बिहार : कटिहार के गुल्फराज ने 'मोदी मखाना' ब्रांड से बनाई पहचान, गांव में सैकड़ों लोगों को दिया रोजगार

गुल्फराज ने कहा कि जब युवा नौकरी करते हैं तो वे सिर्फ अपने लिए काम करते हैं, लेकिन उद्योग खड़ा करने से अन्य लोगों को भी रोजगार मिलता है. यही सोच उन्हें प्रेरित करती रही.

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बिहार के कटिहार जिले के 23 वर्षीय गुल्फराज ने मखाना उद्योग में अपनी मेहनत से एक नई पहचान बनाई है. इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने पारंपरिक नौकरी की बजाय स्टार्टअप की राह चुनी और 'मोदी मखाना' नाम से ब्रांड स्थापित किया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मखाना को लेकर की गई पहल और उनके भाषणों ने उन्हें इस दिशा में काम करने के लिए प्रेरित किया. उनका यह ब्रांड आज देश के कई राज्यों में प्रसिद्ध हो चुका है और वह लाखों का कारोबार कर रहे हैं. 

कटिहार के कोढ़ा प्रखंड स्थित चरखी मस्जिद टोला निवासी गुल्फराज ने समाचार एजेंसी आईएएनएस को बताया कि ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दूसरे वर्ष में स्टार्टअप से जुड़ा एक कार्यक्रम हुआ था, जिसमें मखाना को लेकर चर्चा हुई. यहीं से उन्हें मखाना उद्योग में संभावनाएं नजर आईं. वर्ष 2019 में उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद अपने छोटे से कारोबार की शुरुआत की. शुरुआती दौर में परिवार ने इस फैसले पर असहमति जताई, लेकिन वह अपने इरादों से पीछे नहीं हटे.

गुल्फराज ने कहा कि जब युवा नौकरी करते हैं तो वे सिर्फ अपने लिए काम करते हैं, लेकिन उद्योग खड़ा करने से अन्य लोगों को भी रोजगार मिलता है. यही सोच उन्हें प्रेरित करती रही.

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उन्होंने अपने कारोबार की शुरुआत महज 500 वर्ग फुट से की थी, जो अब एक प्रोसेसिंग यूनिट में बदल चुका है. उनके ब्रांड का नाम ‘मोदी मखाना' रखने के पीछे भी खास वजह है. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के उस भाषण का उल्लेख किया जिसमें मखाना के बेहतर पैकेजिंग की बात की गई थी. गुल्फराज ने कहा कि मुझे लगा कि जब मखाना को लेकर प्रधानमंत्री खुद इतनी गंभीरता दिखा रहे हैं, तो उन्हें भी इसे वैश्विक पहचान दिलाने की कोशिश करनी चाहिए. इसी सोच के साथ उन्होंने मखाना को बेहतर तरीके से पैकेज कर 'मोदी मखाना' के नाम से बाजार में उतारा.

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उन्होंने प्रधानमंत्री की युवाओं, विशेषकर अल्पसंख्यकों के प्रति सकारात्मक सोच को सराहा और कहा कि उनके विचारों से प्रभावित होकर ही यह नाम रखा गया. उनकी प्रोसेसिंग यूनिट में अधिकांश कर्मचारी अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, जिन्हें गांव में ही रोजगार मिल रहा है.

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उनके साथ काम करने वाले मोहम्मद एजाज आलम ने बताया कि वह पहले मुंबई में स्पोर्ट्स सेक्टर में काम करते थे, लेकिन अब गांव में ही रहकर रोजगार मिलने से बेहद खुश हैं. गुल्फराज ने कहा कि मखाना उद्योग में सुधार और बेहतर पैकेजिंग से किसानों को भी लाभ मिल रहा है. साल 2019 में जहां मखाना की कीमत 500-600 रुपए प्रति किलोग्राम थी, वहीं आज यह 1,200-1,500 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है. इससे किसानों की आमदनी में भी कई गुना वृद्धि हुई है.
 

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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