राजनीति या मजबूरी? चिराग CM बनेंगे तो.. पहले अपना खून मानने को नहीं थे तैयार, अब चाचा पारस ने कही ये बड़ी बात

हाजीपुर में एक श्राद्ध कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत में पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति पारस ने कहा कि अगर चिराग पासवान बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं तो मुझे सबसे  ज्यादा खुशी होगी. वह हमारे परिवार के सदस्य हैं, हमारा भतीजा है. लेकिन यह फैसला बिहार की जनता करेगी. लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है.

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  • पशुपति पारस ने चिराग पासवान को अपना परिवार का सदस्य और भतीजा मानते हुए मुख्यमंत्री बनने की शुभकामनाएं दीं.
  • पारस ने कहा कि बिहार की जनता ही मुख्यमंत्री चुनने का फैसला करेगी और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है.
  • उन्होंने यह भी माना कि बिहार की जनता राजनीतिक रूप से जागरूक है और शिक्षा तथा विकास के पक्ष में वोट करेगी.
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हाजीपुर:

बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प मोड़ देखने को मिला है. कभी अपने भतीजे चिराग पासवान को अपना खून मानने से इनकार करने वाले पशुपति कुमार पारस अब न सिर्फ उन्हें अपना परिवार का सदस्य मान रहे हैं, बल्कि मुख्यमंत्री बनने की शुभकामनाएं भी दे रहे हैं.

हाजीपुर में एक श्राद्ध कार्यक्रम के दौरान मीडिया से बातचीत में पूर्व केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष पशुपति पारस ने कहा कि अगर चिराग पासवान बिहार के मुख्यमंत्री बनते हैं तो मुझे सबसे  ज्यादा खुशी होगी. वह हमारे परिवार के सदस्य हैं, हमारा भतीजा है. लेकिन यह फैसला बिहार की जनता करेगी. लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है.

उन्होंने आगे कहा कि बिहार की जनता राजनीतिक रूप से जागरूक है और सोच-समझकर निर्णय लेती है. अगर जनता शिक्षा और विकास के पक्ष में वोट देती है और चिराग पासवान को मुख्यमंत्री बनाना चाहती है, तो वह इसका स्वागत करेंगे. यह बयान इसलिए भी अहम है क्योंकि पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच लंबे समय से राजनीतिक और पारिवारिक मतभेद रहे हैं. एक समय ऐसा भी था जब पारस ने चिराग को अपना खून मानने से इनकार कर दिया था और मामला थाने और कोर्ट तक पहुंच गया था. लेकिन अब, जब महागठबंधन में पारस को अपेक्षित सम्मान नहीं मिला, तो उन्होंने चिराग की तारीफ करते हुए उन्हें मुख्यमंत्री बनने योग्य बताया.

बहरहाल, सवाल यह है कि क्या चाचा-भतीजा के बीच सुलह हो गई है? क्या यह बयान बदलते राजनीतिक समीकरणों का संकेत है? या फिर यह चुनावी वर्ष में रणनीतिक बयानबाजी का हिस्सा है?
यही है राजनीति — जहां रिश्ते, बयान और समीकरण पल भर में बदल जाते हैं।

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