बिहार चुनाव: एनडीए से नाराज़ हुए ओपी राजभर, 64 सीटों पर उतारे उम्मीदवार, जानिए समीकरण

ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा, बीजेपी की सहयोगी रही है. पहले माना जा रहा था कि राजभर की पार्टी भी एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी.

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  • ओमप्रकाश राजभर की पार्टी बिहार में 64 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं
  • राजभर एनडीए की तरफ से सीट नहीं मिलने के कारण परेशान हैं
  • सुभासपा का प्रभाव खासकर यूपी-बिहार सीमा वाले जिलों में रहा है
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पटना:

बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कई नए मोड़ देखने को मिल रहे हैं. ऐसा ही एक बड़ा मोड़ तब आया, जब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने एनडीए से अलग होकर बिहार में अपने दम पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया. उन्होंने बिहार की 64 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिए हैं. अब वह एनडीए के खिलाफ प्रचार भी करेंगे. 

ओपी राजभर की पार्टी सुभासपा, बीजेपी की सहयोगी रही है. पहले माना जा रहा था कि राजभर की पार्टी भी एनडीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी.  लेकिन ओपी राजभर 4–5 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारना चाहते थे. उन्हें लग रहा था कि एनडीए में उनकी पार्टी को सम्मान और अहमियत नहीं मिल रही है. सीटों पर समझौता नहीं हो पाया, इसलिए उन्होंने अकेले ही मैदान में उतरने का एलान कर दिया है.

राजभर क्यों हैं नाराज?

सम्मान और हिस्सेदारी नहीं मिलने पर राजभर ने एनडीए से दूरी बना ली है. यह फैसला केवल चुनाव लड़ने का नहीं है, बल्कि इससे कई जगह पर चुनावी गणित बदल सकता है.  सुभासपा का खास असर उन इलाकों में है, जहां राजभर (ओबीसी) समुदाय और कुछ पिछड़ी जातियों की संख्या अच्छी है. यूपी–बिहार की सीमा से जुड़े कई जिलों में राजभर समाज की अच्छी आबादी है, इसलिए उन सीटों पर इसका असर साफ दिख सकता है.

कई सीटों पर असर डाल सकते हैं राजभर

सुभासपा भले ही बहुत बड़ी पार्टी न हो, लेकिन कई इलाकों में कुछ हज़ार वोट भी चुनाव नतीजों को बदल देते हैं. सुभासपा की एंट्री से सबसे ज्यादा असर इन सीटों पर पड़ सकता है . सिवान और छपरा क्षेत्र की सीटें, गोपालगंज जिले की सीटें, बेतिया, बगहा, नरकटियागंज (प. चंपारण), मोतिहारी, ढाका, केसरिया (पू. चंपारण), कुशीनगर की सीमा से सटे इलाके, कैमूर और रोहतास क्षेत्र की कुछ सीटें हैं जहां इसका असर हो सकता है. 

इन इलाकों में एनडीए आम तौर पर मजबूत रहता है, लेकिन ओपी राजभर के उम्मीदवारों की वजह से एनडीए का वोट बंट सकता है, जिससे उनकी जीत मुश्किल हो सकती है. सुभासपा का वोट बैंक अक्सर एनडीए का ही हिस्सा रहा है. अब जब राजभर एनडीए के खिलाफ प्रचार करेंगे, तो भाजपा–जेडीयू को नुकसान होगा. खासकर उन सीटों पर जहां वोट कड़ी टक्कर में बंटेंगे.

महागठबंधन को भी हो सकता है नुकसान? 

वोट बंटने से विपक्षी उम्मीदवार आगे निकल सकते हैं. जहां एनडीए मजबूत स्थिति में होती, वहां अब मुकाबला बराबरी का या विपक्ष के पक्ष में जा सकता है.  लेकिन ध्यान देने वाली बात यह भी है कि कुछ जगहों पर सुभासपा महागठबंधन के वोट भी काट सकती है, पर कुल मिलाकर एनडीए को ज्यादा नुकसान होगा.  ओपी राजभर अपनी सीधी और तेज़ भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं. 

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उनके भाषणों में पिछड़ा वर्ग, गरीब और दलित वोटरों को जोड़ने वाला संदेश होता है. वे ज्यादा पढ़े-लिखे और शहरी वर्ग से नहीं, बल्कि ग्रामीण और गरीब तबके से सीधे कनेक्ट करते हैं. इसलिए जब वे बिहार में प्रचार करेंगे, तो उनका असर उन वर्गों पर जरूर होगा, जो अभी तक तय नहीं कर पाए कि किसे वोट देना है.

बिहार में आधार बढ़ाना चाहते हैं राजभर

राजभर का यह कदम सिर्फ इस चुनाव के लिए नहीं माना जा रहा. वे बिहार में अपनी पार्टी का आधार बढ़ाना चाहते हैं, ताकि आगे चलकर या तो उनका दल मजबूत हो जाए या फिर अगले चुनाव में उन्हें बेहतर सीटें मिल सकें.  राजभर आगे चलकर “किंगमेकर” बनना चाहते हैं, यानी ऐसी स्थिति में आना चाहते हैं कि बिना उनके समर्थन किसी की सरकार बन न पाए.  यह देखना रोचक होगा कि बिहार में ओपी राजभर खुलकर प्रचार करते हैं या नहीं. 

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