बिहार चुनाव: महिषी में जातीय समीकरण के इर्द-गिर्द घूमती है राजनीति, जानिए इस बार क्‍या हैं मुद्दे

महिषी विधानसभा की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. यादव, मुस्लिम और पिछड़ी जातियां यहां का बड़ा वोट बैंक हैं, जो परंपरागत रूप से राजद के साथ जुड़ता रहा है. वहीं, सवर्ण और महादलित समुदायों का रुझान एनडीए की ओर झुकता है.

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  • बिहार की महिषी विधानसभा सीट सहरसा जिले में स्थित है और यह मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है.
  • महिषी क्षेत्र में मां उग्रतारा शक्तिपीठ, मंडन भारती धाम और सूर्य मंदिर कंदाहा जैसे प्रमुख धार्मिक स्थल हैंं.
  • यादव, मुस्लिम और पिछड़ी जातियां राजद का मुख्य वोट बैंक हैं, जबकि सवर्ण और महादलित एनडीए के साथ जुड़े हैं.
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पटना:

बिहार की राजनीति में कोसी क्षेत्र हमेशा से निर्णायक भूमिका निभाता आया है. इसी क्षेत्र की एक अहम सीट है महिषी विधानसभा, जो न सिर्फ अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि राजनीतिक समीकरणों की दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील मानी जाती है. 2025 के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यहां की जनता का रुख किस ओर झुकेगा, यह सवाल अभी से चर्चा में है. 

महिषी विधानसभा क्षेत्र सहरसा जिले में स्थित है और मधेपुरा लोकसभा सीट का हिस्सा है. नौहट्टा और सत्तरकटैया प्रखंडों के साथ-साथ महिषी प्रखंड की 11 ग्राम पंचायतों को मिलाकर यह सीट बनी है. मिथिला क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा, मां उग्रतारा शक्तिपीठ, मंडन भारती धाम और सूर्य मंदिर कंदाहा जैसे धार्मिक स्थल इसे खास पहचान देते हैं. मैथिली यहां की प्रमुख भाषा है और कृषि स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. यहां विशेषकर धान, मक्का और दाल की खेती होती है.

महिषी में कई धार्मिक स्‍थल 

सहरसा जिले के महिषी प्रखंड में कई धार्मिक और ऐतिहासिक स्थल हैं. श्री उग्रतारा स्थान, महिषी गांव में सहरसा स्टेशन से 17 किमी दूर, प्राचीन भगवती तारा मंदिर है, जहां एकजटा और नील सरस्वती की मूर्तियाँ भी पूजी जाती हैं. मंडन भारती धाम वह ऐतिहासिक स्थल है जहां शंकराचार्य और मंडन मिश्र के बीच शास्त्रार्थ हुआ, जिसमें मंडन की पत्नी भारती न्यायाधीश थीं. सूर्य मंदिर कंदाहा, 14वीं सदी में कर्नाटक वंश द्वारा निर्मित, सूर्य भगवान की ग्रेनाइट मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है, जिसे कालापहद ने क्षतिग्रस्त किया और लक्ष्मीनाथ गोसाई ने पुनर्निर्मित किया. संत बाबा कारू खिरहरी मंदिर, कोसी नदी तट पर, शिव-भक्त कारू को समर्पित है, और बिहार सरकार इसे प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है.

महिषी सीट का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यहां जीत का संदेश पूरे कोसी क्षेत्र की राजनीति में दूर तक जाता है. धार्मिक आस्था, सांस्कृतिक धरोहर और जातीय समीकरण, इन तीनों का संगम महिषी को बिहार चुनाव 2025 का हॉटस्पॉट बना देता है.

जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती है राजनीति 

यहां की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. यादव, मुस्लिम और पिछड़ी जातियां यहां का बड़ा वोट बैंक हैं, जो परंपरागत रूप से राजद के साथ जुड़ता रहा है. वहीं, सवर्ण और महादलित समुदायों का रुझान एनडीए की ओर झुकता है. 2020 की जीत ने जदयू को मजबूती दी, लेकिन राजद अभी भी एक बड़े वोट आधार के दम पर चुनौती देने की स्थिति में है.

महिषी क्षेत्र कोसी नदी की बाढ़ से हर साल जूझता है. सिंचाई, स्वास्थ्य सुविधाएं, और सड़क ढांचा अभी भी प्रमुख मुद्दे बने हुए हैं, हालांकि शिक्षा और कनेक्टिविटी में सुधार देखा गया है. 2025 में यहां के मतदाता यह देखेंगे कि किस दल ने बाढ़ नियंत्रण और रोजगार जैसे बुनियादी सवालों को हल करने की ठोस योजना दी है.

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1995 से 2015 तक अब्‍दुल गफ्फूर ने दर्ज की जीत 

1967 में स्थापित महिषी विधानसभा सीट पर अब तक 14 चुनाव हो चुके हैं. कांग्रेस ने यहां चार बार (1969, 1972, 1980, 1985) जीत दर्ज की. अब्दुल गफूर (जनता दल और बाद में राजद) इस सीट के सबसे प्रभावशाली नेता रहे, जिन्होंने 1995, 2000, 2010 और 2015 में जीत हासिल की. जनता दल और जदयू ने दो-दो बार सफलता पाई. संयुक्त समाजवादी पार्टी, जनता पार्टी और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने भी यहां जीत दर्ज की है. 2020 में जदयू के गुंजेश्वर साह ने राजद को शिकस्त दी और इस सीट पर पार्टी का कब्जा जमाया.

2024 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, महिषी विधानसभा की अनुमानित जनसंख्या 5,19,390 है. कुल 3,06,624 मतदाताओं में 1,57,243 पुरुष, 1,49,376 महिलाएं और 5 थर्ड जेंडर मतदाता हैं.

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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