कदवा विधानसभा: सीमांचल की वह सीट जहां बाढ़ और पलायन तय करते हैं चुनावी गणित

बिहार के कटिहार जिले की कदवा विधानसभा सीट (संख्या 64) सीमांचल क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र है. कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा, यह सीट महानंदा और बरंडी नदियों के बाढ़ प्रभावित जलोढ़ मैदानों में स्थित है.

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  • कदवा विधानसभा महानंदा और बरंडी नदियों के जलोढ़ मैदानों में स्थित और सीमांचल क्षेत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है
  • कदवा विधानसभाकी अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है जिसमें धान, मक्का, जूट और केले की खेती प्रमुख है
  • बाढ़, कमजोर बुनियादी ढांचा और पलायन कदवा क्षेत्र की प्रमुख समस्याएं हैं जो चुनावी मुद्दों को प्रभावित करती हैं
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बिहार के कटिहार जिले की कदवा विधानसभा सीट (संख्या 64) सीमांचल क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र है. कटिहार लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा, यह सीट महानंदा और बरंडी नदियों के बाढ़ प्रभावित जलोढ़ मैदानों में स्थित है. यह क्षेत्र मुख्य रूप से कदवा और डंडखोरा प्रखंडों को समाहित करता है. इस सीट की स्थापना मूल रूप से 1951 में हुई थी, लेकिन 1962 में परिसीमन के कारण इसे हटा दिया गया। 1977 में यह सीट दोबारा अस्तित्व में आई और तब से यहाँ 14 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं।

क्या खास है

कदवा विधानसभा क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, जहां धान, मक्का, जूट और केले की प्रमुख खेती होती है. अपनी उपजाऊ मिट्टी के बावजूद, यह क्षेत्र दशकों से बार-बार आने वाली बाढ़, कमजोर बुनियादी ढांचे और बड़े पैमाने पर होने वाले पलायन की गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है. यही मूलभूत चुनौतियां यहां के चुनावी एजेंडे को भी तय करती हैं.

क्या मुद्दे रहे हैं?
महानंदा और बरंडी नदियों की बाढ़ हर साल फसलें और घरों को नष्ट करती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है. कृषि पर निर्भरता, बार-बार बाढ़ और कमजोर औद्योगिक विकास के कारण पलायन (Migration) यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है. खासकर भूमिहीन और सीमांत किसान रोजगार की तलाश में बाहर जाते हैं. सड़कें, पुल और स्वास्थ्य सेवाएं ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर हैं, जिससे लोगों में असंतोष है.

वोट गणित

मुस्लिम बहुल सीट होने के बावजूद (42.60% मतदाता), यहां की राजनीति धार्मिक ध्रुवीकरण की जगह जातीय समीकरण और स्थानीय मुद्दों पर अधिक केंद्रित रही है. मुस्लिम बहुल होते हुए भी, यहां अब तक छह हिंदू और आठ मुस्लिम विधायक चुने जा चुके हैं, जो गठबंधन और प्रत्याशी के प्रभाव को दर्शाता है.

2020 की महत्वपूर्ण बात
एनडीए (जदयू और लोजपा) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उनका सम्मिलित मत कांग्रेस से थोड़ा ही कम था, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि विभाजन कांग्रेस की जीत का निर्णायक कारण बना.

माहौल क्या है?  

महागठबंधन (कांग्रेस) का किला: कांग्रेस नेता शकील अहमद खान ने लगातार दो जीत दर्ज कर इस सीट को महागठबंधन का मजबूत गढ़ बनाए रखा है.

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एनडीए की नई ऊर्जा: 2024 के लोकसभा चुनाव में, एनडीए ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा और जदयू के उम्मीदवार दुलाल चंद गोस्वामी ने यहां कांग्रेस के तारिक अनवर पर 8,213 वोटों की निर्णायक बढ़त हासिल की. यह बढ़त एनडीए के लिए 2025 में इस सीट को वापस लेने का एक बड़ा आधार है.

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