन नज़र ज़मीन की जगह आसमान की ओर रखी. शायद यह उनके अहंकारी छवि पर एक खिल्ली है. लेकिन बहुत हद तक यह सच भी है. अब उनके कुछ ज़मीनी कार्यकर्ता भी यही कह रहे हैं कि प्रशांत किसी की नहीं सुनते थे. 

खैर, अब उनके पास वक्त है. अपनी स्ट्रेटेजी में सुधार रख वो ज़मीन पर कार्यकर्ता तैयार करेंगे, तो आगे कुछ राहें नज़र आ सकती हैं. वरना राजनीति इतनी टेढ़ी खीर है कि उस स्पेस को भरने को अन्य भी तैयार हैं. 

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