दल-बदल से हिली बिहार की सियासत: भूमिहार नेताओं के रुख से NDA परेशान, RJD को राहत?

बोगो सिंह, संजीव कुमार, राहुल शर्मा, अरुण कुमार... बिहार के अलग-अलग जिलों के ये भूमिहार नेताओं में हाल ही में अपना पाला बदला है. इसमें तीन जदयू छोड़ राजद में जुड़े हैं. जबकि अरुण कुमार की लंबे समय बाद जदयू में वापसी हुई है.

विज्ञापन
Read Time: 4 mins
बिहार में हाल के दिनों में पाला बदलने वाले भूमिहार समाज के 4 बड़े नेता, बोगो सिंह, डॉ. सजीव कुमार, राहुल शर्मा और डॉ. अरुण कुमार.
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में NDA ने सीट शेयरिंग का ऐलान कर दिया है और महागठबंधन की घोषणा का इंतजार है.
  • इस बीच भूमिहार नेताओं का दल बदलना बिहार की राजनीतिक हवा को प्रभावित कर रहा है.
  • हाल के दिनों में बोगो सिंह, संजीव कुमार, राहुल शर्मा और डॉ. अरुण कुमार जैसे भूमिहार नेताओं ने दल बदला है.
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए NDA ने सीट शेयरिंग का ऐलान कर दिया है. अब इंतजार महागठबंधन का है. उम्मीद है कि सोमवार को महागठबंधन की सीट शेयरिंग का ऐलान भी हो जाएगा. महागठबंधन की घोषणा के बाद बिहार चुनाव की तस्वीर काफी हद तक साफ हो जाएगी. लेकिन सियासी समीकरणों के बनने-बिगड़ने के बीच एक और बात सुर्खियों में है. वह है भूमिहार नेताओं का लगातार दल बदलना. जहानाबाद से लेकर मोकामा और लखीसराय तक सियासी हवा का रुख़ बदल रहा है. भूमिहार समाज बिहार की राजनीति में हमेशा निर्णायक भूमिका निभाता आया है, ख़ासकर मगध, शाहाबाद और पटना प्रमंडल में.

यह वर्ग मतदान में अनुशासित और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली माना जाता है. ऐसे में इनके नेताओं का पाला बदलना केवल चेहरों की अदला-बदली नहीं, बल्कि वोट समीकरणों को भी हिला सकता है.

हाल के बड़े राजनीतिक बदलाव

पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के बेटे और पूर्व विधायक राहुल शर्मा ने जेडीयू छोड़कर राजद (RJD) का दामन थामा. वे भूमिहार जाति से आते हैं और मगध की राजनीति में यह कदम बड़ा उलटफेर माना जा रहा है. तेजस्वी यादव इसी बहाने न केवल मगध में, बल्कि भूमिहार बहुल कई सीटों पर असर डाल सकते हैं.

जगदीश शर्मा भूमिहार समाज के प्रभावशाली नेता माने जाते हैं और इस वर्ग पर उनकी पकड़ मजबूत है. अब उनके बेटे के राजद में आने से RJD को मगध क्षेत्र में बड़ा राजनीतिक लाभ मिलने की संभावना मानी जा रही है, जबकि यह नीतीश कुमार के लिए बड़ा झटका है.

उनके तुरंत बाद जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार अपने बेटे के साथ जेडीयू में शामिल हो गए. बताया जाता है कि अरुण कुमार की ज्वाइनिंग पहले टल गई थी, लेकिन राहुल शर्मा के राजद में शामिल होने के बाद उनकी एंट्री को “ग्रीन सिग्नल” मिला. चर्चा इस बात की भी रही कि JDU के एक बड़े नेता के कहने पर उनकी ज्वाइनिंग पहले रोकी गई थी और जब अरुण कुमार ने जेडीयू ज्वाईन की, तब वह नेता भी मौजूद थे.

Advertisement

इसी क्रम में, खगड़िया के परबत्ता विधानसभा क्षेत्र से विधायक डॉ. संजीव कुमार ने भी JDU छोड़कर राजद का दामन थाम लिया. वहीं, बोगो सिंह, जो कभी JDU के मज़बूत भूमिहार चेहरे माने जाते थे, उन्होंने भी अब लालू परिवार का साथ थामा.

अब चर्चा है कि सूरजभान सिंह भी पशुपति पारस का साथ छोड़ सकते हैं. उनकी पत्नी वीणा सिंह मोकामा से राजद की संभावित उम्मीदवार हो सकती हैं, जबकि उनके भाई चंदन सिंह लखीसराय से उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा के खिलाफ मैदान में उतर सकते हैं.

Advertisement

NDA के लिए नुकसान कैसे?

1. भूमिहार वोट बैंक में सेंध:

NDA (खासकर BJP और JDU) लंबे समय से भूमिहार समाज पर निर्भर रही है. लगातार नेताओं के पलायन से यह वोट बैंक बिखर सकता है.

2. स्थानीय असर:

बोगो सिंह और डॉ. संजीव जैसे नेताओं की अपने इलाक़े में संगठन और नेटवर्क पर गहरी पकड़ है. उनके जाने से NDA के ग्राउंड स्ट्रक्चर पर असर पड़ना तय है.

Advertisement

3. संदेश का प्रभाव:

चुनावी माहौल में जब नेता दल बदलते हैं, तो यह संदेश जाता है कि गठबंधन के भीतर असंतोष है, जो मतदाताओं पर मनोवैज्ञानिक असर डालता है और विपक्ष के पक्ष में माहौल बनाता है.

महागठबंधन के लिए फायदा क्या?

1. सोशल इंजीनियरिंग को मजबूती:

RJD पहले से ही यादव और कुशवाहा वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखती है. अब भूमिहार चेहरे जुड़ने से पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग रणनीति और संतुलित हो सकती है.

Advertisement

2. सर्वसमाज की छवि:

भूमिहार जैसे पारंपरिक गैर-RJD समुदाय का पार्टी में आना यह संदेश देता है कि राजद अब “सर्वसमाज” की पार्टी बनना चाहती है.

3. प्रतीकात्मक और क्षेत्रीय असर:

सूरजभान सिंह, अरुण कुमार और राहुल शर्मा जैसे नाम केवल सीटों तक सीमित नहीं हैं. इनका जातीय और क्षेत्रीय प्रभाव कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक असर डाल सकता है.

कुल मिलाकर समीकरण

भूमिहार नेताओं का NDA से महागठबंधन की ओर जाना NDA के लिए चेतावनी, और RJD के लिए अवसर दोनों है. अगर यह रुझान आगे भी जारी रहता है, तो यह बिहार की पारंपरिक राजनीतिक रेखाओं को बदल सकता है. अभी तस्वीर अधूरी है, लेकिन यह साफ़ दिख रहा है कि 2025 का चुनाव केवल गठबंधनों की लड़ाई नहीं, बल्कि सामाजिक समीकरणों की पुनर्रचना की जंग होगी.

Featured Video Of The Day
Bihar NDA में Seat Sharing पर कैसे बनी सहमति, जानें INSIDE STORY | Syed Suhail | Bihar Elections