पीएम मोदी का चेहरा, महिलाओं-युवाओं पर फोकस और पीके फैक्टर की काट, कुछ ऐसी है बीजेपी की बिहार की रणनीति

Bihar Election: बीजेपी ने बिहार चुनाव के लिए बड़ी तैयारी की है. बीजेपी इस बार के चुनाव में भी पीएम मोदी के चेहरे को आगे रखकर मैदान में उतरेगी. वो हर छोटे से छोटे मुद्दे पर रणनीति बना रही है. बीजेपी इस बार के चुनाव में प्रशांत किशोर के असर का भी आकलन कर रही है.

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बिहार चुनाव के लिए बीजेपी की बड़ी तैयारी.
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  • बीजेपी ने बिहार में फिर से सरकार बनाने का लक्ष्य तय किया है, इसके लिए पूरी ताकत के साथ चुनावी रणनीति बनाई है.
  • पीएम नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता को पार्टी ने चुनाव में मुख्य हथियार के रूप में आगे रखा है.
  • पार्टी ने तीन वरिष्ठ नेताओं को चुनाव प्रभार सौंपे हैं. नेताओं को हर विधानसभा सीट की निगरानी का जिम्मा दिया है.
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पटना:

बीजेपी ने बिहार में किसी भी सूरत में सरकार में फिर आने का लक्ष्य रखा है और इसके लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंकने का फैसला किया है. तीन कद्दावर नेताओं को बिहार चुनाव की रणनीति की जिम्मेदारी देने के साथ ही दूसरे राज्यों से मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और वरिष्ठ नेताओं को विधानसभा की हर सीट की निगरानी करने का जिम्मा दे दिया गया है. समय कम है और चुनौती बड़ी, इसीलिए बीजेपी ने अपने सबसे बड़े चेहरे पीएम नरेंद्र मोदी के नाम और काम को आगे रखने का फैसला किया है. 2015 विधानसभा को छोड़ बीजेपी को पिछले हर चुनाव में उनके नाम और काम पर जीत मिली है और पार्टी को इस बार भी यही उम्मीद है. बीजेपी को फीडबैक मिला है कि बिहार में प्रधानमंत्री की जबर्दस्त लोकप्रियता है और पार्टी को इसका लाभ मिलेगा.

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नीतीश को निशाने पर लेना विपक्ष को पड़ सकता है भारी

बीजेपी नेता मानते हैं कि नीतीश कुमार की लोकप्रियता बरकरार है. इसीलिए एनडीए का चेहरा पीएम मोदी और नीतीश कुमार दोनों रहेंगे. बीजेपी को लगता है कि नीतीश कुमार की सेहत को विपक्ष मुद्दा बनाने की गलती नहीं करेगा, क्योंकि बिहार में नीतीश कुमार की खासतौर से महिला मतदाताओं में भावनात्मक अपील है और नीतीश कुमार को निशाने पर लेना विपक्ष को भारी पड़ सकता है. हालांकि यह फैसला खुद नीतीश कुमार ही करेंगे कि अगर एनडीए सत्ता में वापसी करता है तो वे फिर से मुख्यमंत्री बनें या नहीं.

कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने पर जोर

बीजेपी ने अपने तीन चुनाव प्रभारियों धर्मेंद्र प्रधान, सी आर पाटिल और केशव प्रसाद मौर्य को 70-80 विधानसभा सीटों की जिम्मेदारी दी है. प्रभारियों को कहा गया है कि वे हर सीट पर एनडीए उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए काम करें. दूसरे राज्यों से मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और अन्य वरिष्ठ नेताओं को भी प्रत्येक विधानसभा सीट पर भेजा गया है. वे स्थानीय मुद्दों के हिसाब से रणनीति बना कर फीडबैक देंगे, अगर कहीं कार्यकर्ताओं में नाराजगी है तो उसे दूर करेंगे और केंद्र तथा राज्य सरकार की उपलब्धियों को जमीन तक लेकर जाएंगे. वे लाभार्थियों से सीधे संपर्क करेंगे और उन्हें बताएंगे कि कैसे मोदी-नीतीश ने उन्हें सरकारी योजनाओं से सीधे लाभ पहुंचाया है.

महिलाओं और युवाओं पर विशेष ध्यान

अब तक 1.25 करोड़ महिलाओं के बैंक खातों में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत दस-दस हजार रुपए पहुंचा दिए गए हैं. हर घर को 125 यूनिट मुफ्त बिजली हर महीने दी जा रही है. विधवाओं और बुजर्गों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन 400 रुपए से बढ़ा कर 11 सौ रुपए कर दी गई है। इससे राज्य में 1.12 करोड़ परिवारों को फायदा पहुंचा है. आशा और ममता वर्कर के लिए राशि बढ़ा दी गई। 1.4 करोड़ जीविका दीदी को सस्ते ब्याज पर कर्ज देना और महिलाओं को पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में पचास प्रतिशत आरक्षण शामिल है. पुलिस भर्ती में महिलाओं के लिए 35 प्रतिशत आरक्षण ने भी महिलाओं को एनडीए सरकार की ओर खींचा है.

बेरोजगारों युवाओं को अगले दो साल तक हर महीने एक हजार रुपए देने की शुरुआत भी की गई है. साथ ही अगले पांच साल में एक करोड़ रोजगार देने का वादा किया गया है. युवाओं के लिए छह हजार इंटर्नशिप की बात भी कही गई है। इस चुनाव में 14 लाख नए मतदाता हैं जिनकी उम्र 18-19 वर्ष है. औसतन हर विधानसभा सीट पर 5,765 नए मतदाता जुड़े हैं। दिलचस्प बात यह है कि 56 विधानसभा सीटों पर यह संख्या जीत के मार्जिन से अधिक है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि नए मतदाता चुनाव परिणाम पर कितना बड़ा असर डालने जा रहे हैं.

पीके फैक्टर

यही कारण है कि बीजेपी पीके फैक्टर को नजरअंदाज नहीं कर रही है. सोशल मीडिया पर प्रशांत किशोर को समर्थन मिल रहा है जहां उनकी पैठ दूसरी पार्टियों के मुकाबले अधिक है। खासतौर से यूट्यूब चैनलों में प्रशांत किशोर ने रणनीति के तहत अपनी पहुंच बढ़ाई है. युवाओं में सोशल मीडिया की लोकप्रियता और वहां पीके की पहुंच ऐसा आभास देती है कि वे अपनी जड़ें मजबूत कर रहे हैं. हालांकि बीजेपी नेता ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि जरूरी नहीं कि सोशल मीडिया की लोकप्रियता पोलिंग बूथ पर वोटों में तब्दील हो. उनके मुताबिक वोट जुटाने के लिए जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत होना जरूरी है और नई पार्टी होने के कारण प्रशांत किशोर जमीनी स्तर पर संगठन उस तरह खड़ा नहीं कर पाए हैं. बहरहाल प्रशांत किशोर की काट ढूंढने पर भी बीजेपी नेता काम कर रहे हैं और सही वक्त आने पर इसका खुलासा करने की बात कह रहे हैं.

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