Congress Performing Poorly in Bihar Elections: बिहार में एनडीए जीत की ओर बढ़ता दिख रहा है, जबकि महागठबंधन एक बार फिर से हार की ओर. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, इसके पीछे कई वजहें हैं. और इन्हीं वजहों में से एक है- कांग्रेस का कमजोर कड़ी साबित होना. जानकार बता रहे हैं कि कांग्रेस, महागठबंधन में कमजोर कड़ी साबित होती दिख रही है. सुबह 10 बजे तक के रुझानों में कांग्रेस 10 सीटों पर ही लीड लेती दिख रही है. उसे 9 सीटों का नुकसान होता दिखाई दे रहा है. 2020 में कांग्रेस के पास 19 सीटें थीं, तब पार्टी 70 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस बार कांग्रेस ने 61 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. 10 सीटों पर लीड के हिसाब से देखें तो स्ट्राइक रेट 20% से भी नीचे दिख रहा है. ऐसे में ज्यादा और पसंदीदा सीटों पर लड़ने का पार्टी का फैसला सही साबित होता नहीं दिख रहा है. हालांकि अभी तस्वीर साफ होने में देर है, लेकिन परिणाम उसी ओर बढ़ते दिख रहे हैं.
2020 चुनाव में भी बेहद कम स्ट्राइक रेट
पिछले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस का प्रदर्शन देखें तो पार्टी का स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा है. 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह केवल 19 सीटें ही जीत पाई. 27% के बेहद कम स्ट्राइक रेट के साथ कांग्रेस का प्रदर्शन महागठबंधन के अन्य सहयोगी दलों की तुलना में सबसे खराब रहा था. महागठबंधन में कांग्रेस का सबसे अधिक सीटें लेकर भी कमजोर परिणाम देना तेजस्वी और लालू यादव के लिए हमेशा तनाव का विषय रहा है.
साइलेंट मोड में चले गए राहुल गांधी
बिहार चुनाव से पहले राहुल गांधी वोटर अधिकार यात्रा के दौरान काफी आक्रामक नजर आए थे. SIR का मुद्दा भी उन दिनों काफी गरम था और राहुल, एनडीए के खिलाफ एक नैरेटिव सेट करने में कुछ हद तक कामयाब दिख भी रहे थे. लेकिन वोटर अधिकार यात्रा के दौरान बने माहौल को वो महागठबंधन के पक्ष में बरकरार नहीं रख पाए.
महागठबंधन की वोटर अधिकार यात्रा के बाद राहुल गांधी साइलेंट मोड में चले गए. तेजस्वी को सीएम फेस घोषित करने में भी वो कई मौकों पर साइलेंट रहे. ऐसे में महागठबंधन की फजीहत हुई. तेजस्वी के नाम की घोषणा में काफी देर हुई. बाद में महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस में जो पोस्टर लगी थी, उसमें केवल तेजस्वी दिखाई दिए. पोस्टर से भी राहुल गांधी गायब दिखे.














