पहली बार नीतीश कुमार के लिए वोट मांगेंगे चिराग पासवान !

नवम्बर 2000 में चिराग पासवान के पिता और दिग्गज नेता रामविलास पासवान ने लोकजनशक्ति पार्टी की स्थापना की. मार्च 2005 में पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी. पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके पहला चुनाव लड़ा और 29 सीटें जीत गई.

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पटना:

आजतक नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी ने एक साथ विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा है. सुनने में थोड़ा अजीब लगे लेकिन ये सच है. दो बार लोकसभा चुनाव साथ लड़ चुके नीतीश कुमार और चिराग पासवान पहली बार 2025 में विधानसभा चुनाव साथ लड़ने जा रहे हैं. चिराग पासवान बार बार विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं. उनके बार बार इस ऐलान का कारण समझने के लिए दोनों पार्टियों के इतिहास में झांकना ज़रूरी है .

साल 2005 में एलजेपी ने पहला चुनाव लड़ा

नवम्बर 2000 में चिराग पासवान के पिता और दिग्गज नेता रामविलास पासवान ने लोकजनशक्ति पार्टी की स्थापना की. मार्च 2005 में पार्टी पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी. पार्टी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन करके पहला चुनाव लड़ा और 29 सीटें जीत गई. इस चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिल सका और सत्ता की चाबी रामविलास पासवान के हाथ में थी. पासवान ने एक बड़ा दांव चला और ये शर्त रखी कि जो भी पार्टी किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बनाएगी, उस पार्टी को अपना समर्थन समर्थन देंगे. इसके लिए कोई पार्टी तैयार नहीं हुई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. उसी साल अक्टूबर में एक बार फिर विधानसभा चुनाव हुए और इस बात लोकजनशक्ति पार्टी अकेले चुनाव मैदान में उतरी. पार्टी को महज 10 सीटें मिल सकी. इसी चुनाव के बाद नीतीश कुमार पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने.

2010 में लालू के साथ

उसके बाद 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी लालू यादव के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी और केवल 3 सीटें ही जीत सकी. पार्टी के लिए ये दोहरा झटका था क्योंकि पिछले ही साल यानि 2009 के लोकसभा चुनाव में भी रामविलास पासवान को हार का स्वाद चखना पड़ा था.

2014 में बीजेपी के साथ वापस आई पार्टी

2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले रामविलास पासवान ने अपनी रणनीति बदली और अपने पुत्र और आज के केंद्रीय मंत्री चिराग पसवान की पहल के बाद सालों बाद एनडीए में दोबारा शामिल हो गए. उसके बाद 2015 का विधानसभा चुनाव भी उन्होंने भाजपा के ही साथ लड़ा .... लेकिन विडंबना देखिए कि इस चुनाव में नीतीश कुमार बीजेपी का साथ छोड़कर राजद के साथ चले गए. ऐसे में एक बार फिर चिराग की पार्टी और नीतीश कुमार की पार्टी अलग-अलग चुनाव लड़ी. इस चुनाव में पार्टी केवल दो सीटें जीत सकी.

2020 में चिराग ने किया चौंकाने वाला फ़ैसला 

2020 के विधानसभा चुनाव में तो एक अजीबो गरीब स्थिति ही पैदा हो गई. चुनाव से ठीक पहले चिराग पासवान के पिता और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान का निधन हो गया, जिसके बाद चिराग पासवान ने एक अप्रत्याशित फैसला लेते हुए ये ऐलान किया कि उनकी पार्टी बिहार विधानसभा का चुनाव अकेले ही लड़ेगी न कि किसी गठबंधन के साथ. इसका मतलब ये हुआ कि इस बार बीजेपी और जेडीयू तो साथ थी, लेकिन चिराग पासवान दोनों से अलग होकर चुनाव लड़ रहे थे.

केवल जेडीयू के खिलाफ़ उतारे उम्मीदवार

इस चुनाव में चिराग पासवान ने एक और चौंकाने वाला दांव खेला. उन्होंने केवल 5 सीटों को छोड़कर अपने सभी उम्मीदवार केवल उन सीटों पर उतारे जहां से जदयू का उम्मीदवार चुनाव मैदान में था. इसका परिणाम ये हुआ कि चिराग पासवान की पार्टी तो केवल एक सीट ही जीत सकी, लेकिन उसने तीन दर्जन से ज़्यादा सीटों पर जेडीयू उम्मीदवारों को हराने में निर्णायक भूमिका निभाई. 

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पासवान वोटरों को नीतीश के पक्ष में लाने की चुनौती

ये बात जगजाहिर है कि नीतीश कुमार के चिराग पासवान का राजनीतिक रिश्ता उतार चढ़ाव वाला रहा है . ऐसे में अपने कोर वोटरों, ख़ासकर पासवान समाज का वोट नीतीश कुमार के पक्ष में लाना चिराग पासवान के लिए एक चुनौती होगी. नीतीश कुमार और पासवान वोटरों का नैसर्गिक जोड़ आज तक नहीं बन पाया है क्योंकि पहले रामविलास पासवान और अब चिराग पासवान ने जेडीयू के साथ जो लोकसभा चुनाव लड़ा, उसमें नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांगे गए न कि नीतीश कुमार के नाम पर. ऐसे भी नीतीश कुमार ने जब एक महादलित श्रेणी बनाया तो उसमें पासवान जाति को शामिल नहीं किया जिसके चलते काफ़ी दिनों तक पासवान समाज नीतीश कुमार से नाखुश रहा. हालांकि बाद में पासवान जाति को भी महादलित श्रेणी में शामिल कर लिया गया. चिराग भी जानते होंगे कि पासवान वोटरों को नीतीश के पक्ष में लाने और उनमें जोश भरने के लिए उन्हें अलग रणनीति बनानी पड़ेगी. उनका विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान सम्भवतः इसी रणनीति का हिस्सा है.

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