- प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज बिहार चुनाव में महागठबंधन और NDA दोनों से वोट काटने की स्थिति में है।
- अगर पीके महागठबंधन से अधिक वोट काटते हैं तो NDA का वोट शेयर लगभग 42 प्रतिशत बना रहता है।
- पीके के वोट NDA से अधिक काटने पर महागठबंधन का वोट शेयर बढ़कर 39 प्रतिशत हो सकता है।
बिहार चुनाव 2025 के एक्स फैक्टर कहे जा रहे हैं प्रशांत किशोर. क्यों? क्योंकि पीके के आने से बिहार का चुनावी चौसर तिकोना हो गया है. इन्हें जो भी वोट मिलेगा वो महागठबंधन या NDA के हिस्से से ही मिलेगा. ऐसे में सौ टके का सवाल यही है कि आखिर पीके किसका वोट काटेंगे और जो भी काटेंगे उससे ज्यादा नुकसान किसको होगा?
अगर पीके ने महागठबंधन के 5% वोट काटे
वोट वाइब एजेंसी का आकलन है कि अगर पीके की पार्टी जनसुराज को 10% वोट मिलते हैं और इसमें से 5% महागठबंधन से झटकती है और 5% अन्य दलों के काटती है तो ऐसी स्थिति में NDA का वोट शेयर 42% रहेगा और महागठबंधन के हिस्से में आएंगे 34% वोट, बाकी दलों को मिलेंगे 15% वोट.
अगर पीके ने NDA के 5% वोट काटे
अगर पीके को 10% वोट मिलते हैं और इसमें से 5% NDA से झटकते हैं और 5% अन्य दलों के काटते हैं तो ऐसी स्थिति में वोट वाइब एजेंसी का आकलन है कि NDA का वोट शेयर घटकर 37% रह जाएगा और महागठबंधन के हिस्से में आएंगे 39% वोट, बाकी दलों को मिलेंगे 15% वोट. जाहिर है इस हाल में महागठबंधन वोट शेयर के मामले में NDA से आगे निकल जाएगा.
2020 के विधानसभा चुनाव में NDA को 37.26% वोट मिले थे और इनकी सरकार बन गई थी. इसमें बीजेपी के हिस्से आए 19.5% वोट और जेडीयू को मिले 15.4% वोट. पिछले चुनाव में महागठबंधन को मिले थे 37.23% वोट. यानी महज 11 हजार ज्यादा वोट लेकर एनडीए ने सरकार बना ली. जाहिर है वोट प्रतिशत में जरा सा अंतर भी बिहार में किसी का खेल बना सकता है तो किसी का बिगाड़ सकता है.
अगर पीके ने दोनों के 2.5-2.5% वोट काटे
अगर पीके को 10% वोट मिलते हैं और इसमें से दोनों गठबंधनों के 2.5-2.5% वोट झटकते हैं तो नुकसान महागठबंधन को हो जाएगा क्योंकि ऐसी स्थिति में NDA का वोट शेयर 39% रहेगा और महागठबंधन के हिस्से में आएंगे 36% वोट, बाकी दलों को मिलेंगे 15% वोट.
पीके कितने बड़े लड़ैया?
बड़ा सवाल ये है कि क्या पीके को 10 फीसदी वोट मिलेंगे. प्रशांत किशोर ने राज्य की सभी सीटों पर उम्मीदवार उतारे. इनमें से चार उम्मीदवार वोटिंग से पहले ही NDA के साथ चले गए. वोटिंग से महज एक दिन पहले जन सुराज पार्टी से मुंगेर विधानसभा सीट के उम्मीदवार संजय कुमार सिंह ने पीके को गच्चा दे दिया और बीजेपी के हो गए. संजय कुमार सिंह ने मुंगेर से बीजेपी प्रत्याशी कुमार प्रणय को समर्थन दे दिया है. लेकिन इसके बावजूद पीके के प्रत्याशी बिहार की ज्यादातर सीटों पर चुनौती दे रहे हैं. पीके ने पिछले तीन साल में बिहार के हिस्से में जाकर जनता से जुड़ने की कोशिश की है. लेकिन क्या इतना काफी है?
एक्सपर्ट कहते हैं कि बिहार इस लिहाज से जरा दुरूह राज्य है. पहले ही चुनाव में गांव-देहात का मतदाता और महिला वोटर आपको पहचान जाए और इतना जान भी जाए कि वोट कर दे, ये दूर की कौड़ी है. अब देखिए बिहार का मतदाता चौंकाता है क्या? दूसरा मसला ये है कि नीतीश से नाराज जो वोटर महागठबंधन को चुनता है, उसके सामने अब एक और विकल्प है जनसुराज. ऐसे में एंटी इनकमबेंसी वाला वोट बंटता है तो साफ है कि फायदा किसको होगा? जाहिर है पीके भले ही चुनाव ना जीतें लेकिन चुनाव तय जरूर कर सकते हैं.














