तेजस्वी यादव को कौन चला रहा, रणनीति देखकर तो लालू प्रसाद ही आ रहे नजर, वजह ये

सन 2024 के लोकसभा चुनाव में मगध और शाहाबाद क्षेत्र में कुशवाहा को साथ जोड़ने की रणनीति भी लालू प्रसाद की रही होगी और यह रणनीति बहुत हद तक सफल भी रही.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • लालू प्रसाद ने दस साल पहले तेजस्वी यादव की राजनीतिक शुरुआत राघोपुर से चुनाव लड़वाकर सुनिश्चित की थी.
  • 2015 में तेजस्वी पहली बार विधायक और उप मुख्यमंत्री बने तथा उनके विभागों के सचिवों का चयन लालू ने किया था.
  • 2024 के लोकसभा चुनाव में मगध और शाहाबाद क्षेत्र में कुशवाहा वोटरों को जोड़ने की रणनीति भी लालू यादव की ही रही.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।

ठीक दस साल पहले लालू प्रसाद ने तेजस्वी को राजनीति में उतारा था . उस वक्त तेजस्वी की राजनीतिक या सामाजिक परिपक्वता ही क्या रही होगी ? लेकिन तेजस्वी कहां से चुनाव लड़ेंगे , तेजस्वी कैसे चुनाव लड़ेंगे और कैसे उनकी जीत सुनिश्चित होगी, इसके लिए लालू प्रसाद हर एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे थे . उन्होंने उस चुनाव में खुद को फ्रंट पर रखकर अपने पुत्र की जीत राघोपुर से सुनिश्चित की . उसी राघोपुर से पिछले चुनाव सन 2010 में राबड़ी देवी चुनाव हार चुकी थीं. 

2015 को याद कीजिए

इसी नवंबर , सन 2015 में तेजस्वी पहली बार विधायक ही नहीं बने, बल्कि पहली बार उप मुख्यमंत्री भी बने . उन्हें जब विभाग मिले तो मीडिया में खबर आई कि तेजस्वी के विभागों के सचिव कौन होंगे, वह भी लालू प्रसाद ने ही तय किए . उस चुनाव के बाद से ही धीरे-धीरे लालू प्रसाद नेपथ्य में चलते गए और उसी रफ्तार से तेजस्वी पार्टी और सरकार में राजद के प्रमुख बनते गए . हालांकि, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद ही रहे, ताकि जिस कैडर को उन्होंने खुद तैयार किया था, उसे कोई दिक्कत नहीं हो . 

2020 में रणनीति से हटी तस्वीर

सन 2020 के चुनाव में सोची समझी रणनीति के आधार पर लालू और राबड़ी के फोटो तेजश्वी के पोस्टर से ही नहीं, बल्कि समस्त बिहार के राजद के पोस्टर से गायब कर दिए गए . लालू प्रसाद कहीं से भी अपने पुत्र की राजनीतिक यात्रा में स्वयं के किसी दाग की छाया भी नहीं आने देना चाहते थे और उसी सावधानी से ये काम किए गए. अगर आपको याद हो तो पिछले चुनाव यानी सन 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी फ्रंटफुट पर ताबड़तोड़ राजनैतिक बैटिंग कर रहे थे और उनकी चुनावी सभा में मुस्लिम-यादव के अलावा भी अन्य जाति के प्रथम और दूसरी बार के युवा मतदाता बड़ी संख्या में आ रहे थे, जो अंतोगत्वा वोट में कन्वर्ट भी हुआ और महज कुछ सीटों से तेजश्वी अपनी सरकार से दूर रहे, जबकि दोनों गठबंधन को लगभग बराबर के वोट मिले. 

इस पूरी पटकथा के लेखक लालू प्रसाद रहे और अभिनय तेजस्वी करते रहे . इस बार भी लालू प्रसाद और राबड़ी देवी दोनों की तस्वीरें राजद के अधिकांश पोस्टर से गायब हैं . 

मंत्रियों की लिस्ट ने की तस्दीक

अगस्त 2022 में जब तेजस्वी पुनः सरकार में आए तो कौन-कौन मंत्री बनेंगे और किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा , यह संपूर्ण निर्णय लालू प्रसाद का ही रहा होगा . ऐसा राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, क्योंकि लालू-राबड़ी दौर के सुरेंद्र यादव , रामानंद यादव , ललित यादव इत्यादि को पसंदीदा मंत्रालय ही नहीं मिला, बल्कि लालू प्रसाद के खासमखास अवध बिहारी चौधरी, जो कि सीवान के दबंग यादव नेता माने जाते रहे हैं, उनको विधानसभा अध्यक्ष भी बनाया गया . 

सन 2024 के लोकसभा चुनाव में मगध और शाहाबाद क्षेत्र में कुशवाहा को साथ जोड़ने की रणनीति भी लालू प्रसाद की रही होगी और यह रणनीति बहुत हद तक सफल भी रही. सरकार के अंदर प्रथम उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी को न्यूट्रल करते हुए मगध और शाहाबाद के कुशवाहा वोट इंडी गठबंधन को मिल गए. 

Advertisement

ये है लालू यादव की सोच

इतनी परिपक्व और जमीनी राजनीति को देख कर लगता है कि राजद के तरफ से लालू नेपथ्य में और पर्दे पर तेजस्वी हैं . लालू प्रसाद अपने पुत्र को सबकुछ चांदी के चम्मच से भी नहीं परोस रहे, बल्कि तेजस्वी से कड़ी मेहनत भी करवा रहे हैं . लालू प्रसाद ने अपने जमीनी राजनीति के साथ-साथ क़रीब 50 वर्षों की राजनीति से यह सुनिश्चित किया है कि बहुत अच्छा हुआ तो पुत्र राज्य का मुख्यमंत्री बनेगा और बहुत खराब भी हुआ तो नेता प्रतिपक्ष बनेगा . यह एक अदभुत राजनीति है, जो परिवार से निकल समस्त बिहार घूम वापस परिवार में ही आती है . 

Featured Video Of The Day
Shambhavi Choudhary EXCLUSIVE: NDA ने Chirag को दी मुश्किल सीटें? शांभवी चौधरी ने बताया पूरा गणित