फुलवारी विधानसभा सीट: काफी दिलचस्प रहा है चुनावी मुकाबला, जानें किसका पलड़ा है भारी

फुलवारी सीट पर राजद, जदयू और सीपीआई जैसी पार्टियों के बीच एक कांटे की टक्कर देखने को मिलती है. आगामी चुनावों को देखते हुए, यह सीट एक बार फिर महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर की गवाह बन सकती है.

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फुलवारी विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में एक अहम स्थान रखती है. यह पटना जिले में मौजूद है और पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र का एक हिस्सा है. यह सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है.फुलवारी विधानसभा क्षेत्र दो ब्लॉक फुलवारी और पुनपुन में बंटा हुआ है. यह क्षेत्र बिहार की राजधानी पटना के करीब होने के बावजूद ग्रामीण और सेमी-अर्बन इलाकों का मिश्रण है.

जातिगत समीकरण

जातीय समीकरणों की बात करें तो, यह सीट सुरक्षित होने की वजह से दलित मतदाता प्रभावी हैं. इसके अलावा, मुस्लिम, यादव और कुशवाहा-कोइरी जैसे अन्य पिछड़ा वर्ग भी चुनावी नतीजों पर असर डालते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में सीपीआई-माले का एक मजबूत आधार (कैडर वोट) माना जाता है, जबकि यादव और मुस्लिम समुदाय का झुकाव परंपरागत रूप से राजद की ओर रहा है.

चुनावी इतिहास

फुलवारी सीट का एक दिलचस्प और बदलता चुनावी इतिहास रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में, यह सीट महागठबंधन के खाते में गई और भाकपा (माले-लिबरेशन) के उम्मीदवार गोपाल रविदास ने जीत दर्ज की. इन्होंने जदयू के अरुण मांझी को 13,857 वोटों के अंतर से हराया था. गोपाल रविदास को 91,124 वोट मिले जबकि अरुण मांझी को 77,267 वोट मिले थे.

क्या मुद्दे रहे हैं

आने वाले विधानसभा चुनावों में मुद्दे की बात करें तो इसमें स्थानीय समस्याओं के समाधान, जैसे कि सड़क, पानी, और जल-जमाव हावी रह सकते हैं.

राजनीतिक रुझान 

इस सीट पर राजद, जदयू और सीपीआई जैसी पार्टियों के बीच एक कांटे की टक्कर देखने को मिलती है. आगामी चुनावों को देखते हुए, यह सीट एक बार फिर महागठबंधन और एनडीए के बीच कड़ी टक्कर की गवाह बन सकती है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या महागठबंधन अपने विजयी चेहरे को बरकरार रखता है, या एनडीए कोई मजबूत दलित चेहरा उतारकर इस सुरक्षित सीट पर वापसी करने में सफल होता है.

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