बिहार में BJP अपने कोटे से सभी उम्मीदवार उतारे, राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और वैश्य वर्ग पर राजनीतिक दांव

BJP के उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर यही प्रतीत होता है कि उसने राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और वैश्य वर्ग पर अपना राजनीतिक दांव लगाया है. अधिकांश स्थानों पर उम्मीदवार इन्हीं जातियों से चुने गए हैं, जबकि यादव समुदाय के कई नेताओं के टिकट इस बार कट गए हैं.

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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा ने अपने कोटे के सभी 101 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है.
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  • बिहार विधानसभा चुनाव में BJP ने राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और वैश्य जातियों के उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी है.
  • यादव समुदाय के कई नेताओं को इस बार BJP ने टिकट नहीं दिया, जिसमें बिहार विधानसभा अध्यक्ष भी शामिल हैं.
  • यूपी और बिहार में अति पिछड़ा वर्ग ने चुनावी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और नीतीश कुमार से जुड़ा है.
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बिहार विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी के अपने कोटे के सभी 101 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है. BJP ने पहली लिस्ट में 71 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा की थी. इसके बाद बुधवार को BJP ने 12 उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की. और फिर बुधवार देर रात पार्टी ने शेष बचे 18 उम्मीदवारों के नामों की भी घोषणा कर दी. BJP के उम्मीदवारों की लिस्ट देखकर यही प्रतीत होता है कि उसने राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और वैश्य वर्ग पर अपना राजनीतिक दांव लगाया है. अधिकांश स्थानों पर उम्मीदवार इन्हीं जातियों से चुने गए हैं, जबकि यादव समुदाय के कई नेताओं के टिकट इस बार कट गए हैं. यहां तक कि बिहार विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव तक को टिकट नहीं मिला. हालांकि, उसकी क्षतिपूर्ति दानापुर से पूर्व केंद्रीय मंत्री राम कृपाल यादव को टिकट देकर की गई है.

यूपी-बिहार के चुनावी जीत में अति पिछड़ा वर्ग का बड़ा रोल

उत्तर प्रदेश और बिहार—दोनों राज्यों में चुनावी जीत का मुख्य आधार अति पिछड़ा वर्ग रहा है. सन 2005 के चुनाव से ही यह वर्ग नीतीश कुमार के साथ मजबूती से जुड़ा रहा है. इस वर्ग में सैकड़ों जातियां आती हैं, परंतु कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद इनका कोई राज्यस्तरीय नेता उभर नहीं पाया. नब्बे के दशक में लालू प्रसाद यादव ने भी इस वर्ग से किसी बड़े नेता को विकसित नहीं होने दिया, और नीतीश कुमार ने भी उसी राह पर चलकर किसी को आगे नहीं बढ़ने दिया.

लालू-नीतीश ने अति पिछड़ा वर्ग को साधा

हालांकि, जहां लालू ने पिछड़ावाद के नाम पर अति पिछड़े वर्ग को अपने साथ बनाए रखा, वहीं धरातल पर उनके लिए कार्य वास्तविक रूप से नीतीश कुमार ने किया. कर्पूरी ठाकुर ने इन्हें आरक्षण में अलग वर्ग बनाकर राजनीतिक पहचान दी, तो नीतीश कुमार ने पंचायत एवं नगर निकाय चुनावों में महिलाओं के साथ इन्हें भी आरक्षण देकर सशक्त बनाया तथा कई बैकलॉग नौकरियों में इन्हें स्थान सुनिश्चित किया.

36 फीसदी आबादी वाले चुप्पा वोटर पर बीजेपी का दांव

भाजपा की सूची से यह साफ दिखाई देता है कि जहां-जहां सवर्ण जातियां सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रभावशाली हैं, उन इलाकों में पार्टी ने खुल कर उन्हीं को टिकट दिया है. इसका अर्थ स्पष्ट है कि भाजपा को विश्वास है कि नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सवर्ण उम्मीदवारों को अति पिछड़े वर्ग का समर्थन प्राप्त हो सकता है. यह वर्ग राज्य में लगभग 36 प्रतिशत वोटों का हिस्सा रखता है और इन्हें अक्सर “चुप्पा वोटर” भी कहा जाता है.

हालांकि मगध क्षेत्र में चंद्रवंशी समाज राजनीतिक रूप से मुखर है और उन्हें अपनी सक्रियता का लाभ भी मिलता आया है, लेकिन वह प्रभाव उस स्तर का नहीं है जो पिछड़े वर्ग में अग्रणी जातियों को प्राप्त होता है.


जद (यू) की सूची अपेक्षाकृत मिश्रित है, परंतु दोनों दलों ने यादव उम्मीदवारों को सीमित अवसर दिए हैं. अब तक जद (यू) की सूची में एक भी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं मिला है. यहां तक कि मंडल आयोग के जनक स्वर्गीय बी.पी. मंडल के पौत्र का भी टिकट काट दिया गया है.

अति पिछड़े वर्ग के वोटों के सहारे मज़बूत उम्मीदवार उतारने की रणनीति मूलतः नीतीश कुमार की रही है, जिसे भाजपा ने सन 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहली बार अपनाया और फिर योगी आदित्यनाथ ने यही फ़ॉर्मूला 2022 में भारी बहुमत के साथ दोहराया.

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जब दोनों दलों की संपूर्ण सूची जारी होगी, तब यह समझ पाना अधिक स्पष्ट हो सकेगा कि एनडीए इस बार चुनावी धारा को किस दिशा में मोड़ने की रणनीति बना रही है.

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